बस चुप भली Summary In Hindi

“Bus Chup Bhali” translates to “Better Off Keeping Quiet” in English. This phrase or expression suggests that in certain situations. Read More Class 8 Hindi Summaries.

बस चुप भली Summary In Hindi

बस चुप भली पाठ का सार

युगों से समझदार लोग सभी प्रकार की मुसीबतों से बचने के लिए एक ही बात कहते आएं हैं कि ‘एक चुप सौ सुख’। जुबान पर लगाम लगाने से सभी काम शीघ्रता और शांति से पूरे हो जाते हैं लेकिन जुबान है कि मुँह में टिकती ही नहीं। जरा-सी बात पर गज भर लंबी हो कर यह बाहर निकल आती है और झगड़े का बड़ा कारण बन जाती है। बुजुर्गों की चुप रहने की नसीहत धरी-की-धरी रह जाती है। चुप रहना आसान नहीं है पर इसके फ़ायदे बहुत हैं।

मूर्ख और अनपढ़ कालिदास केवल चुप रहने के कारण सुंदर राजकुमारी का पति बन गया था और वहीं अपने युग का सबसे बड़ा दार्शनिक मन्सूर जोबस हर बात को बोलने के कारण फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था। तभी तो रहीम को कहना पड़ा था कि जुबान अच्छी-बुरी सब बातें कह कर स्वयं तो दाँतों के पीछे मुँह में जा छिपती है और जूते बेचारी खोपड़ी को खाने पड़ते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के समय मुहल्ले के दो लोग लेखक के घर पधारे।

वे दोनों चाहते थे कि लेखक महोदय उनके लिए चुनावअभियान का सारा कार्यभार संभाल लें। लेखक ने उन दोनों को किन्हीं विशेष एहसानों के कारण साफ-साफ मना तो करना नहीं था, इसलिए उन्होंने उन्हें एक कागज़ पर लिख कर बताया कि वे मौन व्रत पर थे और अगले दिन बताएंगे कि वे उन दोनों में से किस के लिए काम करेंगे। अगले दिन सुबह-सवेरे वे दिल्ली चले गए और विवाद से बच गए। दफ़्तर में बिहारी लाल और मुरारी लाल ने आपस में जोरदार झगड़ा किया, तोड़-फोड़ भी कर दी। बड़े साहब ने उन दोनों के कहने पर लेखक को गवाह के रूप में बुलाया। संकट से बचने के लिए लेखक ने भयंकर खाँसी के दौरे का नाटक किया। लेखक को तो डिस्पैंसरी भेज दिया गया पर बिहारी-मुरारी दोनों की तरक्की रोक दी गई थी जिसका सारा दोष दोनों ने लेखक पर डाला।

एक बार मुहल्ले के कुछ बुजुर्गों ने अपने होनहार पुत्र को विवाह के लिए लड़की पक्ष को दिखाने हेतु लेखक का घर चुन लिया। लेखक चाह कर भी उन्हें ना नहीं कह सका जिसका परिणाम है कि अब उसका मेहमानखाना लड़के-लड़की वालों के आपसी झगड़ों का पंचायत घर बना हुआ है। लेखक का यही मानना है कि कोर्ट-कचहरी, शादी-मंगनी, चुनाव-उपचुनाव, सिफ़ारिश, गवाही, जमानत आदि से दूर ही रहना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया जा सकता तो जुबान अवश्य खोलनी पड़ेगी और जुबान का रस तो निश्चित रूप से दुःखदायी होता ही है।

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