“Idgah” by Munshi Premchand remains a timeless and cherished piece of Indian literature, celebrated for its poignant depiction of the human spirit and the significance of selfless giving. Read More Class 8 Hindi Summaries.
ईदगाह कहानी Summary In Hindi
ईदगाह कहानी का सारांश
रमजान के पूरे तीस रोज़ के बाद आज ईद का दिन आया था। सारे गाँव में हलचल मची हुई थी। सब ईदगाह जाने की तैयारी कर रहे थे। लड़के सबसे ज्यादा खुश थे। वे बारबार अपने पैसे गिन रहे थे। हामिद उन सबसे ज्यादा प्रसन्न था। उसके पास केवल तीन पैसे थे। हामिद के माता-पिता मर चुके थे। अब वह अपनी बूढ़ी दादी अमीना के साथ रहता था और उसकी गोद में सोता था। गाँव में बच्चे अपने-अपने बाप के साथ मेले को जाने की तैयारी कर रहे थे। हामिद की दादी उसे अकेले मेले में भेजना नहीं चाहती थी।
हामिद के जिद्द करने पर वह उसे भेजने के लिए मान गई थी। गाँव से टोलियाँ मेले के लिए चली तो हामिद भी साथ चल पड़ा। सब बच्चे कभी दौड़ कर आगे निकल जाते और कभी पेड़ के नीचे बैठ कर पीछे वालों का इन्तजार करने लगते। शहर को जाने वाला रास्ता शुरू हो गया था। ईदगाह जाने वालों की टोलियाँ नज़र आने लगी थीं। ग्रामीणों का यह दल अपनी ग़रीबी से बेखबर धीरे-धीरे चल रहा था। बच्चों को नगर की सभी चीजें बड़ी अनोखी लग रही थीं।
इमली के घने वृक्षों की छाया में बनी हुई ईदगाह नज़र आने लगी थी। हजारों की संख्या में लोग एक के पीछे एक पंक्ति बना कर खड़े थे। ग्रामीणों का दल भी पिछली पंक्ति में जाकर खड़ा हो गया था। नमाज़ शुरू हुई। सभी सिर एक साथ सिजदे के लिए झुकते और फिर सब के सब एक साथ खड़े हो जाते। ऐसा कई बार हुआ।
नमाज़ खत्म होने पर सभी लोग एक-दूसरे के गले मिले। फिर सभी बच्चे मिठाई और खिलौनों की दुकानों पर टूट पड़े। बहुत-से लोग हिंडौला झूल रहे थे। हामिद के साथी महमूद, मोहसिन, नूरे और सम्मी घोड़ों और ऊँटों पर बैठे क्योंकि उनके पास पैसे थे। हामिद उन्हें दूर खड़ा देखता रहा। वह अपने तीन पैसे फ़िजूल में खर्च करना नहीं चाहता था। फिर महमूद, मोहसिन और नूरे ने अपनी पसन्द के खिलौने खरीदे। वे सब दो-दो पैसे के खिलौने थे। हामिद यह नहीं चाहता कि अपने पैसे खिलौनों पर खर्च करे। उसने अपनी दादी के लिए तीन पैसे में एक चिमटा खरीद लिया।
हामिद ने जब चिमटा ले जाकर अपनी दादी को दिखाया तो वह नाराज़ हुई। किन्तु जब हामिद ने बताया कि तवे से उसकी उँगलियाँ जल जाती थीं इसलिए उसने चिमटा खरीदा था तब यह सुनकर बूढ़ी दादी बच्चों की तरह रोने लगी और हामिद उसे चुप कराने और उसके आँसू पोंछने लगा था।