मैं उद्घोषक Summary in Hindi

मैं उद्घोषक” एक आत्मकथात्मक कहानी है, जो एक उद्घोषक के जीवन और अनुभवों को दर्शाती है। इस कहानी में, उद्घोषक अपने करियर की शुरुआत से लेकर सफलता तक के सफर को बताता है। वह अपने संघर्षों और चुनौतियों के बारे में भी बताता है।

मैं उद्घोषक Summary in Hindi

मैं उद्घोषक लेखक का परिचय

मैं उद्घोषक लेखक का नाम :
आनंद प्रकाश सिंह। (जन्म : 21 जुलाई, 1958.)

मैं उद्घोषक प्रमुख कृतियाँ :
पत्र-पत्रिकाओं में विभिन्न विषयों पर लेख, समीक्षाएँ, कहानियाँ, कविताएँ आदि प्रकाशित।

मैं उद्घोषक विशेषता :
पंडित भीमसेन जोशी तथा कई अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों द्वारा लेखक के सूत्र-संचालन की प्रशंसा। किंग ऑफ वॉईस, संस्कृति शिरोमणि तथा अखिल आकाशवाणी जैसे पुरस्कारों से सम्मानित।

मैं उद्घोषक विधा :
आत्मकथा। आत्मकथा लेखन हिंदी साहित्य में रोचक और पठनीय लेखन माना जाता है। अपने अनुभवों तथा व्यक्तिगत प्रसंगों को पूरी निष्ठा से बताना आत्मकथा की पहली शर्त है। आत्मकथा उत्तम पुरुष वाचक सर्वनाम ‘मैं’ में लिखी जाती है।

मैं उद्घोषक विषय प्रवेश :
आजकल मंच संचालन अथवा सूत्र संचालन बहुत लोकप्रिय और महत्त्वपूर्ण माना जाता है। लेखक एक सफल मंच संचालक और सूत्र संचालक रहे हैं। प्रस्तुत लेख में उन्होंने बताया है कि सफल उद्घोषक अथवा मंच संचालक बनने के लिए व्यक्ति में कौन-कौन से आवश्यक गुण होने चाहिए। लेखक के अनुसार कार्यक्रम की सफलता मंच संचालक अथवा सूत्र संचालक के आकर्षक एवं उत्तम संचालन तथा उसके अपने विशेष गुणों पर आधारित होती है।

मैं उद्घोषक पाठ का सार

प्रस्तुत पाठ में यह बताया गया है कि एक सफल उद्घोषक बनने के लिए व्यक्ति में कौन-कौन से गुण होने चाहिए और इसमें रोजगार की क्या संभावनाएँ हैं। इस लेख के लेखक स्वयं लंबे अरसे तक एक प्रतिष्ठित उद्घोषक रहे हैं। इस आत्मकथात्मक लेख में उन्होंने अपने अनुभव से अर्जित अनेक गुणों से परिचित कराया है।

मैं उद्घोषक Summary in Hindi

उद्घोषक, मंच संचालक और एंकर अलग-अलग नाम हैं उद्घोषक के। यह श्रोता और वक्ता को जोड़ने वाली कड़ी का काम करता है। किसी भी कार्यक्रम में मंच संचालक की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। उद्घोषक ही आयोजकों तथा अतिथियों को मंच पर आमंत्रित करता है तथा पूरे कार्यक्रम का संचालन करता है।

उदघोषक बनने के लिए कठिन अभ्यास की आवश्यकता होती है। आरंभ में मंच पर बोलने में सबको झिझक होती है। पर हिम्मत जुटाकर अभ्यास करते रहने से यह झिझक दूर हो जाती है। अधिकांश मंच संचालकों के साथ ऐसी घटनाएँ अकसर होती हैं। धीरे-धीरे उनमें आत्मविश्वास आ जाता है।

सूत्र संचालन के कई प्रकार होते हैं। इसके मुख्य प्रकार हैं – शासकीय कार्यक्रम का सूत्र संचालन, दूरदर्शन हेतु सूत्र संचालन, रेडियो हेतु सूत्र संचालन, राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक
कार्यक्रमों का सूत्र संचालन।

शासकीय एवं राजनीतिक समारोहों के सूत्र संचालन में प्रोटोकॉल १ का ध्यान रखते हुए अधिकारियों के पदों के अनुसार नामों की सूची बनाकर किसका किसके हाथों स्वागत करना है, इसकी योजना बनानी पड़ती है। इसमें आलंकारिक भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

दूरदर्शन तथा रेडियो कार्यक्रम का सूत्र संचालन करने के लिए इन पर प्रसारित किए जाने वाले कार्यक्रमों की पूरी जानकारी होनी जरूरी है। इनके कार्यक्रमों की संहिता लिखकर तैयार करनी होती है।

सूत्र संचालन करते समय रोचकता, रंजकता तथा विभिन्न प्रसंगों का उल्लेख कार्यक्रम में करने से उसमें जान आ जाती है। कार्यक्रम और श्रोताओं के अनुसार भाषा का प्रयोग जरूरी होता है।

सत्र संचालक को यह ध्यान रखना होता है कि जिस प्रकार का कार्यक्रम हो उसी तरह की उसकी तैयारी की जानी चाहिए और उसी तरह उसकी संहिता लेखन करना चाहिए। संचालक को चाहिए कि वह संचालन के लिए आवश्यक तत्त्वों का अध्ययन करे।

सूत्र संचालक में कुछ गुणों का होना आवश्यक है। उसे मिलनसार, हँसमुख, हाजिरजवाबी तथा विविध विषयों का जानकार होने के साथ भाषा पर उसका अधिकार होना चाहिए। इसके अलावा उसे आयोजकों की ओर से अचानक मिली सूचना के अनुसार संहिता में परिवर्तन कर संचालन करना आना चाहिए।

लेखक कहते हैं कि कार्यक्रम कोई भी हो, मंच संचालक को मंच की गरिमा बनाए रखनी चाहिए। मंच पर आने वाला पहला व्यक्ति मंच संचालक होता है। अतएव उसका परिधान, वेशभूषा, केश सज्जा आदि सहज और गरिमामय होना चाहिए। उसका व्यक्तित्व और आत्मविश्वास उसके शब्दों में उतरना चाहिए।

सतर्कता, सहजता और उत्साह वर्धन उद्घोषक के मुख्य गुण हैं। उद्घोषक को कार्यक्रम का आरंभ रोचक ढंग से करना चाहिए। बीच-बीच में प्रसंग के अनुसार चुटकुले, शेर-ओ-शायरी के अंश का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए उद्घोषक को निरंतर अध्ययन करते रहना होता है।

उपर्युक्त बातों पर ध्यान देने वाला व्यक्ति अच्छा उद्घोषक बन सकता है। मंच पर उद्घोषक श्रोता एवं दर्शकों के समक्ष होता है, पर रेडियो और कभी-कभी टीवी का सूत्रधार परदे के पीछे होता है। उसकी केवल आवाज सुनाई देती है। लेकिन उसका दायरा विस्तृत होता है। तब उसको अपनी आवाज का कमाल दिखाना होता है।

इस क्षेत्र में रोजगार की पर्याप्त संभावनाएँ हैं। विशेषकर भाषा का अध्ययन करने वाले विद्याथियों के लिए। सूत्र संचालन में तो भाषा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

Conclusion

“मैं उद्घोषक” एक अच्छी तरह से लिखी गई कहानी है, जो पाठकों को प्रेरित और प्रभावित करती है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सफलता के लिए कड़ी मेहनत और लगन आवश्यक है।

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