“दृढ़ निश्चयी सुशीला” एक कहानी है जो एक महिला सुशीला के उद्देश्यों के प्रति उसके अदम्य संकल्प को दर्शाती है। इस कहानी में हम उसके जीवन के महत्वपूर्ण पलों की यात्रा का साक्षात्कार करते हैं, जो उसे सफलता की ओर ले जाते हैं। “दृढ़ निश्चयी सुशीला” हमें यह सिखाती है कि अगर हमारा निश्चय दृढ़ हो, तो हम किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं। Read More Class 6 Hindi Summaries.
दृढ़ निश्चयी सुशीला Summary In Hindi
दृढ़ निश्चयी सुशीला पाठ का सार
कुमारी सुशीला अपनी माँ के साथ अपने ननिहाल राजस्थान में टोंक जिले के हनुमनपुरा में रहती थी। उसके पिता का देहान्त हो चुका था। वह खूब मन लगाकर पढ़ती थी। उसकी माँ और नाना को उसकी शादी की चिन्ता थी। वे उसके लिए वर ढूँढ़ने में लग गए। आठवीं कक्षा में पढ़ रही सुशीला को एक दिन जब उसकी माँ ने बताया कि उसके लिए योग्य वर ढूँढ लिया है और जल्दी ही शादी कर देंगे, सुनकर उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। तेरह वर्ष की सुशीला ने ऐसा कभी नहीं सोचा था कि इतनी जल्दी उसकी शादी कर दी जाए। उसने माँ से इसका विरोध किया। सुशीला पर बिरादरी के लोगों के द्वारा भी दबाव बनाया गया। उसे भूखा-प्यासा भी रखा गया और यहाँ तक कि उसे मारा-पीटा भी गया। लेकिन सुशीला अपने इरादे पर डटी रही।।
एक दिन मौका पाकर सुशीला अपने ननिहाल से भाग कर अपने ताया जी के घर पहुँच गई। उसे विश्वास था कि वे उसकी सहायता अवश्य करेंगे। उसके ताया ने उसे राजस्थान के मुख्यमन्त्री और पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखने को कहा। पुलिस ने इस मामले को गम्भीरता से लेते हुए इसमें हस्तक्षेप किया और सुशीला की माँ और नाना को समझाया कि बाल-विवाह एक कानूनी अपराध है। सुशीला के घर वालों को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्हें सुशीला के पक्के इरादों के आगे झुकना ही पड़ा।
सुशीला की इस बहादुरी के लिए उसे स्कूल तथा जिले में सम्मानित किया गया। अपनी इसी बहादुरी और पक्के इरादे के कारण उसे नई दिल्ली में 24 जनवरी, सन् 2007 को प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह से राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।
Conclusion:
“दृढ़ निश्चयी सुशीला” हमें यह सिखाती है कि दृढ़ निश्चय और संकल्प से जीवन की हर मुश्किल को पार किया जा सकता है। सुशीला की कहानी हमें यह सिखाती है कि सपनों का पीछा करना और उन्हें पूरा करने के लिए कठिनाइयों का सामना करना हमारे व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन को साझा और उत्कृष्ट बना सकता है। यह कहानी हमें उत्साह और समर्पण की महत्वपूर्ण भूमिका दिखाती है और हमें यह याद दिलाती है कि हालातों के बावजूद, हम अपने लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं जब हमारा निश्चय मजबूत होता है।