“नर हो, न निराश करो मन को” एक प्रसंगिक उपदेशपूर्ण हिंदी कविता है जो सुमित्रानंदन पंत द्वारा रची गई है। यह कविता मनुष्य को संघर्षों में हार नहीं मानने और निराश नहीं होने की प्रेरणा देती है। कवि द्वारा व्यक्त की गई शिक्षाएँ मनोबल को बढ़ाने और सकारात्मक सोच को प्रोत्साहित करने के लिए हैं। Read More Class 6 Hindi Summaries.
नर हो, न निराश करो मन को Summary In Hindi
नर हो, न निराश करो मन को कविता का सार
कवि मनुष्य को शिक्षा देते हुए कहता है कि तुम अपने में निराशा के भाव कभी मत लाओ। तुम नर हो और तुम्हारा कार्य परिश्रम करना है। व्यर्थ में अपना जीवन मत गंवाओ। यह संसार सपना नहीं। तुम ईश्वर का नाम लेकर इसमें अपना रास्ता स्वयं चुनो। अपने लक्ष्य को निश्चित कर तुम अपनी मंजिल की ओर बढ़ो। ईश्वर ने तुम्हें दो हाथ दिए हैं। उनसे परिश्रम करो और किसी भी धन को अप्राप्य न समझो। तुम ईश्वर के गुणों को प्राप्त कर धरती पर उत्पन्न हुए हो। इसलिए तुम्हारे लिए कोई भी कार्य करना कठिन नहीं है। तुम तन-मन से परिश्रम करो।
Conclusion:
“नर हो, न निराश करो मन को” कविता का संक्षेपन करते समय, हम देखते हैं कि यह कविता मनुष्य के आत्म-संघर्ष और उत्साह की महत्वपूर्ण भूमिका को बताती है। कवि ने हमें निराश नहीं होने की महत्वपूर्ण संदेश दिया है और हमें सकारात्मक सोच का पालन करने की सलाह दी है। इसके माध्यम से कवि ने मानव जीवन में उत्कृष्टता की ओर प्रोत्साहित किया है।