The poem “Ma Ka Pyar” is a touching expression of the profound love and affection a child has for their mother. It beautifully encapsulates the unconditional love, care, and sacrifices that a mother makes for her child. Read More Class 8 Hindi Summaries.
माँ का प्यार कविता Summary In Hindi
माँ का प्यार कविता का सार :
शिवाजी अपने कमरे में सो रहे थे। मालव जी नाम का एक बालक अपने हाथ में नंगी तलवार लिए हुए उनका वध करने के लिए आया। जैसे ही उसने शिवाजी पर वार करना चाहा वैसे ही तानाजी ने पीछे से आकर उसका हाथ पकड़ लिया। शिवाजी की नींद खुल चुकी थी। उन्होंने उस बालक से नाम पूछा तो उसने बताया कि वह मालव जी था। वध का प्रयास करने का कारण पूछने पर उसने बताया कि उसके पिता उनकी सेना में सिपाही थे। वे उनकी ओर से मुगलों से लड़ते हुए दो वर्ष पहले मारे गए थे। उनकी रोजी-रोटी का कोई भी और साधन नहीं था। उन्हें पेट-भर अन्न मिलना भी अब कठिन हो गया था। इन्सान सब कुछ सहन कर सकता है लेकिन पेट की आग नहीं। शिवाजी ने उससे पूछा कि यदि उन माँ-बेटे को इतना अधिक कष्ट था तो वे उसके पास सहायता के लिए क्यों नहीं आए थे। उसने उत्तर दिया कि जिस सिपाही ने उनकी सेना में भर्ती होकर उनका नाम उज्ज्वल किया था उसके बाल-बच्चों की देखरेख करना उनका कर्त्तव्य था।
उसने यह भी बताया कि उसे एक यवन ने उनकी हत्या के लिए कुछ इनाम देने का लालच दिया था। शिवाजी उसकी वीरता और निडरता पर मुग्ध हो गए थे। उन्होंने बनावटी क्रोध दिखाते हुए तानाजी से कहा कि उस बालक को जेलखाने में बंद कर दो और कल उसे मृत्यु-दंड दिया जाएगा। मालव जी ने शिवाजी से प्रार्थना की कि वह मरने से पहले एक बार अपनी माँ से मिलना चाहता था। यह शंका प्रकट करने पर कि वह वापस नहीं लौटेगा उसने कहा कि वह वीर पुत्र था और वह माँ के दर्शन करने के पश्चात् एक घंटे बाद अवश्य वहाँ आ जाएगा। शिवाजी ने उसे घर जाकर माँ से मिलकर लौट आने की आज्ञा दे दी। ठीक एक घंटे बाद बालक वापस आ गया। उसने बताया कि उसकी माँ उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। उसने उसे अपनी छाती से लगाया। उसने उसे वापस लौटने और मृत्यु दंड भोगने के बारे में उसे नहीं बताया था। मालव जी ने शिवाजी से प्रार्थना की कि वे उसकी माँ की देखरेख का सारा भार अपने ऊपर ले लें। शिवाजी ने यह सुनकर कहा कि वे वीरों का आदर करते हैं। वे अब तक उसकी परीक्षा ले रहे थे। उन्होंने उसके अपराध को क्षमा कर दिया और उसे बताया कि जैसे वह अपनी माँ के लिए चिन्तित था वैसे ही वे भारत माता के लिए चिन्तित थे और उसका दुःख दूर करना चाहते थे। मालव जी ने कहा कि जब तक उसके शरीर में जान है वह मातृभूमि की सेवा से कभी भी पीछे नहीं हटेगा।