Summary of Mirabai, also known as Meera Bai or Mirabai Kanwar, was a 16th-century poet and devotee of Lord Krishna. Born into a royal family in Rajasthan, she defied conventional norms and chose a path of spiritual devotion rather than a life of royalty. Her poetry, predominantly written in Rajasthani and Braj Bhasha, was an expression of her deep love for Krishna, often narrating her longing to unite with her beloved deity. Her devotion and the poignant simplicity of her verses continue to inspire countless souls across generations. Read More Class 12 Summaries.
मीराबाई Summary In Hindi
मीराबाई जीवन परिचय
मीराबाई का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
मीरा का जन्म सन् 1498 ई० में जोधपुर ज़िला के कुड़की गाँव में राठौर वंश में राव दादू जी के चौथे पुत्र रत्नसिंह के घर हुआ था। बचपन से ही इन्हें श्रीकृष्ण से प्रेम हो गया था और वे उन्हें अपना पति मानने लगी थीं। सोलह वर्ष की अवस्था में इनका विवाह राणा सांगा के बड़े पुत्र भोजराज से हो गया था। सन् 1518 में राणा भोजराज ने एक युद्ध में वीरगति प्राप्त की। विधवा मीरा ने अपना समय श्री कृष्ण की भक्ति में लगा दिया। राजघराने की होते हुए भी मीरा साधु-सन्तों के साथ भजन-कीर्तन करती रही। अन्त में वे घर-बार छोड़कर द्वारिका चली गईं। यहीं सन् 1573 में उनका देहान्त हो गया। मीरा द्वारा लिखित कुल सात ग्रन्थ उपलब्ध हैं जिनमें ‘पदावली’ सबसे प्रसिद्ध है। अन्य रचनाओं में नरसी रो माहेरो, गीत गोबिंद की टीका, राग गोबिंद तथा सोरठा के पद अधिक प्रसिद्ध हैं।
Mirabai Poems Summary
मीराबाई पदों का सार
मीराबाई द्वारा रचित चार पद संकलित हैं। प्रथम पद ‘ब्रजभूमि’ में वृंदावन की पवित्रता का वर्णन किया गया है जहाँ घर-घर में तुलसी और ठाकुर जी की पूजा होती है, कृष्ण जी के दर्शन होते हैं, यमुना जी बहती हैं तथा दूध-दही का भोजन है। वहाँ रत्नसिंहासन पर कृष्ण जी विराजते हैं तथा उनकी मुरली का शब्द सुन कर राधा कुंज-कुंज में विचरण करती है। दूसरा पद ‘समर्पण’ का है जिसमें मीरा स्वयं को श्रीकृष्ण के विरह में व्याकुल होकर उनसे मिलने की कामना कर रही है। तीसरे पद में सद्गुरु की महानता का वर्णन है, जिनकी कृपा से उसे संसार रूपी सागर से पार उतारने का अमूल्य मंत्र मिल गया है तथा चौथे पद ‘उपदेश’ में इस जीवन को क्षण भंगुर बताते हुए प्रभु के नाम स्मरण का उपदेश दिया गया है।