“Nurses” work in various healthcare settings, including hospitals, clinics, nursing homes, schools, and community health centers. They play a crucial role in promoting health, preventing illness, and providing compassionate care to individuals of all ages. Read More Class 10 Hindi Summaries.
नर्स Summary In Hindi
नर्स लेखिका परिचय
जीवन-परिचय-श्रीमती कला प्रकाश सिंधी की सुप्रसिद्ध लेखिका हैं। उन्होंने हिंदी-साहित्य के लेखन में भी अपनी कुशलता को अच्छी तरह से प्रकट किया है। उनका जन्म 2 जनवरी, सन् 1934 ई० में कराची (पाकिस्तान) में हुआ था। उन्होंने एम० ए० तक की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् महाराष्ट्र के उल्हास नगर के महाविद्यालय में प्राध्यापिका का कार्य किया। बाद में दुबई के विद्यालय में प्रधानाचार्या का कार्यभार सफलतापूर्वक निभाया। सन् 1953 ई० से अब तक इन्होंने सिंधी-साहित्य को संपन्नता प्रदान करने में सफलता प्राप्त की है। इनकी पहली कहानी ‘दोही बेदोही’ मुंबई की एक पत्रिका ‘नई दुनिया’ में छपी थी। .
रचनाएँ-
श्रीमती कला प्रकाश के रचित साहित्य है-
उपन्यास-‘हिक दिल हजार अरमान’, ‘शीशे जो दिल’, ‘हिक सपनों सुखन जी’, ‘हयाली होतन री’, ‘वक्त विथियू बिछोटिषु’, ‘आरसी अ-आड़ो’, ‘प्यार’, ‘पखन जी प्रीत’, ‘समुद्र-ए-किनारे’, ‘औखा पंथ प्यार जा’।
कहानी संग्रह- ’मुर्क ए ममता’, ‘वारन में गुल’, ‘इंतजार’। .
काव्य संग्रह- ‘ममता जूं लहरूं (1963)’, ममता जूं लहरू (2006)।
यात्रा वृत्तांत- ’जे-हिअन्रे हुटन’।
साहित्यिक विशेषताएं-श्रीमती कला प्रकाश के लेखन की मुख्य दिलचस्पी महिलाओं से संबंधित विभिन्न विषयों में है। स्वयं नारी होने के कारण इन्हें नारी-संबंधी विषयों को प्रस्तुत करने में अपेक्षाकृत अधिक सफलता प्राप्त हुई है। इन्हें ‘आरसी-अ-आडो’ उपन्यास पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया था। इनकी पुस्तक ‘ममता तू लहरूं’ को अखिल भारतीय सिंधी अकादमी ने ‘बेस्ट बुक ऑफ दा ईयर’ घोषित किया था। इनके पति भी लेखक हैं और इन दोनों पति-पत्नी को साहित्य अकादमी अवार्ड मिल चुका है।
कला प्रकाश का सारा साहित्य भावात्मक है। इनकी रचनाओं में जहाँ पाठक आत्म-विभोर होता है वहीं दूसरी ओर पाठकों का मनोरंजन भी होता है। उनके मन में समसामयिक समस्याओं के प्रति भावनाएँ भी उद्वेलित होती हैं। इन्होंने समाज के प्रत्येक वर्ग में व्याप्त विषमताओं को उजागर किया है। इन्होंने समाज में जागरूकता लाने का भी सफल प्रयास किया है। इनके साहित्य में भावात्मकता की प्रधानता है।
नर्स कहानी का सार
कला प्रकाश द्वारा रचित ‘नर्स’ एक श्रेष्ठ कहानी है। यह कहानी एक नर्स के सेवाभाव और ममत्व को रोगी के हितों में प्रस्तुत करती है। इसमें बाल मनोविज्ञान की तरफ भी संकेत किया गया है।।
महेश छः साल का छोटा बच्चा था। उसका आप्रेशन हुआ था इसलिए वह अस्पताल में भर्ती था। अस्पताल में मरीज से मिलने का समय छ: बजे तक का था। लेकिन महेश की माँ सरस्वती समय पूरा हो जाने पर भी महेश की जिद्द के कारण वहाँ रुकी हुई थी। वह चाहकर भी जा नहीं पा रही थी। महेश अपनी माँ को अपने पास रोकना चाहता था। सरस्वती वार्ड में इधर-उधर देखने लगी। सभी बच्चे महेश को ताक रहे थे। सरस्वती को याद आया कि कुछ देर पहले नौ नंबर बैड वाले ने उसे बताया था कि ऑप्रेशन के बाद महेश माँ-माँ करके रो रहा था।
तब सरस्वती उस नौ नंबर बैड वाले बालक को महेश पास छोड़ कर जल्दी से अस्पताल के गेट के पास आ गई। उसकी आँखों से आँसू छलछला रहे थे। वार्ड में नौ नंबर वाला बच्चा महेश को समझा रहा था किंतु महेश कुछ सुनने को तैयार नहीं था। वह तो बस माँ की रट लगाए हुए था। कुछ देर बाद वह बच्चा वापस अपने बैड पर चला गया। थोड़ी देर बाद चारों ओर खामोशी छा गई। इस खामोशी में भी महेश की मम्मी-मम्मी की हिचकी गूंज रही थी। सात बजे मरीडा और मांजरेकर नाम की दो नर्से वार्ड में आईं। वे दोनों आपस में बातें कर रही थीं।
मरीजों को दवाई खिला रही थीं। उनका बिस्तर ठीक कर रही थीं। चार नंबर बैड पर पहुँच कर मरींडा बच्चे से बोली कि उसका बिस्तर खिड़की के पास है और उसे बाहर का दृश्य देखना चाहिए न कि चादर में मुँह छिपाकर रोना चाहिए। मरीडा में बच्चों के प्रति अत्यंत लगाव और प्यार था। वह मांजरेकर से बच्चों के पास समय बिताने और बातें करने को कहती है लेकिन मांजरेकर यह कहकर टाल देती है कि साँस लेने तक की फुर्सत तो है नहीं बातें कब करेंगे।
नर्स कहानी Summary
दोनों नौं के जाने के बाद फिर से वार्ड में खामोशी समा गई। सभी के बैड एक जैसे थे। उनकी चादर तथा कंबल भी एक ही रंग के थे। बैड के साइड में एक कबर्ड भी था। उसे साइड टेबल की तरह काम में लिया जाता था। आठ बजे नर्स सूसान वार्ड में आई। उसे देखकर सभी बच्चों के चेहरों पर मुस्कान छा गई। नौ नंबर बैड का बच्चा तो उसके स्वागत में उठकर बैठ गया। वह बच्चों को दवाई पिलाने लगी। उनका बुखार चैक करने लगी। अंत में वह महेश के पास पहुँची। उससे प्यार से बातें करने लगी। उसने उसको बताया कि उसका भी एक बेटा है जिसका नाम महेश है किंतु वह अभी छोटा है केवल तीन महीने का है। वह उसे बहुत परेशान करता है। सूसान महेश को बातें बताती हुई सूप और दवाई पिला रही थी।
अपने ममत्व से उसने महेश को चुप करा दिया उसे दवाई भी पिला दी। महेश से रहा न गया और वह सूसान के बेटे के बारे में और जानने को उत्सुक होने लगा। उसने पूछा वह और क्या करता है। सूसान ने कहा वह अभी बोल नहीं सकता। लेकिन अगं, अगूं… गू, गूं आदि स्वर निकालता रहता है। सूसान बबलू के समान मुँह फुलाकर आवाजें निकालकर महेश को दिखाने लगी। महेश हँस पड़ा। सूसान ने महेश को कहा अब उसे जाना है जब ज़रूरत हो वह उसे बुला सकता है। दूसरे दिन जब सरस्वती महेश से मिलने अस्पताल आई तो वह बहुत विचलित थी कि उसका बेटा कैसा होगा? मम्मी को देखते ही महेश ने उसे गले से लगा लिया। उसने माँ से अपनी बहन मोना के बारे में पूछा क्या वह उसके आने पर रो रही थी ? माँ ने उसे बताया नहीं वह मोना को राजू के पास छोड़कर आई है।
तब महेश ने माँ को बताया कि सिस्टर सूसान का बेटा उसके आने पर बहुत रोता है। वह बहुत शैतान है। माँ के दिल पर सूसान का नाम छप गया। उसने महेश को बड़ा प्यार और दुलार जो दिया था। बाद में जब माँ को सूसान से पता लगा कि वह तो अभी अविवाहित थी और उसने महेश को सहज बनाने के लिए झूठ ही अपने विवाह की बात कही थी तो माँ उसके स्वभाव और बालमनोविज्ञान की समझ पर मुग्ध हो उठी थी।
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