ईदगाह कहानी Summary In Hindi

ईदगाह कहानी Summary In Hindi

Idgah” by Munshi Premchand remains a timeless and cherished piece of Indian literature, celebrated for its poignant depiction of the human spirit and the significance of selfless giving. Read More Class 8 Hindi Summaries.

ईदगाह कहानी Summary In Hindi

ईदगाह कहानी का सारांश

रमजान के पूरे तीस रोज़ के बाद आज ईद का दिन आया था। सारे गाँव में हलचल मची हुई थी। सब ईदगाह जाने की तैयारी कर रहे थे। लड़के सबसे ज्यादा खुश थे। वे बारबार अपने पैसे गिन रहे थे। हामिद उन सबसे ज्यादा प्रसन्न था। उसके पास केवल तीन पैसे थे। हामिद के माता-पिता मर चुके थे। अब वह अपनी बूढ़ी दादी अमीना के साथ रहता था और उसकी गोद में सोता था। गाँव में बच्चे अपने-अपने बाप के साथ मेले को जाने की तैयारी कर रहे थे। हामिद की दादी उसे अकेले मेले में भेजना नहीं चाहती थी।

हामिद के जिद्द करने पर वह उसे भेजने के लिए मान गई थी। गाँव से टोलियाँ मेले के लिए चली तो हामिद भी साथ चल पड़ा। सब बच्चे कभी दौड़ कर आगे निकल जाते और कभी पेड़ के नीचे बैठ कर पीछे वालों का इन्तजार करने लगते। शहर को जाने वाला रास्ता शुरू हो गया था। ईदगाह जाने वालों की टोलियाँ नज़र आने लगी थीं। ग्रामीणों का यह दल अपनी ग़रीबी से बेखबर धीरे-धीरे चल रहा था। बच्चों को नगर की सभी चीजें बड़ी अनोखी लग रही थीं।

इमली के घने वृक्षों की छाया में बनी हुई ईदगाह नज़र आने लगी थी। हजारों की संख्या में लोग एक के पीछे एक पंक्ति बना कर खड़े थे। ग्रामीणों का दल भी पिछली पंक्ति में जाकर खड़ा हो गया था। नमाज़ शुरू हुई। सभी सिर एक साथ सिजदे के लिए झुकते और फिर सब के सब एक साथ खड़े हो जाते। ऐसा कई बार हुआ।

नमाज़ खत्म होने पर सभी लोग एक-दूसरे के गले मिले। फिर सभी बच्चे मिठाई और खिलौनों की दुकानों पर टूट पड़े। बहुत-से लोग हिंडौला झूल रहे थे। हामिद के साथी महमूद, मोहसिन, नूरे और सम्मी घोड़ों और ऊँटों पर बैठे क्योंकि उनके पास पैसे थे। हामिद उन्हें दूर खड़ा देखता रहा। वह अपने तीन पैसे फ़िजूल में खर्च करना नहीं चाहता था। फिर महमूद, मोहसिन और नूरे ने अपनी पसन्द के खिलौने खरीदे। वे सब दो-दो पैसे के खिलौने थे। हामिद यह नहीं चाहता कि अपने पैसे खिलौनों पर खर्च करे। उसने अपनी दादी के लिए तीन पैसे में एक चिमटा खरीद लिया।

हामिद ने जब चिमटा ले जाकर अपनी दादी को दिखाया तो वह नाराज़ हुई। किन्तु जब हामिद ने बताया कि तवे से उसकी उँगलियाँ जल जाती थीं इसलिए उसने चिमटा खरीदा था तब यह सुनकर बूढ़ी दादी बच्चों की तरह रोने लगी और हामिद उसे चुप कराने और उसके आँसू पोंछने लगा था।

कोई नहीं बेगाना कविता Summary In Hindi

कोई नहीं बेगाना कविता Summary In Hindi

“Koi nahin begana” is a Hindi phrase that translates to “No one is a stranger” or “No one is an outsider” in English. It conveys the idea of inclusivity and emphasizes the importance of welcoming and accepting others, regardless of their background, ethnicity, or identity. This phrase encourages a sense of unity, compassion, and community, highlighting that everyone should be treated with warmth and hospitality.

कोई नहीं बेगाना कविता Summary

कोई नहीं बेगाना कविता का सारांश

डॉ० योगेन्द्र बख्शी के द्वारा रचित कविता ‘कोई नहीं बेगाना’ मानवतावादी कविता है। इन्सान वही अच्छा होता है जो किसी में भी भेदभाव न करे। आनन्दपुर साहब के बाहर गुरु गोबिन्द सिंह जी की सेना की मुसलमानों से भयंकर लड़ाई हो रही थी। गर्मियों के दिन थे। सूर्य की गर्मी से सारे मैदान दहक-से रहे थे। युद्ध में हर वीर अपनी जान की परवाह किए बिना लड़ रहा था। तोपें गरज रहीं थीं। दोनों सेनाओं के सैनिक पूरे जोश में भरे हुए थे।

सिख सैनिक ‘सत श्री अकाल’ का जयघोष कर रहे थे तो मुसलमान सैनिक ‘अल्ला हू अकबर’ के नारे लगा रहे थे। दोनों तरफ के सैनिक घायल हो-होकर धरती पर गिर रहे थे। वे तड़प रहे थे और प्यास के कारण पानी-पानी चिल्ला रहे थे। गुरुघर का एक सेवादार भाई कन्हैया कन्धे पर एक मशक लिए हुए सिखों और मुसलमानों को पानी पिला रहा था। उसे उन सभी घायल सैनिकों में गुरु का ही रूप दिखाई दे रहा था। वह अपने और पराये का कोई भेद नहीं कर रहा था। जब शाम हुई तो सिख सैनिकों ने गुरु जी से शिकायत की कि जिन मुसलमान सैनिकों को हम काट कर नीचे गिराते हैं उन्हें ही भाई कन्हैया पानी पिलाता है।

उनकी जान बचा कर वह दुश्मन का काम कर रहा था। गुरु जी ने हँस कर भाई कन्हैया से इस शिकायत के बारे में पूछा। उसने हाथ जोड़ कर गुरु जी के पाँव छू कर अपना सिर झुकाते हुए कहा कि वह सभी को एक समान पानी पिलाता था क्योंकि उसे उन सभी में आप ही दिखाई दे रहे थे। गुरुबाणी के अनुसार तो उसे हर प्राणी में भगवान् ही दिखता था। कोई भी तो पराया नहीं। इस संसार के हर प्राणी में परमात्मा का ही तो नूर हैचाहे वह अच्छा है या बुरा। दशम गुरु ने प्रसन्न होकर कहा कि अरे सच्चे सिख, ईश्वर तुम पर कृपा करे। तुम मुझ से मरहम भी लो और इसे सभी घायलों के घावों पर लगाओ। तुम सभी से एक-सा व्यवहार करो।

प्रकृति का अभिशाप Summary In Hindi

प्रकृति का अभिशाप Summary In Hindi

Prakrti Ka Abhishap” specific interpretation of “The Curse of Nature” can vary depending on the context in which it is used. In general, it conveys the idea that while nature provides many benefits and resources, it can also present challenges and threats that require careful management, preparedness, and responsible actions to mitigate their effects. Read More Class 9 Hindi Summaries.

प्रकृति का अभिशाप Summary In Hindi

प्रकृति का अभिशाप जीवन-परिचय

श्रीपाद विष्णु कानाडे एकांकी-साहित्य के श्रेष्ठ लेखक माने जाते हैं। उनका साहित्य का विकास करने में महत्त्वपूर्ण स्थान है। ये एक आधुनिक साहित्यकार हैं। एकांकी साहित्य के क्षेत्र में इनकी विशेष पहचान है।

‘प्रकृति का अभिशाप’ इनकी अत्यंत प्रभावशाली एवं लोकप्रिय एकांकी है। इसके साथ-साथ इन्होंने अनूठा साहित्य रचा है। कानाडे का एकांकी-साहित्य में विशेष स्थान है। इनकी एकांकियों में एकांकी के प्रमुख तत्वों कथानक, पात्र तथा चरित्र-चित्रण, संकलनत्रय वातावरण, संवाद, उद्देश्य एवं अभिनेयशीलता का सफल निर्वाह हुआ

प्रस्तुत पाठ में लेखक ने सूर्यदेव, वनदेवी, जलदेवी, रश्मिदेवी, पवनदेवी, बुद्धिदेवी एवं प्रदूषण पात्रों के द्वारा मानव को वातावरण के प्रति जागृत रहने की प्रेरणा दी है। मानव को प्राकृतिक साधनों के प्रयोग में सावधानी रखने का संदेश दिया है अन्यथा इसके घातक परिणामों से मनुष्य का विनाश निश्चित है।

प्रकृति का अभिशाप एकांकी का सार

‘प्रकृति का अभिशाप’ नामक एकांकी श्रीपाद विष्णु कानाडे द्वारा लिखित है। इसमें लेखक ने प्रकृति के अभिशाप का वर्णन किया है। इसमें लेखक ने सूर्यदेव, रश्मिदेवी, वनदेवी, जलदेवी, पवनदेवी, बुद्धिदेवी तथा प्रदूषण (दैत्य) पात्रों के माध्यम से मानव को सावधान किया है कि यदि मनुष्य प्राकृतिक साधनों के प्रयोग में सावधानी नहीं रखेगा तो इसके घातक परिणामों से मनुष्य का विनाश भी निश्चित है। मंच पर एक विशाल सुनहरे सिंहासन पर सूर्यदेव विराजमान हैं।

रश्मिदेवी सिंहासन के पीछे खड़ी है। सूर्यदेव चिंतित मुद्रा सौर जगत् के विशाल कुटुंब में पृथ्वी ग्रह के प्रति चिंता करता है। वह कहता है कि उसने अपनी पुत्री पृथ्वी को अधिक योग्य बनाना है। इसकी गोद में अनेक जीव-जंतु पेड़-पौधे पनप सकते हैं। इतना ही नहीं मानव भी पृथ्वी पर ही रहता है। यह अपने मस्तिष्क के बल पर पृथ्वी का स्वामी और अनोखा है। रश्मिदेवी सूर्य को कोई चिंता न करने का आग्रह करती है। उसे सौर-जगत् में पृथ्वी एक नंदनवन जैसी लगती है। वह सूर्य को बताती है वह पृथ्वी का भ्रमण करके आई है। उसका हाल अच्छा है। मानव ने बहुत प्रगति कर ली है। उसने बड़े-बड़े नगर बसा लिए हैं। वह उन्नति के शिखर पर पहुँच गया है। तभी पवनदेव का प्रवेश हुआ। उसने बताया कि पृथ्वी पर मानव ने उन्नति नहीं की है, बल्कि वह तो पतन के गड्ढे में गिरने वाला है।

जलदेवी आकर कहती है कि ऐसी उन्नति का कोई लाभ नहीं है जिससे उसे अशुद्ध जल पीकर बीमारियों का शिकार होना पड़ रहा है। वनदेवी प्रवेश करती है। वह बताती है कि असाधारण प्रगति के कारण मानव के समक्ष विषैला भोजन खाकर आत्मघात करने के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा। सूर्यदेव सबके चेहरे को देखता है।

पवनदेव उनसे हाथ जोड़ कर क्षमा मांगते हैं। पवनदेव उनको नमन करता है। उसके बाद जलदेवी, वनदेवी सभी उनको प्रणाम करते हैं। सूर्य उनसे अचानक आने का कारण पूछते हैं। पवनदेव, जलदेवी, आदि सभी सूर्यदेव को बताते हैं कि पृथ्वी संकट में हैं। वनदेवी ने बताया कि प्रदूषण रूपी महादैत्य हम लोगों के पीछे लगा हुआ है। सूर्यदेव सभी से इस दैत्य के बारे में पूछता है। पवनदेव उन्हें बताते हैं कि यह ऐसा दैत्य है जो दिखाई नहीं देता परंतु धीरे-धीरे पृथ्वी के वातावरण को ज़हरीला बना रहा है। वनदेवी ने बताया कि इस राक्षस का जन्म औद्योगिक क्रांति से हुआ है। पवनदेव ने बताया कि उसने वायुमंडल के रूप में पृथ्वी को ढका हुआ है। सूर्यदेव कहता है वायुमंडल के कारण ही पृथ्वी के प्राणी जीवित रह पाते हैं। वायुमंडल ही पृथ्वी को अंतरिक्ष की उल्काओं से बचाता है।

अन्यथा पृथ्वी भी नष्ट हो जाती। सूर्यदेव कहता है कि शुद्ध वायु देने के लिए ही उसने पृथ्वी को वायु के अथाह समुद्र में डुबो दिया है। इस सागर का – भाग ऑक्सीजन है। मानव इसका प्रत्यक्ष उपयोग करता है। पवनदेव कहता है पृथ्वी पर प्रत्येक जीव ऑक्सीजन का उपयोग करता है और कार्बन-डाइऑक्साइड छोड़ता है। किंतु कारखानों, इंजनों से कार्बन-डाइऑक्साइड अधिक उत्पन्न हो रही है। सूर्यदेव बताता है कि उसने कार्बन-डाइऑक्साइड से पुनः ऑक्सीजन प्राप्त करने के लिए ही वनस्पति पृथ्वी को प्रदान की है।

वनदेवी कहती है कि सूर्य में तेज़ प्रकाश से ही उसकी हरी पत्तियां कार्बन-डाइऑक्साइड को प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया से कार्बन तथा ऑक्सीजन में विश्लेषित करती है। मैं स्वयं के पोषण के लिए कार्बन रखकर ऑक्सीजन को पुनः वायु में छोड़ देती हूँ। किंतु आज कार्बन-डाइऑक्साइड बढ़ती जा रही है। मानव की तरक्की तथा उद्योगों के कारण हरे-भरे जंगल नष्ट हो रहे हैं। विवेकहीन मनुष्य जंगल काट रहा है। शहरीकरण के लिए जंगल काटे जा रहे हैं। इसका मानव जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

सूर्यदेव वनदेवी से उन नुकसानों के बारे में पूछते हैं। वनदेवी उन्हें बताती है कि वनों की कमी से वर्षा नहीं होती। जिससे वनस्पतियाँ नहीं उगती। वनस्पतियों के अभाव में वायु शद्ध नहीं रहती। पवनदेव अपने अशुद्ध होने का नमूना औद्योगिक प्रगति बताते हैं। रश्मिदेवी प्रगति को प्रदूषण का कारण सुनकर चकित होती है। पवनदेव उन्हें बताता है कि उद्योगों के कारण अनेक गैसें आती हैं, जिनका जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

गंधकयुक्त औषधियों से आंतों की बीमारियां बढ़ती हैं। तपेदिक जैसे रोग बढ़ते हैं। वनों का भी विकास रुक जाता है। पवनदेव अपने दूषित होने के कारण बताते हैं कि कारखानों से असंख्य सूक्ष्मकण उसे दूषित करते हैं। पेट्रोल को सक्षम बनाने के लिए प्रयुक्त सीसा वायु को विषैला बना देता है। किंतु प्रदूषण रूपी राक्षस के हाथ अभी गाँवों तक नहीं पहुँचे हैं, इसलिए लोगों को गांवों में रहना अच्छा लगता है। सीसा मिश्रित पेट्रोल के कारण ओजोन परत पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। जो सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों के बुरे प्रभाव से पृथ्वी के जीवों की रक्षा करती है। पेट्रोल से चलने वाले जैट जैसे बड़े हवाई जहाज़ इस परत को नष्ट कर रहे हैं।

वनदेवी आँसू पोंछते हुए सूर्यदेव को बताती है कि प्रदूषण उसे भी परेशान कर रहा है। साथ ही कीटनाशक रसायन भी उसे हानि पहुँचा रहे हैं। जलदेवी कहती है कि ये कीटनाशक रसायन वर्षा के जल में घुलकर नदी तालाबों को दूषित करते हैं। इससे जलीय वनस्पतियों तथा जीवों को बहुत नुकसान होता है। कारखानों का दूषित तेल और विषैले पदार्थ भी नदियों में बहाने पर उसे हानि पहुँचा रहे हैं।

सबकी बातें सुनकर सूर्यदेव चिंतित होकर कहते हैं कि यह सब बहुत घातक है। इससे सभी को अपने अस्तित्व का खतरा होने लगता है। इसलिए रश्मिदेवी सूर्य को पृथ्वी पर न जाने को कहती है किंतु सूर्य उसे ऐसा न करने को कहते हैं। तभी दैत्य प्रदूषण डरावनी हंसी से कहता है कि वह बहुत खुश है कि उसने वायु, जल तथा वनस्पति की नाक में दम कर दिया है। सूर्य उसके बारे में पूछता है तो प्रदूषण बताता है कि वह अदृश्य होकर ही सबको सताता है। वह मनुष्य के विनाश का कारण बनने वाला है। वही मानव का महाकाल है। औद्योगिक प्रगति का विष वृक्ष है। रश्मिदेवी को अपनी चिंता होने लगती है। किंतु प्रदूषण उसे कहता है कि वह उसे हानि नहीं पहुंचाएगा। वह तो केवल पृथ्वी पर रहने वाले जीवों का ही विनाश करना चाहता है। इसके बाद सभी सूर्यदेव से प्रदूषण से अपनी-अपनी रक्षा करने के लिए कहने लगे।

तभी पर्दे पर मधुर संगीत के साथ बुद्धिदेवी का प्रवेश होता है। वह सूर्यदेव को कहती है कि इस दैत्य से पृथ्वी को बचाने के लिए उन्हें कष्ट करने की ज़रूरत नहीं है। वह पृथ्वीवासियों के जीवन को सुखी बनाने वाली जल, वायु और वनस्पति देवियों की रक्षा करेगी। वह सभी की रक्षा का आश्वासन देती है। बुद्धिदेवी प्रदूषण को मानव द्वारा विनाश होने की बात कहती है। तभी दैत्य प्रदूषण बताता है कि उसके अनेक सहायक हैं। रेडियोधर्मिता उसका नया सहायक है।

रश्मिदेवी के पूछने पर वनदेवी बताती है कि रेडियोधर्मिता यूरेनियम जैसे तत्वों के परमाणु परीक्षण द्वारा पैदा होती है। दैत्य प्रदूषण इसकी हानियाँ बताता है कि रेडियोधर्मिता से मानव स्वयं घुट-घुटकर मरेगा। उसकी अगली पीढ़ी को वह पहचान भी नहीं पाएगा। उसका दूसरा साथी ध्वनि प्रदूषण है। जो बड़े-बड़े शहरों में बड़े-बड़े जहाज़ों, वाहनों, लाऊडस्पीकरों आदि से उत्पन्न होती है। जो थोड़े ही दिन में लाखों को बहरा बना देगी। वह बुद्धि को चुनौती देते हैं।

बुद्धि उसकी चुनौती स्वीकार करती है और सूर्य देव, पवन देव आदि सभी को मानव कल्याण एवं पृथ्वी की सुरक्षा करने का आश्वासन देती है कि वह इस प्रदूषण को जड़ से ही समाप्त कर देगी। संसार से इसका उन्मूलन करना परम आवश्यक है। सूर्य देव भी लोक-कल्याण के कार्य में सफल होने का आशीर्वाद देते हैं। सभी खुश हो जाते हैं और पर्दा गिर जाता है।

शिवाजी का सच्चा स्वरुप Summary In Hindi

शिवाजी का सच्चा स्वरुप Summary In Hindi

“Shivaji ka Sacha Swaroop” could represent a deeper exploration of these aspects of Shivaji’s life and rule to understand the true essence of his character and the impact he had on the history of India, particularly in the region of Maharashtra. Read More Class 9 Hindi Summaries.

शिवाजी का सच्चा स्वरुप Summary In Hindi

शिवाजी का सच्चा स्वरुप जीवन-परिचय

जीवन परिचय-सेठ गोबिन्ददास हिंदी के श्रेष्ठ साहित्यकार थे। उनका जन्म सन् 1896 ई० में हुआ। वे लंबे समय तक लोकसभा के सदस्य रहे। भारत सरकार द्वारा इन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था।

रचनाएँ-सेठ जी ने साहित्य के सभी क्षेत्रों में लेखन कार्य किया है। परंतु नाटक-एकांकी के क्षेत्र में इन्होंने महान् ख्याति प्राप्त की है। इनकी प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैंनाटक एकांकी-अलबेला, कर्ण, कर्त्तव्य, प्रकाश, विकास, शाप और वर, सच्चा जीवन, सेवापथ अशोक, हर्ष।

साहित्यिक विशेषताएँ-सेठ गोबिन्ददास साहित्य और राजनीति का संगम थे। इन्हें देश-प्रेम संस्कारों में मिला था। यही उनके जीवन तथा साहित्य का प्रमुख स्वर रहा है। इनके साहित्य में देश-प्रेम की भावना का वर्णन हुआ है। इन्होंने अपने नाटक एकांकियों में सामाजिक, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर जीवन की अनेक समस्याओं को उठाया है। इनमें भारतीय संस्कृति, देश-प्रेम तथा गांधी-दर्शन का प्रकाश उजागर किया गया है।

शिवाजी का सच्चा स्वरुप एकांकी का सार

‘शिवाजी का सच्चा स्वरूप’ सेठ गोबिन्ददास की प्रमुख एकांकी है। इसमें लेखक ने शिवाजी महाराज के सच्चे स्वरूप का वर्णन किया है। शिवाजी हमारे राष्ट्रीय गौरव का महान् ध्वज हैं। वे अपराजेय शक्ति, शौर्य और पराक्रमी थे। उन्होंने देश की शक्तियों को संगठित कर ‘हिन्दी स्वराज्य’ की स्थापना की। यह धर्म-निरपेक्ष स्वराज्य था। इन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों से निरंतर लोहा लिया। इस एकांकी में लेखक ने शिवाजी के इसी पवित्र चरित्र का वर्णन किया गया है।

शिवाजी, मोरोपंत तथा आवाजी सोनदेव इस एकांकी के प्रमुख पात्र हैं। शिवाजी एक प्रसिद्ध मराठा वीर, मोरोपंत पेशवा तथा सोनदेव शिवाजी एक सेनापति थे। यह एकांकी सन् 1648 ई० की संध्या को राजगढ़ दुर्ग के दालान पर घटित होती है। दालान में मसनद् के सहारे शिवाजी आसन पर बैठे थे। राजगढ़ दुर्ग के दालान पर शस्त्रों के साथ सुदृढ़ शरीर वाले मावली रक्षक खड़े हुए हैं और बायीं तरफ से मोरोपंत पिगंले का प्रवेश हुआ। उसने शिवाजी सरकार को नमस्कार किया। उसने बताया कि सेनापति सोनदेव कल्याण प्रांत को जीतकर वहां का सारा खज़ाना लूटकर आए हैं। यह शुभ समाचार सुनकर शिवाजी बड़े खुश हुए। कुछ समय पश्चात् सेनापति आवाजी सोनदेव ने शिवाजी के सामने आकर अभिवादन किया।

शिवाजी ने उसे इस जीत की बधाई दी तथा सेनापति ने शिवाजी को बधाई दी। दोनों में इस युद्ध के विषय में खूब चर्चा हुई। सेनापति ने जीत के साथ-साथ कल्याण के लूटे हुए खजाने के बारे में बताया तथा उसने बताया कि वह कल्याण सूबेदार अहमद की पुत्र-वधू को भी बंद कर आपकी सेवा में लाया है। यह सुनकर अचानक शिवाजी की मुद्रा बदल जाती है। सेनापति भी घबरा उठता है। क्रोधित स्वर में शिवाजी तुरंत मेणा को अपने सामने लाने के लिए कहा। आवाजी उसी समय एक बंद पालकी महाराज के सामने ले आए। उसमें से बहुत सुंदर युवती (अहमद की पुत्रवधु) बाहर निकल चुपचाप एक तरफ खड़ी हो जाती है।

शिवाजी उसे माँ कहकर अपने सेनापति के लिए माफी मांगते हैं, उन्होंने कहा कि वे तो उसके सौंदर्य का हिंदू विधि से पूजन करना चाहते हैं । इसके बाद शिवाजी क्रोधावेश में आकर सेनापति पर बरस पड़े कि तूने ऐसा घृणित कार्य किया। शिवा ने आजतक किसी मस्जिद में बाल बराबर भी दरार नहीं आने दी। उसने तो कुरान को भी सर माथे लगाया। उसका सम्मान किया। इस्लाम उसके लिए पूज्य है। इस्लाम के पवित्र स्थान तथा पवित्र ग्रंथ उनके लिए सम्माननीय हैं।

शिवाजी की सेना में हिंदु ही नहीं मुस्लिम भी सैनिक थे। वह देश में हिंदू राज्य नहीं सच्चे स्वराज्य की स्थापना करना चाहते थे। वह आक्रमणकारियों से सत्ता लेकर उदार लोगों को देना चाहते थे। वह तो स्त्री को माता के समान पूजनीय मानता था। शिवाजी सेनापति के बुरे कार्य के लिए फटकारते रहे। वे बार-बार अपने सेनापति के इस बुरे कर्म की वजह से पश्चाताप करने लगे। उन्होंने उसी समय घोषणा की कि यदि आगे कोई ऐसा कार्य करेगा तो उसका सर उसी समय धड़ से अलग कर दिया जाएगा। यह कहकर शिवाजी का सिर नीचे झुक गया।

कैसे बचें उपभोक्ता धोखाधड़ी से Summary In Hindi

कैसे बचें उपभोक्ता धोखाधड़ी से Summary In Hindi

“Kaise bache upbhokta dhokhadhadi se” phrase suggests ‘How to Avoid Consumer Fraud’ is written by author Lalita Goyal. In this the author has told the consumers about their rights. Along with this, we have also made people aware and united to get those rights. Read More Class 9 Hindi Summaries.

कैसे बचें उपभोक्ता धोखाधड़ी से Summary In Hindi

कैसे बचें उपभोक्ता धोखाधड़ी से जीवन-परिचय

श्रीमती ललिता गोयल का जन्म 15 मार्च, सन् 1973 ई० को हुआ। इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से बी०ए० (आनर्स) तथा एम०ए० (राजनीति शास्त्र) की शिक्षा ग्रहण की। इन्होंने पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा भी किया। ये कई वर्षों से लगातार विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिख रही हैं। इनके लेख बहुत प्रभावशाली होते हैं। वर्तमान में ये दिल्ली प्रैस पत्र प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली में सहायक संपादक के पद पर कार्य कर रही हैं।

लेखिका की समाज को जागरूक करने में विशेष भूमिका रही है। इस पाठ में इन्होंने उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के लिए जगाने का प्रयास किया है। इसके साथ उन अधिकारों को पाने के प्रति जागरूक बनाया है। लेखिका ने बड़े सहज भाव से आज के उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के लिए सचेत रहने की प्रेरणा दी है। लेखिका की भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक है। उसमें तत्सम एवं तद्भव शब्दों का प्रयोग अधिकता से हुआ है।

कैसे बचें उपभोक्ता धोखाधड़ी से पाठ का सार

‘कैसे बचें उपभोक्ता धोखाधड़ी से’ लेखिका ललिता गोयल द्वारा लिखित है। इसमें लेखिका ने उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों के बारे में बताया है। इसके साथ-साथ उन अधिकारों को पाने के लिए.जागरूक एवं एकजुट भी किया है। उपभोक्ताओं को हर रोज़ ठगी तथा धोखाधड़ी का शिकार बनना पड़ता है। कभी कोई उन्हें पुरानी दवा दे देता है तो कभी उत्पादों पर उन्हें गारंटी होने पर भी सर्विस नहीं दी जाती। कभी कोई सामान लिखे हुए वज़न से कम निकलता है। कभी डॉक्टर मरीज का सही इलाज नहीं करता। कोई उन्हें ग़लत जानकारी देता है जिसकी हानि उपभोक्ताओं को होती है।

उपभोक्ताओं के अधिकारों के संरक्षण के लिए सरकार ने सन् 1986 ई० में उपभोक्ता संरक्षण कानून लागू किया। यह कानून प्रत्येक उपभोक्ता को सुरक्षा, जानकारी, उत्पाद चुनना, शिकायत करना आदि अनेक अधिकार प्रदान करता है। इन अधिकारों को पाने के लिए ग्राहकों को जागना चाहिए। एक सर्वे के अनुसार आज तक देश के केवल 20% ग्राहक ही उपभोक्ता संरक्षण कानून को जानते हैं। केवल 42% ने ही इसे सुना है। जबकि इसके लिए कोई भी उपभोक्ता शिकायत कर सकता है। कोई भी शिकायतकर्ता सादे कागज़ पर उपभोक्ता फोरम में शिकायत भेज सकता है।

बीस लाख तक के क्लेम के लिए उपभोक्ता जिला स्तर के आयोग में तथा इससे अधिक राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग में शिकायत कर सकता है। एक करोड़ से अधिक क्लेम पाने के लिए राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण आयोग में शिकायत की जाती है। शिकायत केवल अधिकारों के हनन के दो वर्ष के अंदर ही हो सकती है। अधिकांश मामलों में शिकायतकर्ता को वकील करने की ज़रूरत भी नहीं होती।

दुकानदार द्वारा उत्पाद पर लेबल अथवा स्टिकर लगाकर बाजार भाव से ज्यादा कीमत पर बेचना उपभोक्ता अधिकारों का हनन है। किसी भी सामान को अधिकतम मूल्य से ज्यादा में बेचना ग़लत होता है। इसकी शिकायत की जा सकती है। उपभोक्ताओं के अधिकारों के हनन के अनेक प्रकार के मामले सामने आते हैं। कई बार एक ही घर दो-दो को आबंटित कर दिया जाता हैं। बैंक द्वारा बिना कारण के खाता बंद कर देना। इनसे उपभोक्ता केवल जागरूक बनकर ही बच सकते हैं। इसके लिए उपभोक्ता को केवल एगमार्क लोगो वाला ही सामान खरीदना चाहिए। बैच नंबर को देखना चाहिए। पैकिंग की तारीख, उत्पाद का वज़न आदि को देखना चाहिए।

खरीदी गई वस्तु का बिल अवश्य लेना चाहिए। गारंटी कार्ड पर दुकानदार के हस्ताक्षर अवश्य करवाएँ। उपभोक्ता इंटरनेट के द्वारा भी अपनी शिकायत कर सकता है। इस पर 72 घंटे के भीतर ही कार्यवाही शुरू हो जाती है। दूसरे पक्ष को 14 दिन के भीतर ही उपभोक्ता की शिकायत दूर करने के निर्देश दिए जाते हैं। यही नहीं उपभोक्ता 1800-11-4000 राष्ट्रीय उपभोक्ता सहायता नंबर पर भी अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है।

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बचेंद्री पाल Summary In Hindi

बचेंद्री पाल Summary In Hindi

“Bachendri Pal” is an Indian mountaineer who gained international recognition for her remarkable achievement as the first Indian woman to reach the summit of Mount Everest. Read More Class 9 Hindi Summaries.

बचेंद्री पाल Summary In Hindi

बचेंद्री पाल जीवन-परिचय

बचेंद्री पाल का जन्म उत्तरांचल राज्य के चमौली जिले में बपा गाँव में 24 मई, सन् 1954 ई० को हुआ। इनकी माता का नाम हँसादेई नेगी तथा पिता का नाम किशन सिंह पाल है। इनका बचपन ग़रीबी में व्यतीत हुआ। इनके पिता पढ़ाई का खर्च उठाने में असमर्थ थे। इसलिए बचेंद्री पाल को आठवीं से आगे की पढ़ाई का खर्च स्वयं उठाना पड़ा। इसके लिए उसने सिलाई-कढ़ाई शुरू की। इन्होंने कठिन परिश्रम करते हुए एम०ए० (संस्कृत), बी०एड० की शिक्षा प्राप्त की।

इनको पहाड़ों पर चढ़ने का बचपन से ही शौक था। सन् 1984 ई० में भारत का चौथा एवरेस्ट अभियान शुरू हुआ। तब तक दुनिया में केवल चार महिलाएँ ही चढ़ाई में सफल हो पाई थीं। सन् 1984 ई० में बचेंद्री पाल का एवरेस्ट चढ़ाई अभियान में चयन हुआ। इन्होंने 7 महिलाओं और 11 पुरुषों के साथ एवरेस्ट चढ़ाई शुरू की। 23 मई, सन् 1984 ई० को 1 बजकर, 7 मिनट पर इन्होंने एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक कदम रखा। ऐसा करने वाली वे भारत की पहली तथा संसार की पांचवीं महिला पर्वतारोही बन गई।

बचेंद्री पाल एक श्रेष्ठ पर्वतारोही महिला हैं। उन्होंने एवरेस्ट विजय अभियान का रोचक वर्णन किया है। उन्होंने पर्वतारोहण यात्रा के अनेक सजीव चित्र खींचे हैं। उनकी भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक है।

बचेंद्री पाल पाठ का सारांश

‘बद्री पाल’ यात्रा वृत्तांत पर्वतारोही बचेंद्री पाल द्वारा लिखित है। इसमें लेखिका ने अपनी एवरेस्ट विजय अभिमान की यात्रा का रोचक वर्णन किया है। इसमें इन्होंने अपनी सम्पूर्ण जीवन यात्रा तथा पर्वतारोहण यात्रा का वर्णन किया है। बचेंद्री पाल का जन्म 24 मई, सन् 1954 ई० को हुआ था। बचपन से ही उन्होंने लड़की होकर भी कुछ अलग करने का निश्चय कर लिया था। वह बहुत बड़े-बड़े सपने देखा करती थी। वह दस वर्ष की उम्र में ही जंगलों तथा पहाड़ी ढलानों पर अकेली निडर होकर घूमा करती थी। उसका बचपन अत्यंत गरीबी में व्यतीत हुआ। किंतु उसने बचपन में ही माता-पिता को कुछ अलग करने को कहा, वह पढ़ाई में बहुत अच्छी थी।

खेलकूद में भी बहुत श्रेष्ठ- उसने गोला फेंक, डिस्क फेंक और लंबी कूद में अनेक कप जीते। आठवीं कक्षा अच्छे अंकों से पास की। आगे की पढ़ाई सिलाईकढ़ाई का काम करके जारी रखी क्योंकि उसके पिता ने आगे पढ़ने से मना कर दिया था। लगातार कठोर मेहनत करके उसने एम०ए०, बी० एड० की पढ़ाई की। घर में खाली बैठने की बजाय उसने नेहरू संस्थान के आरंभिक पर्वतरोही कोर्स में प्रवेश ले लिया। यहाँ बर्फ तथा चट्टानों पर चढ़ने के तरीकों का अध्ययन किया।

रैपलिंग के रोमांच का अनुभव किया। यहाँ अभियान को आयोजित करने का भी प्रशिक्षण लिया। इसके बाद काला नाग 6387 मीटर की चढ़ाई की। इस चढ़ाई में उसे ‘ए’ ग्रेड मिला। यहाँ से अन्य अभियानों में भाग लेने की अनुमति मिल गई। सन् 1984 में एवरेस्ट अभियान के लिए चुना गया। इसके लिए 9 मई, सन् 1984 ई० को प्रातः सात बजे शिखर कैंप से प्रस्थान किया गया। 16 मई को प्रात: आठ बजे तक अभियान के दूसरे कैंप तक साथियों के साथ पहुँच गई। यहाँ से अगले दिन सुबह चढ़ाई शुरू की। यहाँ से बचेंद्री पाल ने अपने साथियों के साथ बिना रस्सी के ही चढ़ाई शुरू की। वह अंग दोर जी के साथ निश्चित गति से ऊपर चढ़ती गई। जमी बर्फ से सीधी व ढलाऊ चट्टानें सख्त एवं भुरभुरी थीं। वे दो घंटे से पहले ही शिखर के कैंप में पहुंच गए। अंतत: 23 मई, सन् 1984 के दिन दोपहर एक बजकर सात मिनट पर वह एवरेस्ट की चोटी पर पहुँच गई। उसने घुटनों के बल बैठकर सागरमाथे के ताज का चुंबन किया।

थैले से दुर्गा माँ का चित्र तथा हनुमान चालीसा निकाला तथा लाल कपड़े में लपेटकर छोटी-सी पूजा अर्चना की। आनंद के उस क्षण में माता-पिता का ध्यान आया। उसने हाथ जोड़ कर दोरजी के प्रति आदर प्रकट किया। वह बहुत खुश थी। उस शिखर पर उसने 43 मिनट बिताए। चोटी के समीप के खुले स्थान से पत्थरों के कुछ नमूने लेकर वापस यात्रा शुरू की। इस यात्रा के पर्वतारोहण में श्रेष्ठता के लिए भारतीय पर्वतारोहण संघ ने उसे प्रतिष्ठित स्वर्ण पदक दिया तथा अनेक सम्मान तथा पुरस्कार दिए। भारत सरकार द्वारा पद्मश्री तथा अर्जुन पुरस्कार दिया गया।

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एक अंतहीन चक्रव्यूह Summary In Hindi

एक अंतहीन चक्रव्यूह Summary In Hindi

Ek Antheen Chakravyuh” it often symbolizes a complex and intricate situation or problem that seems difficult or impossible to escape from. It suggests a challenging or inescapable scenario where finding a way out is extremely difficult, similar to navigating through an endless maze or labyrinth. Read More Class 9 Hindi Summaries.

एक अंतहीन चक्रव्यूह Summary In Hindi

एक अंतहीन चक्रव्यूह जीवन-परिचय

जीवन-परिचय- डॉ० यतीश अग्रवाल का जन्म 20 जून, सन् 1959 ई० में बरेली (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। ये एक श्रेष्ठ चिकित्सक, प्रोफेसर, लेखक के रूप में प्रसिद्ध हैं। आजकल ये सफदरजंग हॉस्पिटल तथा बी० एम० मैडिकल कॉलेज नई दिल्ली में प्रोफेसर एवं परामर्शदाता के रूप में कार्य कर रहे हैं।

रचनाएँ- डॉ० यतीश अग्रवाल बहुमुखी प्रतिभा वाले व्यक्ति हैं। उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी हैं। इनमें प्रमुख रचनाएं हैं-मन के रंग, नेत्र रोग, नारी स्वास्थ्य और सौन्दर्य, हृदय रोग, तुरन्त उपचार, स्वस्थ खाए तन मन जगाएं, सबके लिए स्वास्थ्य, दांपत्य जीवन, दवाइयां और हम, ब्लड प्रेश, जितना संयत उतना स्वस्थ आदि।
साहित्यिक विशेषताएँ-अग्रवाल स्वास्थ्य तथा चिकित्सा विज्ञान के प्रति तीन दशकों से लोगों में जागृति फैला रहे हैं। देश के अनेक प्रमुख समाचार-पत्रों में इनके लेख छपते रहते हैं। इनके लेख सरल, सरस एवं प्रभावशाली होते हैं। लेखक की भाषा-शैली बहुत सरल, सहज एवं स्वाभाविक है। इसमें अंग्रेजी शब्दावली की अधिकता है।

एक अंतहीन चक्रव्यूह निबन्ध का सारांश

‘एक अंतहीन चक्रव्यूह’ निबन्ध डॉ० यतीश अग्रवाल द्वारा रचित है। इसमें लेखक ने वर्तमान युग में युवाओं में फैल रही नशे की भयंकर समस्या तथा घातक परिणामों का वर्णन किया है। उन्होंने बताया है कि आज युवा किस तरह नशे के जाल में पड़कर अपना जीवन अंधकार बना रहे हैं। वैसे तो नशा मानव-जीवन के साथ ही शुरू हो गया था। इन्सान ने पेड़ पौधों से प्राप्त नशीले पदार्थों का सेवन शुरू किया था। नशे का इतिहास बहुत पुराना है।

3000 वर्ष ईसा पूर्व इसके प्रयोग के उल्लेख मिलते हैं किन्तु 19वीं सदी में नशा युवाओं तक फैलने लगा। युवा जीवन की सच्चाइयों से मुंह मोड़ने के लिए नशे में खो जाते थे। किन्तु वर्तमान समय में तो मज़दूर, किसान, रिक्शा-चालक बेरोज़गार आदि सभी वर्ग इसका शिकार बन रहे हैं। ये लोग अपने गम को भुलाने, आनंद उठाने तो कोई फैशन दिखाने के चक्कर में नशे के नरक में धंसता जा रहा है। शुरू में तो युवा अपने किसी दोस्त या साथी के कहने पर नशे की शुरुआत करते हैं किंतु धीरे-धीरे वे इसके आदी बन जाते हैं। वे इसमें इतने डूब जाते हैं कि अपने जीवन को ही र्बाद कर लेते हैं।

इस समय कुछ गलतफहमी का शिकार हो जाते हैं। अवसाद, तनाव, असफलता, निराशा आदि मन को कमजोर बनाने वाली स्थितियाँ आदमी को नशे की तरफ धकेल देती हैं। धीरे-धीरे मन का संतुलन खोजता आदमी नशे के एक अंतहीन चक्रव्यूह में फंस जाता है। नशा करने से आदमी के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। नशे से उसकी सोचनेसमझने की शक्ति क्षीण हो जाती है। उसका स्वास्थ्य नष्ट हो जाता है।

नशे के लगातार सेवन से आदमी की स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है। वह आलसी बन जाता है। उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। कोई काम करने को मन नहीं करता। वह झूठ बोलने लगता है। वह शंका करने लगता है। इससे भूख मर जाती है। शरीर कमजोर हो जाता है। रोगों से लड़ने की क्षमता नष्ट हो जाती है जिसके कारण शरीर में तपेदिक, एड्स, दमा, खांसी, टी० बी०, हैपेटाइटिस बी०, वातस्फीति आदि भयंकर बीमारियाँ हो जाती हैं। ये बीमारियाँ जानलेवा होती हैं। नशेड़ी आदमी इनसे छुटकारा नहीं पा सकता।

नशा करने वाले आदमी का शरीर रोगी ही नहीं बनता बल्कि उसका परिवार और समाज भी उसे दुत्कार देता है। उसे कोई प्यार नहीं करता। वह दुनिया में बिल्कुल अकेला रह जाता है। मित्र, सगे-सम्बन्धी छूट जाते हैं। आर्थिक : समस्याएँ बढ़ जाती हैं। धीरे-धीरे आदमी दल-दल में फंसता जाता है। मादक पदार्थों के सेवन से मुक्ति पाना आसान नहीं होता। नशे से मुक्ति दिलाने में मनोरोग विशेषज्ञ विशेष मदद कर सकते हैं। नशा मुक्ति के लिए वे अनेक चिकित्सा पद्धतियाँ प्रयोग में लाते हैं। दूसरे चरण में रोगी के मानसिक तथा सामाजिक पुनर्वास के लिए आवश्यक कदम उठाए जाते हैं।

आज हमारे देश में अनेक सरकारी, गैर-सरकारी संगठन, अस्पताल, पुलिस तथा स्वयंसेवी संस्थाएँ नशा मुक्ति की सुविधाएँ प्रदान कर रही हैं। सबसे अच्छा यही है कि आदमी इस चक्रव्यूह से स्वयं को बिल्कुल दूर रहें। हमें ऐसी संगत में बिल्कुल नहीं पड़ना चाहिए। युवाओं को नशे तथा नशा करने वालों से सदा दूर रहना चाहिए क्योंकि इसमें पड़ कर आदमी का जीवन नष्ट हो जाता है।

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महान् राष्ट्रभक्त : मदन लाल ढींगरा Summary In Hindi

महान् राष्ट्रभक्त : मदन लाल ढींगरा Summary In Hindi

Madan Lal Dhingra was an Indian revolutionary who played a significant role in the early 20th-century struggle for India’s independence from British colonial rule. Madan Lal Dhingra’s actions and beliefs remain a part of India’s history as a symbol of the passionate pursuit of freedom from colonial oppression. Read More Class 9 Hindi Summaries.

महान् राष्ट्रभक्त : मदन लाल ढींगरा Summary In Hindi

महान् राष्ट्रभक्त : मदन लाल ढींगरा जीवन-परिचय

जीवन परिचय- प्रो० हरमहेन्द्र सिंह बेदी का जन्म 12 मार्च, सन् 1950 ई० को पंजाब के मुकेरियां (होशियारपुर) में हुआ था। ये समकालीन हिन्दी-कविता के प्रसिद्ध कवि हैं। इन्होंने पंजाब के हिन्दी-साहित्य को राष्ट्रीय पहचान दिलाई है। इन्होंने हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए कनाडा, नार्वे तथा पाकिस्तान की यात्राएँ की हैं। इन्हें पंजाब के मध्यकालीन हिन्दी-साहित्य को गुरुमुखी लिपि में लाने का श्रेय प्राप्त है। इन्होंने एम०ए०, पीएच०डी० तथा डी०लिट की उच्च उपाधियाँ प्राप्त की है।

प्रमुख रचनाएँ- प्रो० हरमहेन्द्र सिंह बेदी ने हिन्दी एवं पंजाबी में छत्तीस ग्रंथों की रचना की है। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-गर्म लोहा (सन् 1982 ई०), पहचान की यात्रा (सन् 1987 ई०), किसी और दिन (सन् 1999 ई०), फिर से फिर (सन् 2011 ई०) आदि।

साहित्यिक विशेषताएँ- प्रो० हरमहेन्द्र सिंह बेदी का पंजाब हिन्दी-साहित्य में विशेष स्थान है। इनकी रचनाओं में देशभक्ति की झलक दिखाई देती है। इन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा युवाओं को राष्ट्रभक्ति का सन्देश दिया है। प्रस्तुत निबंध में लेखक ने महान् देशभक्त मदनलाल ढींगरा की देशभक्ति एवं निडरता का परिचय दिया है। भारतीय स्वतंत्रता की चिंगारी को आग में बदलने का श्रेय मदनलाल ढींगरा को जाता है। लेखक ने इस देशभक्त की सच्ची देशभक्ति एवं साहस का परिचय दिया है। इनकी भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक है। इनके साहित्य में तत्सम, तद्भव, अंग्रेज़ी एवं पंजाबी के शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है।

महान् राष्ट्रभक्त : मदन लाल ढींगरा निबन्ध का सारांश

मदन लाल ढींगरा प्रो० हरमहेन्द्र सिंह बेदी द्वारा रचित एक प्रसिद्ध निबन्ध है। इसमें लेखक ने मदन लाल ढींगरा की सच्ची देशभक्ति साहस एवं निडरता का परिचय दिया है। लेखक ने बताया है कि भारतीय स्वतंत्रता की चिंगारी को आग में बदलने का श्रेय इसी सच्चे देशभक्त को जाता है। मदनलाल ढींगरा का जन्म सन् 1887 ई० में पंजाब के एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। उनके पिता साहिब गुरुदित्ता मल गुरदासपुर में सिविल सर्जन थे।

मदनलाल बचपन से ही स्वतंत्रता प्रेमी थे। वे हर बात को तराजू में तोलकर देखते थे। उनमें आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा था। उन्हें देशभक्ति के कारण लाहौर कॉलेज छोड़ना पड़ा था। इसके बाद उन्होंने कारखाने की मज़दूरी की। अपने गुज़ारे के लिए रिक्शा तथा टांगा तक भी चलाया। उनके घर में केवल बड़े भाई ही उनकी बात समझते थे। उनके कारण ही वे उच्च शिक्षा के लिए सन् 1906 में इंग्लैंड चले गए। वहां उनके जीवन में एक नया मोड़ आया। लंदन में वे भारत के प्रमुख राष्ट्रवादी नेता विनायक दामोदर सावरकर तथा श्याम जी कृष्ण वर्मा के सम्पर्क में आए। इसके बाद वे अभिनव भारत नामक क्रान्तिकारी संस्था के सदस्य बन गए। यहाँ उन्होंने हथियार चलाने का प्रशिक्षण लिया।

लंदन में श्याम जी कृष्ण वर्मा के संरक्षण में भारतीय छात्रों में देशभक्ति की भावना फैलाने के लिए इंडिया हाउस की स्थापना की। उन दिनों खुदीराम बोस तथा कांशीराम जैसे अनेक क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने मृत्यु दंड दे दिया था। इन घटनाओं ने मदन लाल ढींगरा और सावरकर जैसे देशभक्तिों के मन में अंग्रेजों के प्रति नफ़रत तथा बदले की भावना ने जन्म दिया।

1 जुलाई, सन् 1909 ई० को भारतीय राष्ट्रीय संस्था के सदस्य वार्षिक दिवस मनाने के लिए इकट्ठे हुए। इसमें कर्ज़न वायली सपरिवार आया। ढींगरा ऐसे लोगों से नफ़रत करते थे। इसी कारण उन्होंने कर्जन वायली को वहीं मार दिया। वे वहाँ से डरकर नहीं भागे बल्कि साहस और निडरतापूर्वक वहीं खड़े रहे। यह अंग्रेजों के लिए पहली चेतावनी थी। ढींगरा ने बंग-भंग आंदोलन के समय भी लंदन में वंदेमातरम के नारे लगाए थे। वे अपनी कमीज़ के ऊपर वंदे मातरम् लिखकर लंदन के बाजारों में घूमते थे। उन्होंने अपनी हर पुस्तक के ऊपर वंदे मातरम् लिखा था।

कर्जन वायली की हत्या के आरोप में उन पर 22 जुलाई, सन् 1909 ई० को अभियोग चलाया। उन्होंने अदालत में गर्व से कहा था कि वह अपना जीवन भारत माँ को सौंप रहा है। 12 अगस्त, सन् 1909 ई० को उन्हें पेंटोविले (लंदन) की जेल में फांसी की सज़ा दी गई। आयरिश लोगों ने इनकी हिम्मत को सराहा था। लाला हरदयाल को भी उनकी शहादत पर गर्व हुआ। उन्हें विश्वास था कि मदनलाल ढींगरा की कुर्बानी भारत को आजाद कराएगी। श्रीमति ऐनी बेसेंट ने भी उनकी शहादत की सराहना की थी। 16 अगस्त, सन् 1909 के डेली न्यूज़ समाचार-पत्र में ढींगरा का जोशभरा भाषण छपा।

ब्रिटिश सरकार ने मदन लाल ढींगरा के शरीर को लावारिस समझ कर दफना दिया। फिर सावरकर ने ढींगरा की देह को प्राप्त करने के अनेक प्रयास किए कितु वे सफल नहीं हुए। अनेक वर्षों बाद 13 दिसम्बर, सन् 1976 ई० को जब शहीद उधम सिंह की अस्थियां भारत लाई गईं तभी मदनलाल ढींगरा की अस्थियों को भी मातृभूमि का स्नेह मिला।

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The Tiger in the Tunnel Summary

The Tiger in the Tunnel Summary

The Tiger in the Tunnel” is a short story written by Ruskin Bond. It’s a poignant tale set in rural India that explores themes of bravery, determination, and the connection between humans and nature. Read More Class 11 English Summaries.

The Tiger in the Tunnel Summary

The Tiger in the Tunnel Introduction:

This story tells us about a man named Baldeo who worked as a watchman at a small railway station. This station was, in fact, a small hut which had a thick forest at its back. Next to this station there was a deep cutting that led to the tunnel.

The trains stopped at this station for only a few seconds before entering the deep cutting. Baldeo did the job of giving signals whether the tunnel was clear or not. At night, it was his duty to see that the lamp was burning at the signal post and that the overland mail passed through safely.

One night, as usual, he went to the tunnel to see if the lamp at the signal post was still alight. There he was attacked by a tiger. Baldeo faced the tiger bravely, but he was killed in this encounter. However, he had hit the tiger with his axe so hard that the tiger could hardly walk.

He could not get out of the tunnel quickly when the train arrived there. And eventually, the tiger too was killed. Baldeo’s family was plunged in grief. But his son who was only twelve years old did not allow grief to emasculate him. He decided to face the life bravely and took over the responsibility of his family.

The Tiger in the Tunnel Summary in English:

Baldeo was a watchman at a small railway station. This station was, in fact, a small hut which had a thick forest at its back. Next to this station, there was a deep cutting that led to the tunnel. The cutting had sheer rock walls towering high above the rails.

This station was a station in name only. The trains stopped there only for a few seconds before entering the deep cutting. Baldeo did the job of giving signals whether the tunnel was clear or not. At night it was his duty to see that the lamp at the signal post was burning and that the overland mail passed through safely.

Baldeo’s family lived in a small tribal village at the outskirts of the forest. His village was about three miles away from the station. His son Tembu who was twelve years old, didn’t always stay with his father at the station. He lived with his mother and sister in the village. But that night, Tembu slept with his father at the station. It was a dark winter night.

Baldeo got up at midnight to go to the signal post to see if the lamp was still alight or not. Tembu asked him sleepily, “Shall I come too, father ?” “No, it is cold tonight,” said Baldeo. Tembu fell asleep again.

Baldeo lighted his lamp, wrapped himself in the shawl and moved towards the signal post. When he entered the cutting, he could not help thinking about the wild animals. It was said that wild animals often visited that spot. But Baldeo hardly believed these stories.

No doubt, he had occasionally heard the sawing of a panther calling to its mate. But he had never seen them near the tunnel or the shed. Being a tribal himself, Baldeo was used to the jungle and its ways. So he walked confidently.

Like his forefathers, he carried a small axe with him. That axe was very simple to look at, but it was deadly when in use. With it, Baldeo could cut down a tree in three or four strokes only. Baldeo prided himself in wielding it against animals. Once he had killed a young boar with it. His father had made this axe over a charcoal fire. Baldeo always kept it with him.

The cutting and the entrance to the tunnel looked horrible in the darkness. The signal light was out. Baldeo hauled the lamp down by its chain. If the oil had finished, he would have to return to the hut for more. And the mail was also due in five minutes.

So he decided to light the lamp. Just then, he heard the loud cry of a deer and then a crushing sound in the undergrowth. Baldeo hurriedly lit the lamp at the signal post. He took his own lamp and walked quickly down the tunnel. Having made sure that the line was clear, he came back to the entrance. He sat there and started waiting for the train.

Summary of The Tiger in the Tunnel

The train was late. Sitting huddled up, Baldeo started dozing and soon forgot about his surroundings. And, back in his hut, Tembu woke up when he felt the trembling of the ground. He understood that the train was approaching.

He rubbed his eyes in sleep and said, “Father it’s time to light the lamp.” And realizing that his father had gone already, he lay down again. But now he was awake. He was waiting for the train to pass and for his father’s return.

In the meantime, a low grunt resounded on the top of the cutting. Baldeo woke up with a start. Only a tiger could emit such a sound, he thought. He grasped his axe firmly. He tried to make out the direction from which the animal was coming.

Just then, he heard a thump and then the rattle of stones. It told him that the tiger had sprung into the cutting. Baldeo tried to listen to the footsteps of the tiger. He wanted to know if the tiger was coming towards the tunnel or going towards the hut where Tembu was alone.

But soon, he found that the huge animal was trotting towards him steadily. Flight was impossible at that time. With his back to the signal post, Baldeo stood there motionless, staring at the tiger who was moving rapidly towards him. And very soon, the tiger attacked Baldeo with his right paw. However, Baldeo was already prepared.

He jumped to one side and saved himself from the tiger’s paw. He hit the tiger’s shoulder with his axe. The. tiger roared loudly and tried to come close. But Baldeo again threw his axe at the tiger. This time, the axe caught the tiger on the shoulder almost severing his leg.

Unluckily, the axe remained stuck in the tiger’s bone. Baldeo was left with no .weapon. The tiger, roaring with pain, sprang upon Baldeo and tore him to pieces in a few minutes.

The Tiger in the Tunnel short Summary

Then the tiger sat down and started licking his wound, roaring away now and then with pain. He didn’t notice the faint rumble that shook the earth. The overland mail was approaching. When the train entered the cutting, the engine whistled loudly.

The tiger raised his head and slowly got to his feet. He found himself trapped like the man (Baldeo). At that time flight along the cutting was impossible. So the tiger entered the tunnel and started running as fast as his wounded leg could carry him.

Soon the train also entered the tunnel. The noise in that confined space was defeaning. But when the train came out in the open, there was once again silence on the other side of the tunnel. At the next station, the driver stopped his train to water the engine.

He got down to stretch his legs and examine the headlamps. He was shocked when he saw the major portion of the tiger lying just above the cowcatcher. The tiger’s body was cut in half by the engine. Baldeo’s family was plunged in grief. All the responsibility of the family had fallen on Tembu. Now he had to earn living for his family.

So Tembu started working in his father’s place. Three nights later, he was at the cutting, lighting the signal lamp for the Overland Mail. Now there was nothing to be afraid of. His father had killed the tiger and besides, now he had the axe with him, his father’s axe.

Woodman, Spare that Tree Summary

Confessions of a Born Spectator Poem Summary

Confessions of a Born Spectator Poem Summary

Confessions of a Born Spectator” is a poem that seems to reflect upon the perspective of someone who prefers to observe life from the sidelines rather than actively participate. The title suggests a sense of self-awareness and introspection, as if the speaker is acknowledging their role as an observer. Read More Class 11 English Summaries.

Confessions of a Born Spectator Poem Summary

Confessions of a Born Spectator Introduction:

In this poem, the poet makes fun of athletes. But the fun is light-hearted. It is not meant to be taken seriously. The poet loves to watch the players in various contests. But he never thinks of taking part in them himself. He does not want to have his bones broken and his body injured. He is content to remain a spectator-‘That you are not me and I’m not you.’

Confessions of a Born Spectator Summary in English:

In this poem, the poet makes fun of athletes. But the fun is light-hearted. The poet says that when the children grow up, they feel interested in different sports. One child grows up and becomes a professional horse rider. Another plays basketball or hockey. This one hates to enter the boxing ring. That one loves to play rugby at a particular position in the field.

But the poet says that he is a born spectator. He feels most glad to think that he is not like them, or that they are not like him. The poet admires all the athletes who play for fun or for money. He likes to see the players enter the field in their showy dresses. He also loves to see them hurt and injure each other in the play. But the poet is a born spectator.

He says that his weak and shy spirit loves to feed on the heroic deeds of other people. One player runs ninety yards to score a point for victory. Another one knocks down even a champion. Another endangers even his vertebrae and spine to win a prize in horse riding. One might think that the sight of these brave acts would arouse the poet’s own ego. Then he too would like to be one of the participants in these competitions.

Confessions of a Born Spectator Poem

The poet says that his ego might be pleased to change places with some player or athlete. But their game seems to him to be very rough. In their play, they show no regard for one another’s feelings. The born spectator says that often a struggle begins between his ego and his prudence. His ego goads him to become a champion, but his prudence restrains him from doing so.

In boxing, the hard-clenched fist of one boxer strikes at the swollen eye of the opponent. In other games, too, knees are broken and wrists are cracked. While all this violence takes place, the officials show no great concern for the injured players. They merely ask in an indifferent tone if there is any doctor in the stands. Seeing all this, the born spectator feels thankful to God for keeping his weak body safe from such dangers and risks.

Finally considering all the dangers and risks that athletes have to face, the poet decides to remain a spectator. He says that he can drink to the health of athletes. He can eat with them but he can’t compete with them. He would buy even costly tickets to watch their game. But he would never change places with them. The poet reassures himself afresh that he is not like the athletes and the athletes are not like him.
Akbar and Birbal – Reunion Summary

A Thing of Beauty is a Joy for Ever Poem Summary

A Thing of Beauty is a Joy for Ever Poem Summary

A Thing of Beauty is a Joy for Ever” is a famous line from the poem “Endymion” written by John Keats, a renowned English Romantic poet. Read More Class 11 English Summaries.

A Thing of Beauty is a Joy for Ever Poem Summary

A Thing of Beauty is a Joy for Ever Introduction:

This poem conveys the idea that a thing of beauty is a joy for ever. It leaves a permanent impression on our mind. It stays in our imagination for ever. It never passes into nothingness. Our imagination adds new colours to it. Its loveliness increases every time we think of it.

Thus it becomes a joy for ever. Besides this, it makes us forget the sorrows and sufferings of the world. It gives us peace of the mind and health of the body. It makes our painful stay on this earth bearable.

A Thing of Beauty is a Joy for Ever Summary in English:

In this poem, the poet tries to explain how a beautiful thing is a joy for ever. He says that the loveliness of a beautiful thing never fades. We find in it new beauties as we watch it day after day. It never passes into nothingness. It gives joy to the beholder for ever.

A beautiful thing is a kind of quiet bower that sends us to a sleep full of sweet dreams. It gives us health of the body and peace of the mind. The poet believes that man’s life on the earth is nothing but a tale of grief and sorrow.

There is sadness and gloom in every heart. There is a terrible lack of truly noble hearts. Many mysterious things happen that man fails to understand in spite of all efforts. None could bear to live on such an earth.

The poet says that it is beauty alone that takes away the gloom from the human heart. It is a kind of flowery band that binds us to the earth. The poet lists some such beautiful things. He says that we have the sun and the moon. There are big and small trees that give cool shade for simple sheep. There are lovely daffodils and cool clear streams. There are musk roses that bloom in forests.

Then there is also the beauty of thoughts we have for the mighty dead. We imagine that they will be suitably rewarded by God on the day of judgement. Then there are lovely tales of olden days that we have heard or read.

The poet calls all these beauties an endless fountain of immortal drink that heaven itself is pouring down for us. In other words, God himself has created these beautiful things for us so that we can derive joy from them during our stay on this earth.
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