“चन्दन का पेड़” एक प्रमुख हिंदी कहानी है, जो सुबह-सुबह जागते ही गांव के लोगों के द्वार पर चन्दन का पेड़ बढ़ने का आद्भुत घटना के चारों ओर का मोहब्बत, दिल की सच्चाई, और मानवीय भावनाओं का परिचय करती है। इस कहानी में चन्दन का पेड़ गांववालों के जीवन में एक महत्वपूर्ण बदलाव का कारण बनता है और एक सबक सिखाता है कि सच्ची खुशियाँ सादगी में छिपी होती हैं। Read More Class 7 Hindi Summaries.
चन्दन का पेड़ Summary In Hindi
चन्दन का पेड़ पाठ का सार
‘चन्दन का पेड़’ एक तेरह वर्षीय अन्धी लड़की सुनन्दा की कहानी है, जो अपनी सूझबूझ से चन्दन के पेड़ों की अवैध कटाई करने वालों को पकड़वा देती है। वह अपने माता-पिता के साथ पूर्वी घाट में करीमुनाई गाँव में रहती थी। उसके पिता पहाडी की ढलान पर सीढ़ीनुमा ज़मीन पर खेती करते थे तथा माँ बकरियों की देखभाल करती थी। वह उन दोनों की सहायता करने के साथ-साथ स्कूल पढ़ने भी जाती थी। उसका साथी गुगु नाम का कुत्ता था, जिस दिन वह तेरह वर्ष की हुई, उसी दिन भूस्खलन हुआ, जिसमें उसके माता-पिता और बकरियाँ मर गईं और वह पहाड़ी से फिसल कर ऐसे गिरी कि उसकी आँखों में कोई नुकीली चीज़ लगी तथा वह बेहोश हो गई। नुकीली चीज़ से लगी चोट के कारण वह अन्धी हो गई। जब उसे होश आया तो वह गाँव के स्कूल के प्रधानाचार्य रावगुरु के घर में थी। गुगु कुत्ता भी वहीं था। वह उनके घर में रहने लगी तथा रावगुरु की पत्नी को मामी कहने लगी। वे उसका बहुत ध्यान रखते थे। उसे स्कूल भी भेजना चाहते थे परन्तु उसने घर पर ही रहना स्वीकार किया।
सुनन्दा धीरे-धीरे अपनी अन्धेरी दुनिया की आदी हो गई। गुगु उसके साथ रहता था। वह मामी की पूजा के लिए फूलों की माला पिरोने लगी। शाम को रावगुरु उससे अनेक विषयों पर बातें करते थे। एक दिन उसने उनसे भूस्खलन के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि मनुष्य अंधाधुंध पेड़ों को काटता जाता है। पेड़ पहाड़ की मिट्टी को बाँध कर रखते हैं। उनके कट जाने से धरती के भीतर की हलचल से चट्टानें और मिट्टी नीचे फिसलने लगती है और भूस्खलन हो जाता है। सुनन्दा को लगा कि इस प्रकार से पेड़ों की कटाई ने ही उसे अपने परिवार से अलग कर दिया।
अब सुनन्दा स्पर्श, गन्ध और श्रवण शक्ति के माध्यम से बहुत कुछ जानने-समझने लगी थी। उसमें आत्मविश्वास आ गया था। वह गुगु के साथ आसपास की पहाड़ियों और पेड़ों के झुरमुट में घूमने निकल जाती थी और एक पेड़ में तने का सहारा लेकर बैठ जाती थी। गुगु उसके पास बैठता था और कोयल उससे बातें करती थीं। एक दिन जब वह अपने निश्चित स्थान पर पहुँची तो उसे कोयल की आवाज़ सुनाई नहीं दी और जहाँ टेक लगा कर बैठती थी, वहाँ पेड़ के स्थान पर दूंठ था।
आस-पास भी ढूँठ थे और जब उसने ठूठ को पत्थर से रगड़ कर देखा तो उसे चन्दन की सुगंध आई। वह सोचने लगी कौन इन चन्दन के वृक्षों को काट गया। घर आकर उसने रावगुरु को बताया। रावगुरु ने मुदालियर से पता किया तो उसने कहा कि चन्दन के पेड़ सुरक्षित हैं। अगले दिन सुनन्दा ने फिर कुछ पेड़ों को कटा पाया और रावगुरु को बताया। उन्होंने मुदालियर से कहा तो उसने अन्धी लड़की पुस्तकीय भाग का बातों पर विश्वास नहीं करने और उसे अफवाहें फैलाने से रोकने के लिए रावगुरु को कहा। सुनन्दा को विश्वास था कि चन्दन की लकड़ी की चोरी हो रही है।
अगले दिन सुबह ही सुनन्दा गुगु को लेकर चन्दन क्षेत्र की ओर गई और झाड़ी के पीछे छिप कर बैठ गई। किसी के आने की आहट सुन कर गुगु भौंकने लगा तो सुनन्दा झाड़ियों में छिप गई। तभी उधर से मुदालियर गुजग और गुगु को ‘यहाँ क्या मेरी तरह गश्त कर रहे हो’ कह कर चला गया। सुनन्दा ने उसको आवाज़ पहचान ली थी। वह अगली रात, रावगुरु और उनकी पत्नी के सोने के बाद, ग्यारह बजे गुगु के साथ चन्दन के पेड़ों के पास गई तो गुगु किर्रकिर्र की आवाज़ सुन कर गुर्राने लगा तो उसने उसे चुप करा दिया। उसे किरै-किर्र और वाहनों के आने-जाने के स्वरों के साथ मुदालियर की आवाज़ भी सुनाई दी जो किसी रमेश से कह रहा था ‘इतना ही काफी है। रात के दो बज गए हैं। इस की बिक्री का दस प्रतिशत मेरा होगा।’ उसने उत्तर: दिया था कि ज़रूर दूंगा। इस के बाद शान्ति छा गई थी। सुनन्दा गुगु को पट्टे से खींचती हुई घर आ गई, परन्तु सो न सकी।
सुबह हुई तो सुनन्दा ने रावगुरु को रात की सारी घटना बता दी। वे उटकमंड में पुलिस मुख्यालय गए, जहाँ रावगुरु के साथ सुनन्दा को भी बुलाया गया और उससे पूछताछ की गई। रावगुरु ने सुनन्दा को बताया कि यदि मुदालियर के विरुद्ध प्रमाण मिले तो उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा। एक महीने बाद रावगुरु ने सुनन्दा को बताया कि चन्दन की लकड़ी की चोरी का भंडाफोड़ करने के लिए उसे पुलिस विभाग ने इनाम दिया है। मामी भी बहुत प्रसन्न होकर देवी लक्ष्मी को खीर का भोग लगाने की बात कहने लगी। सुनन्दा को राष्ट्रीय अन्धविद्यालय में दाखिल कराने का निश्चय किया गया और उसके इनाम की राशि बैंक में जमा करा दी गई, जिससे वह अपना जीवन ठीक से चला सके। सुनन्दा के पास रावगुरु को धन्यवाद करने के लिए शब्द नहीं थे।
Conclusion:
“चन्दन का पेड़” का संग्रहण हमें यह सिखाता है कि विशेषता और आकर्षण बाहरी रूप से हो सकते हैं, लेकिन असली खूशियाँ और सुख आत्म-समर्पण, मानवीय भावनाओं में छिपी होती हैं। इस कहानी के माध्यम से हमें यह भी सिखने को मिलता है कि हमें प्राकृतिक संसाधनों का सही तरीके से संरक्षण करना चाहिए, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियों को भी इनका आनंद उठाने का मौका मिले। यह कहानी हमें सरलता, सादगी, और प्रेम की महत्वपूर्ण भूमिका को समझाती है।