“सहर्ष स्वीकारा है” एक कविता है जो एक व्यक्ति के जीवन के विभिन्न अनुभवों को दर्शाती है। कवि कहता है कि उसने अपने जीवन में आई सभी अच्छी और बुरी चीजों को सहर्ष स्वीकार किया है।
सहर्ष स्वीकारा है Summary in Hindi
सहर्ष स्वीकारा है कवि परिचय :
गजानन माधव मुक्तिबोध’ जी का जन्म 13 नवंबर 1917 को शिवपुरी जिला मुरैना ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। आपकी प्रारंभिक शिक्षा उज्जैन में हुई। 1938 में बी.ए. पास करने के पश्चात आप उज्जैन के मॉडर्न स्कूल में अध्यापक हो गए।
1954 में एम.ए. करने पर राजनाँद गाँव के दिग्विजय कॉलेज में प्राध्यापक पद पर नियुक्त हुए। यहाँ रहते हुए उन्होंने अंग्रेजी, फ्रेंच, तथा रुसी उपन्यासों के साथ जासूसी उपन्यासों, वैज्ञानिक उपन्यासों, विभिन्न देशों के इतिहास तथा विज्ञान विषयक साहित्य का गहन अध्ययन किया।
आप नई कविता के सर्वाधिक चर्चित कवि रहे हैं। प्रकृति प्रेम, सौंदर्य, कल्पनाप्रियता के साथ सर्वहारा वर्ग के आक्रोश तथा विद्रोह के विविध रूपों का यथार्थ चित्रण आपके काव्य की विशेषता है। 1962 में उनकी अंतिम रचना ‘भारत : इतिहास और संस्कृति’ प्रकाशित हुई। मुक्तिबोध जी की मृत्यु 1964 में हुई।
प्रमुख रचनाएँ : कविता संग्रह : ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’, ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ तथा तारसप्तक में प्रकाशित रचनाएँ।
कहानी संग्रह : काठ का सपना, सतह से उठता आदमी
उपन्यास : विपात्र
आलोचना : कामायनी – एक पुनर्विचार, नई कविता का आत्मसंघर्ष, नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, समीक्षा की समस्याएँ।
इतिहास : भारत : इतिहास और संस्कृति
रचनावली : मुक्तिबोध रचनावली (सात खंड)
सहर्ष स्वीकारा है काव्य परिचय :
प्रस्तुत नई कविता ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ काव्य-संग्रह से ली गई है। एक होता है – स्वीकारना और दूसरा होता है – सहर्ष स्वीकारना यानी खुशी-खुशी स्वीकार करना। यह कविता जीवन के सब सुख-दु:ख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक को सम्यक भाव से स्वीकार करने की प्रेरणा देती है। कवि को जहाँ से यह प्रेरणा मिली कविता प्रेरणा के उस उत्स (spring) तक भी हमको ले जाती है।
उस विशिष्ट व्यक्ति या सत्ता के इसी ‘सहजता’ के चलते उसको स्वीकार किया था। कुछ इस तरह स्वीकार किया था कि आज तक सामने नहीं भी है तो भी आस-पास उसके होने का एहसास है।
कवि कहता है कि मेरे इस जीवन में जो कुछ भी है, उसे मैं खुशी से स्वीकार करता हूँ। इसलिए मेरा जो कुछ भी है, वह उसको (माँ या प्रिया) अच्छा लगता है। मेरी स्वाभिमानयुक्त गरीबी, जीवन के गंभीर अनुभव, विचारों का वैभव, व्यक्तित्व की दृढ़ता, मन में बहती भावनाओं की नदी – ये सब मौलिक हैं तथा नए हैं। इनकी मौलिकता का कारण यह है कि मेरे जीवन में हर क्षण जो कुछ घटता है, जो कुछ जाग्रत है, उपलब्धि है, वह सब कुछ तुम्हारी प्रेरणा से हुआ है।
कवि कहता है कि तुम्हारे हृदय के साथ न जाने कौन सा संबंध है या न जाने कैसा नाता है कि मैं अपने भीतर समाए हुए तुम्हारे प्रेममय जल को जितना बाहर निकालता हूँ, वह पुन: अंत:करण में भर आता है। ऐसा लगता है मानो दिल में कोई झरना बह रहा है।वह स्नेह मीठे पानी के स्रोत के समान है जो मेरे अंतर्मन को तृप्त करता रहता है। इधर मन में प्रेम है और ऊपर से तुम्हारा चाँद जैसा मुस्कराता हुआ सुंदर चेहरा अपने अद्भुत सौंदर्य के प्रकाश से मुझे नहलाता रहता है। यह स्थिति उसी प्रकार की है जिस प्रकार आकाश में मुस्कराता हुआ चंद्रमा पृथ्वी को अपने प्रकाश से नहलाता रहता है।
कवि अपने प्रिय स्वरूपा को भूलना चाहता है। वह चाहता है कि प्रिय उसे भूलने का दंड दे। वह इस दंड को भी सहर्ष स्वीकार करने के लिए तैयार है। प्रिय को भूलने का अंधकार कवि के लिए दक्षिणी ध्रुव पर होने वाली छह मास की रात्रि के समान होगा। वह उस अंधकार में लीन हो जाना चाहता है।
वह उस अंधकार को अपने शरीर व हृदय पर झेलना चाहता है। इसका कारण यह है कि प्रिय के स्नेह के उजाले ने उसे घेर लिया है। प्रिय की ममता या स्नेह रूपी बादल की कोमलता सदैव मेरे मन को अंदर ही – अंदर पीड़ा पहुँचाती है। इसके कारण मेरी अंतरात्मा कमजोर और क्षमताहीन हो गई है।
जब मैं भविष्य के बारे में सोचता हूँ तो मुझे डर लगने लगता है कि कभी उसे अपनी प्रियतमा (माँ या प्रिया) के प्रभाव से अलग होना पड़ा तो वह अपना अस्तित्व कैसे बचाए रख सकेगा। अब उसे उसका बहलाना-सहलाना और रह-रहकर अपनापन जताना सहन नहीं होता। वह आत्मनिर्भर बनना चाहता है। कवि कहता है कि मैं अपनी प्रियतमा (सबसे प्यारी स्त्री) के स्नेह से दूर होना चाहता हूँ। वह उसी से दंड की याचना करता है।
वह ऐसा दंड चाहता है कि प्रियतमा के न होने से वह पाताल की अँधेरी गुफाओं व सुरंगो में खो जाए। ऐसी जगहों पर स्वयं का अस्तित्व भी अनुभव नहीं होता या फिर वह धुएँ के बादलों के समान गहन अंधकार में लापता हो जाए जो उसके न होने से बना हो। ऐसी जगहों पर भी उसे अपनी प्रियतमा का ही सहारा है।
उसके जीवन में जो कुछ भी है या जो कुछ उसे अपना-सा लगता है, वह सब उसके कारण है। उसकी सत्ता, स्थितियाँ भविष्य की उन्नति या अवनति की सभी संभावनाएँ प्रियतमा के कारण है। कवि का हर्ष-विषाद, उन्नति-अवनति सदा उससे ही संबंधित है। कवि ने हर सुख-दु:ख, सफलता-असफलता को प्रसन्नतापूर्वक इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि प्रियतमा ने उन सबको अपना माना है। वे कवि के जीवन से पूरी तरह जुड़ी हुई है।
Conclusion
“सहर्ष स्वीकारा है” एक प्रेरणादायक कविता है। यह कविता हमें सिखाती है कि हमें अपने जीवन में आने वाले सभी अनुभवों को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। चाहे वे अच्छे हों या बुरे, हमें उनसे सीखना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए।