चन्द्रशेखरआज़ाद Summary In Hindi

“चन्द्रशेखर आज़ाद” एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रीय नेता थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के साथ अपने महान योगदान के लिए प्रसिद्धता प्राप्त की। उनकी निष्ठा, साहस, और स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की कहानी हमें वीरता और राष्ट्र प्रेम के महत्व को याद दिलाती है। “चन्द्रशेखर आज़ाद” भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण योद्धा और राष्ट्रीय आदर्श के प्रतीक के रूप में जीवन में रहे हैं। Read More Class 7 Hindi Summaries.

चन्द्रशेखर आज़ाद Summary In Hindi

चन्द्रशेखर आज़ाद पाठ का सार

‘चन्द्रशेखर आज़ाद’ पाठ में लेखक ने भारत माता के वीर सपूत क्रांतिकारी स्वतन्त्रता सेनानी चन्द्रशेखर आजाद के जीवन की कुछ घटनाएँ प्रस्तुत करते हुए, उनके चरित्र से देशभक्ति की प्रेरणा लेने का संदेश दिया है। भारत 15 अगस्त, सन् 1947 ई० को अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद हुआ था, जिसे पाने के लिए अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना बलिदान दिया था। इनमें चन्द्रशेखर आजाद का नाम प्रमुख है। इनका जन्म मध्यप्रदेश के झबुआ जिले के भाँवरा गाँव में हुआ था। इनके पिता पंडित सीता राम तिवारी तथा माता का नाम जगरानी देवी था। इन्होंने प्रारंभिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में प्राप्त की तथा संस्कृत का अध्ययन बनारस में किया। चौदह वर्ष की आयु में ही अंग्रेज़ों के अत्याचारों के समाचार पढ़ कर इनका खून खौल उठता था। वे देश प्रेम की भावना से भरकर देश को आज़ाद कराने के लिए तड़पने लगे।

एक दिन अंग्रेजों के पुलिसकर्मियों द्वारा स्वतंत्रता के लिए आन्दोलन करने वालों को बेरहमी से पीटा और घसीटा देखकर इन्होंने एक पुलिस अधिकारी के माथे पर पत्थर दे मारा। वह लहूलुहान हो गया। ये वहाँ से भाग गए परन्तु एक पुलिस कर्मी ने इनके मस्तक पर चंदन का टीका लगा होने से पहचान कर इनके घर से इन्हें पकड़वा दिया। इन पर मुकद्दमा चला तो इन्होंने अपना नाम आजाद, पिता का नाम स्वतंत्र तथा घर का पता जेलखाना बताया। इस पर क्रोधित होकर मैजिस्ट्रेट ने इन्हें पन्द्रह बेंतें मारने का दंड दिया, जिसे इन्होंने ‘वन्दे मातरम्’ तथा ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाते हुए स्वीकार किया।

इन्होंने अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध गुप्त रूप से परचे बांटे। इनका एक क्रांतिकारी दल बन गया था, जिसने 9 अगस्त, सन् 1945 ई० को लखनऊ के नज़दीक काकोरी में ट्रेन रोक कर एक सरकारी खज़ाना लूट लिया था। इन के साथी अशफाकउल्ला, राम प्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र लाहिड़ी और रोशन सिंह को इस काम में शामिल होने के कारण फांसी दे दी गई थी। ये झांसी के पास ढिकनपुरा गाँव के जंगलों में ब्रह्मचारी के वेश में हरिशंकर नाम से रहने लगे। देश को स्वतंत्र कराने की चाह लिए वे वीर सावरकर और सरदार भगतसिंह से भी मिले थे। जब साइमन कमीशन के विरोध में लाला लाजपतराय शहीद हुए तो इनका बदला लेने के लिए उन्होंने भगत सिंह, राजगुरु तथा जयगोपाल के साथ पुलिस अधीक्षक स्कॉट को मारने की योजना बनाई परन्तु मारा सहायक पुलिस अधीक्षक सांडर्स गया। इसके पुलिस ने क्रांतिकारों की धरपकड़ शुरू कर दी। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल, सन् 1929 ई० को केन्द्रीय विधानसभा में बम फेंका और ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ कहते हुए अपनी गिरफ्तारी दी। बाद में भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव पर आरोप लगा पुस्तकीय भाग कर फाँसी दे दी गई तथा बटुकेश्वर दत्त को कालेपानी की सज़ा, चन्द्रशेखर आजाद अभी पकड़े नहीं गए थे।

पुलिस आज़ाद को पकड़ने के लिए उनके एक साथी तिवारी को लालच देकर अपने साथ मिला लेती है और तिवारी आज़ाद के साथ धोखा करते हुए उन्हें इलाहाबाद के अलफ्रेड फार्म ले जाता है, जहां पुलिस 27 जनवरी, सन् 1931 को आज़ाद को पकड़ना चाहती है परन्तु वे तिवारी को वहाँ से भगा कर स्वयं पुलिस का मुकाबला करते हुए शहीद हो जाते हैं। वे अपने इस प्रण को पूरा करते हैं कि उनके जीवित होते हुए उन्हें कोई छू भी नहीं सकता। देश सदा उन को स्मरण करते हुए नमस्कार करता है।

Conclusion:

“चन्द्रशेखर आज़ाद” का संग्रहण हमें एक महान स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रीय नेता के जीवन की महत्वपूर्ण भूमिका को समझने का मौका देता है। आज़ाद की साहसी और संघर्षपूर्ण यात्रा हमें यह सिखाती है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में समर्पण और संघर्ष का महत्व होता है। उनकी प्रेरणास्पद कहानी हमें यह याद दिलाती है कि अपने लक्ष्यों के लिए किसी भी समस्या का सामना करने का साहस और संकल्प होना आवश्यक है।

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