“संगीत का जादू” एक ऐसा कला है जो आवाज़, ध्वनि, और ताल के माध्यम से भावनाओं और भावनाओं को व्यक्त करने का साहस दिलाता है। यह एक सांगीकी अनुभव है जो हमारे जीवन को सुंदरता और सांवादिकता से भर देता है। Read More Class 6 Hindi Summaries.
संगीत का जादू Summary In Hindi
संगीत का जादू पाठ का सार
मुग़ल बादशाह अकबर के राज्य में एक बहुत अच्छा संगीत शास्त्र को जानने वाला साधु रहता था। अकबर के मन में उसका संगीत सुनने की इच्छा जागी। उसने तीन नौकरों को साधु को बुलाने के लिए भेजा। उन्होंने साधु को राजा के पास चलने को कहा। साधु ने उत्तर दिया कि जिस संगीत को राजा सुनना चाहता है, वह संगीत कभी-कभी संयोग से बन पड़ता है। इसलिए मैं नहीं जा सकता। जब नौकरों ने जाकर राजा को साधु का निर्णय सुनाया तो वह गुस्से से भर गया। इस पर राजा के एक मन्त्री ने कहा-महाराज ! आप क्रोध न करें। आप साधु को बुरा-भला न कहें। क्योंकि वह आपकी सम्पत्ति का याचक नहीं है। आप उसके संगीत के याचक हैं। यदि आपने संगीत सुनना है तो आप को ही साधु के पास जाना होगा। वैसे आपके मनोरंजन के लिए दरबारी गायक तानसेन की बुलवा भेजा है।
थोड़ी ही देर में तानसेन वहाँ आ गया। राजा ने तानसेन को साधु की बात बताई तो उसने कहा-“वह साधु तो सचमुच स्वर्ग का गन्धर्व है।” जैसे ही उसकी उंगलियाँ वीणा पर फिरती हैं, अमृत बरसने लगता है। वह हम जैसा भाड़े का टटू नहीं है।” इस पर राजा ने साधु के पास जाने का निर्णय कर लिया। राजा अकबर ने मन्त्री से कहा-मेरे और तानसेन के लिए दो घोड़े मँगवाए जाएं। तानसेन ने बीच में ही कहा-महाराज यदि आपने सच्चा संगीत सुनना है तो आपको यह बात भुला देनी होगी कि आप राजा हैं। आपको साधारण कपड़े पहन कर और पैदल ही नंगे पाँव वहाँ जाना होगा।
अकबर साधारण वेश में तानसेन के साथ उस संगीत का ज्ञान रखने वाले साधु के पास चल पड़ा। साधु की झोंपड़ी तक पहुँचते रात हो गई। कार्तिकं का महीना था। तानसेन ने अकबर को झोंपड़ी के बाहर बने चबूतरे पर बिठा दिया। स्वयं भी पास बैठ कर वीणा के तार मिलाने लगा और जान-बूझ कर गलत ढंग से राग अलापना शुरू कर दिया। साधु झोंपड़ी से बाहर निकला। राग की सही तरकीब बताने लगा। वी., वादक ने साधु से निवेदन किया कि महाराज ! इस राग को आप ‘ही गाएँ तो बडी कृपा होगी। साधु गाने लगा। गायक और श्रोता आनन्द में डूब गए। रात बीत गई। सूर्य निकल आया। साधु ने वीणा लौटाते हुए कहा-‘सचमुच आज तो आनन्द आ गया।’ इस पर अकबर ने कहा- ‘मैं आठ साल से राजा हूँ, मुझे एक घण्टा भर भी ऐसा आनन्द नहीं मिला, जो आज आठ घण्टे तक मिला है।”
साधु चकित-सा हुआ तो तानसेन ने सारी कहानी साधु को सुना दी। इस पर साधु ने राजा से कहा-“आप को संगीत पसंद आ गया है। कहिए आप मुझे क्या दे रहे हैं ?” इस पर अकबर ने उत्तर दिया-इन आनन्द के क्षणों की तुलना में मेरा सारा राज्य भी तुच्छ है। राजा की आँखें भर आईं । लुढ़क कर दो आँसू के मोती साधु के पैरों पर जा पड़े। यह साधु गुरु हरिदास था। इन्हीं से तानसेन ने गायन विद्या सीखी थी।
Conclusion:
“संगीत का जादू” हमारे जीवन में रमणीयता और आनंद लाता है, और यह हमारी भावनाओं को साझा करने का अद्वितीय माध्यम होता है। यह सांगीकी कला हमारी सांवादिकता को स्वरमंडल के माध्यम से सुधारती है और समृद्धि दिलाती है।