‘Paanch Marjeewe‘ Poet ‘Yogendra Bakshi’ has effectively depicted the historical event of the foundation of Khalsa Panth in the poem ‘Paanch Marjeewe‘. Read More Class 9 Hindi Summaries.
पाँच मरजीवे Summary In Hindi
योगेन्द्र बख्शी कवि-परिचय
जीवन परिचय:
डॉ. योगेन्द्र बख्शी का जन्म सन् 1939 ई० में जम्मू तवी में हुआ था। इन्होंने हिन्दी-साहित्य में एम०ए० करने के बाद पीएच०डी० की उपाधि प्राप्त की थी। अध्यापक के साथ-साथ इनका लेखन कार्य भी चलता रहा। राजकीय महेन्द्रा कॉलेज, पटियाला के स्नातकोत्तर हिन्दी-विभाग के अध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त होकर भी ये साहित्यसाधना में लीन हैं।
रचनाएँ:
काव्य रचनाएँ-सड़क का रोग, खुली हुई खिड़कियाँ, कि सनद रहे, आदमीनामा : सतसई, गज़ल के .. रूबरू।
आलोचना:
प्रसाद का काव्य तथा कामायनी, हिन्दी तथा पंजाबी उपन्यास का तुलनात्मक अध्ययन। संपादित पुस्तकें-निबंध परिवेश, काव्य विहार, गैल गैल, आओ हिन्दी सीखें : आठ । बाल साहित्य-बंदा बहादुर, मैथिलीशरण गुप्त। अनुवाद-पैरिस में एक भारतीय- एस०एस० अमोल के यात्रा वृत्तांत का अनुवाद । विशेषताएँ-इनके काव्य में आस-पास के जीवन की घटनाओं का अत्यंत यथार्थ चित्रण प्राप्त होता है। ‘पाँच मरजीवे’ कविता में कवि ने खालसा पंथ की नींव की ऐतिहासिक घटना का अत्यंत स्वाभाविक चित्रण किया है।
पाँच मरजीवे कविता का सार
कविता का सार कवि ‘योगेन्द्र बख्शी’ जी ने ‘पाँच मरजीवे’ कविता में खालसा पंथ की नींव की ऐतिहासिक घटना का प्रभावशाली ढंग से चित्रण किया है। औरंगज़ेब के जुल्मों से दुःखी हिन्दुओं में नई चेतना जागृत करने के लिए गुरु गोबिन्द सिंह जी ने आन्नदपुर साहिब में सन् 1699 ई० में बैसाखी वाले दिन लोगों से धर्म की रक्षा के लिए एक ऐसे पुरुष की मांग जो धर्म के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर सके। उनकी यह मांग सुनकर चारों ओर सन्नाटा छा गया। अचानक भीड़ में से लाहौर निवासी खत्री दयाराम आगे आया और धर्म की बेदी पर बलिदान होने के लिए गुरु गोबिन्द सिंह जी के पास चला गया। गुरु गोबिन्द सिंह जी उसे लेकर अन्दर गए और बाहर खड़े लोगों ने सिर कटने की आवाज़ सुनी। इस प्रकार गुरु गोबिन्द सिंह ने बारी-बारी और चार व्यक्ति मांगे।
हस्तिनापुर का जाट धर्मराय, द्वारिका के मोहकम चन्द धोबी, बिदर के साहब चन्द नाई और पुरी के हिम्मतराय ने भी अपने को बलिदान के लिए प्रस्तुत किया। थोड़ी देर बाद लोगों ने उन पाँचों को गुरु जी के साथ तम्बू के बाहर जीवित खड़े देखा तो लोग हैरान रह गए। उस दिन उन पाँच लोगों के आत्मबलिदान की मांग करके उन्होंने खालसा पंथ की नींव डाली। उस खालसा पंथ ने हिन्दुओं के लिए औरंगजेब के अत्याचारों का विरोध किया। बाद में इसी खालसा पंथ ने सिक्ख सम्प्रदाय रूप में अपनी पहचान भी स्थापित की।
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