मध्ययुगीन काल में कृष्ण भक्ति काव्य की एक प्रमुख धारा बाल लीला थी। इस धारा के कवियों ने कृष्ण की बाल अवस्था की लीलाओं का वर्णन किया है। इन लीलाओं में कृष्ण के बालपन की भोली-भाली हरकतें, उनकी माँ यशोदा के साथ उनकी मधुर वार्तालाप, उनके मित्रों के साथ उनके खेल-कूद और उनकी शरारतों का रोचक और मनोरंजक वर्णन मिलता है।
मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला Summary in Hindi
मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला कवि परिचय :
संत सूरदास जी का जन्म 1478 को दिल्ली के पास सीही नामक गाँव में हुआ। आरंभ में आप आगरा और मथुरा के बीच यमुना के किनारे गऊ घाट पर रहे। वहीं आप की भेंट वल्लभाचार्य से हुई। अष्टछाप कवियों की सगुण भक्ति काव्य-धारा के आप अकेले ऐसे कवि हैं जिनकी भक्ति में साख्य, वात्सल्य और माधुर्य भाव निहित हैं। कृष्ण की बाल-लीला तथा वात्सल्य भाव का सजीव चित्रण आपकी रचना का मुख्य विषय है।
मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला प्रमुख रचनाएँ :
‘सूर सागर’, ‘सूरसारावली’ तथा साहित्य लहरी आदि।
मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला काव्य विधा :
‘पद’ काव्य की एक गेय शैली है। हिंदी साहित्य में ‘पद शैली’ की दो निश्चित परंपराएँ मिलती हैं, एक संतो के ‘सबद’ की और दूसरी परंपरा कृष्णभक्तों की ‘पद शैली’ है। इसका आधार लोकगीतों की शैली है। भक्ति-भावना की अभिव्यक्ति के लिए पद शैली का प्रयोग किया जाता है।
मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला विषय प्रवेश :
प्रस्तुत पदों में कृष्ण के बाल हठ और माँ यशोदा की ममतामयी छबि को प्रस्तुत किया है। प्रथम पद में चाँद की छबि दिखाकर यशोदा कृष्ण को बहला लेती है। चाँद को देखकर कृष्ण मुस्करा उठते हैं जिसे देख माँ यशोदा बलिहारी जाती है। द्वितीय पद में माँ यशोदा कृष्ण को कलेवा करने के लिए मनुहार कर रही है उनकी पसंद के विभिन्न स्वदिष्ट व्यंजन उनके सामने रखकर वह खाने के लिए मनहार कर रही है।
मध्ययुगीन काव्य (आ) बाल लीला सारांश :
(कविता की व्याख्या) : यशोदा अपने पुत्र को प्यार करते हुए चुप करा रही हैं। वे बार-बार कृष्ण को समझाती है और कहती हैं कि – “अरे चंदा हमारे घर आ जा। तुम्हें मेरा लाल बुला रहा है। यह मधु, मेवा, ढेर सारे पकवान स्वयं भी खाएगा और तुम्हें भी खिलाएगा।
मेरा लाल (कृष्ण) तुम्हें हाथ पर ही रखकर खेलेगा, तुम्हें जमीन पर बिल्कुल नहीं बिठाएगा।” माँ यशोदा बर्तन में पानी भरकर उठाती है और कहती है, “हे चंद्रमा, तुम इस पात्र में आकर बैठ जाओ। मेरा लाल तुम्हारे साथ खेलकर अत्यंत प्रसन्न हो जाएगा।”
यशोदा उस जल पात्र को नीचे रख देती है और कृष्ण से कहती है – “देख बेटा ! मैं चंद्रमा को पकड़ लाई हूँ।” सूरदास जी कहते हैं, मेरे प्रभु श्रीकृष्ण चंद्रमा को जल पात्र में देखकर हँस पड़ते हैं। मुस्कराते हुए उस जल पात्र में बार-बार दोनों हाथ डालकर चंद्रमा को हाथ में लेने का (उठाकर खेलने के लिए) प्रयास करने लगते हैं।
प्रस्तुत पंक्तियों में बाल-हठ और माता के ममत्व का भावपूर्ण वर्णन मिलता है।
हे मेरे मनमोहन, मेरे लाल, उठो, कलेवा (नाश्ता) कर लो। माँ यशोदा अपने हृदय की बात कहती है, अपने मनोभाव को व्यक्त करती हुई कहती है – “मैं मनमोहन को देखकर ही तो जीती हूँ” अर्थात् कृष्ण के बिना मेरा जीवन अधूरा है। मेरे जीवन का लक्ष्य ही कृष्ण है।
हे लाल, देखो तो सही; मैं तुम्हारे पसंद के बहुत से व्यंजन लाई हूँ। गुझिया, लड्डू, पूरी, अचार वह सब कुछ जो तुम्हें पसंद हैं। पहले तुम कलेवा कर लो, फिर मैं तुम्हें पान बनाकर खिलाऊँगी।
कवि का यहाँ यही अभिप्राय है कि माँ किस तरह अपनी संतान से स्नेह करती है। उसके जीवन का उद्देश्य ही अपनी संतान को सदा प्रसन्न रखना रहता है। पान खिलाने की बात सुनकर महाकवि सूरदास अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं। सूरदास पान खिलाई के अवसर पर विशेष उपहार की कल्पना करते हैं और वह उपहार है “कृष्ण भक्ति”।
विशेष शुभ अवसर पर विशेष व्यक्ति को पान खिलाया जाता है। यह एक भारतीय परंपरा है। बदले में उपहार के तौर पर कुछ ना कुछ भेंट दी जाती है। उसे नेग भी कहते हैं। सूरदास जी को भला प्रभु भक्ति के अलावा अन्य (नेग) उपहार से क्या लेना देना? यही भक्ति की चरम सीमा है।
Conclusion
मध्ययुगीन काल की बाल लीला काव्यधारा ने कृष्ण भक्ति को एक नया आयाम दिया। इस धारा के कवियों ने कृष्ण की बाल लीलाओं के माध्यम से ईश्वरीय प्रेम और करुणा का संदेश दिया और लोगों को कृष्ण भक्ति के प्रति आकर्षित किया।