कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ की रचित रचना “पाप के चार हथियार” एक व्यंग्यात्मक निबंध है। इस निबंध में लेखक ने संसार में व्याप्त पाप, अत्याचार और अन्याय के कारणों पर विचार किया है। उन्होंने पाप को एक ऐसी शक्ति के रूप में चित्रित किया है जो लोगों को अपने वश में कर लेती है और उन्हें अन्याय और अत्याचार करने के लिए प्रेरित करती है।
पाप के चार हथियार Summary in Hindi
पाप के चार हथियार लेखक का परिचय
पाप के चार हथियार लेखक का नाम : कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’। (जन्म : 26 सितंबर, 1906; निधन : 1995.)
प्रमुख कृतियाँ : ‘धरती के फूल’ (कहानी संग्रह)। ‘जिंदगी मुस्कुराई’, ‘बाजे पायलिया के घूघरू’, ‘जिंदगी लहलहाई’, ‘महके आँगन – चहके द्वार’ (निबंध संग्रह), ‘दीप जले शंख बजे’, ‘माटी हो गई सोना’ (संस्मरण एवं रेखाचित्र) आदि।
पाप के चार हथियार विशेषता : कथाकार, निबंधकार, पत्रकार तथा स्वतंत्रता सेनानी। आपने पत्रकारिता में स्वतंत्रता के स्वर को ऊँचा उठाया। आपका संपूर्ण साहित्य मूलतः सामाजिक सरोकारों का शब्दांकन है। आप पद्मश्री सम्मान से विभूषित हैं।
पाप के चार हथियार विधा : निबंध। निबंध का अर्थ है विचारों को भाषा में व्यवस्थित रूप से बाँधना। इसमें वैचारिकता का अधिक महत्त्व होता है तथा विषय को सहजता से रखने का सामर्थ्य होता है।
पाप के चार हथियार विषय प्रवेश : संसार भर के अनेक संतों, महात्माओं, महापुरुषों, विचारकों, दार्शनिकों तथा समाज सुधारकों ने मनुष्य जाति को पाप, अपराध तथा दुष्कर्मों से मुक्त कराने के लिए अथक प्रयास किया है, पर आज तक संसार में अन्याय, अत्याचार, भ्रष्टाचार, पाप और दुष्कर्मों का अंत नहीं हो पाया है। इसका कारण यह है कि लोगों को इन संतों, महात्माओं और समाज सुधारकों के प्रति श्रद्धा तो होती है, पर वे उनके द्वारा व्यक्त विचारों को अपने आचरण में गंभीरतापूर्वक नहीं उतारते। ऐसा क्यों होता है? लेखक ने प्रस्तुत निबंध में यही बताने का प्रयास किया है।
पाप के चार हथियार पाठ का सार
संसार में सदा से पाप, अपराध, अन्याय, अत्याचार, दुष्कर्म एवं भ्रष्टाचार का बोलबाला रहा है। संसार के कई महापुरुषों, विचारकों, सुधारकों एवं संतों ने मानव जाति को इनसे मुक्ति दिलाने के लिए अथक प्रयास किए हैं, पर यह समस्या आज भी पहले जैसे सर्वत्र व्याप्त है। इसका मुख्य कारण रहा है विचारकों तथा सुधारकों को लोगों का सहयोग न मिलना। इनकी कही गई बातों पर ध्यान न देना। उनके विचारों को आचरण में न उतारना। यही कारण है कि सुधारक अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाते।
लेखक कहते हैं कि बुराइयों के विरुद्ध सुधारक की बातें लोगों को किसी पागल व्यक्ति की बकवास लगती हैं, जिन्हें वे सुनना ही नहीं चाहते। यदि कभी एकाध बात सुन लेते हैं, तो उसकी निंदा करते नहीं थकते और उस पर लोगों को बेवकूफ बनाने का आरोप लगाने लगते हैं। लेखक कहते हैं कि जब सुधारक का स्वर कुछ प्रखर हो जाता है, तो सामाजिक बुराइयों के लिए यह स्थिति कठिन हो जाती है और ऐसे में सुधारक की हत्या भी हो जाती है। वे कहते हैं कि सुकरात, ईसा और दयानंद की हत्या इसी तरह हुई थी।
लेकिन इसके बाद स्थिति में एकदम बदलाव आ जाता है। सुधारक के विचारों का विरोध करने वाले लोगों के मन में उसके प्रति श्रद्धा उमड़ पड़ती है। इसके बाद उसे भगवान, तीर्थकर, अवतार, पैगंबर और संत, महाप्रभु की संज्ञा दी जाने लगती है। अब वह लोगों के लिए सामान्य सुधारक न रहकर विशिष्ट व्यक्ति हो जाता है। उसके स्मारक और मंदिर बनने लगते हैं।
उसकी प्रशंसा होने लगती है। लेखक कहते हैं कि यहीं सुधारक और उसके सिद्धांत की पराजय हो जाती है। यही कारण है कि अनेक महापुरुषों, विचारकों, सुधारकों एवं संतों द्वारा इन सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए किए गए प्रयास सफल न हो पाए।
Conclusion
लेखक के अनुसार, पाप से मुक्ति पाने के लिए अज्ञान, लालच, क्रोध और मोह से मुक्त होना आवश्यक है। इसके लिए हमें अपने अंदर सद्ज्ञान, सदाचार, सदभाव और सदाशयता को विकसित करना चाहिए।
लेखक ने इस निबंध के माध्यम से यह संदेश दिया है कि पाप एक ऐसी शक्ति है जो लोगों को अपने वश में कर लेती है और उन्हें अन्याय और अत्याचार करने के लिए प्रेरित करती है। पाप से मुक्ति पाने के लिए हमें अपने अंदर सद्गुणों को विकसित करना चाहिए।