नक्कड़ नाटक (अ) मौसम (आ) अनमोल जिंदगी Summary in Hindi

नक्कड़ नाटक (अ) मौसम (आ) अनमोल जिंदगी Summary in Hindi

नक्कड़ नाटक (अ) मौसम (आ) अनमोल जिंदगी Summary in Hindi

(अ) मौसम

“मौसम” अरविंद गौड़ द्वारा लिखा गया एक नक्कड़ नाटक है, जो जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को संबोधित करता है। यह नाटक एक ऐसे गांव की कहानी कहता है जहां लोग जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना कर रहे हैं।

मौसम लेखक परिचय :

लेखक अरविंद गौड़ जी ने ‘नुक्कड़ नाटक’ में अपना एक विशिष्ट स्थान प्राप्त किया है। आपका जन्म 2 फरवरी 1963 को शाहदरा (दिल्ली) में हुआ। इंजीनियरिंग पढ़ते समय नाटकों के प्रति आपकी रुचि बढ़ गई। आप पत्रकारिता तथा थिएटर से जुड़ गए।

मजदूर हो या किसान इनके विविध आंदोलनों में आपने एक बुनियादी भूमिका निभाई है। आपके ‘नुक्कड़ नाटकों’ का मंचन देश-विदेश में हो चुका है। आपने निर्देशित (directed) किया हुआ ‘कोर्ट मार्शल’ इस नाटक का पूरे भारत में 450 से भी अधिक बार मंचन हुआ है।

मौसम रचनाएँ :

‘नुक्कड़ पर दस्तक’ (नुक्कड़ नाटक संग्रह), अनटाइटल्ड, आई विल नॉट क्राय, अहसास (एकल नाट्य) तथा कुछ पटकथाएँ।

मौसम विधा परिचय :

‘नुक्कड़ नाटक’ आठवें दशक से लोकप्रिय हुआ। नुक्कड़ माने चौक या चौराहा। इस नाटक का प्रस्तुतीकरण (presentation) किसी चौक में, किसी सड़क पर, मैदान, बस्ती या कहीं भी हो सकता है। इन नाटकों का प्रस्तुतीकरण सामाजिक संदेशों के प्रसारण के लिए किया जाता है।

नुक्कड़ नाटक को प्रेक्षक राहों या चौक में खड़े होकर देखते हैं। इन्हें देर तक रोकना संभव नहीं होता इसलिए ये नाटक बेहद सटीक एवं संक्षिप्त होते हैं। जनता से सीधे संवाद करने वाले इस नाटक के लिए वेशभूषा, नेपथ्य, ध्वनि-संयोजन जैसी साज-सज्जा की आवश्यकता नहीं होती।

जन-जन तक समाज हित की बात सहजता से पहुँचाना इसका उद्देश्य है।

मौसम विषय प्रवेश :

अरविंद गौड़ लिखित ‘मौसम’ नामक नुक्कड़ नाटक आधुनिक जीवन की एक प्रखर समस्या को उजागर करता है। पर्यावरण को लेकर एक चेतना निर्माण करने का आपने प्रयास किया है। आज के जमाने में ‘पानी की समस्या’ ने एक विकराल (horrible) रूप धारण किया है।

पानी की कमी, हवा या जमीन का प्रदूषण, लोगों की लापरवाही इन अनेक समस्याओं के प्रति मनुष्य को सचेत बनाने की कोशिश इस नाटक द्वारा हुई है।

मौसम सारांश :

दृश्य – 1 : पानी की कमी : मनुष्य की पानी के प्रति लापरवाही से आज लोगों को पानी की कमी महसूस हो रही है। जो पानी उपलब्ध है उसे भी हमने दूषित किया है। इस कारण आज-कल मनुष्य पीने या नहाने के लिए पानी खरीद रहा है।

दृश्य – 2 : विकास का परिणाम : आज विकास के नाम पर फैक्ट्रियाँ खोली जाती हैं। इसका कूड़ा-कचरा, दूषित पानी नदियों में छोड़ा जाता है, जिससे जल प्रदूषित होता है।

दृश्य – 3 : पर्यावरण का असंतुलन : आज ऋतुचक्र में नियमितता नहीं रही क्योंकि हमने ही पर्यावरण को असंतुलित किया है। कहीं बाढ़ आती है, तो कहीं बरसात का इंतजार करना पड़ता है। इस असंतुलन के लिए मनुष्य ही जिम्मेदार है।

दृश्य – 4 : वायु प्रदूषण : आज लोग घर में, दफ्तर में हर जगह ए.सी. लगवाते हैं। इस ए.सी. से निकलने वाली गैस से ओजोन परत में छेद हो जाता है।

दृश्य – 5 : लोगों की लापरवाही : लोग खाना खाकर प्लास्टिक की थालियाँ, पानी पीकर प्लास्टिक की बोतल या गिलास रास्ते पर फेंकते हैं। ऐसा विविध प्रकार का सामान कूड़ा-कचरा बनकर नालों में अटक जाता है। बारिश होने पर नाले से पानी की निकासी न होने से पानी रास्ते पर आता है और थोड़ी-सी भी बारिश होने पर रास्ते स्विमिंग पूल बन जाते हैं।

दृश्य – 6 : मृदा का प्रदूषण : आज-कल लोग खेती करते समय कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं। इसके केमिकल से जमीन दूषित हो जाती है। ऐसी खेती से निकली हुई फसल, फल, सब्जियाँ खाकर लोगों को अनेक प्रकार की बीमारीयाँ हो रही हैं।

दृश्य – 7 : जल – प्रदूषण : लोग नदी के किनारों पर नए-नए कारखाने खड़े करते हैं। इनमें से निकलनेवाला गंदा, रसायन युक्त पानी नदियों में छोड़ा जाता है। परिणाम स्वरूप पानी में रहने वाली मछलियाँ तथा अन्य जीव-जंतुओं का विनाश हो रहा है।

दृश्य – 8 : गरीबों पर परिणाम : फैक्टरी में काम करने वाले मजदूर बीमारियों से ग्रस्त हैं। अनेकों को स्किन कैंसरं हो रहा है। मछुआरे, आदिवासी इन जैसे प्रकृति पर अवलंबित गरीब लोगों का जीना हराम हो गया है।

दृश्य – 9 : मनुष्य का विनाश : भौतिक विकास के नाम पर मनुष्य आस-पास के प्राकृतिक संसाधन नष्ट कर रहा है। जिससे प्राकृतिक संकट मनुष्य का विनाश कर रहे हैं। कभी बाढ़ तो कभी सूखा, कभी तूफान तो कभी भूचाल, ऐसे संकट मनुष्य के स्वार्थी वृत्ति का परिणाम हैं। ‘ग्लोबल वॉर्मिंग’ भी चिंता का विषय है। इनसे मनुष्य सावधान ना हो तो उसका विनाश अटल है।

(आ) अनमोल जिंदगी

“अनमोल जिंदगी” अरविंद गौड़ द्वारा लिखा गया एक नक्कड़ नाटक है, जो रक्तदान के महत्व को संबोधित करता है। यह नाटक एक ऐसे व्यक्ति की कहानी कहता है जो एक दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो जाता है। वह रक्त की कमी के कारण मरने लगता है, लेकिन एक समय पर उसे रक्त मिल जाता है और उसकी जान बच जाती

अनमोल जिंदगी अरविंद गौड़ विषय प्रवेश :

अरविंद गौड़ जी ने नुक्कड़ नाटक के माध्यम से सामयिक समस्याओं को जनता तक पहुँचाने की कोशिश की है। ‘अनमोल जिंदगी’ इस नाटक द्वारा लेखक ‘रक्तदान’ इस विषय पर सामान्य लोगों को जगाने की कोशिश करते हैं। हजारों-लाखों लोगों की मृत्यु सिर्फ समय पर उचित रक्त न मिलने से होती है। रक्तदान के बारे में लोगों में काफी गलतफहमियाँ भी हैं। इन गलतफहमियों को दूर करते हुए लेखक रक्तदान करने की प्रेरणा देते हैं।

अनमोल जिंदगी सारांश:

दृश्य – 1 : एक्सीडेंट : एक दिन रास्ते पर एक चाचाजी का एक्सीडेंट हुआ। उनको बचाने के लिए ‘ओ निगेटिव’ ब्लड की जरूरत हैं परंतु लोगों की मानसिकता न होने से, उनकी रक्तदान के बारे में गलतफहमियाँ होने के कारण वे तरह-तरह का बहाना बनाकर रक्तदान करना टालते हैं।

दृश्य – 2 : हॉस्पिटल : एक सरकारी अस्पताल में गरीब माँ अपने बच्चे का जीवन बचाना चाहती थी। उसकी कम कमाई के कारण वह रक्त खरीद नहीं सकती। उसे आशा थी कि कोई रक्तदाता मिल जाएगा परंतु यह आशा निराशा में बदलती है और एक माँ अपने बेटे को हमेशा के लिए खो देती है।

दृश्य – 3 : ऑटो : एक बेटा अपनी बीमार माँ को बचाना चाहता था। माँ अस्पताल में थी। बेटा उचित रक्त की तलाश में ‘ऑटो’ से इधर-उधर घूम रहा था। उसकी बेचैनी, उसका प्रयास देखकर एक दयालु ऑटो वाला ही रक्तदान करने के लिए तैयार हो जाता है जिससे एक जिंदगी बचती है।

मैट्रो रेल का सुहाना सफ़र Summary In Hindi

मैट्रो रेल का सुहाना सफ़र Summary In Hindi

“मैट्रो रेल का सुहाना सफ़र” एक रोमांटिक कहानी है जो मैट्रो रेल के यात्री और उनके जीवन के संघर्षों को दर्शाती है। इस कहानी में हमें एक मैट्रो रेल की यात्रा के दौरान जुदे दो अजनबी प्रेम के संबंध के रोमांटिक और मनोरंजक पलों का साक्षात्कार होता है। यह कहानी जीवन के छोटे-छोटे खुशियों और संरक्षित लम्हों के महत्व को उजागर करती है।

मैट्रो रेल का सुहाना सफ़र Summary In Hindi

मैट्रो रेल का सुहाना सफ़र पाठ का सार

‘मैट्रो रेल का सुहाना सफ़र’ पाठ में लेखक ने दिल्ली में चल रही मैट्रो रेल की सैर कराई है। पंजाब की योग टीम अपने कोच गुरुश्री सुरेन्द्र मोहन के साथ दिल्ली में राष्ट्रीय खेलों में भाग लेने गई थी। वे अशोक विहार के झलाकारीबाई राजकीय उच्चतर विद्यालय में ठहरे थे। गरु जी ने उन्हें कहा था कि यदि वे राष्ट्रीय खेलों में प्रथम आए तो उन्हें मैट्रोरेल की सैर करवाएँगे। उनकी टीम प्रथम आई थी इसलिए गुरु जी उन्हें मैट्रो रेल से लाल किला दिखाने ले जा रहे थे।

सभी खिलाड़ी पंजाब छपे नीले रंग के ट्रैक सूट पहने मैट्रो रेल के कन्हैया नगर स्टेशन पर पहुँच गए। वहाँ राजीव ने गुरु जी से कहा कि रेलगाड़ी तो ज़मीन पर चलती है, पर यह स्टेशन तो सड़क के ऊपर बने पुल के ऊपर है। तब गुरु जी ने उसे समझाया कि मैट्रो रेल ज़मीन, पुल पर या ज़मीन के नीचे सुरंग में बिछी पटरियों पर चल सकती हैं, जिससे कम समय में अधिक दूरी तय की जा सके। प्रतिभा के यह पूछने पर कि गाड़ी किस रास्ते से जाएगी? गुरु जी ने उत्तर दिया कि गाड़ी की खिड़की के पास बैठकर स्वयं ही देख लेना।

गुरु जी ने सबको सीढ़ियों से ऊपर जाने के लिए कहा तो भास्कर ने लिफ्ट लगे होने की बात कही। गुरु जी ने बताया कि लिफ्ट वृद्धों, बीमारों तथा अपाहिजों के पहिया कुर्सी के साथ लाने ले जाने के लिए है। जैसे ही वे स्टेशन पर पहुँचे तो वहाँ की साफ़-सफाई देखकर हैरान रह गए। वहाँ तैनात सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें एक जांच-यंत्र से अन्दर जाने दिया। स्टेशन पर रेस्तरां, कॉफी शॉप, बुक-शॉप, ए०टी०एम० आदि सेवाएँ भी उपलब्ध थीं। उन्हें स्वचालित प्रवेश द्वारा, जो टोकन, स्मार्ट कार्ड तथा पर्यटक कार्ड द्वारा खुलता है, के स्थान पर समूह-पास होने के कारण विशेष प्रवेश-द्वार तथा प्लेटफार्म की ओर प्रवेश कराया गया।

मैट्रो रेल का सुहाना सफ़र Summary

प्लेटफार्म पर भी बहुत साफ-सफाई थी तथा गाड़ी की प्रतीक्षा करते समय किसी को भी प्लेटफार्म पर बनी पीली-पट्टी पार करने की आज्ञा नहीं थी। गाड़ी की प्रतीक्षा करते हुए जिस दिशा में यात्रा करनी हो, उसी दिशा में मुँह करके खड़ा होना चाहिए। सूचना पट्ट पर गाड़ी के आने का समय जान कर गुरु जी ने बच्चों को तैयार रहने के लिए कहा कि तभी घोषणा हुई कि रिठाला से इन्द्रलोक और कश्मीरी गेट होते हुए दिलशाद गार्डन जाने वाली मैट्रो कुछ समय में प्लेटफार्म पर पहँच रही है।

किरन उद्घोषणा में लाल किले का नाम न सुन पाने के कारण गुरुजी से पूछती है, तो वे बताते हैं कि उन्हें कश्मीरी गेट से चाँदनी चौक की मैटो पकडनी होगी तथा वहाँ उतर कर पैदल लाल किले जाना होगा। गाड़ी में सभी बच्चे लम्बी सीटों पर खिड़कियों के पास बैठ गए। स्वचालित द्वार स्वयं बन्द हो गए। राजीव को ऐसा लग रहा था जैसे वे सब किसी विमान पुस्तकीय भाग में उड़ रहे हो। वातानुकूलित होने के कारण खिड़कियाँ स्थाई तौर पर बन्द थीं। बच्चे खिड़कियों से बाहर के दृश्य देख रहे थे। स्टेशन आने से पहले गाड़ी में आने वाले स्टेशन और द्वार किधर खुलेंगे की घोषणा हो रही थी।

कश्मीरी गेट स्टेशन आने की घोषणा होते ही गुरु जी ने बच्चों को उतरने के लिए तैयार हो जाने के लिए कहा। वहाँ जैसे ही गाड़ी रुकी और द्वार खुला मैट्रो का एक कर्मचारी इनकी सहायता के लिए खड़ा था जिसे कन्हैया नगर स्टेशन से अधिकारियों ने सूचना दे दी थी। इन बच्चों के ट्रैक सूट पर पंजाब छपा देख कर उसने इन्हें पहचान लिया था। वह इन्हें स्वचालित सीढ़ियों से भूमिगत प्लेटफार्म पर ले गया, जहाँ से इन्हें चाँदनी चौक की मैट्रो मिलनी थी। सिमरन को वह स्थान सुरंग जैसा लगा। चाँदनी चौक स्टेशन से बाहर भी वे विशेष द्वार से आए तथा लाल किले की तरफ जाते हुए मैट्रो के इसी अजूबे सफर की बातें कर रहे थे।

Conclusion:

“मैट्रो रेल का सुहाना सफ़र” का संग्रहण हमें यह सिखाता है कि जीवन के सफर में हमें कभी-कभी अचानक होने वाले पलों का आनंद उठाना चाहिए, और हमें अपने दिनचर्या की छोटी-छोटी खुशियों को महत्व देना चाहिए। यह कहानी हमें प्यार, संबंधों, और आपसी समझ की महत्वपूर्ण भूमिका को बताती है, और यह दिखाती है कि जीवन के सफर में हर कदम पर कुछ नया और ख़ास हो सकता है।

Samkramanam Summary in Malayalam

Samkramanam Summary in Malayalam

Samkramanam is a Malayalam poem written by Aattur Ravi Varma, one of the pioneers of modern Malayalam poetry. The Summary is a powerful and moving poem that explores the themes of poverty, exploitation, and social injustice.

Samkramanam Summary in Malayalam

Samkramanam Summary in Malayalam 1
ആറ്റൂർ രവിവർമ്മ

1930 ഡിസംബർ 27 ന് തൃശ്ശൂർ ജില്ല യിൽ ആറ്റൂർ എന്ന സ്ഥലത്ത് ജനിച്ചു. ആറ്റൂർ രവിർമ്മയുടെ കവിതകളിൽ പ്രധാനമാണ് സംക്രമണം. സുന്ദര രാമസ്വാമി, സെൽമ ജി നാഗ രാജൻ എ ന്നി വ രുടെ കൃതികൾ മല യാ ള ത്തിലേയ്ക്ക് വിവർത്തനം ചെയ്തു. ആധുനികതയുടെ ഒരു പ്രമുഖ പ്രതി നിധിയായ രവിവർമ്മയുടെ കൃതികൾ. 2001- ൽ പ്രസിദ്ധീക രിച്ച് ആ കൃതികൾക്ക് കേന്ദ്ര സാഹിത്യ അക്കാദമി പുരസ്കാരം ലഭിച്ചു.

സ്വന്തം വ്യക്തിത്വം- പാരമ്പര്യനിരാസം എന്നിവ അന്വേഷണാത്മകങ്ങളാണ്. ആധുനിക മനുഷ്യർ നഷ്ടസ്വർഗ്ഗത്ത കരഞ്ഞു പിഴിയാൻ നിൽക്കാതെ അതു മറക്കാൻ ഭോഗങ്ങളിൽ മുഴുകുന്നതും അതിലുള്ള നിസ്സംഗതയും യാന്തികതയും അദ്ദേഹം പകർത്തുന്നുണ്ട്. ആധുനിക മനുഷ്യന്റെ സ്വാഭാവിക സ്വഭാവങ്ങളെല്ലാം കൃതികളിൽ തെളിഞ്ഞ് കിടക്കുന്നുണ്ട്. പാര മ്പര്യത്തിന്റെ

മൃതഭാരത്തെ വലിച്ചെറിയുന്നതിനുള്ള ഒരു പ്രത്യാ ധനമന്ത്രമാണ് സംക്രമണം. ഗതകാലത്തിലേയ്ക്ക് പിൻതിരിയുക എന്നത് ഭാന്തുകൊണ്ടു നശിച്ച എല്ലാ കാരണവന്മാരും, എത്തിച്ചേർന്നതായ അഗാധ വിസ്മൃതി തന്നെ, മാത്രമല്ല നിലവിലുള്ള വ്യവസ്ഥിതി നൂറായി നുറുങ്ങുകയല്ലാതെ പോംവഴികളൊന്നു മില്ലെന്നുള്ളതാണ് കവിയുടെ പക്ഷം.

നമ്മുടെ ആഷർ സം സ്കാരത്തോടുള്ള ഇത്തരം മനോഭാവം ഗുണകരമാണോ എന്നറിയില്ല. തളിർത്തു പൂക്കുന്ന ജീവിതങ്ങൾ വാടിക്കൊ ഴിഞ്ഞു വീഴുന്നതിലുള്ള ദുഃഖവും അമർഷവും ഉള്ളിൽ തിളച്ചുമറിയുമ്പോഴാണ് രവിവർമ്മ യുടെ സൂര്യത യിൽ കവിത കറുത് ജ്വാലകങ്ങളായി കുതിച്ചുപൊങ്ങുന്നത്. അങ്ങനെ യുള്ള കൃതികൾ എപ്പോഴും ഉണ്ടാകണമെന്നില്ല. ഉണ്ടാകുമ്പോ ഴാകട്ടെ വലിയ പ്രകമ്പനം സൃഷ്ടിക്കുന്നു.

ആസ്വാദനം

കവി ഉൾക്കൊള്ളുന്ന പുരുഷവർഗ്ഗത്തിന്റെ കാലുഷ്യത്തിൽ, ചീഞ്ഞളിഞ്ഞ ജഡമാകുന്ന സ്ത്രീത്വത്തിന്റെ ഒരു തിരിച്ചുവരവ് പ്രവചിക്കുന്ന പ്രവാചക സ്വഭാവമുള്ള കവിതയാണ് സംക്രമണം. സ്ത്രീയുടെ

ജഡത്തിന്റെ അളിഞ്ഞ നാറ്റം അയാളേയും മറ്റുള്ള – വരേയും അകറ്റുന്നത് പുരുഷന്റെ കുറ്റബോധം കൊണ്ടാണ് സ്ത്രീ, അടിമയെപ്പോലെ ഈ ലോകത്തിന്റെ അറിവുദിച്ച ആദ്യ കാലം മുതലേ നമുക്കിടയിൽ ഉണ്ട്. അവർ അടിമത്തിന്റെ മായ നിസ്സംഗതയിൽ കഴിയുന്നവളാണ്. ഭീകര ലിരമ്പുന്നില്ല.

അതുകൊണ്ട് അവളുടെ കാതിൽ അവളുടെ കണ്ണുകൾ പാതിരയ്ക്ക് അടയ്ക്കാനുള്ളത് മാത്രമാണ്. പ്രതികരണമില്ലായ്മയുടെ രൂക്ഷ മായ നിഷ്ക്രിയത്വത്തിലാണ് സ്ത്രീ കഴിയുന്നത്. കവി സ്ത്രീയുടെ ഒരു തിരിച്ചു വരവ് സ്വപ്നം കാണുന്നു. അത് ഒരു സങ്കല്പ്പ ത്തിലൂടെയാണ് ആവിഷ്ക്കരിക്കുന്നത്.

സ്ത്രീയുടെ തിരിച്ചുവ രവിൽ ഒരു പ്രതികാരത്തിന്റെ കവി ഇവിടെ സങ്കല്പ്പിക്കുന്നത്. സ്ത്രീയുടെ അളിഞ്ഞ ജഡത്തിന്റെ ആത്മാവിനെ വിശക്കുന്ന നരമാംസം രുചിക്കുന്ന കടുവയിലും അവളുടെ നാവിനെ വിശന്ന് ഇര വളഞ്ഞു തിന്നുന്ന ചെന്നായ യിലും അവളിലെ വിശപ്പിനെ പട്ടണങ്ങളേയും ജനങ്ങളേയും വിഴുങ്ങുന്ന അഗ്നിയിലും, ചേർക്കുവാൻ കവി ആഹ്വാനം ചെയ്യു ന്നു.

ഇതാണ് സ്ത്രീത്വത്തിന്റെ തിരിച്ചുവരവ് എന്ന് കവി പ്രവചിക്കുന്നു.

അധികവായന

ആറ്റൂർ രവിവർമ്മയ്ക്ക് എപ്പോഴും എഴുതാവുന്ന ഒന്നല്ല കവിത. കുറേക്കാലമായി ഉള്ളിൽ പിടയ്ക്കുന്ന ഏതെങ്കിലും ഒരനു ഭവത്തിന്റെ പുറത്ത് ചാടിക്കലാണ് അദ്ദേഹത്തിന്റെ കവിത. അംഗീകരിക്കാൻ സാധിക്കാത്ത ഒരനുഭവത്തിന്റെ അല്ലെങ്കിൽ സംസ്കാരത്തിന്റെ മാറ്റിപാർപ്പിക്കലാണ് ആ കവിതകളിൽ പലതും.

നിലനിൽക്കുന്ന സംസ്കാരമോ അനാചാരങ്ങളോ, ഐതിഹ്യങ്ങളോ എന്തുമാകട്ടെ അതിനെതിരെ പ്രതികരിക്കുക എന്നത് അദ്ദേഹത്തിന്റെ രീതിയാണ്. തളിർത്തു പൂക്കേണ്ട ജീവി, ത ത്തിന്റെ ദുര ത ര കാര ണ ങ്ങൾ എന്തുമാകട്ടെ അതിനെ എതിർക്കുക കവിയ്ക്ക് എതിർപ്പേയല്ല.

അസ്വാതന്ത്യത്തിന്റെ ആഴങ്ങൾ എന്തിലായാലും അതിനെ എതിർക്കുക തന്നെയാണ് ആറ്റർ ചെയ്യുന്നത്. ഉയരാൻ ഇടമുള്ള സ്ഥലങ്ങളിൽ പരാജയ പ്പെടുമ്പോൾ കവിക്കത് സഹിക്കാൻ സാധിക്കുന്നില്ല. ഏത് സംസ്കാരത്തിന്റെ പേരിലാണെങ്കിലും കവി അത് അംഗീകരി

ക്കുന്നില്ല. നവീനകാവ്യശൈലിയുടെ ആചാരങ്ങൾ നിലനിൽക്കുന്നതിനെ ആശ്രയിക്കുന്നു. ഏവർക്കും ഗുണകരമല്ലായെങ്കിൽ അതിനെ അംഗീകരിക്കാൻ ആറ്റൂരിന് അത്രകണ്ട് താൽപ്പര്യമില്ല. ഈ കവിതയിൽ തന്റെയുള്ളിൽ കുടികൊള്ളുന്ന സത്യം ചീഞ്ഞു നാറുന്ന ഒരു ജഡമായി മാറിയെന്ന് കവി അറിയുന്നു.

സഹനം കൊണ്ടും പ്രയത്നംകൊണ്ടും ഒന്നും നേടാനാവാത്തവളുടെ ഓർമ്മയാണ് ജഡം. ജീവിതത്തിൽ പ്രതീക്ഷകളും മോഹങ്ങളും പണയം വെയ്ക്കേണ്ടിവരുന്ന ഒരു വിഭാഗമായി മാറിയിരിക്കുന്നു. ബാഹജീവിതത്തിൽ അതിന്റെ ബുദ്ധിമുട്ടുകൾ ഞാൻ അനുഭ വിക്കുന്നുണ്ടെങ്കിലും എന്റെ തന്നെയുള്ള ആ നാറ്റത്തെ സ്വയം ഇല്ലാതാക്കി ചത്തപോലെ ജീവിക്കാൻ പഠിച്ചിരിക്കുകയാണെന്ന് വിരലുകൾ മുക്കിൽ തിരികി നടക്കുകയാണെന്ന ബിംബത്തിൽ നിന്ന് മനസ്സിലാക്കാം.

ഇത് ഞാൻ അംഗീകരിക്കുന്നപോലെ വേറെ ആരും തന്നെ അംഗീകരിക്കുന്നില്ല. ആളുകളൊക്കെ വഴി മാറി നടക്കുന്നതായി കവി കണ്ടെത്തുകയും ചെയ്യുന്നു. അർഹിക്കുന്ന സ്ഥാനം കൊടുക്കാൻ സാധിക്കാത്ത ആർഷസംസ്കാ രത്തെക്കുറിച്ചും കവി പറയുന്നുണ്ട്. ആ സംസ്കാരം സത്യത്തിൽ

ചീഞ്ഞുനാറുകയാണ്. അവിടെ ജനിച്ച് മരിക്കുന്ന സ്ത്രീക ളിൽ ഭൂരിഭാഗത്തിനും അനുഭവേദ്യമായ സ്വാതന്ത്ര്യം കിട്ടുന്നില്ല എന്നത് സത്യമാണ് അതിലുപരി അസ്വാതന്ത്ര്യത്തിന്റെ വേദനകൾ സ്വയം അനുഭവിക്കേണ്ടതായും വരുന്നുണ്ട്. ‘എനിക്ക് അറിവുവെച്ചപ്പോൾ മുതലാണ് ഞാൻ എന്നിലെ എന്റെ സംസ്കാരത്തെക്കുറിച്ച് അറിഞ്ഞത് അവൾ എല്ലാം സഹിക്കുന്ന സഹനയായ അമ്മയായി മാറിയത് കാലം കൊണ്ടും ശീലം കൊണ്ടും രൂപം പ്രാപിച്ചത് ഞാൻ അറിഞ്ഞിരുന്നു.

എന്റെ ശീല ങ്ങളെ, എന്റെ രൂപത്തെ, എന്റെ തെളിയാകാഴ്ചയെ രൂപപ്പെടു ത്തുന്നതിൽ അവൾക്ക് വളരെയേറെ പ്രാധാന്യമുണ്ടായിരുന്നു. എന്റെ കാഴ്ചയും ഉൾക്കാഴ്ചയും തെളിയിക്കാനായി എന്റെ കണ്ണിലെ നൂലട്ടയായി ഈ സംസ്കാരം മാറിയിരുന്നു.

എന്നാൽ വിശപ്പിനാൽ നരി വലിച്ചിന്ന് ചത്തവന് തള്ളയായും അവൾ പരിണമിച്ചു എന്നും പറയുന്നു. ഏത് തെറ്റിനേയും സ്വയം ഏറ്റു വാങ്ങുന്ന അമ്മയായി ഭാരതം മാറുന്നു. അതുപോലെ അമ്മയും തുടർന്ന് വരുന്ന സ്ത്രീകളൊക്കെ ചെയ്യാതെറ്റിന്റെ പാപങ്ങൾ പേറുന്നവരാണ്. ഈ അമ്മമാർ തന്നെയാണ്

മക്കളെ നേർവഴിക്ക് നടത്താനായി അവരുടെ കാഴ്ചയും തെളിച്ചവുമായി മാറുന്നത്. മധുസൂദനൻ നായരുടെ അമ്മയുടെ കത്തുകൾ എന്ന കവി തയിൽ പഴയ കത്തുകൾ കത്തിച്ചു കളയാം അവ പഴയതല്ലേ എന്നു പറയുന്നിടത്ത് കവി സമർത്ഥിക്കുന്നുണ്ട് അത് ഞാൻ സംസ്കാരവും ജീവിതവും ആചാ രവും അനുഷ്ഠാനവും ഈ തരത്തിൽ രൂപപ്പെടുത്തുന്നതിൽ അമ്മയ്ക്ക് വളരെയേറെ സ്ഥാനമുണ്ട്. തന്നെയാണെന്ന്. എന്റെ

ആ സ്ഥാനം നമ്മുടെ സംസ്കാരത്തിനുകൂടി അവകാശപ്പെട്ടതാണ്. എന്നാൽ അതിലെ തിന്മകൾ ഉപേക്ഷിച്ചില്ലായെങ്കിൽ അവ ജഢതുല്യമായ ജീവന്റെ സ്വഭാവം പ്രകടിപ്പിക്കാൻ സാധിക്കാത്ത ഒന്നായി മാറുകയും ചെയ്യും. കവിത അതിന്റെ രൂപമാറ്റ പ്രക്രിയയിലൂടെയാണ് മുന്നേ റുന്നത്.

സംസ്കാരത്തിൽ നിന്ന് അത് സംസ്കാരം പകർന്നു കൊടുക്കാൻ അനുയോജ്യമായ അമ്മയിലേയ്ക്ക് മാറിപാർക്കു ന്നു. ഇതോടുകൂടി വായനക്കാരൻ ആശയസംഘടനത്തിൽ നിന്ന് സ്വതന്ത്രമാവുകയും സ്ത്രീയുടെ ജീവിതത്തിൽ ശ്രദ്ധകേന്ദ്രീക രിക്കുകയും ചെയ്യുന്നു. ഒപ്പം സ്ത്രീയെന്നത് താൻ പരിചപ്പെട്ട ഒരുവൾ മാത്രമല്ലയെന്നും അനേകായിരം സ്ത്രീകളുടെ പ്രതി നിധി

മാത്രമാണ് അവളെന്നും കണ്ടെത്താൻ സാധിക്കുന്നു. സ്ത്രീ ആയി ജനിച്ചതുകൊണ്ട് മാത്രം പ്രതികരിക്കാൻ സാധിക്കാത്ത ഒരുവളായി അവൾ മാറുന്നു. അവളുടെ തലയ്ക്കുമീതെ പ്രതി ക്ഷിക്കാതെ വന്നുചേർന്ന ആ രൂപമാണ് അവളെ സ്ത്രീയെന്നു വിളിക്കാൻ പ്രാപ്തയാക്കുന്നത്.

അവളുടെ കാതുകളിൽ ഒരു കടൽ ഇരമ്പുന്നത്രയും ദുഃഖം കനം തിങ്ങുന്നുണ്ടെങ്കിലും ഒരു തിരപോലും തീരത്തെ മറികടന്ന് പുറത്തേക്ക് വന്നില്ല. പീഢന ങ്ങളുടേയും വേദനകളുടേയും പഴിച്ചാരലുകളുടെയും തിര സാരത്തിന്റെയും എത്ര ഇടവഴികളിലൂടെയാണ് ഇന്ത്യൻ സ്ത്രീകൾ കടന്ന് ഏകാന്തമായി മുന്നേറിയിട്ടുള്ളത്. അവളുടെ കണ്ണുകളിൽ നിന്ന് കണ്ണുനീർ പൊടിയാതിരുന്നു.

ഇതാർക്കുവേണ്ടി എന്തിനുവേണ്ടി രൂപപ്പെടുത്തിയതാണെന്ന് നമുക്ക് ഇപ്പോഴും അറിയില്ല. വേതനയില്ലാത്ത തൊഴിലാളികളായി പാതിരാത്രിവരെ പണിയെടുക്കുന്ന ഒരുവിഭാഗം സ്ത്രീകളാണ് ഇന്ത്യൻ സംസ്കാരത്തെ കുടുംബങ്ങളിൽ ഭദ്രമാക്കാൻ പുലർകാലങ്ങളിൽ എണീയ്ക്ക് കയും രാത്രി വൈകി കിടക്കുകയും ചെയ്ത് അവൾ സ്വയം തേഞ്ഞുതീരുകയാണ്. വീട്ടിലേയ്ക്കുള്ള വഴി മറക്കാതിരിക്കാൻ

കാവലായി അമ്മയെ ഇരുത്തിയും നമ്മുടെ സംസ്കാരത്തെ രൂപപ്പെടുത്തി. വേതനമില്ലാതെ പണിയെടുക്കുന്ന ഇവരെ നാം ത്യാഗി നിയായ സ്ത്രീകളാക്കി വാഴിച്ചു. അതാണ് നല്ലതെന്ന് നാം വ്യക്ത മാക്കുകയും ചെയ്തു. ഇന്ത്യൻ സംസ്കാരവും സാഹിത്യ കൃതികളും അതേറ്റുപാടി കൈയ്യടി വാങ്ങിയപ്പോൾ അതിൽ സ്വന്തം സത്യം ഊരിവീണ് പ്രയാസപ്പെട്ടവർ ഉയർന്ന് ചിന്തിക്കാനും ജീവിക്കാനും ആഗ്രഹിച്ച് ഒരു വിഭാഗക്കാരായിരുന്നു.

അവളുടെ ദിന ചര്യകൾ രൂപപ്പെടുത്തിയത് ജാതിയോ മതങ്ങളോ ആചാരങ്ങളോ ആയിരിക്കാം അതിനാൽ തന്നെ, ഇവളോളം വൈകിയുറങ്ങാറില്ല ഒരു നക്ഷത്രവും ഒറ്റ സൂര്യൻപോലും ഇവളോളം നേരത്തെ പിട ഞ്ഞണിക്കാറില്ല.

ഇതൊക്കെ അതിശക്തിപരമായി പറയുകയാ ണെങ്കിലും ഓരോ വീട്ടിലും അവസാനം ഉറങ്ങുന്നതും തനിക്കു വേണ്ടിയല്ലാതെ പിണഞ്ഞെഴുന്നേൽക്കേണ്ടി വരുന്നതും സ്ത്രീയാ ണ്. സ്ത്രീയെ ഇത്തരത്തിൽ രൂപപ്പെടുത്തി കുടുംബത്തിലെ ബാക്കിയെല്ലാവരും അലസരായി മാറുകയാണ് ചെയ്യുന്നത്. പുറ – പ്പെട്ട ഇടത്തേയ്ക്കുതന്നെ നടന്നെത്താൻ എത

കാതമവൾ നട ക്കുന്നു. അടുക്കളയിൽ നിന്ന് ഉമ്മറത്തേക്ക് കിണറിൻ അരികിലേയ്ക്ക്….. അങ്ങനെ വീട് വൃത്താന്തമാക്കി | ഒരു ലോകത്ത സൃഷ്ടിച്ചിരിക്കുകയാണ് നമ്മുടെ സമൂഹം അവൾക്കുവേണ്ടി. എത്ര വേദനിപ്പിച്ചാലും ക്ഷമിക്കാൻ പഠിപ്പിച്ചും എത്ര അടികിട്ടി യാലും എതിർക്കാതിരിക്കാനും നാമവളെ ചെറുപ്പത്തിലെ ശീലിപ്പിച്ചു.

അങ്ങനെ ഇന്ത്യയുടെ പെൺകുഞ്ഞുങ്ങൾ മുഴുവൻ പേടിയും ഉണർവുമില്ലാത്ത പ്രതിരോധിക്കേണ്ടിടത്ത് പ്രതിരോ ധിക്കാത്ത എത്ര തെരുവുകളിലാണ് എരിഞ്ഞമരുന്നത് എന്ന് കവി ദുഃഖത്തോടെ ചിന്തിക്കുന്നു. എന്തായാലും കവി മായ വേദനയിൽ നിന്ന് രൂപപ്പെടുത്തിയ കവിതയാണത്. തന്റെ തെന്ന് സ്വന്തമെന്നും തന്നെ ഓർമ്മിക്കാനുമായി എന്താണ് തന്റെ വീട് വ്യാകരണം നമുക്ക് മാറ്റിവെച്ചിരിക്കുന്നത്.

ഇറയത്തിന് പുറത്ത് ചാരി വെച്ചിരിക്കുന്ന ഒരു കുറ്റിച്ചൂല് – അടുക്കളയിൽ ആരും കാണാതെ ഉണക്കാനിട്ടിരിക്കുന്ന നിലം തുടയ്ക്കുന്ന തുണി. വക്ക് ‘ഞെരുങ്ങി ആർക്കും വേണ്ടാത്ത പാത്രം അതെല്ലാമാണ് അമ്മയുടെ ഉപയോഗവസ്തുക്കൾ, എല്ലാം ഉപേക്ഷിച്ചവയോ അടുത്തുതന്നെ ഉപേക്ഷിക്കപ്പെടേണ്ടതായോ ആയ

വസ്തുക്കളാണതെല്ലാം. എന്നാൽ ഒന്നിൽ മാത്രം അവൾ സമ സ്ഥാനമുള്ളവളാണ്. മരണമെന്നാൽ ഒരടിമണ്ണാണ്. അതാണ് പ്രകൃതി പുരുഷനും സ്ത്രീക്കും മാറ്റിവെച്ചിരിക്കുന്നത്. പ്രക തിയ്ക്ക് തന്റെ ജീവജാലങ്ങളിൽ ഒന്നിനെപ്പോലും വ്യത്യാസമില്ല.

ഈ മനസ്സിലാക്കൽ പാഠപുസ്തകത്തിലേയോ അധികാരവർഗ്ഗ ത്തിന്റേയോ സ്വഭാവമല്ല പ്രകൃതിയ്ക്ക് എന്ന് കാണിക്കുന്നു. അവളുടെ ജഢം സംസ്കരിക്കപ്പെടുമ്പോൾ അത് അതിന്റെ ആത്മാവിനെ ഗതികിട്ടാത്ത ആ ജഢത്തിൽ നിന്നും അഴിച്ചെടു ക്കുന്നു. എന്നിട്ട് ഞാൻ അതിനെ സസൂഷ്മം വേറൊരുടലിൽ ചേർക്കാൻ ആഗ്രഹിക്കുന്നു. എന്ത് തന്നെയായാലും അത് നല ട്ടപോലെ ഇഴയുന്ന സ്ത്രീ ശരീരത്തിനോട് ചേർക്കുകയില്ല.

അത് കടും കർമ്മങ്ങൾക്കൊരുങ്ങുന്ന കടുവയിലാണ് പ്രതിഷ്ഠിക്കുക. തന്റെ ആവശ്യങ്ങൾ സ്വയമായി ചെയ്യാൻ പ്രാപ്തിയുള്ള ഒരാളുടെ ശരീരവുമായിരിക്കണം അതിന്. അതെനിക്ക് നിർബന്ധ മുണ്ടെന്ന് കവി പറയുന്നു. വിശക്കുമ്പോൾ ഈരിലിറങ്ങുന്ന നര ഭുക്കായ കടുവയായി അത് മാറണമെന്ന് കവി ആഗ്രഹിക്കുന്നത് അതുകൊണ്ടാണ്. അവളുടെ

നാവിനെ എടുത്തു മറ്റൊരു കുര ലിൽ ചേർക്കാൻ താൻ ആഗ്രഹിക്കുന്നു. അത് ഇറയത്തെ ചില്ലു രുചിച്ചിടുന്ന കൊടിച്ചിയിലല്ല, വിശക്കുമ്പോൾ ഇര വളഞ്ഞു കൊന്നു തിന്നുന്ന ചെന്നായയിലാണ്. സമൂഹവ്യവസ്ഥിതിയിൽ നട ത്തേണ്ട ശാസ്ത്രക്രിയയെക്കുറിച്ച് കവി ബോധവാനാണ്. അറിയേണ്ടിടത്ത് മനസ്സിലാക്കി യഥോചിതം അവളെ ചേർക്കുകയും ഓർമ്മി വേണമെന്ന് കവി പറയുന്നു.

Conclusion:

Samkramanam is a powerful and moving poem that raises important questions about social injustice. It is a poem that will stay with you long after you have finished reading it.

चन्दन का पेड़ Summary In Hindi

चन्दन का पेड़ Summary In Hindi

“चन्दन का पेड़” एक प्रमुख हिंदी कहानी है, जो सुबह-सुबह जागते ही गांव के लोगों के द्वार पर चन्दन का पेड़ बढ़ने का आद्भुत घटना के चारों ओर का मोहब्बत, दिल की सच्चाई, और मानवीय भावनाओं का परिचय करती है। इस कहानी में चन्दन का पेड़ गांववालों के जीवन में एक महत्वपूर्ण बदलाव का कारण बनता है और एक सबक सिखाता है कि सच्ची खुशियाँ सादगी में छिपी होती हैं।

चन्दन का पेड़ Summary In Hindi

चन्दन का पेड़ पाठ का सार

‘चन्दन का पेड़’ एक तेरह वर्षीय अन्धी लड़की सुनन्दा की कहानी है, जो अपनी सूझबूझ से चन्दन के पेड़ों की अवैध कटाई करने वालों को पकड़वा देती है। वह अपने माता-पिता के साथ पूर्वी घाट में करीमुनाई गाँव में रहती थी। उसके पिता पहाडी की ढलान पर सीढ़ीनुमा ज़मीन पर खेती करते थे तथा माँ बकरियों की देखभाल करती थी। वह उन दोनों की सहायता करने के साथ-साथ स्कूल पढ़ने भी जाती थी। उसका साथी गुगु नाम का कुत्ता था, जिस दिन वह तेरह वर्ष की हुई, उसी दिन भूस्खलन हुआ, जिसमें उसके माता-पिता और बकरियाँ मर गईं और वह पहाड़ी से फिसल कर ऐसे गिरी कि उसकी आँखों में कोई नुकीली चीज़ लगी तथा वह बेहोश हो गई। नुकीली चीज़ से लगी चोट के कारण वह अन्धी हो गई। जब उसे होश आया तो वह गाँव के स्कूल के प्रधानाचार्य रावगुरु के घर में थी। गुगु कुत्ता भी वहीं था। वह उनके घर में रहने लगी तथा रावगुरु की पत्नी को मामी कहने लगी। वे उसका बहुत ध्यान रखते थे। उसे स्कूल भी भेजना चाहते थे परन्तु उसने घर पर ही रहना स्वीकार किया।

सुनन्दा धीरे-धीरे अपनी अन्धेरी दुनिया की आदी हो गई। गुगु उसके साथ रहता था। वह मामी की पूजा के लिए फूलों की माला पिरोने लगी। शाम को रावगुरु उससे अनेक विषयों पर बातें करते थे। एक दिन उसने उनसे भूस्खलन के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि मनुष्य अंधाधुंध पेड़ों को काटता जाता है। पेड़ पहाड़ की मिट्टी को बाँध कर रखते हैं। उनके कट जाने से धरती के भीतर की हलचल से चट्टानें और मिट्टी नीचे फिसलने लगती है और भूस्खलन हो जाता है। सुनन्दा को लगा कि इस प्रकार से पेड़ों की कटाई ने ही उसे अपने परिवार से अलग कर दिया।

अब सुनन्दा स्पर्श, गन्ध और श्रवण शक्ति के माध्यम से बहुत कुछ जानने-समझने लगी थी। उसमें आत्मविश्वास आ गया था। वह गुगु के साथ आसपास की पहाड़ियों और पेड़ों के झुरमुट में घूमने निकल जाती थी और एक पेड़ में तने का सहारा लेकर बैठ जाती थी। गुगु उसके पास बैठता था और कोयल उससे बातें करती थीं। एक दिन जब वह अपने निश्चित स्थान पर पहुँची तो उसे कोयल की आवाज़ सुनाई नहीं दी और जहाँ टेक लगा कर बैठती थी, वहाँ पेड़ के स्थान पर दूंठ था।

आस-पास भी ढूँठ थे और जब उसने ठूठ को पत्थर से रगड़ कर देखा तो उसे चन्दन की सुगंध आई। वह सोचने लगी कौन इन चन्दन के वृक्षों को काट गया। घर आकर उसने रावगुरु को बताया। रावगुरु ने मुदालियर से पता किया तो उसने कहा कि चन्दन के पेड़ सुरक्षित हैं। अगले दिन सुनन्दा ने फिर कुछ पेड़ों को कटा पाया और रावगुरु को बताया। उन्होंने मुदालियर से कहा तो उसने अन्धी लड़की पुस्तकीय भाग का बातों पर विश्वास नहीं करने और उसे अफवाहें फैलाने से रोकने के लिए रावगुरु को कहा। सुनन्दा को विश्वास था कि चन्दन की लकड़ी की चोरी हो रही है।

अगले दिन सुबह ही सुनन्दा गुगु को लेकर चन्दन क्षेत्र की ओर गई और झाड़ी के पीछे छिप कर बैठ गई। किसी के आने की आहट सुन कर गुगु भौंकने लगा तो सुनन्दा झाड़ियों में छिप गई। तभी उधर से मुदालियर गुजग और गुगु को ‘यहाँ क्या मेरी तरह गश्त कर रहे हो’ कह कर चला गया। सुनन्दा ने उसको आवाज़ पहचान ली थी। वह अगली रात, रावगुरु और उनकी पत्नी के सोने के बाद, ग्यारह बजे गुगु के साथ चन्दन के पेड़ों के पास गई तो गुगु किर्रकिर्र की आवाज़ सुन कर गुर्राने लगा तो उसने उसे चुप करा दिया। उसे किरै-किर्र और वाहनों के आने-जाने के स्वरों के साथ मुदालियर की आवाज़ भी सुनाई दी जो किसी रमेश से कह रहा था ‘इतना ही काफी है। रात के दो बज गए हैं। इस की बिक्री का दस प्रतिशत मेरा होगा।’ उसने उत्तर: दिया था कि ज़रूर दूंगा। इस के बाद शान्ति छा गई थी। सुनन्दा गुगु को पट्टे से खींचती हुई घर आ गई, परन्तु सो न सकी।

सुबह हुई तो सुनन्दा ने रावगुरु को रात की सारी घटना बता दी। वे उटकमंड में पुलिस मुख्यालय गए, जहाँ रावगुरु के साथ सुनन्दा को भी बुलाया गया और उससे पूछताछ की गई। रावगुरु ने सुनन्दा को बताया कि यदि मुदालियर के विरुद्ध प्रमाण मिले तो उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा। एक महीने बाद रावगुरु ने सुनन्दा को बताया कि चन्दन की लकड़ी की चोरी का भंडाफोड़ करने के लिए उसे पुलिस विभाग ने इनाम दिया है। मामी भी बहुत प्रसन्न होकर देवी लक्ष्मी को खीर का भोग लगाने की बात कहने लगी। सुनन्दा को राष्ट्रीय अन्धविद्यालय में दाखिल कराने का निश्चय किया गया और उसके इनाम की राशि बैंक में जमा करा दी गई, जिससे वह अपना जीवन ठीक से चला सके। सुनन्दा के पास रावगुरु को धन्यवाद करने के लिए शब्द नहीं थे।

Conclusion:

“चन्दन का पेड़” का संग्रहण हमें यह सिखाता है कि विशेषता और आकर्षण बाहरी रूप से हो सकते हैं, लेकिन असली खूशियाँ और सुख आत्म-समर्पण, मानवीय भावनाओं में छिपी होती हैं। इस कहानी के माध्यम से हमें यह भी सिखने को मिलता है कि हमें प्राकृतिक संसाधनों का सही तरीके से संरक्षण करना चाहिए, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियों को भी इनका आनंद उठाने का मौका मिले। यह कहानी हमें सरलता, सादगी, और प्रेम की महत्वपूर्ण भूमिका को समझाती है।

सहर्ष स्वीकारा है Summary in Hindi

सहर्ष स्वीकारा है Summary in Hindi

“सहर्ष स्वीकारा है” एक कविता है जो एक व्यक्ति के जीवन के विभिन्न अनुभवों को दर्शाती है। कवि कहता है कि उसने अपने जीवन में आई सभी अच्छी और बुरी चीजों को सहर्ष स्वीकार किया है।

सहर्ष स्वीकारा है Summary in Hindi

सहर्ष स्वीकारा है कवि परिचय :

गजानन माधव मुक्तिबोध’ जी का जन्म 13 नवंबर 1917 को शिवपुरी जिला मुरैना ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। आपकी प्रारंभिक शिक्षा उज्जैन में हुई। 1938 में बी.ए. पास करने के पश्चात आप उज्जैन के मॉडर्न स्कूल में अध्यापक हो गए।

1954 में एम.ए. करने पर राजनाँद गाँव के दिग्विजय कॉलेज में प्राध्यापक पद पर नियुक्त हुए। यहाँ रहते हुए उन्होंने अंग्रेजी, फ्रेंच, तथा रुसी उपन्यासों के साथ जासूसी उपन्यासों, वैज्ञानिक उपन्यासों, विभिन्न देशों के इतिहास तथा विज्ञान विषयक साहित्य का गहन अध्ययन किया।

आप नई कविता के सर्वाधिक चर्चित कवि रहे हैं। प्रकृति प्रेम, सौंदर्य, कल्पनाप्रियता के साथ सर्वहारा वर्ग के आक्रोश तथा विद्रोह के विविध रूपों का यथार्थ चित्रण आपके काव्य की विशेषता है। 1962 में उनकी अंतिम रचना ‘भारत : इतिहास और संस्कृति’ प्रकाशित हुई। मुक्तिबोध जी की मृत्यु 1964 में हुई।

प्रमुख रचनाएँ : कविता संग्रह : ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’, ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ तथा तारसप्तक में प्रकाशित रचनाएँ।
कहानी संग्रह : काठ का सपना, सतह से उठता आदमी
उपन्यास : विपात्र
आलोचना : कामायनी – एक पुनर्विचार, नई कविता का आत्मसंघर्ष, नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, समीक्षा की समस्याएँ।
इतिहास : भारत : इतिहास और संस्कृति
रचनावली : मुक्तिबोध रचनावली (सात खंड)

सहर्ष स्वीकारा है काव्य परिचय :

प्रस्तुत नई कविता ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ काव्य-संग्रह से ली गई है। एक होता है – स्वीकारना और दूसरा होता है – सहर्ष स्वीकारना यानी खुशी-खुशी स्वीकार करना। यह कविता जीवन के सब सुख-दु:ख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक को सम्यक भाव से स्वीकार करने की प्रेरणा देती है। कवि को जहाँ से यह प्रेरणा मिली कविता प्रेरणा के उस उत्स (spring) तक भी हमको ले जाती है।

उस विशिष्ट व्यक्ति या सत्ता के इसी ‘सहजता’ के चलते उसको स्वीकार किया था। कुछ इस तरह स्वीकार किया था कि आज तक सामने नहीं भी है तो भी आस-पास उसके होने का एहसास है।

सहर्ष स्वीकारा है सारांश :

कवि कहता है कि मेरे इस जीवन में जो कुछ भी है, उसे मैं खुशी से स्वीकार करता हूँ। इसलिए मेरा जो कुछ भी है, वह उसको (माँ या प्रिया) अच्छा लगता है। मेरी स्वाभिमानयुक्त गरीबी, जीवन के गंभीर अनुभव, विचारों का वैभव, व्यक्तित्व की दृढ़ता, मन में बहती भावनाओं की नदी – ये सब मौलिक हैं तथा नए हैं। इनकी मौलिकता का कारण यह है कि मेरे जीवन में हर क्षण जो कुछ घटता है, जो कुछ जाग्रत है, उपलब्धि है, वह सब कुछ तुम्हारी प्रेरणा से हुआ है।

सहर्ष स्वीकारा है Summary in Hindi 1

कवि कहता है कि तुम्हारे हृदय के साथ न जाने कौन सा संबंध है या न जाने कैसा नाता है कि मैं अपने भीतर समाए हुए तुम्हारे प्रेममय जल को जितना बाहर निकालता हूँ, वह पुन: अंत:करण में भर आता है। ऐसा लगता है मानो दिल में कोई झरना बह रहा है।वह स्नेह मीठे पानी के स्रोत के समान है जो मेरे अंतर्मन को तृप्त करता रहता है। इधर मन में प्रेम है और ऊपर से तुम्हारा चाँद जैसा मुस्कराता हुआ सुंदर चेहरा अपने अद्भुत सौंदर्य के प्रकाश से मुझे नहलाता रहता है। यह स्थिति उसी प्रकार की है जिस प्रकार आकाश में मुस्कराता हुआ चंद्रमा पृथ्वी को अपने प्रकाश से नहलाता रहता है।

कवि अपने प्रिय स्वरूपा को भूलना चाहता है। वह चाहता है कि प्रिय उसे भूलने का दंड दे। वह इस दंड को भी सहर्ष स्वीकार करने के लिए तैयार है। प्रिय को भूलने का अंधकार कवि के लिए दक्षिणी ध्रुव पर होने वाली छह मास की रात्रि के समान होगा। वह उस अंधकार में लीन हो जाना चाहता है।

वह उस अंधकार को अपने शरीर व हृदय पर झेलना चाहता है। इसका कारण यह है कि प्रिय के स्नेह के उजाले ने उसे घेर लिया है। प्रिय की ममता या स्नेह रूपी बादल की कोमलता सदैव मेरे मन को अंदर ही – अंदर पीड़ा पहुँचाती है। इसके कारण मेरी अंतरात्मा कमजोर और क्षमताहीन हो गई है।

जब मैं भविष्य के बारे में सोचता हूँ तो मुझे डर लगने लगता है कि कभी उसे अपनी प्रियतमा (माँ या प्रिया) के प्रभाव से अलग होना पड़ा तो वह अपना अस्तित्व कैसे बचाए रख सकेगा। अब उसे उसका बहलाना-सहलाना और रह-रहकर अपनापन जताना सहन नहीं होता। वह आत्मनिर्भर बनना चाहता है। कवि कहता है कि मैं अपनी प्रियतमा (सबसे प्यारी स्त्री) के स्नेह से दूर होना चाहता हूँ। वह उसी से दंड की याचना करता है।

वह ऐसा दंड चाहता है कि प्रियतमा के न होने से वह पाताल की अँधेरी गुफाओं व सुरंगो में खो जाए। ऐसी जगहों पर स्वयं का अस्तित्व भी अनुभव नहीं होता या फिर वह धुएँ के बादलों के समान गहन अंधकार में लापता हो जाए जो उसके न होने से बना हो। ऐसी जगहों पर भी उसे अपनी प्रियतमा का ही सहारा है।

उसके जीवन में जो कुछ भी है या जो कुछ उसे अपना-सा लगता है, वह सब उसके कारण है। उसकी सत्ता, स्थितियाँ भविष्य की उन्नति या अवनति की सभी संभावनाएँ प्रियतमा के कारण है। कवि का हर्ष-विषाद, उन्नति-अवनति सदा उससे ही संबंधित है। कवि ने हर सुख-दु:ख, सफलता-असफलता को प्रसन्नतापूर्वक इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि प्रियतमा ने उन सबको अपना माना है। वे कवि के जीवन से पूरी तरह जुड़ी हुई है।

Conclusion

“सहर्ष स्वीकारा है” एक प्रेरणादायक कविता है। यह कविता हमें सिखाती है कि हमें अपने जीवन में आने वाले सभी अनुभवों को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। चाहे वे अच्छे हों या बुरे, हमें उनसे सीखना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए।

पर्यावरण संरक्षण Summary In Hindi

पर्यावरण संरक्षण Summary In Hindi

“पर्यावरण संरक्षण” एक महत्वपूर्ण और गंभीर विषय है, जिसका मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा और संरक्षण है। यह सामाजिक, आर्थिक, और वातावरणिक सुधार के लिए हमारे साथी प्राणियों, पौधों, और जलवायु की सुरक्षा को सुनिश्चित करने का काम करता है। इसका उद्देश्य हमारे प्राकृतिक वास्तविकता को बचाना और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण बनाना है।

पर्यावरण संरक्षण Summary In Hindi

पर्यावरण संरक्षण कविता का सार

‘पर्यावरण संरक्षण’ नामक पाठ में अध्यापिका जी ने विद्यार्थियों को हमारे पर्यावरण को बचाने के लिए, कक्षा में वार्तालाप के द्वारा समझाया है। उनके द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या मनुष्य हवा चला सकता है; पशु-पक्षी पैदा कर सकता है; नदिया, पहाड़ और नीला आकाश बना सकता है? सभी विद्यार्थी एक स्वर में उत्तर देते हैं कि नहीं मैडम। तब वे उन्हें समझाती हैं कि जब ऐसा है तो हमें इन्हें नष्ट भी नहीं करना चाहिए क्योंकि जीवजन्तु, पेड़-पौधे, भूमि, जल तथा वायु ही पर्यावरण की रचना करते हैं, जिन्हें मनुष्य प्रकृति पर विजय पाने के लिए नष्ट करता जा रहा है।

विदुषी के यह पूछने पर कि मनुष्य पर्यावरण को कैसे नष्ट कर रहा है; अध्यापिका जी बताती हैं कि मनुष्य नगर बसाने, कारखाने लगाने तथा ईंधन के लिए हरे-भरे वृक्षों को काट कर शुद्ध वायु और ऑक्सीजन कम कर के पर्यावरण को हानि पहुँचा रहा है। इस पर मीताली बताती है कि उसने पढ़ा था कि एक पत्ता अपने जीवनकाल में इतनी ऑक्सीजन पैदा करता है कि उससे एक आदमी चार दिन तक सांस ले सकता है। अध्यापिका जी कहती हैं कि साधारण व्यक्ति यह बात नहीं समझता और वनों को उजाड़ता रहता है जिससे सही समय पर वर्षा नहीं होती, रेगिस्तान बढ़ रहे हैं तथा बाढ़ आ जाती है।

तन्मय के यह पूछने पर कि पेड़ों के कटने का इनसे क्या संबंध है, वे बताती हैं कि ऊँचे-ऊँचे वृक्षों की हरी-भरी पत्तियाँ बादलों को खींचकर वर्षा कराती हैं, अपनी जड़ों से भूमि को जकड़ कर भूमि के कटाव को रोकते हैं। तभी ज्योत्सना वनों के कटने से वन के जीव, जन्तुओं और पक्षियों पर पड़ने वाले प्रभाव की बात करती है तो वे इसे ही इन सब के लुप्त होने का कारण बताती हैं।

शाश्वत भूमि, जल तथा वायु के प्रदूषित होने को भी पर्यावरण प्रदूषण की बात मानने के लिए पूछता है तो अध्यापिका जी कहती हैं कि ऐसा ही हैं। मीताली फसलों में प्रयोग करने वाली रासायनिक खादों और कीट नाशकों के प्रयोग को भी पर्यावरण प्रदूषण का कारण मानने के लिए पूछती है तो वे कहती हैं कि इनके अतिरिक्त दूषित जल, घर का कूड़ा-कर्कट, कारखानों-मोटरों का धुंआ भी वातावरण को प्रदूषित करता है।

विदुषी पॉलीथीन और प्लास्टिक के प्रयोग के बारे में पूछती है तो वे बताती हैं कि इन से भी पर्यावरण दूषित होता है क्योंकि ये गलते नहीं हैं। वे विद्यार्थियों को यह वचन देने के लिए कहती हैं कि वे पेड़-पौधे लगाकर उन्हें बड़ा करेंगे, घर का कूड़ा-कर्कट कूड़ेदान में डालेंगे, रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करेंगे, पॉलीथीन की बजाय कागज़, जूट, कपड़े के थैले प्रयोग करेंगे, पानी बचायेंगे, बिजली व्यर्थ नहीं जलाएंगे, कम दूरी के लिए वाहन का प्रयोग नहीं करेंगे, पुरानी कापी के पृष्ठों का उपयोग करेंगे तथा वन महोत्सव मना कर पेड़-पौधे लगाने के लिए लोगों को उत्साहित करेंगे। सब विद्यार्थी मैडम को वचन देते हैं।

Conclusion:

“पर्यावरण संरक्षण” का संग्रहण हमें यह सिखाता है कि हमारे प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और संरक्षण के बिना हमारे जीवन और मानव समुदाय का अधिकांश सहायता करते हैं। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम पर्यावरण के प्रति सजग और सजाग रहें, ताकि हम आने वाली पीढ़ियों को भी स्वस्थ और सुरक्षित प्लेटफ़ॉर्म प्रदान कर सकें। हमें सुरक्षित और संरक्षित पर्यावरण के लिए अपने क्रियान्वयनों में सतर्क रहना होगा, ताकि हम आने वाले समय में एक हरित और स्वस्थ भूमिका छोड़ सकें।

हिमालय Summary In Hindi

हिमालय Summary In Hindi

“हिमालय” एक प्रमुख पर्वत श्रृंग है जो एशिया महाद्वीप पर स्थित है और यह दुनिया का सबसे ऊँचा पर्वत है। इस पर्वतमाला के अन्यतम विशेषता में गहरे घाटियों, बर्फ की चद्दरों, और ब्रेव वनों का विस्तार होता है, जो यहाँ के अद्वितीय जीवन का हिस्सा है। “हिमालय” को संतुलन, सौंदर्य, और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है और यह पर्वतमाला दुनिया भर के पर्वतकारों, पर्वतारों, और यात्रीगण के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है।

हिमालय Summary In Hindi

हिमालय कविता का सार

‘हिमालय’ कविता में कवि हिमालय के समान अडिग बनने का संदेश देता है। कवि कहता है कि हिमालय खड़े होकर हमें यह बता रहा है कि कभी भी आँधी-पानी से नहीं डरना चाहिए और सभी मुसीबतों और तूफानों में भी हमें मजबूती से खड़े रहना चाहिए। यदि हम अपने वचनों पर डटे रहें तो सब कुछ पा सकते हैं और ऊँचे उठकर आकाश के तारों को भी छू सकते हैं। जो व्यक्ति लाखों मुसीबतों के आने पर भी अपने पथ पर स्थिर रहता है, उसी को संसार में सफलता मिलती है।

Conclusion:

“हिमालय” एक महान पर्वतमाला है जिसका सौंदर्य, आकर्षण और महत्व अत्यधिक है। यह नहीं केवल भूगोलिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय धार्मिकता और सांस्कृतिक मील का प्रतीक भी है, जिसमें यह एक आध्यात्मिक भूमि के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यहाँ हिमालय पर्वत के प्राकृतिक सौंदर्य और वन्यजीवन के संरक्षण की आवश्यकता है, ताकि हम आने वाली पीढ़ियों को इसकी अनमोल विरासत का आनंद उठा सकें।

कार्निवल का चक्कर Summary In Hindi

कार्निवल का चक्कर Summary In Hindi

“कार्निवल का चक्कर” एक हिंदी कहानी है जो निकोलो मचियावेल्ली द्वारा लिखी गई है। इस कहानी में हमें मुख्य पात्र जो एक साधू के रूप में प्रस्तुत होते हैं, के अद्वितीय चरित्र के साथ एक रोचक और मनोरंजक कार्निवल की यात्रा का साक्षात्कार होता है। इस कहानी में संगीत, कला, और जीवन के असली मायने प्रकट होते हैं जो हमें वास्तविक खुशियों की ओर बढ़ने का मार्ग दिखाते हैं।

कार्निवल का चक्कर Summary In Hindi

कार्निवल का चक्कर पाठ का सार

‘कार्निवल का चक्कर’ लेखक का बढ़ती हुई महंगाई पर एक व्यंग्यात्मक लेख है। लेखक नाश्ता करने के बाद अखबार पढ़ने बैठा ही था कि उसकी पत्नी ने उसे छुआ तो वह चौंक गया। पत्नी ने उसे बच्चों सहित कार्निवल घूमने के लिए कहा। वह मान गया परन्तु सोचने लगा कि आज के ज़माने में दाल-रोटी चलाना मुश्किल हो रहा है और उस ने कार्निवल घूमने के लिए हाँ कर दी है। उसे वेतन मिले अभी दो-चार दिन ही हुए थे; इसलिए जेब गर्म थी तथा दूध, धोबी, चौकीदार आदि का भुगतान अभी किया नहीं था।

कार्निवल चलने के लिए लेखक ने स्कूटर को हिलाकर देखा तो उसमें पेट्रोल था। चुन्नू-मुन्नू स्कूटर साफ करने के लिए कपड़ा ले आए। किक मारने पर भी स्कूटर नहीं चला। जब बच्चों ने उसे धक्का लगाया तो वह चल पड़ा। बच्चों और पत्नी को स्कूटर पर बैठा कर लेखक बजरंगबली का नाम लेकर कार्निवल की ओर पवन वेग से स्कूटर को उड़ाता हुआ चल पड़ा। वहाँ स्कूटर स्टैंड वाले को दस रुपए और कार्निवल में प्रवेश के लिए प्रति व्यक्ति बीस रुपए की दर से सौ रुपए देने पड़े।

कार्निवल में प्रवेश करते ही उनके बच्चों ने बर्गर-गोलगप्पा तथा पत्नी ने गोलगप्पे खाने के लिए कहा तो लेखक को हाँ करनी पड़ी परन्तु पाँच रुपए की एक….. सुन कर गोलगप्पे का जल लेखक की श्वास नली में अटक गया और गोलगप्पे वाले को पिचहत्तर की बजाय पचास रुपए देकर आगे बढ़ गए। आगे चल कर बच्चे झूले पर सवारी करने के लिए कहने लगे तो पाँच के चार सौ रुपए सुनकर लेखक धम्म से नीचे गिर गए तो लोगों ने दौरा पड़ने, मिर्गी आने, हृदयघात की बात कही तो लेखक ने कांपते हाथों से अपने परिवार की ओर संकेत किया। लोग उन्हें उठा कर वहाँ पटक कर चले गए।

पत्नी ने पूछा कि क्या हुआ तो इन्होंने भीड़ के दम घुटने की बात कह कर खुले में चलने के लिए कहा। बेटी ने सचिन वाला कोल्ड ड्रिंक पीने की जिद की तो उसे डांट दिया और घर जाकर नींबू-पानी पीने के लिए कहा। पत्नी ने टिक्की खाने के लिए कहा तो पाँच प्लेट टिक्कियाँ खाईं और इन का भुगतान दो सौ पचास रुपए करते हुए घबरा गए। मुन्नू कुछ कहने लगा तो उसे घर चल कर बादाम नींबू का शीतल पेय पीने के लिए कहा और सोचने लगे नींबू दौ सौ रुपए किलो, बादाम पाँच सौ रुपए बच्चों से वायदा बेकार ही किया।

Conclusion:

“कार्निवल का चक्कर” का संग्रहण हमें यह सिखाता है कि जीवन की खोज में हमें अपनी प्राथमिकताओं को खोना नहीं चाहिए, बल्कि हमें अद्वितीय अनुभवों की ओर बढ़ना चाहिए। साधू के रूप में प्रस्तुत होने के बावजूद, मुख्य पात्र ने जीवन के आनंदों और रंगमंच की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो हमें अपने आसपास की खुशियों को महसूस करने के लिए उत्तेजना देती हैं। यह कहानी एक आनंदमय और अद्वितीय जीवन के महत्व को प्रमोट करती है।

भारती का सपूत Summary in Hindi

भारती का सपूत Summary in Hindi

भारती का सपूत, रांगेय राघव द्वारा लिखित एक जीवनीपरक उपन्यास है, जो भारतेन्दु हरिश्चंद्र के जीवन पर आधारित है। यह उपन्यास भारतेन्दु के बचपन से लेकर उनके निधन तक के जीवन का वर्णन करता है।

भारती का सपूत Summary in Hindi

भारती का सपूत लेखक परिचय :

रांगेय राघव जी का जन्म 17 जनवरी 1923 को श्री रंगाचार्य के घर उत्तर प्रदेश में हुआ। आपकी पूर्ण शिक्षा आगरा में हुई। वहीं से आपने पी.एच.डी की उपाधि प्राप्त की। आंचलिक ऐतिहासिक तथा जीवनीपरक उपन्यास लिखने वाले रांगेय राघव जी के उपन्यासों में भारतीय समाज का यथार्थ (actual) चित्रण प्राप्त है। आपने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में सृजनात्मक (creative) लेखन करके हिंदी साहित्य को समृद्धि (prosperity) प्रदान की है।

भारती का सपूत Summary in Hindi 1

आपने मातृभाषा हिंदी से ही देशवासियों के मन में देश के प्रति निष्ठा और स्वतंत्रता का संकल्प जगाया। सबसे पहले कविता के क्षेत्र में कदम रखा पर महानता मिली गद्य लेखक के रूप में। 1946 में प्रकाशित ‘घरौंदा’ उपन्यास के जरिए आप प्रगतिशील कथाकार के रूप में चर्चित हुए।

1962 में आपको कैंसर रोग पीड़ित बताया गया। उसी वर्ष 12 सिंतबर को आप मुंबई में देह त्यागी। पुरस्कार : हिंदुस्तान अकादमी, डालमिया पुरस्कार, मरणोपरांत (1966) महात्मा गांधी पुरस्कार।

भारती का सपूत प्रमख कतियाँ :

उपन्यास – विषाद मठ, उबाल, राह न रुकी, बारी बरणा खोल दो, देवकी का बेटा, रत्ना की बात, भारती का सपूत, यशोधरा जीत गई, घरौंदा, लोई का ताना, कब तक पुकारूँ, राई और पर्वत, आखिरी आवाज आदि। कहानी संग्रह – पंच परमेश्वर, अवसाद का छल, गूंगे, प्रवासी, घिसटता कंबल, नारी का विक्षोभ, देवदासी, जाति और पेशा आदि

भारती का सपूत विधा का परिचय :

‘उपन्यास’ वह गद्य कथानक है जिस के द्वारा जीवन तथा समाज की व्यापक व्याख्या की जा सकती है। उपन्यास को आधुनिक युग की देन कहना अधिक समुचित होगा। साहित्य में गद्य का प्रयोग जीवन के यथार्थ चित्रण का द्योतक है। साधारण बोलचाल की भाषा द्वारा लेखक के लिए अपने पात्रों, उनकी समस्याओं तथा उनके जीवन की व्यापक पृष्ठभूमि से प्रत्यक्ष संबंध स्थापित करना आसान हो गया है।

उपन्यास हमारे जीवन का प्रतिबिंब होता है, जिसको प्रस्तुत करने में कल्पना का प्रयोग आवश्यक है। मानव जीवन का सजीव चित्रण उपन्यास है। उपन्यास महान सत्यों और नैतिक आदर्शों का एक अत्यंत मूल्यवान साधन है।

भारती का सपूत विषय प्रवेश :

जीवन में अनेक ऐसी महान विभूतियाँ होती है, जिनका स्मरण करके हम आने वाली पीढ़ी के सामने उनका आदर्श रख सकते हैं। प्रस्तुत जीवनपरक उपन्यास में हिंदी गद्य के जनक तथा पिता भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के जन्मदिन के अवसर पर अध्यापक रत्नहास ने लोगों को निमंत्रित करके एक तरफ उनके प्रति श्रद्धा जताई तो दूसरी तरफ निमंत्रित लोगों के सामने भारतेंदु जी के जीवन के अनेक पहलुओं को उजागर किया।

भारतीय भाषा और संस्कृति, अंग्रेजी स्कूलों का दुष्परिणाम, हिंदी अंग्रेजी पाठशाला निर्माण, बचपन से ही साहित्य के प्रति रुझान, पिता का आदर्श, आदि कार्यों का लेखा-जोखा रखकर श्रद्धा प्रकट करना और जीवन में प्रेरणा लेना पाठ का उद्देश्य है। केवल 34 वर्ष 4 महीने जिंदगी जीने वाले भारतेंदु जी का जीवन आदर्शवत (idealizing) है।

भारती का सपूत पाठ का परिचय :

‘भारती का सपूत’ रांगेय राघव लिखित जीवनीपरक उपन्यास का अंश है। प्रस्तुत जीवनी परक उपन्यास में हिंदी गद्य भाषा के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के जीवन को आधार बनाकर, उनके जीवन के कुछ पहलुओं को उजागर किया गया है। बचपन से ही साहित्य एवं शिक्षा के प्रति रुझान ने भारतेंदु जी को हिंदी साहित्य जगत का देदीप्यमान इंदु अर्थात चंद्रमा बना दिया।

अंग्रेजों की नीतियाँ, सामाजिक कुरीतियाँ, एवं अशिक्षा के खिलाफ भारतेंदु जी द्वारा जगाई अलख को उपन्यासकार ने अपनी लेखनी से और भी प्रज्वलित किया है।

भारती का सपूत सारांश :

‘भारती का सपूत’ जीवनीपरक उपन्यास है। इसमें भारतेंदु जी के जीवन के अनेक पहलुओं का वर्णन किया है। भारतेंदु जी का जीवन आने वाली पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा है। इसलिए अध्यापक रत्नहार जी ने भारतेंदु जी के जन्मदिन के अवसर पर लोगों को बुलाकर उनके प्रति श्रद्धा जताई तो दूसरी तरफ उनके जीवन का बखान करके लोगों में प्रेरणा निर्माण की।

भारतेंदु जी के पिता कवि थे, उसका असर बचपन में ही भारतेंदु जी पर पड़ा और 5 वर्ष की उम्र में ही भारतेंदु जी कविता लिखने लगे। उनका जन्म उच्च कुल में हुआ था, जिसका प्रभाव समाज पर था। परंतु भारतेंदु जी कुल के कारण महान नहीं बने बल्कि उनके कार्य से महान बने थे।

भारतेंदु जी की शादी 13 वर्ष की उम्र में मन्नो देवी से हुई। 17 वर्ष की उम्र में उन्होंने नौजवानों का संघ बनाया था। उसके बाद वाद-विवाद सभा का निर्माण किया। इस सभा का उद्देश्य भाषा और समाज का सुधार करना था। 18 वर्ष की आयु में बनारस इन्स्टिट्युट और ब्रह्मामृत वार्षिक सभा के प्रधान सहायक रहे। कविवचन-सुधा नामक पत्रिका का निर्माण किया। होम्योपैथिक चिकित्सालय निर्माण करके लोगों को मुफ्त इलाज किया और दवाएँ दीं।

भारतेंदु जी के काल में अंग्रेजी स्कूल थे, जिसका परिणाम – लोग काले साहेब बनकर अपनों पर ही हुकूमत करते थे इसलिए भारतेंदु जी ने हिंदी तथा अंग्रेजी पाठशालाओं का निर्माण किया, जिससे भारतीय संस्कृति तथा भाषा का विकास हो सकें।

केवल 34 वर्ष 4 महीने की आयु में भारतेंदु जी आखरी दिनों में बिस्तर पर पड़े थे, परंतु फिर भी देश के प्रति उनकी निष्ठा बनी थी। उन्होंने साहित्य, देश, धर्म, दारिद्र्यमोचन, कला और अपमानित नारी के उद्धार के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था।

Conclusion

भारती का सपूत एक महत्वपूर्ण उपन्यास है, जो हमें भारतेन्दु के जीवन और कार्यों से परिचित कराता है। यह उपन्यास हमें प्रेरित करता है कि हम भी अपने जीवन में कुछ बड़ा कर दिखाएं।

मास्टर ब्लास्टर : सचिन तेंदुलकर Summary In Hindi

मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर Summary In Hindi

“मास्टर ब्लास्टर: सचिन तेंदुलकर” एक आत्मकथा है जिसमें भारतीय क्रिकेट के दिग्गज सचिन तेंदुलकर के जीवन और क्रिकेट करियर की रोचक कहानी है। यह किताब उनके बचपन से लेकर उनकी ब्लॉकबस्टर क्रिकेट करियर के विभिन्न पहलुओं को छूने का प्रयास करती है और उनके महत्वपूर्ण संघर्षों और सफलता की कहानी को साझा करती है। यह किताब एक प्रेरणास्पद जीवन के उदाहरण के रूप में काम करती है और उन्होंने क्रिकेट के मैदान में अपनी अद्वितीय प्रतिबद्धता और उत्कृष्टता के साथ कैसे रचा।

मास्टर ब्लास्टर : सचिन तेंदुलकर Summary In Hindi

मास्टर ब्लास्टर : सचिन तेंदुलकर पाठ का सार

‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ उक्ति को पूरी तरह सिद्ध करने वाले मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर अढ़ाई वर्ष की आयु में ही मुगरी का बल्ला बना कर प्लास्टिक की गेंद से अपनी नानी और बड़े भाई अजित के साथ खेलते थे। उनकी नानी लक्ष्मी बाई गिजे ने इन्हें इन के तीसरे जन्मदिन पर गेंद-बल्ला उपहार में दिया तो रोज़ क्रिकेट खेलना उनका नियम ही बन गया था। इनका पूरा नाम सचिन रमेश तेंदुलकर, माता का नाम रजनी तेंदुलकर तथा पिता का नाम रमेश तेंदुलकर है। इनका जन्म 24 अप्रैल, सन् 1973 ई० को राजापुर, मुंबई में हुआ था। इनके माता-पिता नौकरी करते थे, इसलिए ग्यारह वर्ष तक इनका तथा इनके भाई अजीत, नितिन तथा बहन सविता का पालन-पोषण इनकी नानी ने किया था। सन् 1995 ई० में इनका विवाह अंजली से हुआ। इनकी पुत्री सारा तथा पुत्र अर्जुन है। सचिन अपनी नानी को अपना क्रिकेट और जीवन गुरु मानते हैं।

शारदाश्रम विद्या मंदिर में पढ़ते हुए इन्होंने क्रिकेट खेलना प्रारंभ किया। कोच रमाकांत अचरेकर इन्हें घण्टों अभ्यास कराते थे और स्टम्प्स पर सिक्का रखकर गेंदबाजों को कहते थे, जो सचिन को आऊट करेगा, सिक्का उसे मिलेगा तथा आऊट नहीं होने पर सिक्का सचिन का होगा। सचिन के पास ऐसे जमा किए हुए तेरह सिक्के हैं। सचिन ने पहला प्रथम श्रेणी मैच सन् 1988 ई० में चौदह वर्ष की आयु में मुंबई के लिए विनोद काम्बली के साथ मिलकर खेला और दोनों ने मिलकर 664 दौड़ों की अविजित पारी खेली, जिसे देखकर विरोधी टीम ने आगे खेलने से मना कर दिया था।

सचिन ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट सन् 1989 ई० में पाकिस्तान के विरुद्ध कराची में खेला था। अब तक वे अपने नाम अनेक रिकार्ड कर चुके हैं। वे बाएँ हाथ से लिखते और दाएँ हाथ से खेलते हैं। वे ऑफ स्पिन, लेग स्पिन, गुगली गेंदबाजी भी करते हैं। वे भारतीय सैनिकों को अपना आदर्श मान कर संघर्ष करना सीखे हैं। वे बहुत विनम्र, धैर्यवान, संयमी एवं विवेकी हैं। वे अपनालय के बच्चों का पालन-पोषण करते हैं तथा एक रेस्टोरेंट के मालिक भी हैं। उन्होंने 2 अप्रैल, सन् 2011 ई० को विश्वकप-2011 जिताया। इन्हें सन् 1994 में अर्जुन पुरस्कार, राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार, सन् 1999 में पद्मश्री और सन् 2008 में पद्म विभूषण सम्मान दिया गया था।

Conclusion:

“मास्टर ब्लास्टर: सचिन तेंदुलकर” का संग्रहण दिखाता है कि सफलता के लिए मेहनत, समर्पण, और पूरी ईमानदारी के साथ काम करना कितना महत्वपूर्ण है। यह एक निरंतर प्रेरणा स्रोत है जो हर क्षेत्र में सफलता पाने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है।

Maharashtra 11th Class Summary In Hindi

Maharashtra 11th Class Summary In Hindi

महाराष्ट्र कक्षा 11 का सिलेबस एक छात्र की शैक्षिक यात्रा में महत्वपूर्ण पड़ा है। यह चरण माध्यमिक शिक्षा से उच्च माध्यमिक शिक्षा की ओर का संकेत देता है। पाठ्यक्रम विभिन्न विषयों में मजबूत नींव प्रदान करने और छात्रों को 12वीं बोर्ड परीक्षा और उसके परे के चुनौतियों के लिए तैयार करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

Maharashtra 11th Class Summary In Hindi

सम्ग्र रूप में, महाराष्ट्र कक्षा 11 का पाठ्यक्रम छात्रों को वो ज्ञान और कौशल प्रदान करने का उद्देश्य है जो उन्हें शिक्षा में उत्कृष्टता हासिल करने और भविष्य के करियर आकांक्षाओं को पूरा करने की आवश्यकता है। यह उच्च शिक्षा और एक उम्मीदवार भविष्य की ओर का एक कदम है