भारती का सपूत Summary in Hindi

भारती का सपूत, रांगेय राघव द्वारा लिखित एक जीवनीपरक उपन्यास है, जो भारतेन्दु हरिश्चंद्र के जीवन पर आधारित है। यह उपन्यास भारतेन्दु के बचपन से लेकर उनके निधन तक के जीवन का वर्णन करता है।

भारती का सपूत Summary in Hindi

भारती का सपूत लेखक परिचय :

रांगेय राघव जी का जन्म 17 जनवरी 1923 को श्री रंगाचार्य के घर उत्तर प्रदेश में हुआ। आपकी पूर्ण शिक्षा आगरा में हुई। वहीं से आपने पी.एच.डी की उपाधि प्राप्त की। आंचलिक ऐतिहासिक तथा जीवनीपरक उपन्यास लिखने वाले रांगेय राघव जी के उपन्यासों में भारतीय समाज का यथार्थ (actual) चित्रण प्राप्त है। आपने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में सृजनात्मक (creative) लेखन करके हिंदी साहित्य को समृद्धि (prosperity) प्रदान की है।

भारती का सपूत Summary in Hindi 1

आपने मातृभाषा हिंदी से ही देशवासियों के मन में देश के प्रति निष्ठा और स्वतंत्रता का संकल्प जगाया। सबसे पहले कविता के क्षेत्र में कदम रखा पर महानता मिली गद्य लेखक के रूप में। 1946 में प्रकाशित ‘घरौंदा’ उपन्यास के जरिए आप प्रगतिशील कथाकार के रूप में चर्चित हुए।

1962 में आपको कैंसर रोग पीड़ित बताया गया। उसी वर्ष 12 सिंतबर को आप मुंबई में देह त्यागी। पुरस्कार : हिंदुस्तान अकादमी, डालमिया पुरस्कार, मरणोपरांत (1966) महात्मा गांधी पुरस्कार।

भारती का सपूत प्रमख कतियाँ :

उपन्यास – विषाद मठ, उबाल, राह न रुकी, बारी बरणा खोल दो, देवकी का बेटा, रत्ना की बात, भारती का सपूत, यशोधरा जीत गई, घरौंदा, लोई का ताना, कब तक पुकारूँ, राई और पर्वत, आखिरी आवाज आदि। कहानी संग्रह – पंच परमेश्वर, अवसाद का छल, गूंगे, प्रवासी, घिसटता कंबल, नारी का विक्षोभ, देवदासी, जाति और पेशा आदि

भारती का सपूत विधा का परिचय :

‘उपन्यास’ वह गद्य कथानक है जिस के द्वारा जीवन तथा समाज की व्यापक व्याख्या की जा सकती है। उपन्यास को आधुनिक युग की देन कहना अधिक समुचित होगा। साहित्य में गद्य का प्रयोग जीवन के यथार्थ चित्रण का द्योतक है। साधारण बोलचाल की भाषा द्वारा लेखक के लिए अपने पात्रों, उनकी समस्याओं तथा उनके जीवन की व्यापक पृष्ठभूमि से प्रत्यक्ष संबंध स्थापित करना आसान हो गया है।

उपन्यास हमारे जीवन का प्रतिबिंब होता है, जिसको प्रस्तुत करने में कल्पना का प्रयोग आवश्यक है। मानव जीवन का सजीव चित्रण उपन्यास है। उपन्यास महान सत्यों और नैतिक आदर्शों का एक अत्यंत मूल्यवान साधन है।

भारती का सपूत विषय प्रवेश :

जीवन में अनेक ऐसी महान विभूतियाँ होती है, जिनका स्मरण करके हम आने वाली पीढ़ी के सामने उनका आदर्श रख सकते हैं। प्रस्तुत जीवनपरक उपन्यास में हिंदी गद्य के जनक तथा पिता भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के जन्मदिन के अवसर पर अध्यापक रत्नहास ने लोगों को निमंत्रित करके एक तरफ उनके प्रति श्रद्धा जताई तो दूसरी तरफ निमंत्रित लोगों के सामने भारतेंदु जी के जीवन के अनेक पहलुओं को उजागर किया।

भारतीय भाषा और संस्कृति, अंग्रेजी स्कूलों का दुष्परिणाम, हिंदी अंग्रेजी पाठशाला निर्माण, बचपन से ही साहित्य के प्रति रुझान, पिता का आदर्श, आदि कार्यों का लेखा-जोखा रखकर श्रद्धा प्रकट करना और जीवन में प्रेरणा लेना पाठ का उद्देश्य है। केवल 34 वर्ष 4 महीने जिंदगी जीने वाले भारतेंदु जी का जीवन आदर्शवत (idealizing) है।

भारती का सपूत पाठ का परिचय :

‘भारती का सपूत’ रांगेय राघव लिखित जीवनीपरक उपन्यास का अंश है। प्रस्तुत जीवनी परक उपन्यास में हिंदी गद्य भाषा के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के जीवन को आधार बनाकर, उनके जीवन के कुछ पहलुओं को उजागर किया गया है। बचपन से ही साहित्य एवं शिक्षा के प्रति रुझान ने भारतेंदु जी को हिंदी साहित्य जगत का देदीप्यमान इंदु अर्थात चंद्रमा बना दिया।

अंग्रेजों की नीतियाँ, सामाजिक कुरीतियाँ, एवं अशिक्षा के खिलाफ भारतेंदु जी द्वारा जगाई अलख को उपन्यासकार ने अपनी लेखनी से और भी प्रज्वलित किया है।

भारती का सपूत सारांश :

‘भारती का सपूत’ जीवनीपरक उपन्यास है। इसमें भारतेंदु जी के जीवन के अनेक पहलुओं का वर्णन किया है। भारतेंदु जी का जीवन आने वाली पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा है। इसलिए अध्यापक रत्नहार जी ने भारतेंदु जी के जन्मदिन के अवसर पर लोगों को बुलाकर उनके प्रति श्रद्धा जताई तो दूसरी तरफ उनके जीवन का बखान करके लोगों में प्रेरणा निर्माण की।

भारतेंदु जी के पिता कवि थे, उसका असर बचपन में ही भारतेंदु जी पर पड़ा और 5 वर्ष की उम्र में ही भारतेंदु जी कविता लिखने लगे। उनका जन्म उच्च कुल में हुआ था, जिसका प्रभाव समाज पर था। परंतु भारतेंदु जी कुल के कारण महान नहीं बने बल्कि उनके कार्य से महान बने थे।

भारतेंदु जी की शादी 13 वर्ष की उम्र में मन्नो देवी से हुई। 17 वर्ष की उम्र में उन्होंने नौजवानों का संघ बनाया था। उसके बाद वाद-विवाद सभा का निर्माण किया। इस सभा का उद्देश्य भाषा और समाज का सुधार करना था। 18 वर्ष की आयु में बनारस इन्स्टिट्युट और ब्रह्मामृत वार्षिक सभा के प्रधान सहायक रहे। कविवचन-सुधा नामक पत्रिका का निर्माण किया। होम्योपैथिक चिकित्सालय निर्माण करके लोगों को मुफ्त इलाज किया और दवाएँ दीं।

भारतेंदु जी के काल में अंग्रेजी स्कूल थे, जिसका परिणाम – लोग काले साहेब बनकर अपनों पर ही हुकूमत करते थे इसलिए भारतेंदु जी ने हिंदी तथा अंग्रेजी पाठशालाओं का निर्माण किया, जिससे भारतीय संस्कृति तथा भाषा का विकास हो सकें।

केवल 34 वर्ष 4 महीने की आयु में भारतेंदु जी आखरी दिनों में बिस्तर पर पड़े थे, परंतु फिर भी देश के प्रति उनकी निष्ठा बनी थी। उन्होंने साहित्य, देश, धर्म, दारिद्र्यमोचन, कला और अपमानित नारी के उद्धार के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था।

Conclusion

भारती का सपूत एक महत्वपूर्ण उपन्यास है, जो हमें भारतेन्दु के जीवन और कार्यों से परिचित कराता है। यह उपन्यास हमें प्रेरित करता है कि हम भी अपने जीवन में कुछ बड़ा कर दिखाएं।

Leave a Comment