कबीर दोहावली Summary In Hindi

Kabir Dohavali consists of a series of dohas, each typically composed of two lines (couplets) that convey profound spiritual and ethical teachings. These dohas explore a wide range of themes, including the nature of God, the human condition, the path to spiritual realization, and the importance of leading a virtuous life. Read More Class 9 Hindi Summaries.

कबीर दोहावली Summary In Hindi

कबीर दोहावली कवि परिचय

कवि-परिचय :
संत कबीर हिंदी-साहित्य के भक्तिकाल की महान् विभूति थे। उन्होंने अपने बारे में कुछ न कह कर भक्त, सुधारक और साधक का कार्य किया था। उनका जन्म सन् 1398 ई० में काशी में हुआ था तथा उनकी मृत्यु सन् 1518 में काशी के निकट मगहर नामक स्थान पर हुई थी। उनका पालन-पोषण नीरु और नीमा नामक एक जुलाहा दंपति ने किया था। कबीर विवाहित थे। उनकी पत्नी का नाम लोई था। उनका एक पुत्र कमाल और एक पुत्री कमाली थे।।

रचनाएँ:
कबीर निरक्षर थे पर उनका ज्ञान किसी विद्वान् से कम नहीं था। वे मस्तमौला, फक्कड़ और लापरवाह फकीर थे। वे जन्मजात विद्रोही, निर्भीक, परम संतोषी और क्रांतिकारक सुधारक थे। कबीर की एकमात्र प्रामाणिक रचना ‘बीजक’ है, जिसके तीन भाग-साखी, सबद और रमैणी हैं। उनकी इस रचना को उनके शिष्यों ने संकलित किया था।

विशेषताएँ:
कबीर निर्गुणी थे। उनका मानना था कि ईश्वर इस विश्व के कण-कण में विद्यमान है। वह फूलों की सुगंध से भी पतला, अजन्मा और निर्विकार है। कबीर ने गुरु को परमात्मा से भी अधिक महत्त्व दिया है क्योंकि परमात्मा की कृपा होने से पहले गुरु की कृपा का होना आवश्यक है। कबीर ने विभिन्न अंधविश्वासों, रूढ़ियों और आडंबरों का कड़ा विरोध किया था। उन्होंने जाति-पाति और वर्ग-भेद का विरोध किया। वे शासन, समाज, धर्म आदि समस्त क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन चाहते थे।

कबीर की भाषा जन-भाषा के बहुत निकट थी। उन्होंने साखी, दोहा, चौपाई की शैली में अपनी वाणी प्रस्तुत की थी। उनकी भाषा में अवधी, ब्रज, खड़ी बोली, पूर्वी हिंदी, फारसी, अरबी, राजस्थानी, पंजाबी आदि के शब्द बहुत अधिक हैं। इसलिए इनकी भाषा को खिचड़ी या सधुक्कड़ी भी कहते हैं।

कबीर दोहावली दोहों का सार

कबीरदास द्वारा रचित ‘कबीर दोहावली’ के बारह दोहों में नीति से संबंधित बात कही गई है। इनमें संत कवि ने सत्य-आचरण, सच्चे साधु की पहचान तथा अन्न-जल के मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव आदि का वर्णन किया है। कवि के अनुसार सच्चे व्यक्ति के हृदय में प्रभु निवास करते हैं। सच्चा साधु भाव का भूखा होता है तथा जैसा हम अन्नजल ग्रहण करते हैं वैसा ही हमारा आचरण होता है। सज्जन व्यक्ति बुरे लोगों के साथ रहकर भी अपनी अच्छाई नहीं छोड़ता। संसार में अपने अतिरिक्त कोई बुरा नहीं होता। धैर्य से ही सब कार्य होते हैं। साधु की जाति नहीं ज्ञान देखना चाहिए। सभी इन्सानों को अपने मन की चंचलता को वश में करना चाहिए। किसी भी बात की अति सदा हानिकारक होती है तथा ईश्वर का स्मरण एकाग्र भाव से करना चाहिए। कभी भी आज का काम कल पर नहीं टालना चाहिए क्योंकि मृत्यु के बाद तो वह काम हमारे द्वारा फिर कभी भी नहीं हो सकेगा।।

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