“Wah Todti Patthar” translates to “Bravo, Breaking Stone” in English. This phrase is often used to applaud or praise someone’s exceptional efforts or achievements, particularly when they have overcome significant obstacles or challenges. Read More Class 11 Hindi Summaries.
वह तोड़ती पत्थर Summary In Hindi
वह तोड़ती पत्थर Summary
जीवन परिचय
आधुनिक हिन्दी काव्य-विकास की चर्चा में ‘निराला’ को महाप्राण, काव्य-पुरुष, महाकवि इत्यादि विशेषणों से सम्बोधित किया जाता है। इनका जन्म सन् 1896 में बंगाल प्रान्त के मेदिनीपुर जिले में महिषादल नामक स्थान पर हुआ था। इसी स्थान पर इन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की। इन्होंने अनेक भाषाओं का अध्ययन भी किया। वे स्वामी रामकृष्ण परमहंस एवं विवेकानन्द की विचारधारा से विशेष प्रभावित थे। उन्मुक्तता अक्खड़ता के साथ निर्बल, असहाय एवं दीन दुःखियों की सहायता इनके व्यक्तित्व की विलक्षणता है। सन् 1961 में इनका निधन हो गया था।
निराला जी की काव्य-चेतना को अनेक रूपों में देखा जा सकता है। इनकी रचनाओं को काव्य-विकास की दृष्टि से क्रमशः तीन चरणों में विभाजित किया जा सकता है। प्रथम चरण 1921-36, द्वितीय चरण 1937-46, तृतीय चरण 1950-61। परिमल, अनामिका, गीतिका, अपरा, नए पत्ते, तुलसीदास इत्यादि इनकी उल्लेखनीय काव्य रचनाएँ हैं। निराला ही एक ऐसे कवि हैं जिन्होंने कठोर एवं कोमल भावों को आत्मसात् कर काव्य में रुपायित किया है। इनकी कविताओं में छायावादी कोमलता, सुन्दरता एवं कल्पना की बहुलता है। रहस्यवादी दार्शनिकता के साथ प्रगतिवादी आक्रोश तथा अवसाद भी है।
वह तोड़ती पत्थर का सार
‘तोड़ती पत्थर’ कविता के कवि ‘सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला जी’ हैं’। इस कविता के माध्यम से कवि ने मजदूर वर्ग को आर्थिक विषमता का वर्णन किया है। एक मज़दूर महिला भीष्ण गर्मी में सड़क किनारे पत्थर तोड़ रही है। उसके कपड़े भी फटे हुए हैं, जिस सड़क पर बैठी वह पत्थर तोड़ रही है, वहाँ उसके सामने बहुत बड़ा महल है, यह कैसी विडंबना है ? बड़े-बड़े महल खड़े करने वाले हाथ अपनी आजीविका के लिए भीषण गर्मी में पत्थर तोड़ रहे हैं। यह आर्थिक विषमता के कारण है। शोषित वर्ग को जीवन के न्यूनतम साधन जुटाने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ रहा है।’
जागो फिर एक बार Summary
जागो फिर एक बार कविता का सार
‘जागो फिर एक बार’ कविता के कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी हैं। कवि ने कविता में गुरु गोबिन्द सिंह की वीरता का उदाहरण देकर मनुष्य की सोई हुई पौरुष शक्ति को जागृत करने का प्रयास किया है। गुरु गोबिन्द सिंह जी अपने शत्रुओं के लिए अकेले ही सवा लाख के बराबर थे। कवि ऐसी ही शक्ति आज के युवक में जागृत करना चाहता है जिससे वह आततायियों से लड़ सके। अपने देश की रक्षा कर सके। युवकों को गुरु गोबिन्द सिंह की तरह सभी प्रकार क्रियाओं में निपुण होना चाहिए। उनमें संयम का समावेश होना चाहिए। हममें शेरनी की तरह हिम्मत होनी चाहिए। जब हमारे देश की प्रभुसत्ता पर खतरा हो तो हम उसकी रक्षा के लिए डटकर सामना करना चाहिए। हमारे पूर्वजों का यश चारों दिशाओं में फैला हुआ है। हमें सदैव याद रखना है कि हम किन लोगों की सन्तान हैं और पूरे संसार को अपनी शक्ति का परिचय देना है।