“कार्निवल का चक्कर” एक हिंदी कहानी है जो निकोलो मचियावेल्ली द्वारा लिखी गई है। इस कहानी में हमें मुख्य पात्र जो एक साधू के रूप में प्रस्तुत होते हैं, के अद्वितीय चरित्र के साथ एक रोचक और मनोरंजक कार्निवल की यात्रा का साक्षात्कार होता है। इस कहानी में संगीत, कला, और जीवन के असली मायने प्रकट होते हैं जो हमें वास्तविक खुशियों की ओर बढ़ने का मार्ग दिखाते हैं। Read More Class 7 Hindi Summaries.
कार्निवल का चक्कर Summary In Hindi
कार्निवल का चक्कर पाठ का सार
‘कार्निवल का चक्कर’ लेखक का बढ़ती हुई महंगाई पर एक व्यंग्यात्मक लेख है। लेखक नाश्ता करने के बाद अखबार पढ़ने बैठा ही था कि उसकी पत्नी ने उसे छुआ तो वह चौंक गया। पत्नी ने उसे बच्चों सहित कार्निवल घूमने के लिए कहा। वह मान गया परन्तु सोचने लगा कि आज के ज़माने में दाल-रोटी चलाना मुश्किल हो रहा है और उस ने कार्निवल घूमने के लिए हाँ कर दी है। उसे वेतन मिले अभी दो-चार दिन ही हुए थे; इसलिए जेब गर्म थी तथा दूध, धोबी, चौकीदार आदि का भुगतान अभी किया नहीं था।
कार्निवल चलने के लिए लेखक ने स्कूटर को हिलाकर देखा तो उसमें पेट्रोल था। चुन्नू-मुन्नू स्कूटर साफ करने के लिए कपड़ा ले आए। किक मारने पर भी स्कूटर नहीं चला। जब बच्चों ने उसे धक्का लगाया तो वह चल पड़ा। बच्चों और पत्नी को स्कूटर पर बैठा कर लेखक बजरंगबली का नाम लेकर कार्निवल की ओर पवन वेग से स्कूटर को उड़ाता हुआ चल पड़ा। वहाँ स्कूटर स्टैंड वाले को दस रुपए और कार्निवल में प्रवेश के लिए प्रति व्यक्ति बीस रुपए की दर से सौ रुपए देने पड़े।
कार्निवल में प्रवेश करते ही उनके बच्चों ने बर्गर-गोलगप्पा तथा पत्नी ने गोलगप्पे खाने के लिए कहा तो लेखक को हाँ करनी पड़ी परन्तु पाँच रुपए की एक….. सुन कर गोलगप्पे का जल लेखक की श्वास नली में अटक गया और गोलगप्पे वाले को पिचहत्तर की बजाय पचास रुपए देकर आगे बढ़ गए। आगे चल कर बच्चे झूले पर सवारी करने के लिए कहने लगे तो पाँच के चार सौ रुपए सुनकर लेखक धम्म से नीचे गिर गए तो लोगों ने दौरा पड़ने, मिर्गी आने, हृदयघात की बात कही तो लेखक ने कांपते हाथों से अपने परिवार की ओर संकेत किया। लोग उन्हें उठा कर वहाँ पटक कर चले गए।
पत्नी ने पूछा कि क्या हुआ तो इन्होंने भीड़ के दम घुटने की बात कह कर खुले में चलने के लिए कहा। बेटी ने सचिन वाला कोल्ड ड्रिंक पीने की जिद की तो उसे डांट दिया और घर जाकर नींबू-पानी पीने के लिए कहा। पत्नी ने टिक्की खाने के लिए कहा तो पाँच प्लेट टिक्कियाँ खाईं और इन का भुगतान दो सौ पचास रुपए करते हुए घबरा गए। मुन्नू कुछ कहने लगा तो उसे घर चल कर बादाम नींबू का शीतल पेय पीने के लिए कहा और सोचने लगे नींबू दौ सौ रुपए किलो, बादाम पाँच सौ रुपए बच्चों से वायदा बेकार ही किया।
Conclusion:
“कार्निवल का चक्कर” का संग्रहण हमें यह सिखाता है कि जीवन की खोज में हमें अपनी प्राथमिकताओं को खोना नहीं चाहिए, बल्कि हमें अद्वितीय अनुभवों की ओर बढ़ना चाहिए। साधू के रूप में प्रस्तुत होने के बावजूद, मुख्य पात्र ने जीवन के आनंदों और रंगमंच की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो हमें अपने आसपास की खुशियों को महसूस करने के लिए उत्तेजना देती हैं। यह कहानी एक आनंदमय और अद्वितीय जीवन के महत्व को प्रमोट करती है।