वृन्द के दोहे हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा है। वृन्द 17वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध हिंदी कवि थे, जिन्हें उनकी नीति-कविता के लिए जाना जाता है। उनके दोहे सरल और सुगम भाषा में लिखे गए हैं, और उनमें जीवन के विभिन्न पहलुओं पर नीतिपरक उपदेश दिए गए हैं।
वृन्द के दोहों में जीवन के विभिन्न पहलुओं पर नीतिपरक उपदेश दिए गए हैं। इन दोहों में, वृन्द हमें जीवन में सफल होने के लिए मार्गदर्शन देते हैं। वे हमें अच्छे कर्म करने, दूसरों की मदद करने, और अपने जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
वृंद के दोहे Summary in Hindi
वृंद के दोहे कवि का परिचय
वृंद के दोहे कवि का नाम : वृंद। पूरा नाम : वृंदावनदास। (जन्म 1643; निधन 1723.)
वृंद के दोहे प्रमुख कृतियाँ : वृंद सतसई, समेत शिखर छंद, भाव पंचाशिका, पवन पचीसी, हितोपदेश संधि, यमक सतसई, वचनिका, सत्यस्वरूप, बारहमासा आदि।
वृंद के दोहे विशेषता : रीतिकालीन परंपरा के अंतर्गत आपका नाम आदर के साथ लिया जाता है। आपकी रचनाएँ रीतिबद्ध परंपरा में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। आपने काव्य के विविध प्रकारों में रचनाएँ रची हैं। आपके नीतिपरक दोहे जनसाधारण में बहुत प्रसिद्ध हैं। विधा दोहा छंद। रीतिकालीन काव्य परंपरा में दोहा छंद का विशेष स्थान रहा है। दोहा अर्ध सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण के अंत में लघुवर्ण आता है। इसके चार चरण होते हैं, प्रथम और तृतीय चरण में 13 – 13 मात्राएँ होती हैं तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण में 11 – 11 मात्राएँ होती हैं।
वृंद के दोहे विषय प्रवेश : कवि वृंद अपने दोहों के माध्यम से अपनी सरल-सुबोध भाषा में अत्यंत उपयोगी एवं व्यावहारिक बातों से परिचित करते हैं। प्रस्तुत दोहों में उन्होंने विद्या की विशेषता, आँखों की पहचानने की शक्ति, अपनी क्षमता के अनुरूप काम करने, व्यापार करने के सही ढंग, गुण के अनुसार आदर पाने, नीच को न छेड़ने तथा पालने में ही बच्चे के लक्षण दिख जाने आदि नीतिपरक बातें बताई हैं।
वृंद के दोहे दोहों का सरल अर्थ
- कवि वृंद कहते हैं कि माँ सरस्वती के ज्ञान की बात बहुत अनूठी और अपूर्व है। इस ज्ञान के भंडार को जितना खर्च किया जाए अर्थात जितना बाँटा जाए उतना ही बढ़ता है। यदि ज्ञान को बाँटा न जाए, तो इसमें कमी आती जाती है। कवि वृंद कहते हैं कि आँखें हित और अहित की सारी बातें उसी तरह बता देती हैं, जैसे निर्मल आईने से अच्छी और बुरी दोनों तरह की बातों का पता चल जाता है।
- कवि कहते हैं कि हमारी जितनी क्षमता हो, उसी के अनुसार हमें अपने कार्य का फैलाव करना चाहिए। कवि उदाहरण देते हुए कहते हैं कि हमारी चादर की लंबाई जितनी हो, हमें उतने ही पाँव फैलाने चाहिए। यदि हम ऐसा नहीं करते, तो हम अपना कार्य पूरा नहीं कर सकते।
- कवि कहते हैं कि व्यापार यानी लेन-देन में हमें छल-कपट का सहारा नहीं लेना चाहिए। यदि हम एक बार छल-कपट से काम लेते हैं, तो दूसरी बार हम व्यापारी अथवा ग्राहक से लेन-देन नहीं कर सकते। कवि काठ की हाँडी का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार काठ की हाँडी एक बार ही आग पर चढ़ाई जा सकती है, दूसरी बार वह काम में नहीं आ सकती, उसी प्रकार छल-कपट से व्यापार में एक ही बार किसी को धोखा दिया जा सकता है, दूसरी बार यह तरीका काम में नहीं लाया जा सकता।
- कवि कहते हैं कि बिना गुण के किसी व्यक्ति को उच्च स्थान पर बैठने मात्र से बड़प्पन नहीं मिलता। वे कहते हैं कि जिस प्रकार मंदिर के ऊँचे शिखर पर बैठने मात्र से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता, उसी प्रकार गुणों से रहित कोई व्यक्ति बड़प्पन का अधिकारी नहीं हो सकता।
- कवि कहते हैं कि मनुष्य को किसी के सहारे की आशा में खुद प्रयत्न करना छोड़ नहीं देना चाहिए। क्या बादल घिर जाने पर उससे मिलने वाले विपुल जल की उम्मीद में कोई पानी रखने का अपना जलपात्र यानी गगरी फोड़कर फेंक देता है?
- कवि कहते हैं कि नीच अर्थात बुरे आदमी को कभी कुछ (बुरा भला) कहकर छेड़ना नहीं चाहिए। क्योंकि जैसे कीचड़ में पत्थर फेंकने पर कीचड़ की गंदगी अपने ही ऊपर आती है, उसी तरह बुरे आदमी को कही गई बातों के बदले उसके द्वारा कहे गए अपशब्द हमें सुनने पड़ते हैं।
- जिस व्यक्ति को उच्च पद प्राप्त होता है, उसका भी एक-नएक दिन पतन होना निश्चित है। जिस प्रकार मध्याह्न का सूर्य उस समय बहुत तपता है, पर उसे भी एक समय अस्त हो जाना पड़ता है।
- जिस व्यक्ति को जिस चीज के गुणों के बारे में जानकारी होती है वह उसे ही सम्मान देता है। जैसे कोयल आम का स्वाद लेती है और कौआ निबौरियाँ ही खाता है।
- कवि कहते हैं कि अविवेक के साथ किया गया कार्य स्वयं के लिए हानिकारक सिद्ध होता है। ठीक उसी तरह जैसे कोई मूर्ख अपनी अविवेकता से कोई कार्य कर अपने पाँव पर अपने हाथ से कुल्हाड़ी मार लेता है।
- कवि कहते हैं कि पालने में बच्चे के शरीर के लक्षण देखकर उसके अच्छे-बुरे होने का पता चल जाता है। जैसे किसी पौधे के चिकने और स्वस्थ पत्ते देखकर उसके होनहार होने के लक्षण दिखाई देते हैं।
Conclusion
वृन्द के दोहे हिंदी साहित्य की एक अमूल्य धरोहर हैं। ये दोहे हमें जीवन में सफल होने के लिए मार्गदर्शन देते हैं। वृन्द की नीतिपरक शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी कि उनके समय में थीं।