“परोपकार” एक महत्वपूर्ण भारतीय धार्मिक और मानवीय मूल्यों का महत्वपूर्ण पहलु है, जिसमें अन्यों के लिए सेवा करने और उनकी मदद करने का संदेश होता है। यह सद्गुण का प्रतीक माना जाता है और समाज में सामाजिक और मानवीय सुधार को प्रोत्साहित करता है। “परोपकार” का अर्थ होता है कि हमें अपने समर्थन, सेवा, और प्रेम के माध्यम से दूसरों की कठिनाइयों में सहायता करना चाहिए। Read More Class 7 Hindi Summaries.
परोपकार Summary In Hindi
परोपकार पाठ का सार
‘परोपकार’ नामक पाठ में लेखक ने परोपकार की महिमा का गुणगान किया है। लेखक अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राह्म लिंकन के जीवन की एक घटना का वर्णन करता है कि एक दिन वे सीनेट जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें एक सुअर कीचड़ में फंसा हुआ दिखाई दिया, जो कोशिश करने पर भी कीचड़ से निकल नहीं पा रहा था। वे पहने हुए कपड़ों समेत कीचड़ में कूद कर सुअर को कीचड़ से बाहर निकाल लाए और कीचड़ से सने हुए सीनेट में जा पहुँचे। वहाँ सभी सदस्य उन्हें इस दशा में देखकर हैरान रह गए परन्तु उनसे सारी घटना सुनकर उनकी दयालुता की प्रशंसा करने लगे।
इस घटना से पता चलता है कि मन परोपकार से कोमल होकर दूसरों की हीन दशा देख कर पिघलता है तथा बिना किसी स्वार्थ के उसकी सहायता करता है। इस प्रकार मन की सरलता, कोमलता, करुणा, सहानुभूति, त्याग और बलिदान की भावना से परोपकार होता है। इसलिए परोपकार सबसे बड़ा धर्म माना जाता है। महर्षि वेदव्यास ने परोपकार को सबसे बड़ा पुण्य और दूसरों को कष्ट पहुँचाने अथवा परपीड़ा को सबसे बड़ा पाप माना प्रकृति भी सदा परोपकार करती है। सूर्य का प्रकाश, वर्षा का जल, शीतल वायु, वृक्ष पथिकों छाया देने के साथ पत्थर मारने वाले को फल देते हैं।
सूर्य, अग्नि, वायु, वरुण आदि इसी परोपकार की भावना के कारण पूज्य माने जाते हैं। धरती माता के समान हमारा पोषण करती है। कवि रहीम ने भी कहा है कि जैसे पेड़ फल नहीं खाते, सरोवर जल नहीं पीते, वैसे ही परोपकार के लिए अच्छे लोग धन जोड़ते हैं। परोपकारी व्यक्ति सदा उदारता पूर्वक सबका भला करता है। महर्षि दधीचि ने देवताओं को असुरों का नाश करने के लिए अपना शरीर दे दिया था और महाराजा शिवि ने कबूतरों की प्राण रक्षा के लिए अपने शरीर का माँस दे दिया था ! कर्ण महादानी थे जिन्होंने अपने कवच-कुण्डल तक दान में दे दिए थे।
परोपकार करने में धन का लालच बाधा डालता है। इसलिए धन का लालच नहीं करना चाहिए तथा दीनों, अनाथों, अपंगों, रोगियों की सदा सहायता करनी चाहिए। परोपकार केवल धन से ही नहीं मन, वाणी और कर्म द्वारा भी किया जा सकता है। दुखी को दिलासा देना, अपंगों को सहारा देना, अनपढ़ों को पढ़ाना आदि भी परोपकार है। इसलिए तुलसीदास जी कहते हैं कि संसार में परोपकार से बढ़ कर कोई धर्म नहीं है और परपीड़ा अथवा दूसरों को कष्ट देने के समान कोई पाप नहीं है।
Conclusion:
“परोपकार” का संग्रहण हमें यह सिखाता है कि सहानुभूति, सेवा, और दया का योगदान हमारे समाज में सद्गुण के रूप में महत्वपूर्ण है। यह हमें यह भी दिखाता है कि सच्चा सुख और संतोष दूसरों की मदद करने में होता है, और यह हमारे अपने जीवन को भी आर्थिक और मानवीय धार्मिकता से संजीवनी बना सकता है। “परोपकार” हमारे समाज के सुधार और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है और हमें इसे अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाना चाहिए।