“Seb Aur Dev” translates to “Apple and God” in English. However, without additional context, it’s difficult to provide a precise summary description, as the meaning of this phrase could vary depending on its usage or the specific cultural or literary reference it’s associated with. Read More Class 11 Hindi Summaries.
सेब और देव Summary In Hindi
सेब और देव कहानी का सारांश
प्रोफैसर गजानंद पंडित दिल्ली के कॉलेज में इतिहास और पुरातत्व के अध्यापक हैं। वे कुल्लू-मनाली में मनोरंजन के साथ-साथ पुरातत्व की खोज में भी आए हैं। पहाड़ी प्रदेश में उन्होंने एक सुन्दर कन्या को झरने के पास खड़े देखा। उन्हें उस कन्या में सरस्वती का रूप दिखाई पड़ा। किन्तु इस कन्या के हाथ में वीणा के स्थान पर एक छोटी लकड़ी थी। प्रोफैसर साहब ने उस कन्या से बड़े ही कोमल स्वर में पूछा कि तुम कहाँ रहती हो ? लड़की ने उसका कोई उत्तर न दिया और हैरान होकर जल्दी-जल्दी पहाड़ी पर उतरने लगी।
रास्ता चलते-चलते उन्हें सेबों के पेड़ नज़र आए जिनकी रखवाली करने वाला वहाँ कोई नहीं था। यह देख प्रोफैसर साहब के मन में पहाड़ी सभ्यता के प्रति आदर भाव और भी बढ़ गया। वे थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि उन्होंने एक लड़के को सेब चुराते हुए पकड़ा।
प्रोफैसर साहब ने उसके द्वारा चुराए सेब घास में फेंक दिए और उसे डाँटते हुए ईमान न बिगाड़ने की बात कही। प्रोफैसर साहब कुछ आगे बढ़े तो उन्हें प्राचीन मनु जी का मन्दिर याद आया। उस मन्दिर के दर्शन कर उन्होंने पुजारी से पूछा कि क्या कोई ऐसा मन्दिर आस-पास है ? पुजारी ने एक ऐसे मन्दिर का पता बताया जो बिल्कुल निर्जन स्थान पर उपेक्षित अवस्था में पड़ा था।
प्रोफैसर साहब ने उस मन्दिर में पहुँचकर लगभग 500 वर्ष पुरानी उन मूर्तियों को देखा। उन मूर्तियों को देख प्रोफैसर साहब का मन बेईमान होने लगा। आस-पास नज़र दौड़ाई तो वहाँ कोई नज़र न आया। उन्होंने एक मूर्ति उठाई और उसे अपने ओवरकोट में छिपाकर गाँव की ओर लौट पड़े। लौटते समय उन्होंने फिर एक लड़के को सेब चुराते हुए देखा। उन्होंने उसे पकड़कर डाँटा और उसकी छाती में धक्का दिया। इस पर वह लड़का चीख मारकर रो उठा।
प्रोफैसर साहब को लगा कि उसने सेब अपने कोट की जेब में छिपाए थे जो धक्का लगने पर उसे चुभ गए थे। एकाएक प्रोफैसर साहब सोचने लगे कि इसने तो सेब चुराया है, वे तो देवस्थान ही लूट लाए हैं। घर पहुँचते–पहुँचते उनकी आत्मा ग्लानि से भर उठी थी। अतः उन्होंने अंधेरा होने से पहले ही उस मन्दिर में पहुँचकर चुराई हुई मूर्ति को यथास्थान रख दिया। मूर्ति को अपने स्थान पर रखते समय उनके मन में शान्ति उमड़ आई और दुनिया उन्हें अच्छी लगने लगी।