“मैट्रो रेल का सुहाना सफ़र” एक रोमांटिक कहानी है जो मैट्रो रेल के यात्री और उनके जीवन के संघर्षों को दर्शाती है। इस कहानी में हमें एक मैट्रो रेल की यात्रा के दौरान जुदे दो अजनबी प्रेम के संबंध के रोमांटिक और मनोरंजक पलों का साक्षात्कार होता है। यह कहानी जीवन के छोटे-छोटे खुशियों और संरक्षित लम्हों के महत्व को उजागर करती है। Read More Class 7 Hindi Summaries.
मैट्रो रेल का सुहाना सफ़र Summary In Hindi
मैट्रो रेल का सुहाना सफ़र पाठ का सार
‘मैट्रो रेल का सुहाना सफ़र’ पाठ में लेखक ने दिल्ली में चल रही मैट्रो रेल की सैर कराई है। पंजाब की योग टीम अपने कोच गुरुश्री सुरेन्द्र मोहन के साथ दिल्ली में राष्ट्रीय खेलों में भाग लेने गई थी। वे अशोक विहार के झलाकारीबाई राजकीय उच्चतर विद्यालय में ठहरे थे। गरु जी ने उन्हें कहा था कि यदि वे राष्ट्रीय खेलों में प्रथम आए तो उन्हें मैट्रोरेल की सैर करवाएँगे। उनकी टीम प्रथम आई थी इसलिए गुरु जी उन्हें मैट्रो रेल से लाल किला दिखाने ले जा रहे थे।
सभी खिलाड़ी पंजाब छपे नीले रंग के ट्रैक सूट पहने मैट्रो रेल के कन्हैया नगर स्टेशन पर पहुँच गए। वहाँ राजीव ने गुरु जी से कहा कि रेलगाड़ी तो ज़मीन पर चलती है, पर यह स्टेशन तो सड़क के ऊपर बने पुल के ऊपर है। तब गुरु जी ने उसे समझाया कि मैट्रो रेल ज़मीन, पुल पर या ज़मीन के नीचे सुरंग में बिछी पटरियों पर चल सकती हैं, जिससे कम समय में अधिक दूरी तय की जा सके। प्रतिभा के यह पूछने पर कि गाड़ी किस रास्ते से जाएगी? गुरु जी ने उत्तर दिया कि गाड़ी की खिड़की के पास बैठकर स्वयं ही देख लेना।
गुरु जी ने सबको सीढ़ियों से ऊपर जाने के लिए कहा तो भास्कर ने लिफ्ट लगे होने की बात कही। गुरु जी ने बताया कि लिफ्ट वृद्धों, बीमारों तथा अपाहिजों के पहिया कुर्सी के साथ लाने ले जाने के लिए है। जैसे ही वे स्टेशन पर पहुँचे तो वहाँ की साफ़-सफाई देखकर हैरान रह गए। वहाँ तैनात सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें एक जांच-यंत्र से अन्दर जाने दिया। स्टेशन पर रेस्तरां, कॉफी शॉप, बुक-शॉप, ए०टी०एम० आदि सेवाएँ भी उपलब्ध थीं। उन्हें स्वचालित प्रवेश द्वारा, जो टोकन, स्मार्ट कार्ड तथा पर्यटक कार्ड द्वारा खुलता है, के स्थान पर समूह-पास होने के कारण विशेष प्रवेश-द्वार तथा प्लेटफार्म की ओर प्रवेश कराया गया।
प्लेटफार्म पर भी बहुत साफ-सफाई थी तथा गाड़ी की प्रतीक्षा करते समय किसी को भी प्लेटफार्म पर बनी पीली-पट्टी पार करने की आज्ञा नहीं थी। गाड़ी की प्रतीक्षा करते हुए जिस दिशा में यात्रा करनी हो, उसी दिशा में मुँह करके खड़ा होना चाहिए। सूचना पट्ट पर गाड़ी के आने का समय जान कर गुरु जी ने बच्चों को तैयार रहने के लिए कहा कि तभी घोषणा हुई कि रिठाला से इन्द्रलोक और कश्मीरी गेट होते हुए दिलशाद गार्डन जाने वाली मैट्रो कुछ समय में प्लेटफार्म पर पहँच रही है।
किरन उद्घोषणा में लाल किले का नाम न सुन पाने के कारण गुरुजी से पूछती है, तो वे बताते हैं कि उन्हें कश्मीरी गेट से चाँदनी चौक की मैटो पकडनी होगी तथा वहाँ उतर कर पैदल लाल किले जाना होगा। गाड़ी में सभी बच्चे लम्बी सीटों पर खिड़कियों के पास बैठ गए। स्वचालित द्वार स्वयं बन्द हो गए। राजीव को ऐसा लग रहा था जैसे वे सब किसी विमान पुस्तकीय भाग में उड़ रहे हो। वातानुकूलित होने के कारण खिड़कियाँ स्थाई तौर पर बन्द थीं। बच्चे खिड़कियों से बाहर के दृश्य देख रहे थे। स्टेशन आने से पहले गाड़ी में आने वाले स्टेशन और द्वार किधर खुलेंगे की घोषणा हो रही थी।
कश्मीरी गेट स्टेशन आने की घोषणा होते ही गुरु जी ने बच्चों को उतरने के लिए तैयार हो जाने के लिए कहा। वहाँ जैसे ही गाड़ी रुकी और द्वार खुला मैट्रो का एक कर्मचारी इनकी सहायता के लिए खड़ा था जिसे कन्हैया नगर स्टेशन से अधिकारियों ने सूचना दे दी थी। इन बच्चों के ट्रैक सूट पर पंजाब छपा देख कर उसने इन्हें पहचान लिया था। वह इन्हें स्वचालित सीढ़ियों से भूमिगत प्लेटफार्म पर ले गया, जहाँ से इन्हें चाँदनी चौक की मैट्रो मिलनी थी। सिमरन को वह स्थान सुरंग जैसा लगा। चाँदनी चौक स्टेशन से बाहर भी वे विशेष द्वार से आए तथा लाल किले की तरफ जाते हुए मैट्रो के इसी अजूबे सफर की बातें कर रहे थे।
Conclusion:
“मैट्रो रेल का सुहाना सफ़र” का संग्रहण हमें यह सिखाता है कि जीवन के सफर में हमें कभी-कभी अचानक होने वाले पलों का आनंद उठाना चाहिए, और हमें अपने दिनचर्या की छोटी-छोटी खुशियों को महत्व देना चाहिए। यह कहानी हमें प्यार, संबंधों, और आपसी समझ की महत्वपूर्ण भूमिका को बताती है, और यह दिखाती है कि जीवन के सफर में हर कदम पर कुछ नया और ख़ास हो सकता है।