“बहू की विदा” एक हिन्दी कहानी है जो एक परंपरागत भारतीय परिवार के माध्यम से पारंपरिक मूल्यों और समाज में किसी औरात की विदा की चुनौती को दर्शाती है। इस कहानी में मुख्य पात्री की विदा के लिए अपने परिवार और समाज के बीच उसके साथ के संघर्ष का वर्णन होता है। यह कहानी समाज के विचारों, मान्यताओं, और विवादों को बयां करने का प्रयास करती है। Read More Class 7 Hindi Summaries.
बहू की विदा Summary In Hindi
बहू की विदा पाठ का सार
‘बहू की विदा’ विनोद रस्तोगी द्वारा रचित एक एकांकी है जो दहेज-प्रथा पर आधारित है। जीवन लाल पचास वर्षीय धनी व्यापारी था। उनकी बहू कमला का भाई प्रमोद पहले सावन के अवसर पर अपनी बहन को विदा कराने आया था परन्तु जीवन लाल उसे तब तक विदा करने के लिए तैयार नहीं था जब तक उन्हें दहेज की शेष राशि पाँच हजार रुपए नकद न मिल जाते। प्रमोद ने उस समय बहन की विदाई के लिए प्रार्थना की तथा गौने में उनकी सभी माँगें पूरी करने की बात कही परन्तु वे नहीं माने और अपनी बेटी गौरी के धूमधाम से किए विवाह की बात कहते हुए उसे स्पष्ट कह दिया कि अभी विदा नहीं हो सकती। प्रमोद ने उनसे बहन से मिलने की आज्ञा मांगी तो उसने और पत्नी से प्रमोद की बहन को उस से मिलने के लिए भेजने के लिए कहा स्वयं वहाँ से चला गया।
कमला अपने भाई प्रमोद से मिलकर सिसकने लगी। प्रमोद ने उसे समझाया और कहा कि वह उसके ससुर को पाँच हज़ार रुपए देकर उसे विदा करा के ले जाएगा। इस कार्य के लिए वह अपना घर तक बेचने के लिए तैयार था। कमला ने उसे इस के लिए मना किया है और कहा है कि उस की ननद गौरी आ रही है, इसलिए उस का ससुराल में ही मन लग जाएगा और वह यहीं सावन मना लेगी। उसे अपनी सखियों की कमी भी नहीं खलेगी। कमला ने अपनी सास राजेश्वरी की प्रशंसा और कहा कि वह उसके ससुर के समान नहीं थी। वे बहुत अच्छी थी। तभी राजेश्वरी वहाँ आई और अपने पास से प्रमोद को रुपए देकर कमला के ससुर को देने के लिए कहा, जिससे वह अपनी बहन को विदा करा के ले जा सके।
प्रमोद इसके लिए तैयार हुआ। तभी जीवन लाल ने आ कर गौरी के आगमन पर उसके स्वागत की तैयारी करने के लिए कहा। बाहर से कार के हार्न की आवाज़ सुनकर जीवनलाल ने कहा कि गौरी आ गई है, उसके लिए मिठाई का थाल लाओ। गौरी का भाई रमेश आया और बताया कि गौरी को उसके ससुराल वालों ने विदा नहीं किया क्योंकि उन्होंने दहेज पूरा नहीं दिया था। इस पर राजेश्वरी ने उसे बुरा-भला कहा और कहा कि बहू-बेटी में अन्तर करने का यही नतीजा होता है। प्रमोद जाने लगा तो जीवनलाल ने उसे बहन को विदा कराने के ले जाने की आज्ञा दे दी तथा पत्नी को बहू को विदा करने की तैयारियाँ करने के लिए कहा।
Conclusion:
“बहू की विदा” कहानी हमें परंपरागत और सामाजिक मूल्यों के साथ महिलाओं के अधिकारों के मामले में उत्तराधिकारियों के साथ उठी चुनौती का प्रतिष्ठान दिलाती है। यह कहानी हमें सामाजिक सुधार की महत्वपूर्ण आवश्यकता को बयां करती है और महिलाओं के अधिकारों की समर्थन में एक महत्वपूर्ण संदेश प्रस्तुत करती है। इसके माध्यम से हमें समाज में सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में काम करने की आवश्यकता का अवसर मिलता है।