मेरा भला करने वालों से बचाएँ Summary in Hindi

मेरा भला करने वालों से बचाएँ Summary in Hindi

“मेरा भला करने वालों से बचाएँ” राजेंद्र सहगल द्वारा लिखित एक व्यंग्यात्मक लघु कथा है। यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति के बारे में है जो हर किसी से बचता है जो उसका भला करने की कोशिश करता है। वह इस बात से चिंतित है कि लोग उसका लाभ उठा रहे हैं या उसका इस्तेमाल कर रहे हैं।

मेरा भला करने वालों से बचाएँ Summary in Hindi

मेरा भला करने वालों से बचाएँ लेखक परिचय :

सहगल जी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से एम्.ए.,पीएच्.डी. की उपाधि प्राप्त की। आप बैंक में उपप्रबंधक के रूप में कार्यरत रहे। आप आकाशवाणी से विभिन्न विषयों पर वार्ताओं का प्रसारण करते हैं तथा सामयिक महत्त्व के विषयों पर फीचर लेखन भी करते हैं।

मेरा भला करने वालों से बचाएँ प्रमख कतियाँ :

‘हिंदी उपन्यास’, ‘तीन दशक’ (शोध प्रबंध), ‘असत्य की तलाश’, ‘धर्म बिका बाजार में (व्यंग्य संग्रह)

मेरा भला करने वालों से बचाएँ विधा परिचय :

‘व्यंग्य’ का मतलब शब्दों का तीखा प्रहार। लेखक अपनी संवेदना के धरातल पर समाज में व्याप्त विसंगतियों (discrepancy) पर कड़ा प्रहार करता है। वह भाषा की व्यंजना शक्ति का प्रयोग इतना बखूबी करता है, कि विसंगति में संगति, कुरूपता (ugliness) के पीछे सुंदरता, विरोधाभास (parodax) में समानता की सृष्टि होकर हास्य रस की निष्पत्ति होती है।

मेरा भला करने वालों से बचाएँ विषय प्रवेश :

लेखक का मानना है कि, झूठ को सच बताने में जो ताकत लगती है उसका सौंवा हिस्सा भी सच को सच साबित करने में नहीं लगता। ‘मुफ्त के चक्कर’ में अपना भला करने वाले हमारे आस-पास कई सारे लोग दिखाई देते हैं, उनसे ‘मुझे बचना है’ कहकर इस प्रवृत्ति पर व्यंग्य कसा है।

मेरा भला करने वालों से बचाएँ मुहावरें :

  • दर-दर भटकना – मारा-मारा फिरना।
  • सोने पे सुहागा होना – किसी वस्तु या व्यक्ति का उच्चतर/बेहतर होना।
  • राह देखना – इतंजार करना।
  • मेरा भला करने वालों से बचाएँ टिप्पणी :

तुरुप – ताश का एक खेल जिसमें प्रधान माने हुए रंग का छोटे-से-छोटा पत्ता अन्य रंगों के बड़े-से-बड़े पत्ते को काट सकता है।

मेरा भला करने वालों से बचाएँ सारांश :

समाज का हर एक आदमी लेखक का भला करना चाहता है। अखबार में विज्ञापन के ढेर सारे कागज पाए जाते हैं, जिसमें हर तरह के इलाज के लिए क्लिनिक है, स्लिमिंग सेंटरवाला आप के आने का इंतजार कर रहा है, हलवाई लाजबाब मिठाई बेच रहा है।

मेरा भला करने वालों से बचाएँ Summary in Hindi 1

कहीं क्रेडिट कार्ड वाला फ्री डेबिट कार्ड दे रहा है। कोई घर तक सामान पहुँचाने के लिए तैयार है। गाड़ी वाला नई गाड़ी के लिए लोन के लिए बैंक के कागज दे रहा है। कहीं पर मुस्कुराती चहचहाती लड़कियों के झुंड आपका आटोग्राफ लेने के लिए आती हैं। कोई साफ पानी के लिए वॉटर फिल्टर लगाना चाह रहा है। सब कुछ किस्तों में और क्रेडिट कार्ड पर मिल रहा है। साबुन की टिकियाँ कम-से-कम चार लेनी पड़ती है।

हर जगह भाईचारा इतना बढ़ गया है कि, ‘लार्जर टॅन लाइफ’ हो गया है। पार्क में जाते हैं तो योग संस्थान वाले ‘योगा’ के फायदे समझाते हैं। फिल्म देखने जाते हैं तो टिकट के साथ खाने का सामान शामिल कर लिया जाता है। ‘मॉल’ में कपड़ों की सेल लगी है।

देशवासियों के प्रति होने वाले प्यार के कारण वह सस्ता माल बेच रहा है। दरअसल वह सेकेंड का सस्ता माल बेचने के लिए अपने को धरती का लाल कहता है। कोई दुकानवाला त्योहारों पर दुकान की छुट्टियों की अग्रिम सूचना देता है।

घर जाकर टीवी शुरू करते हैं, तो समाचार चैनल खबरों के नाम पर डरा रहे हैं। मौसम का हाल जानना चाहते हैं, तो कहते हैं, अगर आप जीवित रहना चाहते हैं, तो घर से बाहर न निकलें। दरअसल ये सारे लोग हमारा भला चाहने वाले हैं लेकिन हम इन्हें ठीक तरह से समझ नहीं पा रहे हैं।

लेखक के मोहल्ले में ‘पुरुष ब्यूटी पार्लर’ खुल गया है। लेखक नाखून कटवाने के लिए जाता है, तो उसे सलाह मिलती है कि लेखक अपना ‘फेशियल’ करवाकर अपना ‘फेस वेल्यू’ बढ़ाए। लेखक के नाखून इस तरह तराशे मानो कोई संगमरमर की मूर्ति तराश रहा हो। आखिरकार नाखून काटने के 1000/- रु. लेकर मुक्त कर दिया।

रास्ते में मोबाइल खरीदारों की लाइन लगी थी पूछने पर पता चला कि, मोबाइल के साथ सिम कार्ड मुफ्त मिलता है। लेखक ने भी मोबाइल खरीदा। कोई भी फोन नहीं आ रहा है। लेखक सोचता है, शायद उसने कोई गलत बटन तो नहीं दबाया। कार्यव्यस्तता के कारण लोग सड़क पर चलते-चलते फोन कर रहे हैं। ‘सेल’ फोन से हम हीनता की ग्रंथि से मुक्त हुए हैं। हम एक-दूसरे से कम, फोन पर ज्यादा बातें कर रहे हैं।

अपना नुकसान करने वालों से तो हम बच सकते हैं किंतु हमारा फायदा करने वालों से बचने की ज्यादा जरूरत है। ना कहने पर भी वे, ‘यह ले लो, वो फ्री, वो ले लो, ये फ्री’, कहकर हर हालत में हमारा फायदा करके ही मानेंगे।

इस तरह लेखक फायदा करने वालों से बचना चाहता है।

Conclusion

कहानी का नायक अंततः यह सीखता है कि उसका भला करने वालों से बचना संभव नहीं है। वह यह भी सीखता है कि लोगों की मदद करने में कोई बुराई नहीं है।

पंद्रह अगस्त Summary in Hindi

पंद्रह अगस्त Summary in Hindi

पंद्रह अगस्त” भारत का राष्ट्रीय पर्व है। यह वह दिन है जब भारत को अंग्रेजों की 200 साल की गुलामी से आजादी मिली थी। 15 अगस्त, 1947 को भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले की प्राचीर से भारतीय झंडा फहराया और देश को आजाद घोषित किया।

पंद्रह अगस्त एक ऐतिहासिक दिन है। यह दिन भारतीयों के लिए गर्व और खुशी का दिन है। इस दिन, देश भर में उत्सव मनाया जाता है। लोग राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं, देशभक्ति के गीत गाते हैं और एक-दूसरे को बधाई देते हैं।

पंद्रह अगस्त Summary in Hindi

पंद्रह अगस्त कवि परिचय :

गिरिजाकुमार माथुर जी का जन्म 22 अगस्त 1919 को अशोक नगर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। आपकी आरंभिक शिक्षा झाँसी में हुई थी। आपने लखनऊ विश्वविद्यालय से एम. ए. (अंग्रेजी) एवं एल. एल. बी. की शिक्षा प्राप्त की। कुछ समय तक आपने वकालत की तत्पश्चात दिल्ली में आकाशवाणी में काम किया। कुछ समय तक दूरदर्शन में भी काम किया और वहीं से सेवा निवृत (retired) हुए। माथुर जी की मृत्यु 10 जनवरी 1994 में हुई।

पंद्रह अगस्त Summary in Hindi 1

स्वतंत्रता प्राप्ति के दिनों में हिंदी साहित्यकारों में जो प्रमुख कवि थे, उनमें गिरिजाकुमार माथुर जी का नाम अग्रणी (leading) है।

पंद्रह अगस्त प्रमुख रचनाएँ :

‘मंजीर’, ‘नाश और निर्माण’, ‘धूप के धान’, ‘शिलापंख चमकीले’, ‘जो बँध नहीं सका’, ‘साक्षी रहे वर्तमान’, ‘भीतरी नदी की यात्रा’, ‘मैं वक्त के हूँ सामने’ (काव्य संग्रह), ‘जन्म कैद’ (नाटक) आदि।

पंद्रह अगस्त काव्य विधा :

यह ‘गीत’ विधा है। इसमें एक मुखड़ा (first line) होता है और दो या तीन अंतरे (stanza) होते हैं। इसमें परंपरागत भावबोध तथा शिल्प प्रस्तुत किया जाता है। कवि इस प्रकार की अभिव्यक्ति में प्रतीक, बिंब तथा उपमान का प्रयोग करता है।

पंद्रह अगस्त विषय प्रवेश :

प्रस्तुत गीत में कवि ने स्वतंत्रता के हर्ष और उल्लास को उत्साह पूर्वक अभिव्यक्त (expressed) किया है। कवि देशवासियों एवं सैनिकों को अत्यंत जागरूक रहने का आवाहन कर रहा है।

पंद्रह अगस्त सारांश :

(कविता का भावार्थ) : प्रस्तुत कविता आज़ादी के बाद देश के प्रत्येक नागरिक को संबोधित करती है। कवि देशवासियों को पहरेदार के समान सावधान रहने के लिए कहता है। कवि का कहना है कि हे देशवासियो, यह हमारी विजय की पहली रात है। आज से देश की सभी तरह की सुरक्षा का उत्तरदायित्व हमारा है। हमें उस निश्चल दीपक की भाँति (जो विपरीत समय में भी अपनी रोशनी से अंधकार को ललकारता रहता है।) अपने देश पर आने वाली सभी समस्याओं को दूर भगा देना है।

कविता में प्रथम स्वर्ग का तात्पर्य – पहला लक्ष्य पहली प्राप्ति है, जिसे हमने सामूहिक प्रयास से प्राप्त किया है। कवि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शेष कार्यों की ओर संकेत करते हैं। हमारे सामने अनेक लक्ष्य शेष हैं। देशवासियों ने शारीरिक, मानसिक और आर्थिक पीड़ा को बहुत लंबे समय तक सहन किया है।

देश अपने अपमान को अभी भुला नहीं पाया है। इसलिए आज़ादी के बाद हमारी जिम्मेदारी और अधिक बढ़ गई है। हमें समुद्र की भाँति मन में गहराई और विशालता रखनी होगी। हमें पहले से भी और अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है।

बड़े संघर्ष के बाद मिली आज़ादी के बाद भी अभी बड़ी-बड़ी चुनौतियाँ अपना ताल ठोक (challenging) रही हैं। हमारे देश पर अनेक देश की ओर से खतरे मँडरा रहे हैं। ब्रिटिश सरकार ने हमें कमजोर करने के लिए कई प्रकार के जाल बिछाए हैं। हमें जाति, धर्म और प्रांत के नाम पर अलग-अलग बाँटने का प्रयास किया है। यह हमारी प्रगति के लिए रुकावट है।

आज ब्रिटिश सरकार का सिंहासन ध्वस्त हो गया है। लोगों में आक्रोश है। अगर हम सावधान न रहे तो हम आपस में ही लड़कर एक दूसरे को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इसलिए इस-हर्ष-विषाद (griet) की घड़ी में हमें अत्यंत सावधान रहने की आवश्यकता है। जिस प्रकार चाँद की रोशनी अँधेरे में भी पथिक (passenger) को रास्ता दिखाती है ठीक उसी प्रकार हे पहरुए तुम्हें भी सबको रास्ता दिखाना है।

कवि का कहना है कि यह सही है कि हमें स्वतंत्रता मिल गई है। शत्रु सामने से चला गया है पर पीछे से वह कौन सा खेल खेलेगा हमें पता नहीं है। इससे बचने के लिए हमें पहले से भी और अधिक सतर्क रहना होगा। सालों-साल की गुलामी ने हमारे जन समुदाय को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सभी ओर से अत्यंत दुर्बल बना दिया है।

किंतु हमारा यह एक विश्वास, है कि हमारे जीवन की एक नई शुरुआत हो गई है, यह सोचकर हमारा मनोबल बढ़ जाता है। जैसे समुद्र की लहरें एकजुट होकर समुद्र में ज्वार ला देती हैं हमें भी उन समुद्री लहरों की तरह ही एक-साथ होकर आगे बढ़ते रहना है। हे पहरुए ! उपरोक्त कार्य के लिए तुम्हें अत्यंत सावधान रहना होगा।

Conclusion

पंद्रह अगस्त” भारत के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है। यह दिन हमें स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को याद दिलाता है। यह दिन हमें यह भी याद दिलाता है कि हमें अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए और एक मजबूत और समृद्ध देश बनाना चाहिए।

लघु कथाएँ Summary in Hindi

लघु कथाएँ Summary in Hindi

“लघु कथाएँ” एक ऐसी साहित्यिक विधा है जिसमें एक छोटी सी कहानी को संक्षेप में बताया जाता है। इनमें आमतौर पर एक या दो मुख्य पात्र होते हैं और कहानी का घटनाक्रम भी बहुत कम होता है। लघु कथाएँ अक्सर किसी एक विचार या विषय पर केंद्रित होती हैं और पाठक को एक संक्षिप्त और प्रभावी तरीके से एक संदेश देती हैं।

लघु कथाओं की उत्पत्ति काफी पुरानी है, लेकिन यह विधा 19 वीं शताब्दी में अधिक लोकप्रिय हुई। उस समय, लघु कथाएँ अक्सर पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में प्रकाशित होती थीं। आजकल, लघु कथाएँ पुस्तकों, पत्रिकाओं, वेबसाइटों और अन्य माध्यमों में प्रकाशित होती हैं।

लघु कथाएँ Summary in Hindi

लघु कथाएँ लेखक परिचय :

श्रीमती संतोष श्रीवास्तव जी का जन्म मध्यप्रदेश के मंडला नामक गाँव में 23 नवंबर 1952 को हुआ। आधुनिक नारी जीवन के विविध आयाम तथा सामाजिक जीवन की विसंगतियाँ (discrepancy) आपके साहित्य द्वारा चित्रित है।

लघु कथाएँ रचनाएँ :

आपकी बहुविध रचनाएँ प्रकाशित हैं : जैसे ‘दबे पाँव प्यार’ ‘टेम्स की सरगम’ ‘ख्वाबों के पैरहन (उपन्यास)’ ‘बहके बसंत तुम’, ‘बहते ग्लेशियर’ (कहानी संग्रह), ‘फागुन का मन’ (ललित निबंध संग्रह) ‘नीली पत्तियों का शायराना हरारत’ (यात्रा संस्मरण)

लघु कथाएँ Summary in Hindi 1

लघु कथाएँ विधा परिचय :

‘लघुकथा’ यह एक गद्य विधा है। कथा तत्त्वों से परिपूर्ण किंतु आकार से लघुता यह उसकी विशेषता है। अत्यंत कम शब्दों में जीवन की पीड़ा, संवेदना, आनंद की गहराई को प्रकट करने की क्षमता लघुकथा में होती है। कोई भी छोटी घटना, प्रसंग, परिस्थिति का आधार लेकर लघुकथा लिखी जाती है। हिंदी साहित्य में डॉ. कमल किशोर गोयनका, डॉ. सतीश दुबे, संतोष सुपेकर, कमल चोपड़ा आदि को प्रमुख लघुकथाकार के रूप में पहचाना जाता है।

लघु कथाएँ विषय प्रवेश :

(अ) उषा की दीपावली : ‘उषा की दीपावली’ यह एक मर्मस्पर्शी (touching) लघुकथा है। अनाज की बरबादी पर बालमन की संवेदनशील प्रतिक्रिया का सुंदर चित्रण है। एक ओर शादी-ब्याह में थालियों में जरूरत से ज्यादा खाना लेकर उसे जूठा छोड़ने वाले श्रीमान लोग तो दूसरी ओर एक वक्त की रूखी-सूखी रोटी के लिए भी तरसने वाले लोग, इस सामाजिक विरोधाभास (paradox) का चित्रण इस लघुकथा में है।

(आ) ‘मुस्कुराती चोट’ : ‘मुस्कुराती चोट’ इस दूसरी लघुकथा में गरीबी के कारण इच्छा होकर भी पढ़ाई जारी न रख पानेवाला एक छोटा लड़का ‘बबलू’ की उथल-पुथल भरी जिंदगी है। बबलू की पढ़ाई की अदम्य (indomitable) इच्छा, उसकी बाधाएँ, छोटी-छोटी चोटें और अंत में मुस्कुराहट फैलानेवाली सुखद बात पाठकों को लुभाती है। दोनों लघुकथाएँ ‘आशावाद’ को जगाती है।

लघु कथाएँ महावरा :

टस से मस न होना – बिल्कुल प्रभाव न पड़ना, कुछ परिणाम न होना।

लघु कथाएँ सारांश :

(अ) उषा की दीपावली : दीपावली का त्योहार : दीपावली का त्योहार था। नरक-चौदस के दिन लोगों ने कंपाउंड के मुंडेर पर आटे के दीप जलाए थे। सुबह तक वे दीप बुझ गए थे।

बबन की गरीबी : सुबह बबन सफाई के लिए आया था, जो एक गरीब इन्सान था। बुझे दीप उठाकर कूड़े में फेंकने के बजाय वह जेब में रख रहा था। दस साल की उषा ने यह दृश्य देखा। उसे पूछने पर पता चला कि बबन वे आटे के दीपक सेंककर खाना चाहता है।

उषा की संवेदना : उषा की आँखों के सामने वह दृश्य घूमने लगा, जो उसने अनेक बार देखा था। अमीर लोग शादी-ब्याह में ढेर सारा खाना प्लेटों में लेकर बचा-खुचा फेंक देते हैं। उषा की आँखें भर आईं। घर में जाकर उसने दीपावली के मौके पर बनाए हुए पकवान लाकर बबन को दे दिए जिसकी वजह से बबन की आँखों में खुशी के हजारों दीप जगमगा उठे। उषा की दीपावली भी इससे खुशहाल हो गई।

लघु कथाएँ Summary in Hindi 2

(आ) मुस्कुराती चोट : ‘बबलू की गरीबी’ – इस लघुकथा का बबलू, गरीब परिवार का लड़का है। माँ चौका-बर्तन करके कुछ पैसे कमाती है। पिता जी बीमार है। माँ का हाथ बँटाने के लिए बबलू घर-घर जाकर रद्दी इकट्ठा करके रद्दी वाले को बेचता है। बबलू के पास किताबें खरीदने के लिए पैसे न होने से उसका स्कूल छूट गया था।

अविश्वास की चोट : एक दिन वह एक घर में रद्दी लेने गया था। उस रददी में किताबें थीं। घर मालकिन की बेटी वे किताबें बबलू को पढ़ने के लिए मुफ्त में देना चाहती थी। परंतु घर मालकिन का बबलू पर भरोसा नहीं था। वह किताबें बेचकर चैन करेगा ऐसा उसे शक था। बबलू ने रद्दी में से किताबें अलग रखवा दीं। रद्दी वाले को किताबों के पैसे खर्च करने की झूठ बात बताकर उससे डाँट सुनकर भी चुप रहा।

पछतावा : बबलू किताबें लेकर वापस आ रहा था। मालकिन ने उसे देखा तो अपने अपशब्दों पर उसे पछतावा हुआ। उसे पता चला कि बबलू पढ़ने की अदम्य इच्छा रखता है। बबलू की आगे की सारी पढ़ाई का खर्चा उठाने का उसने निश्चय किया। सुखद अंत वाली यह कहानी आशावादी है।

Conclusion

“लघु कथाएँ” साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं। वे पाठकों को मनोरंजन, शिक्षा और प्रेरणा प्रदान कर सकते हैं। लघु कथाएँ अक्सर पाठकों को एक नई दृष्टि या विचार प्रदान करती हैं।

Essays About Importance Of Education: Education Is Success To Wisdom

Essays About Importance Of Education

Essays About Importance Of Education: Education is often considered the cornerstone of societal growth and personal development. It provides individuals with the knowledge and skills necessary to succeed in various aspects of life. This article explores the importance of education and its role in shaping society and individuals. In this article, we will explore the importance of education through a series of essays that examine its value and significance from different perspectives.

From the role of education in promoting social and economic development to the benefits of education for personal growth, each essay provides a unique perspective on why education is so essential. Through these essays, we hope to inspire a greater appreciation for education and promote efforts to create a more inclusive and equitable education system that benefits everyone.

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Importance Of Education In Society

Education is a powerful tool for promoting social and economic development. It can lead to increased productivity, innovation, and efficiency in various sectors, including agriculture, healthcare, and technology.

Importance Of Education In Society

Education also plays a crucial role in reducing poverty and promoting equality. When individuals have access to quality education, they are more likely to secure better-paying jobs and break the cycle of poverty. Moreover, education is a means of empowering individuals and communities by providing them with the necessary tools to advocate for their rights and make informed decisions.

Benefits Of Education

The benefits of education are numerous and far-reaching. On a personal level, education can lead to increased earning potential, improved health outcomes, and greater self-confidence. Individuals with higher levels of education are more likely to live healthier and longer lives, as education promotes healthy behaviors and encourages individuals to seek out preventative care.

Professionally, education can lead to career advancement and job security, as individuals with advanced degrees are often more competitive in the job market. Socially, education can improve communication and problem-solving skills, leading to more harmonious and productive relationships.

Challenges To Accessing Education

Despite its many benefits, accessing education is not always easy. Economic barriers such as cost and access to resources can limit educational opportunities for individuals and communities. Societal barriers such as discrimination and prejudice can also make it difficult for some individuals to pursue education.

Cultural barriers such as gender norms and traditions can also prevent individuals from accessing education. Overcoming these challenges requires a collective effort from governments, institutions, and individuals to create a more inclusive and equitable educational system.

Importance Of Lifelong Learning

Learning should not stop once an individual completes formal education. Lifelong learning is the continuous process of acquiring new knowledge and skills throughout one’s life. It is essential in today’s rapidly changing world, where technological advancements and social transformations are constant.

Engaging in lifelong learning can provide individuals with a competitive edge in the job market, enhance their personal and professional growth, and keep their minds sharp and active.

Conclusion

Education is an essential component of personal and societal growth. It provides individuals with the necessary tools to succeed in various aspects of life, promotes social and economic development, and empowers individuals and communities.

Despite the challenges that limit access to education, efforts to create a more inclusive and equitable educational system can help ensure that everyone has the opportunity to learn and grow. Moreover, engaging in lifelong learning can provide individuals with the necessary tools to keep up with a rapidly changing world and achieve personal and professional success.

FAQs On Essays About Importance Of Education

Question 1.
What is an essay on the importance of education?

Answer:
An essay on the importance of education explores the various reasons why education is a crucial aspect of personal and societal growth. It highlights the benefits of education, such as increased earning potential, improved health outcomes, and greater self-confidence. It also delves into the societal benefits of education, including increased productivity, innovation, and efficiency in various sectors, reduced poverty, and greater social equality.

The essay may also examine the challenges to accessing education, such as economic, societal, and cultural barriers, and propose solutions to these challenges. Ultimately, the essay aims to emphasize the critical role that education plays in shaping individuals and societies and inspire readers to value and pursue education.

Question 2.
What is the importance of an education essay of 250 words?

Answer:

  • Education is one of the most fundamental aspects of personal and societal growth. It is the foundation upon which individuals and communities can build brighter futures. Education can provide individuals with the necessary skills and knowledge to achieve personal and professional success, improve health outcomes, reduce poverty, and promote equality.
  • The benefits of education are numerous and far-reaching. Individuals with higher levels of education are more likely to secure better-paying jobs and break the cycle of poverty. Moreover, education is a means of empowering individuals and communities by providing them with the necessary tools to advocate for their rights and make informed decisions. Education also plays a crucial role in promoting social and economic development. It can lead to increased productivity, innovation, and efficiency in various sectors, including agriculture, healthcare, and technology.
  • However, accessing education is not always easy. Economic barriers such as cost and access to resources can limit educational opportunities for individuals and communities. Societal barriers such as discrimination and prejudice can also make it difficult for some individuals to pursue education. Cultural barriers such as gender norms and traditions can also prevent individuals from accessing education.
  • Efforts to create a more inclusive and equitable educational system are necessary to ensure that everyone has the opportunity to learn and grow. Governments, institutions, and individuals all have a role to play in promoting education and addressing the challenges that limit access to it.
  • In conclusion, education is essential for personal and societal growth. It provides individuals with the necessary tools to succeed in various aspects of life, promotes social and economic development, and empowers individuals and communities. By valuing and investing in education, we can create brighter futures for ourselves and future generations.

Question 3. 
What is the importance of an education essay in 100 words?

Answer:
Education is important as it provides individuals with the knowledge, skills, and tools needed to navigate the world and achieve success. Education helps individuals to develop critical thinking skills, problem-solving abilities, and personal growth. It plays a critical role in promoting social and economic development, reducing poverty, and creating a more just and equitable society.

What is the importance of an education essay in 100 words

By investing in education, we invest in the future of ourselves and future generations. Ultimately, education is essential for personal and societal growth, and it provides a foundation for individuals and communities to build brighter futures.

Question 4.
What is the importance of an education essay of 300 words?

Answer:

  • Education is essential for personal and societal growth. It provides individuals with the knowledge, skills, and tools needed to navigate the world and achieve success. Education is a critical component of personal growth, as it promotes intellectual and emotional development, critical thinking skills, and problem-solving abilities.
  • Education also plays a vital role in promoting social and economic development. It can lead to increased productivity, innovation, and efficiency in various sectors, including agriculture, healthcare, and technology.
  • In addition to the benefits for individuals, education has significant societal benefits. Access to education reduces poverty, promotes equality, and creates a more just and equitable society. Education can also promote social cohesion and reduce conflict by fostering understanding and respect for different cultures and viewpoints.
  • Despite the benefits of education, accessing it is not always easy. Economic, societal, and cultural barriers can limit educational opportunities for individuals and communities.
  • Efforts to create a more inclusive and equitable educational system are necessary to ensure that everyone has the opportunity to learn and grow. Governments, institutions, and individuals all have a role to play in promoting education and addressing the challenges that limit access to it.
  • Investing in education is a wise and strategic decision that benefits individuals and society as a whole. Education is an essential tool for achieving personal and societal growth, and it provides a foundation for individuals and communities to build brighter futures. By valuing and investing in education, we can create a better world for ourselves and future generations.

Question 5.
Why is education important 10 points?

Answer:

  1. Education is essential for personal growth and development.
  2. It provides individuals with the knowledge, skills, and tools needed to navigate the world and achieve success.
  3. Education is a critical component of social and economic development.
  4. It can lead to increased productivity, innovation, and efficiency in various sectors.
  5. Education promotes equality and reduces poverty.
  6. It can create a more just and equitable society.
  7. Education fosters critical thinking skills and problem-solving abilities.
  8. It promotes intellectual and emotional development.
  9. Education reduces conflict and promotes social cohesion.
  10. Investing in education is a wise and strategic decision that benefits individuals and society as a whole.

The 3Ls of Empowerment Summary

Maharashtra 11th Class Summary In Hindi

Maharashtra 11th Class Summary In Hindi

महाराष्ट्र कक्षा 11 का सिलेबस एक छात्र की शैक्षिक यात्रा में महत्वपूर्ण पड़ा है। यह चरण माध्यमिक शिक्षा से उच्च माध्यमिक शिक्षा की ओर का संकेत देता है। पाठ्यक्रम विभिन्न विषयों में मजबूत नींव प्रदान करने और छात्रों को 12वीं बोर्ड परीक्षा और उसके परे के चुनौतियों के लिए तैयार करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

Maharashtra 11th Class Summary In Hindi

  • प्रेरणा Summary in Hindi
  • लघु कथाएँ Summary in Hindi
  • पंद्रह अगस्त Summary in Hindi
  • मेरा भला करने वालों से बचाएँ Summary in Hindi
  • मध्ययुगीन काव्य (अ) भक्ति महिमा Summary in Hindi
  • मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला Summary in Hindi
  • कलम का सिपाही Summary in Hindi
  • स्वागत है Summary in Hindi
  • तत्सत Summary in Hindi
  • गजलें Summary in Hindi
  • महत्त्वाकांक्षा और लोभ Summary in Hindi
  • भारती का सपूत Summary in Hindi
  • सहर्ष स्वीकारा है Summary in Hindi
  • नक्कड़ नाटक Summary in Hindi
  • हिंदी में उज्ज्वल भविष्य की संभावनाएँ Summary in Hindi
  • समाचार : जन से जनहित तक Summary in Hindi
  • रेडियो जॉकी Summary in Hindi
  • ई – अध्ययन : नई दृष्टि Summary in Hindi

सम्ग्र रूप में, महाराष्ट्र कक्षा 11 का पाठ्यक्रम छात्रों को वो ज्ञान और कौशल प्रदान करने का उद्देश्य है जो उन्हें शिक्षा में उत्कृष्टता हासिल करने और भविष्य के करियर आकांक्षाओं को पूरा करने की आवश्यकता है। यह उच्च शिक्षा और एक उम्मीदवार भविष्य की ओर का एक कदम है

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव Summary in Hindi

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव Summary in Hindi

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव” (लुमिनेसेंट जीव) वे जीव हैं जो अपने शरीर में प्रकाश उत्पन्न कर सकते हैं। प्रकाश उत्पादन एक प्राकृतिक घटना है जो विभिन्न प्रकार के जीवों में पाई जाती है, जिनमें पौधे, कीड़े, मछली और समुद्री अकशेरुकी शामिल हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव Summary in Hindi

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव लेखक का परिचय

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव लेखक का नाम :
डॉ. परशुराम शुक्ल। (जन्म 6 जून, 1947.)

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव प्रमुख कृतियाँ :
‘जासूस परमचंद के कारनामे’ (बाल धारावाहिक), ‘नन्हा जासूस’ (बाल कहानी संग्रह), ‘सुनहरी परी और राजकुमार’ (बाल उपन्यास), ‘नंदनवन’, ‘आओ बच्चो, गाओ बच्चो’, ‘मंगल ग्रह जाएँगे’ (बाल कविता संग्रह) आदि।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव विशेषता :
बाल साहित्य लेखन और पशु जगत का विश्लेषण करने में सिद्धहस्त। आपकी अनेक कृतियों का अंग्रेजी, उर्दू, पंजाबी, सिंधी आदि भाषाओं में अनुवाद। राष्ट्रीय स्तर के अनेक पुरस्कारों से सम्मानित।

विधा :
लेख। लेख लिखने की परंपरा बहुत पुरानी है। इसमें वस्तुनिष्ठता, ज्ञानपरकता तथा शोधपरकता जैसे तत्त्वों का समावेश होता है। लेख समाज विज्ञान, राजनीति, इतिहास जैसे विषयों का ज्ञानवर्धन करने के साथ-साथ जानकारी का नवीनीकरण भी करते हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव विषय प्रवेश :
हम प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों में केवल जुगनू से ही परिचित हैं। लेकिन जुगनू के अतिरिक्त ऐसे अनेक जीव हैं, जो प्रकाश उत्पन्न करते हैं। प्रस्तुत पाठ में लेखक ने प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों के बारे में विस्तार से बताया है। लेखक कहना चाहते हैं कि हमें विज्ञान की दृष्टि से संसार को देखने की आवश्यकता है।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव पाठ का सार

विश्व के समस्त जीवों के लिए प्रकाश का बहुत महत्त्व है। मनुष्य ने अपने लिए प्रकाश की कई तरह की कृत्रिम व्यवस्था की. है। इसी तरह संसार में ऐसे अनेक जीव पाए जाते हैं जिनके शरीर पर प्रकाश उत्पन्न करने वाले अंग होते हैं। मानव द्वारा तैयार किए गए प्रकाश में ऊष्मा होती है, पर जीवों द्वारा उत्पन्न प्रकाश में ऊष्मा नहीं होती। जीवों के प्रकाश उत्पन्न करने की क्रिया को ल्युमिनिसेंस (Luminiscence) कहते हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव Summary in Hindi 1

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों में जुगनू (Firefly) प्रसिद्ध जीव है। यह कीट वर्ग का जीव है और पूरे वर्ष प्रकाश उत्पन्न करता है।

संसार में कवक (छत्रक) (Fungus) की कुछ जातियाँ रात में प्रकाश उत्पन्न करती हैं। इसी प्रकार मशरूम की कुछ जातियाँ भी रात में प्रकाश उत्पन्न करती हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव थल की अपेक्षा खारे पानी यानी सागरों-महासागरों में अधिक पाए जाते हैं। ये सागर के गहरे पानी में पाए जाते है। इनमें जेलीफिश, स्क्विड, क्रिल तथा विभिन्न जाति के झींगे मुख्य हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव दो प्रकार से प्रकाश उत्पन्न करते हैं। एक जीवाणुओं द्वारा और दूसरे रासायनिक पदार्थों की पारस्परिक क्रिया द्वारा कुछ जीवों के शरीर पर ऐसे जीवाणु रहते हैं, जो प्रकाश उत्पन्न करते हैं। ये जीव प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं से सहजीवी संबंध बना लेते हैं और आवश्यकता के अनुसार इनके प्रकाश का उपयोग करते हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव Summary in Hindi 2

जीवाणुओं के प्रकाश का उपयोग करने वाले जीव इस प्रकाश का उपयोग दो तरह से करते हैं – एक शरीर के भाग को भीतर खींच कर और दूसरे प्रकाश उत्पन्न करने वाले भाग को ढककर। इससे वे उस स्थान का प्रकाश समाप्त कर देते हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले कुछ जीव रसायनों की सहायता से प्रकाश उत्पन्न करते हैं। वे रसायन प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों के शरीर में रहते हैं तथा ल्यूसीफेरिन तथा ल्यूसीफेरैस नामक रसायनों की सहायता से प्रकाश उत्पन्न करते हैं।

अधिकांश जीव जीवाणुओं द्वारा अथवा रासायनिक क्रिया द्वारा प्रकाश उत्पन्न करते हैं। लेकिन कुछ जीव ऐसे होते हैं जिनके शरीर में विशेष प्रकार की ग्रंथि होती है, जिससे एक विशेष प्रकार का द्रव पदार्थ निकलता है। वह द्रव पदार्थ पानी के संपर्क में आते ही प्रकाश उत्पन्न करने लगता है।

समुद्र में पाए जाने वाले प्रकाश उत्पादक जीव पानी के बाहर प्रकाश उत्पन्न नहीं कर सकते हैं।

अध्ययनों से पता चला है कि जमीन और पानी के सभी जीव अपने अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अपने-अपने ढंग से प्रकाश उत्पन्न करते हैं। ये उद्देश्य इस प्रकार होते हैं – साथी की खोज और संकेतों का आदान-प्रदान, शिकार की खोज और शिकार को आकर्षित करना, कामाफ्लास उत्पन्न करना तथा आत्मरक्षा करना।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव Summary in Hindi 3

गहरे समुद्रों में अनेक जीव शिकार की खोज के लिए अपने शरीर से प्रकाश उत्पन्न करते हैं। एंगलर मछली उनमें से एक है। समुद्र में अनेक जीव, विशेषकर मछलियाँ शिकार करने अथवा सुरक्षा की दृष्टि से कामाफ्लास के लिए प्रकाश उत्पन्न करती हैं। इससे उन्हें शिकार करने और सुरक्षित रहने में सहायता मिलती है। समुद्र के कुछ अन्य जीव भी आत्मरक्षा के लिए अपने प्रकाश अंगों से तरल रसायन छोड़कर चमकीला प्रकाश उत्पन्न करते हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों के बारे में वैज्ञानिक अध्ययन सन 1600 के आसपास शुरू हुआ था। वैज्ञानिक यह जानना चाहते थे कि कुछ जीव प्रकाश क्यों उत्पन्न करते हैं। सन 1794 तक जीव वैज्ञानिक यह समझते रहे कि समुद्री जीव फासफोरस की सहायता से प्रकाश उत्पन्न करते हैं। किंतु फासफोरस विषैला पदार्थ होता है यह जीवित कोशिका में नहीं रह सकता। इसलिए इस मत को मान्यता नहीं मिल सकी।

सन 1794 में इटली के वैज्ञानिक स्पैलेंजानी, सन 1887 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक थिबाइस तथा सन 1894 में प्रोफेसर अलिरक डाहलगैट ने जीवों के प्रकाश उत्पन्न करने के बारे में विभिन्न मत व्यक्त किए। इससे प्रकाश उत्पन्न करने वाले नए-नए जीवों के खोज के कार्य को प्रोत्साहन मिला।

सागर में प्रकाश उत्पन्न करने वाले तरह-तरह के जीव पाए गए हैं, जो अपनी किस्म के निराले हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव Summary in Hindi 4

धरती पर पाए जाने वाले प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों की संख्या बहुत है। इनमें ऑक्टोपस, एंगलर मछलियाँ, कटलफिश, कनखजूरा, कार्डिनल मछली, क्रिल, कोपपाड, क्लाम, जुगनू, जेलीफिश, टोड मछली, धनुर्धारी मछली, नलिका कृमि, पिडाक, वाम्बेडक मछली, ब्रिसलमाउथ, भंगुरतारा, मूंगा, लालटेल मछली, वाइपर मछली, शंबुक, शल्क कृमि, समुद्री कासनी, समुद्री स्लग, समुद्री स्क्विर्ट, स्क्विड तथा व्हेल मछली आदि प्रमुख हैं।

Conclusion

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव एक अद्भुत प्राकृतिक घटना है। इन जीवों का अध्ययन हमें प्रकाश उत्पादन के बारे में अधिक जानने में मदद करता है।

ब्लॉग लेखन Summary in Hindi

ब्लॉग लेखन Summary in Hindi

“ब्लॉग लेखन” एक ऐसा माध्यम है जिसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति अपने विचारों, अनुभवों और ज्ञान को दूसरों के साथ साझा कर सकता है। ब्लॉग लेखन एक व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का रूप है, जिसमें लेखक अपनी रुचियों और ज्ञान के आधार पर विषयों का चुनाव कर सकता है।

ब्लॉग लेखन Summary in Hindi

ब्लॉग लेखक का परिचय

ब्लॉग लेखन Summary in Hindi 1

ब्लॉग लेखन का नाम :
प्रवीण बर्दापूरकर। (जन्म : 3 सितम्बर, 1955.)

ब्लॉग लेखन प्रमुख कृतियाँ :
‘डायरी’, ‘नोंदी डायरीनंतरच्या’, ‘दिवस असे की’, ‘आई’, ‘ग्रेस नावांच गारूड’ आदि।

ब्लॉग लेखन विशेषता :
प्रवीण बर्दापूरकर राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों का गहराई से अध्ययन करने वाले तथा उन्हें समझने वाले निर्भीक पत्रकार के रूप में सुपरिचित हैं। आपने पत्रकारिता के क्षेत्र में ब्लॉग लेखन को बहुत ही लोकप्रिय बनाया है।

प्रवीण जी ने ब्लॉग द्वारा बदलते सामाजिक विषयों को परिभाषित करते हुए जनमानस की विचारधारा को नयी दिशा प्रदान की है। सीधी-सादी, रोचक और संप्रेषणीय मराठी और हिंदी भाषा में लिखे गए ब्लॉग आपके धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण की पुष्टि करते हैं।

ब्लॉग लेखन विषय प्रवेश :
आधुनिक समय में पत्रकारिता के क्षेत्र में ब्लॉग लेखन का प्रचलन लोकप्रिय बनता जा रहा है। प्रस्तुत पाठ में लेखक ने ब्लॉग लिखने के नियम, ब्लॉग का स्वरूप और उसके वैज्ञानिक पक्ष की चर्चा करते हुए उसके महत्त्व को स्पष्ट किया है। ब्लॉग लेखन जहाँ एक ओर सामाजिक जागरण का माध्यम बन चुका है, वहीं पत्रकारिता के जीवित तत्त्व के रूप में भी स्वीकृत हुआ है तथा बड़ा ही लोकप्रिय माध्यम बन चुका है।

ब्लॉग लेखन पाठ का सार

ब्लॉग लेखन से तात्पर्य :
ब्लॉग अपना विचार, अपना मत व्यक्त करने का एक डिजिटल माध्यम है। ब्लॉग के माध्यम से हम जो कुछ कहना चाहते हैं, उसके लिए किसी से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती। ब्लॉग लेखन में शब्द संख्या का बंधन नहीं होता। हम अपनी बात को जितना विस्तार देना चाहें, दे सकते हैं।

ब्लॉग, वेबसाइट, पोर्टल आदि डिजिटल माध्यम हैं। अखबार, पत्रिका या पुस्तक हाथ में लेकर पढ़ने के स्थान पर उसे कंप्यूटर, टैब या सेलफोन पर पढ़ना डिजिटल माध्यम कहलाता है। इस प्रकार का वाचन करने वाली

ब्लॉग लेखन Summary in Hindi 2

पीढ़ी का निर्माण इंटरनेट के महजाल के कारण हुआ है। इसके कारण लेखक और पत्रकार भी ग्लोबल हो गए हैं। नवीन वाचकों की संख्या मुद्रित माध्यम के वाचकों से बहुत अधिक है। इस वर्ग में युवा वर्ग अधिक संख्या में है। इस माध्यम के द्वारा पूरी दुनिया की कोई भी जानकारी क्षण भर में ही परदे पर उपलब्ध हो जाती है।

ब्लॉग की खोज :
ब्लॉग की खोज के संबंध में निश्चित रूप से कोई डॉक्युमेंटेशन उपलब्ध नहीं है, पर जो जानकारी उपलब्ध है, उसके अनुसार जस्टीन है हॉल ने सन 1994 में सबसे पहले इस शब्द का प्रयोग किया। जॉन बर्गर ने इसके लिए वेब्लॉग शब्द का प्रयोग किया था। माना जाता है कि 1999 में पीटर मेरहोल्स ब्लॉग शब्द को प्रस्थापित कर उसे व्यवहार में लाए। भारत मे 2002 के बाद ब्लॉग लेखन आरंभ हुआ और देखते-देखते यह माध्यम लोकप्रिय हो गया।

साथ ही इसे अभिव्यक्ति के नए माध्यम के रूप में मान्यता भी प्राप्त हुई।

ब्लॉग लेखन शुरू करने की प्रक्रिया :
यह एक टेक्निकल अर्थात तकनीकी प्रक्रिया है। इसके लिए है डोमेन अर्थात ब्लॉग के शीर्षक को रजिस्टर्ड कराना होता है। इसके बाद उसे किसी सर्वर से जोड़ना पड़ता है। उसमें अपनी विषय सामग्री समाविष्ट करके हम इस माध्यम का प्रयोग कर सकते हैं। इस संदर्भ में विस्तृत जानकारी ‘गूगल’ पर उपलब्ध है। कुछ विशेषज्ञ इस संदर्भ में सशुल्क सेवाएँ देते हैं।

ब्लॉग लेखक के लिए आवश्यक गुण :
ब्लॉग लेखक के पास लोगों से संवाद स्थापित करने के लिए बहुत-से विषय होने चाहिए। विपुल पठन, चिंतन तथा भाषा का समुचित ज्ञान होना आवश्यक है। भाषा सहज और प्रवाहमयी हो तो पाठक उसे पढ़ना चाहेगा। साथ ही लेखक के पास विषय से संबंधित संदर्भ, घटनाएँ और यादें हों तो ब्लॉग पठनीय होगा। जिस क्षेत्र या जिस विख्यात व्यक्ति के संदर्भ में आप लिख रहे हैं, उस व्यक्ति से आपका संबंध कैसे बना?

किसी विशेष भेंट के दौरान उस व्यक्ति ने आपको कैसे प्रभावित किया? यदि वह व्यक्ति आपके निकटस्थ परिचितों में है तो उसकी सहृदयता, मानवता आदि से संबंधित कौन-सा पहलू आपकी स्मृति में रहा। ऐसे अनेक विषय शब्दांकित किए जा सकते हैं।

ब्लॉग लेखन में विषय में आशय की गहराई आवश्यक है। प्रवाहमयी कथन शैली, सीधी-सादी और सहज भाषा का प्रयोग किया जाए, तो पाठक विषय सामग्री से शीघ्र ही एकरूप हो जाता है। ब्लॉग लेखन में क्लिष्ट शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए। उचित विशेषणों का प्रयोग भाषा को सुंदरता प्रदान करता हैं और पाठक इसकी ओर आकर्षित होता है। भाषा केवल शब्दों का समूह ही नहीं होता, बल्कि प्रत्येक शब्द का एक विशिष्ट अर्थ होता है।

सहज-सरल होने के साथ-साथ भाषा का बाँकपन ब्लॉग लेखन की गरिमा को बढ़ाता है। किसी भी शैली का विकास एक दिन में नहीं हो जाता। सतत लेखन के द्वारा ही यह संभव है। जिस प्रकार एक गायक प्रतिदिन रियाज करके राग और बंदिश में निपुण हो पाता है, उसी प्रकार निरंतर लेखन से लेखक की एक शैली विकसित होती है और पाठक को प्रभावित करती है।

ब्लॉग लेखन में आवश्यक सावधानियाँ :
ब्लॉग लेखन में इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि उसमें मानक भाषा का प्रयोग हो। व्याकरणिक अशुद्धियाँ न हों। ब्लॉग लेखन के लिए प्राप्त स्वतंत्रता का उचित उपयोग करना चाहिए। लेखन की स्वतंत्रता से हमें यह नहीं समझना चाहिए कि हम कुछ भी लिख सकते हैं।

आक्रामकता का अर्थ गाली-गलौज अथवा अश्लील शब्दों का प्रयोग करना नहीं है। पाठक ऐसी भाषा को पसंद नहीं करते। ब्लॉग लेखक को किसी की निंदा करना, किसी पर गलत टिप्पणी करना, समाज में तनाव की स्थिति उत्पन्न करना है आदि बातों से दूर रहना चाहिए। बिना सबूत के किसी पर आरोप लगाना एक गंभीर अपराध है। पाठक ऐसे लेखकों की बात गंभीरता से नहीं पढ़ते। परिणामस्वरूप ब्लॉग की आयु अल्प हो जाती है।

ब्लॉग लेखन करते समय छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा जाए तो पाठक ही हमारे ब्लॉग के प्रचारक बन जाते हैं। एक पाठक दूसरे से और दूसरा तीसरे से सिफारिश करता है और पाठकों की श्रृंखला बढ़ती चली जाती है।

ब्लॉग लेखन का प्रसार :
ब्लॉग लेखक अपने ब्लॉग का प्रचार-प्रसार स्वयं कर सकता है। विज्ञापन, फेसबुक, वॉट्सऐप, एस एम एस आदि द्वारा इसका प्रचार होता है। आकर्षक चित्रों, छायाचित्रों के साथ विषय सामग्री यदि रोचक हो तो पाठक ब्लॉग की प्रतीक्षा करता है और उसका नियमित पाठक बन जाता है।

ब्लॉग लेखन से आर्थिक लाभ : ब्लॉग लेखन से आर्थिक लाभ भी होता है। विशेष रूप से हिंदी और अंग्रेजी ब्लॉग लेखन का पाठक वर्ग व्यापक होने के कारण इससे अच्छी आय होती हैं। विद्यार्थी अपने अनुभव तथा विचार ब्लॉग लेखन द्वारा साझे कर सकते हैं।

प्रत्येक विद्यार्थी अपनी जीवन शैली, अपना संघर्ष, अपनी सफलताएँ विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त कर सकता है। राजनीतिक विषयों के लिए अच्छा प्रतिसाद मिल सकता है। शिक्षा विषयक ब्लॉग पढ़ने वाला पाठक वर्ग बहुत बड़ा है। यात्रा वर्णन, आत्मकथात्मक तथा विश्व से जुड़े जीवन की प्रेरणा देने वाले विषय भी बड़े चाव से पढ़े जाते हैं।

Conclusion

ब्लॉग लेखन एक लोकप्रिय तरीका है अपने विचारों, अनुभवों और ज्ञान को दूसरों के साथ साझा करने का। ब्लॉग लेखन एक व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का रूप है, जिसमें लेखक अपनी रुचियों और ज्ञान के आधार पर विषयों का चुनाव कर सकता है। ब्लॉग लेखन के कई लाभ हैं, जैसे कि यह एक व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का रूप है, यह दूसरों के साथ विचारों और अनुभवों को साझा करने का एक तरीका है, यह ज्ञान और जानकारी को दूसरों तक पहुंचाने का एक तरीका है, और यह एक ऑनलाइन पहचान बनाने और एक समुदाय बनाने का एक तरीका है।

Maharashtra 12th Class Summary In Hindi

Maharashtra 12th Class Summary In Hindi

महाराष्ट्र 12वीं कक्षा का पाठ्यक्रम एक महत्वपूर्ण मोड़ है, क्योंकि यह छात्रों को उच्च शिक्षा और भविष्य के करियर के लिए तैयार करता है। इस वर्ष के दौरान, छात्रों को विभिन्न विषयों में गहन ज्ञान और कौशल प्राप्त करना होता है, जिनमें हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, गणित, विज्ञान और सामाजिक अध्ययन शामिल हैं।

Maharashtra 12th Class Summary In Hindi

12वीं कक्षा आपके जीवन का एक महत्वपूर्ण वर्ष है। यह वह समय है जब आप अपने भविष्य के लिए आधार तैयार कर रहे हैं। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने अध्ययन पर ध्यान दें और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करें। आपको अपनी क्षमताओं में विश्वास करना चाहिए और सकारात्मक रहना चाहिए।

Anargha Nimisham Summary in Malayalam

Anargha Nimisham Summary in Malayalam

Anargha Nimisham is a Malayalam short story by O.V. Vijayan. It was first published in 1975 in the literary magazine Mathrubhumi. The story is set in a small village in Kerala and tells the story of a young man named Unni who is trying to find his place in the world.

The story begins with Unni sitting on a rock, watching the sunset. He is thinking about his life and how he wants to live it. Unni is a sensitive and thoughtful young man. He is always questioning the world around him and trying to find meaning in his life.

Anargha Nimisham Summary in Malayalam

ജീവിതരേഖ : 1908 – ൽ വൈക്കത്ത് തലയോലപ്പറമ്പിൽ ജനിച്ചു. 1994 – ൽ ഈ ബേപ്പൂർ സുൽത്താൻ ബേപ്പൂരിൽ വച്ച് ഇഹലോക വാസത്തിൽ നിന്നും പടച്ച തമ്പുരാന്റെ ഖൽബിലേക്ക് മടങ്ങി. 1982 – ൽ ഇന്ത്യാ ഗവൺമെന്റ് പത്മശ്രീ നൽകി ആദരിച്ചു. ഏറ്റവും അധികം വായിക്കപ്പെടുന്ന മലയാളം എഴുത്തുകാരൻ.

Anargha Nimisham Summary in Malayalam 1
വൈക്കം മുഹമ്മദ് ബഷീർ

ആമുഖം

‘ബഷീറിയൻ സാഹിത്യം’ എന്ന് പിന്നീട് പ്രസിദ്ധി കൊള്ളുന്ന രീതിയിൽ ഒരു സാഹിത്യസരണി, മലയാള സാഹിത്യത്തിൽ പ്രോദ്ഘാടനം ചെയ്യാൻ ആ തൂലികയക്ക് സാധിച്ചു. ഒരു വ്യക്തി കേന്ദ്രീക തമായ സാഹിത്യമാർഗ്ഗങ്ങൾ മലയാളത്തിലെന്നല്ല, ലോകസാഹിത്യത്തിൽ തന്നെ അപൂർവ്വമായിരിക്കും. പൗരാണിക മലയാളസാഹിത്യം പരിശോധിക്കുമ്പോൾ നമുക്കൊരു എഴുത്തച്ഛനെ ദർശിക്കാൻ സാധിക്കും. തന്റേതായ വ്യക്തിപ്രഭാവംകൊണ്ട്, സാഹിത്യ സിദ്ധി കൊണ്ട് ഒരു മഹാസാഹിത്യത്തെ

നയിക്കാൻ കഴിയുക: അവിടെ യാണ് വൈക്കം മുഹമ്മദ് ബഷീർ’ എന്ന സാഹിത്യനായകൻ നമുക്കു മുന്നിൽ ഉയർന്നു നിൽക്കുന്നത്. ബഷീറിൽ നമുക്കു കണ്ടെത്താൻ കഴിയുന്നത് നമ്മുടെ തന്നെ ചേതോവികാരങ്ങളെയാണ്. ഒരിക്കലും പുറത്തു കാണിക്കാൻ കഴിയാതെ മനസ്സിൽ മറച്ചുവെച്ചത്, ബഷീർ നിസ്സങ്കോചം എടുത്ത് പുറത്തേക്കിട്ടു.

നമുക്കുതന്നെ പറയാൻ കഴിയുന്നത് എന്ന രീതി യിൽ അത്ര നിസ്സാരമായി, ലളിതമായി, ബഷീർ അത് വരച്ചിട്ടപ്പോൾ അത്ഭുതത്തോടെ നാം നോക്കിനിന്നു. നിത്യജീവിതത്തിൽ നാം കണ്ടെത്തുന്ന മുഖങ്ങളെ, സംഭവങ്ങ ളെ, അതിതീവ്രമായി എന്നാൽ അനായാസമായി ബഷീർ കോറിയിട്ടപ്പോൾ അത് മല യാളി സമൂഹത്തിന്റെ ഏറ്റവും വലിയ ഗൃഹാതുരയായി തീർന്നു.

ബഷീറിന്റെ ഹാസ്യവും ചിന്തനീയമാണ്. ആഴത്തിൽ ജീവിതത്തെ നോക്കിക്കാണുകയും, ദാർശനികമായി അപഗ്രഥിക്കുകയുമാണ് ബഷീറിന്റെ ഹാസ്യം. ഒരേ സമയം ചിരിപ്പിക്കുന്നതും, ചിന്തോദ്ദീപകവുമാണത്. ജീവിതത്തിന്റെ, ഇരുണ്ട വശങ്ങളെ ബഷീറിയൻ ഹാസ്യം വെളിച്ചത്തേക്കു കൊണ്ടുവന്നു. പട്ടിണി

ഒരു വലിയ ആഘോഷമായി. ഇല്ലായ്മ അതുവരെ മൂടിവെക്കേണ്ട ഒന്നാ യിരുന്നുവെങ്കിൽ ബഷീറിലത്, പുരപ്പുറത്തുനിന്നും വിളിച്ചുക വേണ്ട അനായാസമായ ഒരു യാഥാർത്ഥ്യമായി. ജീവിതത്തിന്റെ എല്ലാ മേഖലകളേയും ഒരേപോലെ, സമചിത്തതയോടെ കാണാൻ, പക്വതയോടെ സമീപിക്കാൻ ബഷീർ ഹാസ്യം മലയാ ളിയെ പഠിപ്പിച്ചു.

‘അനർഘനിമിഷം’ – ബഷീറിന്റെ സാഹിത്യസപര്യയിൽ വേറിട്ടു നിൽക്കുന്നു. ജീവിതത്തിന്റെ താളം ചിലപ്പോഴൊക്കെ നിലച്ചു പോകാവുന്ന അവസ്ഥകൾ ഉണ്ടാകാറുണ്ട്. എപ്പോഴും വെളിപ്പെടുത്താൻ സാധിക്കാത്ത മഹാരഹസ്യമായ നിമിഷം. അതു തീവ്രമായ വേർപാടിന്റെ അനർഘനിമിഷമാണ്. വേദനയുടെ മഹാതീരത്ത് നാം ഒറ്റപ്പെടുന്ന നിമിഷം.

പതിവായ ശൈലിക ളിൽ നിന്നും, രീതികളിൽ നിന്നും ബഷീർ ‘അനർഘനിമിഷ ത്തിൽ വ്യത്യസ്തനാകുന്നു. ആഖ്യാനശൈലിയിലും, പദയോഗങ്ങളിലും ബഷീറിൽ ഏറ്റവും പ്രിയംകരമായ സൂഫി ചൈതന്യത്തിന്റെ സ്വാധീനം കാണാൻ കഴിയുന്നു. അപാരമായ ശാന്തത ഉള്ളിൽ വഹിച്ചുകൊണ്ടാണ്, ഇതിൽ

ബഷീർ സംസാരിക്കുന്നത്. ഏകാ . ന്തതയുടെ ഏറ്റവും കഠിനമായ തിരിച്ചറിവോടെ ഇനി ഒറ്റയ്ക്കാണന്ന യാഥാർത്ഥ്യം; വേർപാടിന്റെ ഏറ്റവും കന പ്പെട്ട മുഹൂർത്തം. ആ തീഷ് ണ മുഹൂർത്തത്തിലേക്ക് ബഷീർ നയെയും കൊണ്ടുപോവുകയാണ്. വേദനയുടെ തീരത്ത് നാം ഒറ്റപ്പെട്ടുപോകുന്ന കഠിനമായ അവസ്ഥ.

അപാരമായ സ്നേഹത്തിന്റെ കരുത്തുറ്റ ഒഴുക്ക് ‘അനർഘനിമിഷത്തിൽ കാണാം. ലൗകികതയുടെ ക്ഷണപ്രഭകളോടല്ല ഇവിടെ ബഷീർ പ്രണയം പ്രഖ്യാപിക്കുന്നത്. അലൗകികമായ, ആത്മീയ അനുഭൂതിതന്നെയാണ് ബഷീറിന്റെ സന്ദേശത്തിന്റെ കാതൽ.

ജീവനും, മരണവും തമ്മിലുള്ള വലിയൊരു മുഖാമുഖം – ‘അനർഘനിമിഷത്തിന്റെ അടിയൊഴുക്കായി നിലനിൽക്കുന്നുണ്ട്. ആഴത്തിലുള്ള തിരിച്ചറിവിന്റെ, ആത്മസാക്ഷാത്ക്കാരത്തിന്റെ അടയാളം കൂടിയാണ് ‘അനർഘനിമിഷം’.

Conclusion:

Anargha Nimisham is a beautifully written and thought-provoking story about the meaning of life. The story is a reminder that the most important thing in life is to live in the present moment.

मैं उद्घोषक Summary in Hindi

मैं उद्घोषक Summary in Hindi

मैं उद्घोषक” एक आत्मकथात्मक कहानी है, जो एक उद्घोषक के जीवन और अनुभवों को दर्शाती है। इस कहानी में, उद्घोषक अपने करियर की शुरुआत से लेकर सफलता तक के सफर को बताता है। वह अपने संघर्षों और चुनौतियों के बारे में भी बताता है।

मैं उद्घोषक Summary in Hindi

मैं उद्घोषक लेखक का परिचय

मैं उद्घोषक लेखक का नाम :
आनंद प्रकाश सिंह। (जन्म : 21 जुलाई, 1958.)

मैं उद्घोषक प्रमुख कृतियाँ :
पत्र-पत्रिकाओं में विभिन्न विषयों पर लेख, समीक्षाएँ, कहानियाँ, कविताएँ आदि प्रकाशित।

मैं उद्घोषक विशेषता :
पंडित भीमसेन जोशी तथा कई अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों द्वारा लेखक के सूत्र-संचालन की प्रशंसा। किंग ऑफ वॉईस, संस्कृति शिरोमणि तथा अखिल आकाशवाणी जैसे पुरस्कारों से सम्मानित।

मैं उद्घोषक विधा :
आत्मकथा। आत्मकथा लेखन हिंदी साहित्य में रोचक और पठनीय लेखन माना जाता है। अपने अनुभवों तथा व्यक्तिगत प्रसंगों को पूरी निष्ठा से बताना आत्मकथा की पहली शर्त है। आत्मकथा उत्तम पुरुष वाचक सर्वनाम ‘मैं’ में लिखी जाती है।

मैं उद्घोषक विषय प्रवेश :
आजकल मंच संचालन अथवा सूत्र संचालन बहुत लोकप्रिय और महत्त्वपूर्ण माना जाता है। लेखक एक सफल मंच संचालक और सूत्र संचालक रहे हैं। प्रस्तुत लेख में उन्होंने बताया है कि सफल उद्घोषक अथवा मंच संचालक बनने के लिए व्यक्ति में कौन-कौन से आवश्यक गुण होने चाहिए। लेखक के अनुसार कार्यक्रम की सफलता मंच संचालक अथवा सूत्र संचालक के आकर्षक एवं उत्तम संचालन तथा उसके अपने विशेष गुणों पर आधारित होती है।

मैं उद्घोषक पाठ का सार

प्रस्तुत पाठ में यह बताया गया है कि एक सफल उद्घोषक बनने के लिए व्यक्ति में कौन-कौन से गुण होने चाहिए और इसमें रोजगार की क्या संभावनाएँ हैं। इस लेख के लेखक स्वयं लंबे अरसे तक एक प्रतिष्ठित उद्घोषक रहे हैं। इस आत्मकथात्मक लेख में उन्होंने अपने अनुभव से अर्जित अनेक गुणों से परिचित कराया है।

मैं उद्घोषक Summary in Hindi

उद्घोषक, मंच संचालक और एंकर अलग-अलग नाम हैं उद्घोषक के। यह श्रोता और वक्ता को जोड़ने वाली कड़ी का काम करता है। किसी भी कार्यक्रम में मंच संचालक की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। उद्घोषक ही आयोजकों तथा अतिथियों को मंच पर आमंत्रित करता है तथा पूरे कार्यक्रम का संचालन करता है।

उदघोषक बनने के लिए कठिन अभ्यास की आवश्यकता होती है। आरंभ में मंच पर बोलने में सबको झिझक होती है। पर हिम्मत जुटाकर अभ्यास करते रहने से यह झिझक दूर हो जाती है। अधिकांश मंच संचालकों के साथ ऐसी घटनाएँ अकसर होती हैं। धीरे-धीरे उनमें आत्मविश्वास आ जाता है।

सूत्र संचालन के कई प्रकार होते हैं। इसके मुख्य प्रकार हैं – शासकीय कार्यक्रम का सूत्र संचालन, दूरदर्शन हेतु सूत्र संचालन, रेडियो हेतु सूत्र संचालन, राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक
कार्यक्रमों का सूत्र संचालन।

शासकीय एवं राजनीतिक समारोहों के सूत्र संचालन में प्रोटोकॉल १ का ध्यान रखते हुए अधिकारियों के पदों के अनुसार नामों की सूची बनाकर किसका किसके हाथों स्वागत करना है, इसकी योजना बनानी पड़ती है। इसमें आलंकारिक भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

दूरदर्शन तथा रेडियो कार्यक्रम का सूत्र संचालन करने के लिए इन पर प्रसारित किए जाने वाले कार्यक्रमों की पूरी जानकारी होनी जरूरी है। इनके कार्यक्रमों की संहिता लिखकर तैयार करनी होती है।

सूत्र संचालन करते समय रोचकता, रंजकता तथा विभिन्न प्रसंगों का उल्लेख कार्यक्रम में करने से उसमें जान आ जाती है। कार्यक्रम और श्रोताओं के अनुसार भाषा का प्रयोग जरूरी होता है।

सत्र संचालक को यह ध्यान रखना होता है कि जिस प्रकार का कार्यक्रम हो उसी तरह की उसकी तैयारी की जानी चाहिए और उसी तरह उसकी संहिता लेखन करना चाहिए। संचालक को चाहिए कि वह संचालन के लिए आवश्यक तत्त्वों का अध्ययन करे।

सूत्र संचालक में कुछ गुणों का होना आवश्यक है। उसे मिलनसार, हँसमुख, हाजिरजवाबी तथा विविध विषयों का जानकार होने के साथ भाषा पर उसका अधिकार होना चाहिए। इसके अलावा उसे आयोजकों की ओर से अचानक मिली सूचना के अनुसार संहिता में परिवर्तन कर संचालन करना आना चाहिए।

लेखक कहते हैं कि कार्यक्रम कोई भी हो, मंच संचालक को मंच की गरिमा बनाए रखनी चाहिए। मंच पर आने वाला पहला व्यक्ति मंच संचालक होता है। अतएव उसका परिधान, वेशभूषा, केश सज्जा आदि सहज और गरिमामय होना चाहिए। उसका व्यक्तित्व और आत्मविश्वास उसके शब्दों में उतरना चाहिए।

सतर्कता, सहजता और उत्साह वर्धन उद्घोषक के मुख्य गुण हैं। उद्घोषक को कार्यक्रम का आरंभ रोचक ढंग से करना चाहिए। बीच-बीच में प्रसंग के अनुसार चुटकुले, शेर-ओ-शायरी के अंश का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए उद्घोषक को निरंतर अध्ययन करते रहना होता है।

उपर्युक्त बातों पर ध्यान देने वाला व्यक्ति अच्छा उद्घोषक बन सकता है। मंच पर उद्घोषक श्रोता एवं दर्शकों के समक्ष होता है, पर रेडियो और कभी-कभी टीवी का सूत्रधार परदे के पीछे होता है। उसकी केवल आवाज सुनाई देती है। लेकिन उसका दायरा विस्तृत होता है। तब उसको अपनी आवाज का कमाल दिखाना होता है।

इस क्षेत्र में रोजगार की पर्याप्त संभावनाएँ हैं। विशेषकर भाषा का अध्ययन करने वाले विद्याथियों के लिए। सूत्र संचालन में तो भाषा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

Conclusion

“मैं उद्घोषक” एक अच्छी तरह से लिखी गई कहानी है, जो पाठकों को प्रेरित और प्रभावित करती है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सफलता के लिए कड़ी मेहनत और लगन आवश्यक है।

Oonjalil Summary in Malayalam

Oonjalil Summary in Malayalam

Oonjalil begins with Kalyani sitting on a swing, reminiscing about her husband who died a few months ago. She remembers their happy days together and how much she misses him.

Kalyani is still in shock from her husband’s death. She can’t believe that he is gone and that she will never see him again. She feels lost and alone.

Oonjalil Summary in Malayalam

ജീവിതരേഖ: എറണാകുളം ജില്ലയിൽ തൃപ്പൂണിത്തുറയിൽ ജനനം. സസ്യശാസ്ത്രത്തിൽ ബിരുദം. 1931- ൽ അധ്യാപകനായി. ഭാനുമതിയമ്മ ഭാര്യ. 1966-ൽ ഒല്ലൂർ ഗവ: ഹൈസ്കൂളിൽ നിന്നും അധ്യാപകനായി വിരമിച്ചു. മുല്ലനേഴിയുടെ പ്രിയ അധ്യാപകനായിരുന്നു വൈലോപ്പിള്ളി.

Oonjalil Summary in Malayalam 1

വൈലോപ്പിള്ളി
(1911 മെയ് 11, 1985 ഡിസംബർ 22)

വൈലോപ്പിള്ളി എന്ന കവി
ധനുമാസത്തിലെ തിരുവാതിര രാവുപോലെ 
മഞ്ഞിൽ കുളിരണിഞ്ഞ് നിലാവിൽ സ്വപ്നം 
കണ്ടു നിൽക്കുന്ന റൊമാന്റിസിസ
പ്രസ്ഥാനത്തിന്റെ ഒടുവിലത്തെ യാമത്തിൽ വന്നു
പിറന്ന കവിയാണ് വൈലോപ്പിള്ളി.

റിയലിസത്തിന്റെ പകൽ വെളിച്ചത്തിലാണ് അദ്ദേഹം വളർന്നത്. എന്നാൽ താൻ ഏതിൽ പിറന്നുവീണുവോ ആ ആതിരരാവിന്റെ കുളിർമയും സ്വപ്നദർശനകൗതുകകവും അദ്ദേഹത്തിന്റെ ആത്മാവിൽ

ശാശ്വതമുദ്രകളണിയിച്ചു. ഇടയ്ക്കിടയ്ക്ക് അവയിലേക്കു വഴുതി വീണു മയങ്ങുന്നതദ്ദേഹ ത്തിനിഷ്ടമാണ്. എങ്കിലും ആ നിദ്രാവത്വത്തിന്റെ നിമിഷങ്ങളിലല്ല വിജംഭിത വീര്യമായ കർമ്മൗത്സുക്യത്തിന്റെ നിമിഷങ്ങളി ലാണ് അദ്ദേഹത്തിന്റെ തനിമ പ്രകടമാകുന്നത്.

അതുകൊണ്ട് മലയാള കവിതയിലൊരു യുഗപരിവർത്തനത്തിന്റെ ഹരിശ്രീ യായ കവി നാദങ്ങളിൽ ശ്രീ തന്നെയാണദ്ദേഹം. സാമ്പത്തിക സാംസ്കാരിക രംഗങ്ങളിൽ അവശ്യം ഭാവിയായ വിപ്ലവങ്ങളെ ക്കുറിച്ച് സോദ്ദേശമെന്നുപോലും ഒരു നിരൂപകനു വിവരിക്കാവുന്ന വിധത്തിൽ ബോധപൂർവ്വം കവിതയെഴുതിയ കവിയാണ് അദ്ദേഹം. പ .ഇതുപോലെ പുതുയുഗചേതനയെപ്പറ്റി യുക്തിപൂർവ്വം ചിന്തി ക്കുകയും, ചിന്തയെ വൈകാരികാനുഭൂതിയിൽ അലിയിക്കു കയും ചെയ്യാൻ കഴിഞ്ഞ കവികൾ വേറെയില്ല.

വിപ്ലവക്കലി കൊണ്ടു പാടിയവരുണ്ട്. 
വിപ്ലവത്തെ സമചിത്തതയോടെ സമീ
പിക്കുകയും അംഗീകരിക്കുകയും
ചെയ്തവരുണ്ട്. എന്നാൽ ഏകകാലത്ത് 
വിപ്ലവാദർശത്തെ വിലയിരുത്തുകയും, വിപ്ലവാ 
വേശത്തോടെ പാടുകയും ചെയ്തവർ ചുരുക്കം.

അവരിലും വിശേഷിച്ച് വിപ്ലവത്തിന്റെ ആത്യന്തികത കണ്ടറിയുകയും അതിന്റെ സർഗ്ഗാത്മകവും സംഹാരാത്മകവുമായ രണ്ടുവശ ങ്ങളെക്കുറിച്ചും ഉള്ളിൽത്തട്ടി ചിന്തിക്കുകയും ചിന്തിക്കാതെ ഉറ ങ്ങുകയോ ചിന്തിക്കാതെ ആവേശത്തിൽ മുഴുകുകയോ ചെയ്യുന്നവരെ ഉണർത്തിച്ചിന്തിപ്പിക്കുകയും ഇരുത്തിച്ചിന്തിപ്പിക്കുകയും ചെയ്ത കവി വൈലോപ്പിള്ളിയാണ്.

പുരുഷായുസ്സിന്റെ ഉത്തരാർദ്ധത്തിലേക്ക് കടക്കുന്നതിനു മുൻപേ അതിനെക്കുറിച്ചുള്ള ഭയാശങ്കകളും അതുസംബന്ധ മായി വന്നുചേരുന്ന ആത്മീയവും മാനസികവുമായ ഹാസവും ചിലരെ പീഡിപ്പിക്കുന്നു. വ്യക്തിതനയിൽ തനിയേ വന്നുചേരുന്ന അത്യഗാധമായ ഒരു പരിണാമമാണിതെന്നും.

ഓരോ വ്യക്തി ചേതനയ്ക്കും പ്രഭാതവും മദ്ധ്യാഹ്നവും സായാഹ്നവുമുണ്ടന്നും, മദ്ധ്യാഹ്നത്തിൽ നിന്ന് പെട്ടെന്ന് അപരാഹ്നത്തിലേക്കു കടക്കുന്നതോടെ വലിയൊരു പതനബോധമുണ്ടാകുന്നുവെന്നും അദ്ദേഹം അഭിപ്രായപ്പെടുന്നു. വൈലോപ്പിള്ളിയുടെ കവിതക ളിൽ പലപ്പോഴും ഇതു രണ്ടും പ്രച്ഛന്നവേഷങ്ങളായി പ്രത്യക്ഷ പ്പെടാറുണ്ട്. വാർദ്ധക്യത്തെക്കുറിച്ചുള്ള ഭീതിബോധങ്ങൾ ചില കവിതകളിൽ മറ നീക്കി പുറത്തുവന്നിട്ടുമുണ്ട്.

ഭീതിബോധങ്ങൾ ചില കവിതകളിൽ മറ നീക്കി പുറത്തുവന്നിട്ടുമുണ്ട്.

“കലുഷിതമെൻ ജീവിതമൂറി-
 ക്കവിതകളായതു കോരി 
പാഴ്നരയോടു പകരം വീട്ടി –
പാനം ചെയ്തുരസിപ്പൻ          

– (ഓർമ്മകൾ)

എന്നാൽ ജീവിതചഷകം മോന്തുമ്പോൾ ഒരു തുള്ളി ബാക്കി വയ്ക്കാതെ ഭംഗിയായി ആസ്വദിക്കുന്ന അനുഭവവും വൈലോപ്പിള്ളിയുടെ ചില കവിതകളിൽ കാണാം. എല്ലാ കലകളിലും വച്ച് മഹത്തരമാണ് ജീവിതകല എന്നറിഞ്ഞ ഊഞ്ഞാലിലെ വൃദ്ധൻ നിത്യയൗവ്വനഭൂഷിതനാണ്. കയറുകൊണ്ട് ആത്മാവിനു കൊലക്കുടുക്കുണ്ടാക്കാം.

ശരീരത്തിന് ഇരുന്നാടി ഉല്ലസിക്കാ നുള്ള ഊഞ്ഞാലുണ്ടാക്കാം. രണ്ടാമതു സാധിച്ചുവെന്നതാണ് ആ വ്യദ്ധന്റെ വിജയം. ജീവിതത്തിലെ മൂന്നാമത്തെ ദശയെന്ന് യുങ് വിശേഷിപ്പിക്കുന്ന വാർദ്ധക്യത്തെ (ബാല്യകൗമാരങ്ങൾ, യൗവ്വനം, വാർദ്ധക്യം) കലാപരമായി ആസ്വദിക്കാൻ ആ വൃദ്ധനും കണ്ട്

ത്തിയിരിക്കുന്നു. സർവ്വാത്മനാ ജീവിതത്തെ 
സ്നേഹിക്കാൻ പഠിച്ചിരിക്കുന്നു അയാൾ.

ഊഞ്ഞാലിലെ കരളീയാന്തരീക്ഷം
കേരം തിങ്ങുന്ന കേരളീയാന്തരീക്ഷവും അതിന്റെ ഔന്നത്യവും സാംഗോപാംഗ മഹത്വവും ഇളനീർപോലുള്ളതിന്റെ വൈലോപ്പിള്ളി കവിത യുടെ വൈശിഷ്ട്യം’ തന്നെ. മാധുര്യവും നൈർമ്മല്യവും അതിൽ വ്യാപിച്ചു കി കുളിർമ്മയാണ്. എം.എൻ. വിജയൻ പ്രസ്താവിച്ചതുപോലെ അതു കേൾക്കുന്ന കരള ത്തിന്റെ ബാഹ്യപ്രകൃതി മാത്രമല്ല, സംസ്കാരത്തിന്റെ e ആകെത്തു കയാകുന്നു.

കേരളീയ ഗ്രാമീണജീവിതത്തിന്റെ
സൗഭാഗ്യങ്ങളും, വേദനകളും, ആനന്ദങ്ങളും,
സ്വപ്നങ്ങളും, സങ്കൽപ്പങ്ങളും
യാഥാർത്ഥ്യങ്ങളും, മമതകളും ആവേശങ്ങളും 
ഏറ്റവുമധികം പദേപദേ സ്പന്ദിക്കുന്ന
കാവ്യസഞ്ചയനമാണ്
സംക്രമ പുരുഷന്റേത്.

കവിതാച്ചുരുക്കം

വൈലോപ്പിള്ളിയെന്ന ഒരു വെറ്റില നൂറുതേച്ചു നീ തന്നാലും. ഈ തിരുവാതിരരാവ് താംബൂല മുറുക്കാനുള്ള കൂട്ട് പ്രിയമാണ്. മഞ്ഞിനാൽ തണുത്തു

ചൂളിയിടുന്നെങ്കിലും തിരുവാതിരയുടെ പ്രേമലോലുപമായ അന്തരീക്ഷത്താൽ സുഖകരമാണ്. വാർദ്ധ ക്യത്തിലെത്തിയെങ്കിലും പ്രിയേ നമുക്കും ചിരിക്കുക. മാവുകൾ’ പൂക്കുന്ന ഈ ധനുമാസം നൽകുന്ന മധുരഗന്ധം യൗവ്വനത്തി ന്റേയും കഴിഞ്ഞകാലത്തിന്റേയും ജീവിതമാധുര്യത്തെ ഓർമ്മക ളിൽ കൊണ്ടെത്തിക്കുന്നു. മുപ്പതുവർഷം മുൻപ് പ്രിയേ നീ ഈ പൊൻതിരുവാതിരയെപ്പോൽ സുന്ദരമന്ദസ്മിതയായിരുന്നു.

ഇതു പോലൊരു രാവിൽ അന്നു നാം രാത്രിയിലാരും കാണാതെ ഊഞ്ഞാലിലാടി നൂറുവെറ്റിലതിന്നു ചുവന്ന ചുണ്ടുപോലുള്ള പ്രഭാതം വരെ. ആ വയസ്സൻ മാവിനെക്കുറിച്ചുള്ള ഓർമ്മയിലിന്നെന്റെ മനസ്സിലുണർന്നു. ഉണ്ണിക്കു കളിക്കാനൊരൂഞ്ഞാൽ അതിൽ കെട്ടിയിരിക്കുന്നു. ആ ഉണ്ണിയിന്ന് നേരത്തെയുറങ്ങിയെ ങ്കിൽ ഉറങ്ങട്ടെ.

ചിന്തകളില്ലാതെ ചിരിച്ചു രസിക്കുന്ന ബാല്യകാ ലത്തവർ സുഖമായുറങ്ങട്ടെ. രസനയുടെ ഇഷ്ടങ്ങളിൽ നിന്നും ജീവിതത്തിന്റെ തരളതയിലേക്കും പ്രണയത്തിലേക്കുമെത്തുന്ന തിന് കുറച്ചുകാലം വേണം. മാങ്ങയോടുള്ള കൊതിയിൽ നിന്നും മാമ്പൂവിന്റെ

മദഗന്ധത്തിലെത്താൻ കുറച്ചുനാളുകൾ വേണം. ഈ നിലാവിന്റെ വശ്യശക്തിയാലാകാം എന്റെ ഉള്ളിലൊരാൾ ഉണരുന്നു. യൗവ്വനകാലത്തിന്റെ തീഷ്ണതയിൽ ഈ ഊഞ്ഞാലിൽ നീ വന്നിരിക്കുക. ഈ പതുക്കെ ഇളം കാറ്റേറ്റെന്നപോൽ നിന്നെ ഞാനാട്ടാം. ഇതു പറയവെ നീയെന്തിനാണ് ചിരിക്കുന്നത്. നിന്റെ തായി നീ യൗവ്വനത്തിൽ കാത്തുസൂക്ഷിച്ച ആ മനോഹരസ്മിതം – ഇപ്പോഴും നിന്നിലുണ്ട് പ്രിയേ.

ഈ ഊഞ്ഞാൽ പടിയിന്മേൽ ചെറുവെള്ളിത്താലി പോലെ ചേർന്നി രിക്കുക. മെല്ലിച്ച എന്റെ കൈകൾക്ക്, ഇഷ്ടസന്താനമായി മാറി നിന്റെ തടിച്ച് ഉദരം. നമ്മുടെ മകൾ നല്ല കുടുംബിനിയായി നഗ ര ത്തിൽ കഴിയുന്നു. എങ്കിലും സ്വപ്നം കാണാം. ഈ നാട്ടിൻപുറം ഇവിടെ തിരുവാതിരയാടാൻ അമ്പിളി (ചന്ദ്രൻ) ഈ നാട്ടിൻപുറത്ത് ആയിരം കൽമണ്ഡപത്തിൽ തെളിയിക്കുന്നു.

വലിയ ദുഃഖത്തിലും ജീവിതോല്ലാസത്തിന്റെ വേരുറപ്പ് വേറെവിടെക്കാണാനാകും? പാഴ്ചത്തിന്റെ തണുപ്പിനാൽ ചുളിഞ്ഞുപോകുമെങ്കിലും വിശപ്പിനാൽ വിറയ്ക്കുകിലും അയൽപക്കത്തെ പാവം സ്ത്രീകളുടെ തിരുവാതിരപ്പാട്ട് നീ കേൾക്കുന്നില്ല.

മുകളിലൂടെ പാറിപ്പോ കുന്ന യുദ്ധവിമാനം വേട്ടപ്പക്ഷിയെപ്പോലെ പറന്നുപോകുന്നു. ഒരു ദുഃസ്വപ്നം പോലെ, പാഞ്ഞു മാഞ്ഞു പോകുമീ കാലുഷ്യം. എന്നാൽ നാമാസ്വദിക്കുന്ന തിരുവാതിരയും, തിരുവാതിര നക്ഷത്രവും മിന്നും ആകാശത്ത് തീക്കട്ടപോൽ മിന്നിത്തെളിയുന്നു.

തിരുവാതിരയിൽ മാവുകൾ പൂക്കും, രാഗോന്മീലമായി നമ്മളെ പ്പോലെ ആം ആകാശത്ത് ചന്ദ്രൻ നിറഞ്ഞു നിൽക്കും. മനുഷ്യർ പരസ്പരം സ്നേഹിക്കും ഈ ഭൂമിയിൽ അധികാരത്തോടെ വസിക്കും. ജീവിതക്കുരുക്കെന്നെ കയറിനെ ഊഞ്ഞാലാക്കി മാറാൻ കഴിയുന്നതല്ലേ ജയം. ഈ തിരുവാതിര രാവിൽ മനസ്സിനെ നൃത്തലോലമാക്കുന്ന ആ ഗാനം ‘കല്ല്യാണി കളവാണി ഗാനം പ്രിയേ നീയാലപിക്കുക.

എന്റെ മനസ്സിനെ പുളകിതമാക്കിയ ആ ഗാനം സ്വർണ്ണക്കമ്പികൾ പാകിയ നിന്റെ മധുരനാദമുതിർക്കുന്ന കണ്ഠനാളത്തിൽ നിന്നുമൊഴുകവേ, ആലോലം നീളുന്ന ആ പാട്ടിന്റെ ഈരടികൾ ഊഞ്ഞാൽ വള്ളിയിലെന്റെ മനതാരിളകിയാടവേ, വെള്ളിക്കമ്പി കൾ നരപാടിയ നീയല്ല എന്റെ മുന്നിൽ; കണ്വമാമുനിയുടെ പ്രിയ മകൾ

ശകുന്തളയാണ്. ഇത് പൂനിലാവുനിറഞ്ഞ മുറ്റമല്ല ഇത്; ഹിമാചലത്തിൻ താഴ്വാരത്തിലെ മനോഹരമായ മാലിനി നദീതീ രമാണിത്. ചന്ദ്രതാരകനിബന്ധമായ ആകാശമല്ല നീ ഓമനിച്ച വന ജ്യോത്സനയാണ് മുകളിൽ പൂത്തുനിറഞ്ഞുനിൽക്കുന്നത്. നിന്റെ ഇളമാൻ നിറയെ പുള്ളികളുള്ള ദീർഘാപാംഗൻ മാഞ്ചുവട്ടിൽ വിശ്രമിക്കുന്നു.

ജീവിതത്തെ സ്നേഹിക്കുവാൻ പഠിച്ചൊരു മനസ്സിനാൽ സന്തോ ഷത്തോടെ നീ പാടുക. വെള്ള തുണിത്തുമ്പിൽ പൊതിഞ്ഞു സൂക്ഷിക്കുന്ന ദേവവധുവായ തിരുവാതിരയാൽ വേഗമേറവെ, നാളെ നാം പലവിധ പണികളെടുത്ത് പകൽ വേളയിൽ ക്ഷീണി തയാകുമ്പോൾ ഈ രാത്രിയെക്കുറിച്ചോർത്തു ലജ്ജിക്കുമോ? എന്തിന് ? ജീവിതത്തിൽ സുഭഗവും സാരവുമായ ചില നല്ല സന്ദർങ്ങൾ – നല്ല നിമിഷങ്ങൾ മാത്രമുണ്ടാകാം. അതിൽ ചിലത് ഇപ്പോഴാടുന്നൊരീ ഊഞ്ഞാലിലാടിത്തീർക്കാം. നീയൊരു പാട്ടും കൂടി പാടി നിർത്തുക. നമുക്കു പോകാം.

ആസ്വാദനം

യാഥാർത്ഥ്യങ്ങളിൽ നിന്ന് സ്വപ്നത്തിലേക്കുള്ള ഒരു ഊഞ്ഞാലാട്ട മാണീ കവിത. ‘ഊഞ്ഞാൽ’ കവിതയിലേക്ക്പ്ര വേശിക്കുമ്പോൾ ആസ്വാദക

ഹൃദയങ്ങളിൽ ആദ്യം ഉയരുന്ന ഒരു സന്ദേഹം അത ന്നെയാണ്. ഇതൊരു സ്വപ്നമാണോ? ‘വൈലോപ്പിള്ളി കവിതക ളിലെ നിരന്തര സാന്നിധ്യമാകുന്ന ദാമ്പത്യപ്പൊരുത്തക്കേടുകളും, പരാ തിയും പരിഭവവും നിറഞ്ഞ കുറ്റപ്പെടുത്തലുകളും ഒക്കെ മാറ്റിവെച്ച് സമാധാനപൂർണ്ണവുമായ ദാമ്പത്യത്തിലെ വാർധക്യം, ഈ കവിത യിൽ നിറയുകയാണ്.

തിരുവാതിര നിലാവുപോലെ ശുഭവും, സുന്ദ രവുമാണീ കവിത. കവിത ആരംഭിക്കുന്നതുതന്നെ തികച്ചും പോസിറ്റീവായ വിചാ രധാരയോടുകൂടിയാണ്. ഒരു വെറ്റില നൂറു തേച്ചു നീ തന്നാ ലും, ഈ തിരുവാതിരരാവുപോലെ മഞ്ഞിനാൽ ചുറ്റുമ്പോഴും, മധുരം ചിരിക്കുന്നു നമ്മുടെ ജീവിതം. വാർധക്യം പലതു കൊണ്ടും ഈ കാലഘട്ടത്തിൽ മടുപ്പിന്റെ അവശതയുടെ, അവ ഗണനയുടെ ഒക്കെ ഇരുണ്ട ലോകമായി മാറുന്നു.

അങ്ങനെ യൊരു അവസ്ഥയിലാണ് മഞ്ഞുകൊണ്ടു ചുളുമ്പോഴും മധുരം ചിരിക്കുന്ന കവിയേയും, ഭാര്യയേയും നാം കവിതയിൽ കണ്ട ത്തുന്നത്. ചില്ലറ വേദനകളും, ചെറിയ ബുദ്ധിമുട്ടുകളൊന്നും തന്നെ അവരുടെ ദാമ്പത്യജീവിതത്തിന്റെ ഈ അവസാനരംഗ ത്തിന് മങ്ങലേൽപ്പിക്കുന്നില്ല. അതുകൊണ്ടുതന്നെ യാണ് യാഥാർത്ഥ്യത്തിനു

മുകളിൽ കൂടിയുള്ള സ്വപ്നങ്ങളുടെ ഊഞ്ഞാലാട്ടമായി ഈ കവിത മാറുന്നത്. ‘നര’ പലപ്പോഴും അനുഭവങ്ങളുടെ പാഠങ്ങൾ തന്നെയാണ്. ജീവിതത്തിന്റെ പല രംഗങ്ങളിലും പ്രകടിപ്പിച്ച പക്വതയില്ലായ്മ കൾക്കുള്ള ഒരു നല്ല മറുപടി. വാർധക്യത്തിൽ, ‘നര’ വീണ ജീവി തത്തിലേക്ക് തിരുവാതിരരാവ് വിരുന്നെത്തുമ്പോൾ, മുമ്പ് ജീവി തത്തിൽ എടുത്തു ചാട്ടങ്ങൾക്കുള്ള നല്ല മറുപ എന്ന പ്രതീകം മാറുന്നു.

ഒത്തുതീർപ്പുകളുടേയും, പര സ്പരം തിരിച്ചറിഞ്ഞ കുറവുകളുടേയും, ഗുണങ്ങളുടേയും നല്ലൊരു തിരിഞ്ഞുനോട്ടം കൂടി വാർധക്യം പകർന്നു തരുന്നു. സ്വാഭാവികമായും ജീവിതത്തിലെ ഒരു രണ്ടാം മധുമാസക്കാല മായി അതുമാറുന്നു. എൻ.എൻ.കക്കാടിന്റെ ‘സഫലമീയാത്ര’ എന്ന കവിത ഈ അവസരത്തിൽ കടന്നുവരികയാണ്.

ആ കവിതയുടെ അന്തരീക്ഷം തികച്ചും വ്യത്യസ്തമാണ്. ജീവിതത്തിലെ ഏറ്റവും വേദന നിറഞ്ഞ കാലഘട്ടമാണ് ആ കവിതയിലെ അന്തരീക്ഷം. അർബുദം ബാധിച്ച തൊണ്ടയുമായി, കവി അവിടെ വേദന തിങ്ങുന്ന ഓരോർമ്മയാ വുകയാണ്. എങ്കിലും അരികിൽ തന്റെ പ്രിയതമ

സ്നേഹ ത്തോടെ ചേർന്നുനിൽക്കുമ്പോൾ; ജീവിതം സഫലമാകുന്നു എന്നു ആ കവിതയിൽ എൻ.എൻ.കക്കാട്പ റഞ്ഞുവെക്കുന്നു. പരസ്പരം ഊന്നുവടികളാകുന്ന; വേദനയുടെ അവസ്ഥയിലും – സ്നേഹം മരുന്നായിത്തീരുന്ന ഒരന്തരീക്ഷം ‘സഫലമീയാത് എന്ന കവിതയിൽ നിറഞ്ഞുനിൽക്കുന്നുണ്ട്. ‘ഊഞ്ഞാലിൽ സംത്യ പ്തിയുടെ വാർധക്യമാണ്.

എങ്കിലും പരസ്പരമുള്ള ദാമ്പത്യ ത്തി എല്ലാമെല്ലാമായ ആ പങ്കുവെയ്ക്കലിൽ ഇരുകവിതകളും സാമ്യം പുലർത്തുന്നു. ‘സഫലമീയാത്ര യിലും ഈ കവിതയിലെ ന്നപോലെ ‘ആതിരനിലാവ്’ ഒരു കഥാപാത്രമായി മാറുന്നുണ്ട്. ദാമ്പത്യത്തിന്റെ ആരംഭത്തിൽ, മധുവിധുവിന്റെ ലഹരിയിൽ ഇതേ പോലെ ആതിരനിലാവിന്റെ ലഹരിയിൽ അവർ സ്വയം അലിഞ്ഞിട്ടുണ്ട്.

പുലരിയെത്തുവോളം, ഊഞ്ഞാലിൽ സ്വയം മറന്നിട്ടുണ്ട്. ഒരാവർത്തനം കവി ആവശ്യപ്പെടുന്നു. യൗവ്വനം അസ്തമിച്ചിട്ടു ണ്ടാകാം. ജീവിതചക്രത്തിന്റെ കാലചകം) തിരിച്ചിലിൽ എല്ലാം മാറിയിട്ടുണ്ടാകാം. എങ്കിലും പഴയ ഓർമ്മകളെ ഒന്നുകൂടി പൊടി തുടച്ച്

മിനുക്കിയെടുക്കാം. പഴയകാലത്തിന്റെ ഓർമ്മകളുമായി, പഴയ പുഞ്ചിരി മാത്രം കവി തന്റെ പ്രാണപ്രേയസിയുടെ മുഖത്തുനിന്ന് കണ്ടെടുക്കുന്നു. ആ മന്ദസ്മിതത്തിൽ, ആ ദാമ്പത്യ ത്തിന്റെ സംതൃപ്തി മുഴുവൻ നിറഞ്ഞു നിൽക്കുന്നുണ്ട്. സുഖവും സംതൃപ്തിയും നിറഞ്ഞ നാട്ടിൻപുറത്തിന്റെ വിശു ദ്ധിയെ വാഴ്ത്താൻ കവി മറക്കുന്നില്ല.

നഗരത്തിന്റെ വമ്പു കൾക്കും അപ്പുറം, നാട്ടിൻപുറത്തിന്റെ നന്മയെ പ്രതിഷ്ഠിക്കാൻ കവി പ്രത്യേകം ശ്രദ്ധിക്കുന്നുണ്ട്. സ്നേഹത്തിന്റേയും, ഐക്യത്തിന്റെയും ആ മണ്ണിലാണ് ബന്ധങ്ങളുടെ വേരുകൾ കൂടുതൽ ആഴത്തിൽ ഉറയ്ക്കുന്നത്. ഇതൊക്കെയാണെങ്കിലും ചില യാഥാർത്ഥ്യങ്ങളിലേക്ക്, നയിക്കുന്നുണ്ട്.

കവി നമ്മെ കാൽപ്പനികതയുടെ നിറവിലും, യാഥാർത്ഥ്യത്തിന്റെ രജതരേഖകൾ കവി കാണാതെ പോകുന്നില്ല. അല്ലെങ്കിലും “തുടുവെള്ളാമ്പൽ പൊയ്കയല്ല, ജീവിതത്തിന്റെ കടലേ കവിതയ്ക്ക് ഞങ്ങൾക്കു മഷിപ്പാത്രം” – എന്ന് പാടിയ കവിയ്ക്ക് അങ്ങനെയൊന്നും കണ്ണടയ്ക്കാൻ കഴിയില്ല. നാട്ടിൻപുറത്തിന്റെ

നന്മയും വിശുദ്ധിയും പാടുന്നതോടൊപ്പം വൈലോപ്പിള്ളി അവിടത്തെ ‘പഞ്ഞ ത്തെക്കുറിച്ചും (ഇല്ലായ്മ) പറ യുന്നു. ഇല്ലായ്മകളുടെ വറുതിയിലും, കണ്ണീരിന്റെ പാട്ടിനാൽ തിരു വാതിരയെ വരവേൽക്കുന്ന അയൽസ്ത്രീകളുടെ നൊമ്പരം കവി കാണാതെ പോകുന്നില്ല. അങ്ങകലെ നടക്കുന്ന യുദ്ധത്തിന്റെ കെടുതി അവരെയും

ജീവിതത്തിന്റെ രണ്ടറ്റം കൂട്ടിമുട്ടി പാടുപെടുമ്പോഴും, തിരുവാതിരയുടെ നിറവിനു വേണ്ടി പാടുകയാണവർ. ‘തിരുവാതിര തീക്കട്ട പോലെ – എന്ന പഴമൊഴി അവരുടെ കാര്യത്തിൽ പൂർണ്ണമായും ശരിയാവുകയാണ്. തന്റെ ജീവിത സൗഭാഗ്യങ്ങളുടെ സമൃദ്ധിയിലും, കവി തൊട്ടടു ത്തുനിന്നുയരുന്ന വേദനയുടെ കനലുകൾ കാണാതെ പോകുന്നില്ല. ഇവിടെയാണ് വൈലോപ്പിള്ളിയിലെ ശുഭാപ്തി വിശ്വാസിയെ നാം അടുത്തറിയുന്നത്.

എല്ലാം മാറ്റങ്ങൾക്കു വിധേയമാണ്; പ്രകൃതി പോലും. പരസ്പരം കലഹിക്കുന്ന, യുദ്ധം ചെയ്യുന്ന ജനതതി കൾ പരസ്പരം സ്നേഹിക്കും. യുദ്ധം തോൽക്കുകയും മനുഷ്യൻ ജയിക്കുകയും ചെയ്യും. അങ്ങനെ കൊലക്കുരുക്കുകൾ പോലും രൂപം മാറി വിനോദത്തിന്റെ

ഊഞ്ഞാലുകളാകും…. ജീവിതത്തെ സ്നേഹിക്കുവാൻ വേണ്ടി പാടാൻ കവി ഭാര്യയോട് ആവശ്യപ്പെടുന്നു. മനസ്സിനെ നൃത്തം ചെയ്യിക്കാൻ പോലും ശക്തി യുള്ള പ്രേയസിയുടെ സ്വർണ്ണക്കമ്പികൾ മീട്ടുന്ന കണ്ഠത്തിൽ നിന്നുള്ള ഗാനം. കവിയുടെ കരൾ ഊഞ്ഞാൽക്കയർപോലെ ആ ഗാനത്തിൽ കമ്പനം കൊള്ളുകയാണ്.

സംഗീതം എല്ലാം മാറ്റിമറിക്കുന്നു. പ്രായവും, പശ്ചാത്തലവും, കാലവും, അന്തരീക്ഷവും സകലതും മാറുന്നു. ജീവിതം പുതുമയുള്ളതാക്കി മാറ്റുന്നു. ജീവിതത്തെ അഗാധമായി സ്നേഹിക്കുവാൻ സംഗീത മായി പ്രാപ്തരാക്കും. അങ്ങനെ ഈ തിരുവാതിയ രാവ് സന്തോഷത്തിന്റെ ഏറ്റവും വലിയ സന്ദർഭമാകട്ടെ.

അവിടെ സംഗീത സാന്ദ്രമാകുന്ന തോടെ പൂനിലാവണി മുറ്റം മാലിനിതീരവും, വെൺനര കലർന്ന പനി, കണ്യമുനിയുടെ ആശ്രമ കന്യകയുമായിത്തീരുന്നു. ഭാവന യുടെ അളവറ്റ പ്രവാഹത്തെ നൊടിയിടകൊണ്ട് സൃഷ്ടിക്കാൻ, സംഗീതത്തിനു സാധിക്കുന്നു. മനുഷ്യായുസ്സിൽ അല്പമായി മാത്രം അനുഭവിക്കാൻ കഴിയുന്ന ചില നിമിഷങ്ങൾ – (മാത്രകൾ) – അതിലൂടെ

കടന്നുപോകുന്നു കവിയും പതിയും. അനവദ്യസുന്ദരമായ അനുഭൂതികളുടെ അളവറ്റ പ്രവാഹമാണീ സന്ദർഭത്തിൽ വൈലോപ്പിള്ളി കവിത. പിന്നീട് ഓർത്തെടുക്കാൻ വേണ്ടിയുള്ള ഓർമ്മകളുടെ ഒരു കുങ്കുമച്ചെപ്പ്. കവിതയുടെ അവസാനത്തിൽ മാസ്മരികമായ സ്നേഹത്തിന്റെ മാന്ത്രികാന്തരീക്ഷം സൃഷ്ടിക്കാൻ വൈലോപ്പിള്ളിയ്ക്ക് സാധിക്കു ന്നുണ്ട്.

നിസ്വാർത്ഥമായ സ്നേഹത്തിന്റെ നിഷ്കാമമായ പങ്കുവെയ്ക്കലിന്റെ ഏറ്റവും ഉദാത്തമായ ജീവിതവേദിയാണ് വാർധക്യത്തിലെ ദാമ്പത്യം. പരസ്പരം താങ്ങാകാൻ കഴിയുന്ന, എല്ലാം അറി യുന്ന അവസ്ഥ. മറ്റാർക്കുമായി മാറ്റിവെയ്ക്കാനില്ലാത്ത വിലപ്പെട്ട നിമിഷങ്ങളിൽ അവർ മാത്രമായിത്തീരുന്ന, ഒരു ഗാനമായി അലി യുന്ന അപൂർവ്വ സന്ദർഭം. അതിന്റെ മനോഹാരിത ‘ഊഞ്ഞാലിൽ എന്ന കവിതയിൽ ഉടനീളം തുളുമ്പി നിൽക്കുന്നുണ്ട്. സ്നേഹത്തിന്റെ ശീതളിമയോടൊപ്പം.

വാത്സല്യത്തിന്റെ ആർദ തയും ഊഞ്ഞാലിനെ വ്യത്യസ്തമാക്കുന്നുണ്ട്. സ്നേഹം കൊണ്ട് മരണത്തെ നാശത്ത് തോൽപ്പിക്കുന്ന മനുഷ്യനെ സൃഷ്ടിക്കാൻ വൈലോപ്പിള്ളി താൽപ്പര്യം

കാണിക്കുന്നുണ്ട്. ഊഞ്ഞാലിന്റെ കയ റുകൊണ്ട് കൊലക്കുടുക്കുണ്ടാക്കാം. അതുപോലെതന്നെ ഉല്ല സിച്ച്, ഇരുന്നാടി രസിക്കാൻ ഊഞ്ഞാലും. ഈ കവിതയിൽ വൃദ്ധൻ രണ്ടാമത്തെ മാർഗ്ഗം സ്വീകരിച്ച് മരണത്തിനു മുകളിൽ മനുഷ്യാഹ്ലാദത്തിന്റെ വിജയം നേടുന്നു. ഒപ്പം വാർധക്യത്തേയും അയാൾ കീഴടക്കുന്നു.

ശുഭാപ്തി വിശ്വാസത്തിന്റെ നന്മയുടെ, സ്നേഹത്തിന്റെ വലി യൊരു വിജയഗാഥ തന്നെയാണ് ‘ഊഞ്ഞാൽ’ എന്ന കവിത. മന സ്സുകളുടെ മനോഹരമായ ചേർച്ചകൊണ്ട് ദാമ്പത്യം സുന്ദരമായ ‘സിംഫണി പോലെ ഹൃദ്യമാകുന്ന അനുഭവവും ഈ കവിത പങ്കുവെയ്ക്കുന്നു. അതുകൊണ്ടുതന്നെ സ്വപ്നം പോലെ സുന്ദ രമാണീ കവിത

വൈലോപ്പിള്ളി ശ്രീധരമേനോൻ (1911 – 85)

ശ്രീ എന്ന തൂലികാനാമത്തിൽ കുറച്ചുകാലം അറിയപ്പെട്ട വൈലോപ്പിള്ളി ശ്രീധരമേനോൻ മലയാള കവിതയിലെ യുഗപരിവർത്തനത്തിനു ഹരിശ്രീ കുറിച്ച് നായകനാണ്. റൊമാന്റിസ് ത്തിന്റെ അവസാന യാമത്തിൽ പിറന്നദ്ദേഹം അതിന്റെ മാസ്മരി കതയെ കൈവിടാതെതന്നെ യാഥാർത്ഥ്യത്തിന്റെ സ്ഥിതി വ്യവസ്ഥയിലേക്ക് പടർന്നുകയറിയത് മന്ദമായി സംഭവിച്ചുപോയ

അവ സ്ഥയാണ്. ഇടപ്പള്ളി കവികളുടെ കാല്പനികതയിൽ വീഴാതെ സമചിത്തത യോടെ, ആകാശങ്ങളോ അട്ടഹാസങ്ങളോ ഇല്ലാതെ, യുക്തി യുക്തമായ ചിന്തയിലൂടെ തന്റെ ആശയങ്ങളെ കവിതയിലേക്ക് കൊണ്ടെത്തിച്ചത് അദ്ദേഹമാണ്.

എന്നാൽ അപാരമായ സ്വാധീന വലയം അത് വായനക്കാരുമായി നേടിയിരിക്കും. പ്രവർത്തി ക്കാതെ സ്വപ്നം കാണുന്നവനോടും, പ്രവർത്തിക്കാതെ പ്രസം ഗിക്കുന്ന ബുദ്ധിജീവിയും, ഇച്ഛകൊണ്ടും വാക്കുകൊണ്ടും തൊഴിലാളികളുടെ കൂടെ നിന്നാലും പ്രവർത്തിക്കേണ്ടി വരുമ്പോൾ പക്ഷം മാറും ആ ദുരന്തം കൊണ്ടാണ് തൊഴിലാളി വർഗ്ഗം എന്നും രണ്ടാംതരക്കാരായി നിൽക്കേണ്ടി വരുന്നത്.

കന്നിക്കൊയ്ത്ത്, ശ്രീരേഖ, ഓണപ്പാട്ടുകൾ, വിത്തും കൈക്കോട്ടും കുന്നിമണികൾ കുരുവികൾ കയ്പവല്ലരി തുടങ്ങിയ കവിതകളിലെല്ലാം കൂടി വളർന്നു വന്ന കവിസ്വത്വം ബഹുമുഖങ്ങളെ പ്രകാശിപ്പിക്കുകയും, ജീവിതദർശനത്തിന് വ്യത്യസ്തമായ തലങ്ങൾ കണ്ടെത്തുകയും ചെയ്തു. വാർദ്ധക്യത്തെ തോൽപ്പിച്ച വൃദ്ധനേയും അദ്ദേഹം ചിത്രീകരിച്ചിട്ടുണ്ട്. വാത്സല്യത്തിന്റെ

ആർദ്രതയും സ്നേഹത്തിന്റെ വൈലോപ്പിള്ളിയുടെ കവിതയെ ശീതളിമയും മാധുര്യസംഭാവിത മാക്കുന്നു. ഓരോ കവിതയും ജീവിതാനുഭവങ്ങളുടെ പ്രതികരണമാണ്. ജീവിതത്തെ താത്വികപരമായി ചിത്രീകരിക്കാനുള്ള കഴിവ് കുമാരനാശാൻ കഴിഞ്ഞാൽ വൈലോപ്പിള്ളിയ്ക്കായിരിക്കും.

Conclusion:

In the end, Kalyani comes to realize that she cannot live in the past. She must move on with her life and find a way to be happy without her husband. She decides to focus on her children and to make a new life for herself.