“Savaiye” refers to a collection of religious and philosophical verses composed by Guru Gobind Singh Ji, the tenth Guru of Sikhism. These verses are part of the Dasam Granth, a religious text in Sikhism that includes compositions attributed to Guru Gobind Singh Ji. The term “Savaiye” is derived from the Punjabi word “sava,” which means “one and a quarter,” indicating the traditional length of each verse. Read More Class 11 Hindi Summaries.
सवैये Summary In Hindi
सवैये जीवन-परिचय
हिन्दी के मुसलमान कवियों में रसखान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने मुस्लिम धर्मावलंबी होने पर भी श्रीकृष्ण के सौन्दर्य पर मुग्ध होकर अपने हृदय की शुद्धता और विशालता का प्रत्यक्ष प्रमाण दिया है। रसखान का जन्म सन् 1558 के आस-पास दिल्ली के एक संपन्न पठान परिवार में हुआ था। इनका पठान बादशाहों के वंश से संबंध माना जाता है। इनके जन्म-समय, शिक्षा-दीक्षा, व्यवसाय एवं निधन के सम्बन्ध में प्रामाणिक रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। रसखान श्रीकृष्ण जी के अनन्य भक्त थे। श्रीकृष्ण जी की भक्ति इनका सर्वस्व था। ये मुसलमान थे और फ़ारसी के विद्वान थे फिर भी इनका हिन्दू संस्कृति के प्रति अत्यधिक अनुराग था। साधुओं के संगीत के कारण इन्होंने वेदों और शास्त्रों के सिद्धान्तों का अध्ययन किया। सन् 1616 के लगभग इनका स्वर्गवास हो गया।
इनकी रचनाओं को संपादकों ने अनेक रूपों में प्रस्तुत किया है। रसखान दोहावली, रसखान कवितावली, रसखानि ग्रंथावली, रसखान शतक, प्रेमवाटिका सुजान रसखान, रसखान पदावली, रत्नावली आदि इनके अनेक संकलन हैं। इनकी रचनाओं में कृष्ण की लीलाओं को बड़ी तन्मयता से प्रस्तुत किया गया है। इनमें प्रेम का मनोहारी चित्रण हुआ है।
सवैये का सारांश
रसखान हिन्दी के कृष्ण-भक्त कवियों में अपना अलग ही स्थान रखते हैं। प्रस्तुत सवैये ‘सुजान रसखान’ नामक रचना से लिए गए हैं। रसखान जी के अनुसार प्रत्येक मनुष्य के अपने-अपने आराध्य देव होते हैं परन्तु उनके आराध्य देव श्रीकृष्ण हैं जो उनके सभी मनोरथ पूरे करते हैं। मनुष्य को सबकी सुननी चाहिए परन्तु उसे वही करना चाहिए जिसमें उसका हित निहित हो। कवि के अनुसार श्रीकृष्ण की भक्ति हमें एकाग्र होकर करनी चाहिए तभी हम संसार रूपी सागर से पार हो सकेंगे। कवि अपनी भक्ति में वह सब करना चाहता है जिससे श्रीकृष्ण जी प्रसन्न होकर उन्हें अपनी शरण में ले लें। कवि वही रहना चाहता है जहां कण-कण में श्रीकृष्ण का वास है। वह श्रीकृष्ण की निकटता के लिए कुछ भी करने या बनने को तैयार हैं। कवि गोपियों के श्रीकृष्ण प्रेम और बांसुरी के प्रति सौतिया ईर्ष्या का वर्णन किया है। गोपियां श्रीकृष्ण के प्रेम में उनका रूप धारण करती हैं परन्तु उनकी प्रिय बांसुरी को अपने होठों पर धारण नहीं करना चाहती।