ओजोन विघटन का संकट Summary in Hindi

ओजोन पृथ्वी के वायुमंडल की एक परत है जो सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी (UV) विकिरण से पृथ्वी को बचाती है। ओजोन विघटन वह प्रक्रिया है जिसमें ओजोन परत क्षतिग्रस्त हो जाती है और इसकी सुरक्षात्मक क्षमता कम हो जाती है।

ओजोन विघटन का संकट एक गंभीर पर्यावरणीय मुद्दा है जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए खतरा है। ओजोन परत में क्षति के परिणामस्वरूप त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है। इसके अलावा, ओजोन परत में क्षति पौधों और जानवरों को भी नुकसान पहुंचा सकती है।

ओजोन विघटन का संकट Summary in Hindi

ओजोन विघटन का संकट लेखक का परिचय

ओजोन विघटन का संकट लेखक का नाम : डॉ कृष्ण कुमार मिश्र। (जन्म 15 मार्च, 1966.)

ओजोन विघटन का संकट प्रमुख कृतियाँ : लोक विज्ञान, समकालीन रचनाएँ, विज्ञान-मानव की यशोगाथा, जल-जीवन का आधार आदि।

ओजोन विघटन का संकट विशेषता : हिंदी साहित्य में विज्ञान संबंधी लेखन कार्य में विशेष पहचान। आपने विज्ञान को लोकप्रिय बनाने और जनमानस तक पहुँचाने का उल्लेखनीय कार्य किया है। लोक विज्ञान के अनेक विषयों पर हिंदी में व्यापक लेखन किया है। विज्ञान से संबंधित आपकी अनेक मौलिक एवं अनूदित पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। डॉ कृष्ण कुमार मिश्र विज्ञान लेखन की समकालीन पीढ़ी के सशक्त लेखक हैं।

ओजोन विघटन का संकट विधा : विज्ञान संबंधी लेख।

ओजोन विघटन का संकट विषय प्रवेश : प्रस्तुत निबंध में लेखक बता रहे हैं कि मनुष्य अपनी सुविधाओं के लिए, जीवन को आरामदायक बनाने के लिए दिन-रात नए-नए आविष्कार करता रहता है। इन नवीन खोजों के कारण पर्यावरण दिन-ब-दिन प्रदूषित होता जा रहा है। हमारी स्वार्थी प्रवृत्ति के चलते सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों को रोकने के लिए पर्यावरण में विद्यमान ओजोन परत को क्षति पहुँच रही है। आज हालात की यह माँग है कि ओजोन को होने वाली क्षति को हम रोकें ताकि इस सृष्टि को विनाश से बचाया जा सके।

ओजोन विघटन का संकट पाठ का सार

आज का युग विज्ञान और प्रौद्योगिकी का युग है। पूरी दुनिया में भौतिक विकास की होड़ लगी हुई है। विकास की इस दौड़ ने जिन समस्याओं को जन्म दिया है, इनमें प्रदूषण की समस्या चिंतनीय है। हवा, पानी, मिट्टी सभी प्रदूषण की गिरफ्त में आ चुके हैं। इनमें भी पर्यावरणीय प्रदूषण बहुत बड़े संकट का रूप ले चुका है।

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पर्यावरण में विद्यमान अनेक गैसों में एक गैस है ओजोन। यह गैस मानव स्वास्थ्य के लिए तो हानिकारक है, परंतु वायुमंडल में मौजूद यही गैस हमारी रक्षा भी करती है। यह गैस धरती के वायुमंडल में 15 से 20 किलोमीटर की ऊँचाई तक पाई जाती है।

यह ओजोन गैस बाह्य अंतरिक्ष से आने वाली पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करके उन्हें धरती पर आने से रोकती है। यदि ये किरणें धरती की सतह तक चली आएँ तो एक ओर तो धरती के तापमान में वृद्धि होगी, दूसरी ओर त्वचा संबंधी अनेकानेक व्याधियाँ फैलेंगी। वायुमंडल में स्थित ओजोन की परत हमें इन घातक किरणों से बचाती है।

विकास की दौड़ का हिस्सा बनकर हमने सभी संसाधनों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया है। जिसके कारण प्राकृतिक संतुलन चरमरा गया है। दैनिक जीवन में कीटनाशक, प्रसाधन सामग्री, दवाएँ, रंग-रोगन, फ्रिज तथा एयरकंडिशनिंग में प्रशीतन का अहम स्थान है। सन 1930 से पहले प्रशीतन के लिए अमोनिया और सल्फर डाइऑक्साइड गैसों का इस्तेमाल किया जाता था, जो अत्यंत तीक्ष्ण होने के कारण मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक थीं।

तीस के दशक में क्लोरो फ्लोरो कार्बन (सी एफ सी) नामक यौगिक की खोज हुई। रंगहीन, गंधहीन, अक्रियाशील और अज्वलनशील होने के कारण बड़े पैमाने पर सी एफ सी यौगिकों का उत्पादन होने लगा और घरेलू कीटनाशक, प्रसाधन सामग्री, दवाएँ, रंग-रोगन, यहाँ तक कि रेफ्रिजिरेटर और एयरकंडिशनर में इनका खूब इस्तेमाल होने लगा। 1974 में एक अमेरिकी वैज्ञानिक एफ एस रोलैंड ने बताया कि सी एफ सी यौगिक धरती की ओजोन परत को नष्ट कर चुके हैं। क्योंकि सी एफ सी यौगिक इस्तेमाल में आने के बाद वायुमंडल में पराबैंगनी किरणों के संपर्क में आते हैं।

ओजोन विघटन का संकट Summary in Hindi

ओजोन विघटन संकट पर विचार करने के लिए अनेक देशों की पहली बैठक 1985 में विएना में हुई। बाद में सितंबर 1987 में कनाडा के मांट्रियल शहर में बैठक हुई, जिसमें दुनिया के 48 देशों ने भाग लिया था। इसके तहत यह प्रावधान रखा गया कि 1995 तक सभी देश सी एफ सी की खपत में 50 प्रतिशत की कटौती तथा 1997 तक 85 प्रतिशत की कटौती करेंगे। सन 2010 तक सभी देश सी एफ सी का इस्तेमाल एकदम बंद कर देंगे। इस दौरान विकसित देश नए प्रशीतकों की खोज में विकासशील देशों की आर्थिक मदद करेंगे।

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