“Panch Parmeshwar Summary,” The novel explores various themes such as social inequality, poverty, the exploitation of the rural poor, and the impact of caste-based discrimination on individuals and communities. It also delves into the complexities of human relationships and the moral dilemmas faced by the characters. Read More Class 9 Hindi Summaries.
पंच परमेश्वर कहानी Summary In Hindi
मुंशी प्रेमचन्द लेखक-परिचय
जीवन परिचय:
मुंशी प्रेमचन्द हिन्दी-साहित्य के ऐसे प्रथम कलाकार हैं जिन्होंने साहित्य का नाता जन-जीवन से जोड़ा। उन्होंने अपने कथा-साहित्य को जन-जीवन के चित्रण द्वारा सजीव बना दिया है। वे जीवन भर आर्थिक अभाव की विषमं चक्की में पिसते रहे। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त आर्थिक एवं सामाजिक विषमता को बड़ी निकटता से देखा था। यही कारण है कि जीवन की यथार्थ अभिव्यक्ति का सजीव चित्रण उनके उपन्यासों एवं कहानियों में उपलब्ध होता है।
प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई, सन् 1880 ई० में वाराणसी जिले के लमही नामक ग्राम में हुआ था। उनका वास्तविक नाम धनपत राय था। आरम्भ में वे नवाबराय के नाम से उर्दू में लिखते थे। युग के प्रभाव ने उनको हिन्दी की ओर आकृष्ट किया। प्रेमचन्द जी ने कुछ पत्रों का सम्पादन भी किया। उन्होंने सरस्वती प्रेस के नाम से अपनी प्रकाशन संस्था भी
स्थापित की।
जीवन में निरन्तर विकट परिस्थितियों का सामना करने के कारण प्रेमचन्द जी का शरीर जर्जर हो रहा था। देशभक्ति के पथ पर चलने के कारण उनके ऊपर सरकार का आतंक भी छाया रहता था, पर प्रेमचन्द जी एक साहसी सैनिक के समान अपने पथ पर बढ़ते रहे। उन्होंने वही लिखा जो उनकी आत्मा ने कहा। वे बम्बई (मुम्बई) में पटकथा लेखक के रूप में अधिक समय तक कार्य नहीं कर सके क्योंकि वहाँ उन्हें फ़िल्म निर्माताओं के निर्देश के अनुसार लिखना पड़ता था। उन्हें स्वतन्त्र लेखन ही रुचिकर था। निरन्तर साहित्य साधना करते हुए 8 अक्तूबर, सन् 1936 को उनका स्वर्गवास हो गया। :
रचनाएँ: प्रेमचन्द की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
उपन्यास: वरदान, सेवा सदन, प्रेमाश्रय, रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला, प्रतिज्ञा, गबन, कर्मभूमि, गोदान एवं मंगलसूत्र (अपूर्ण)।
कहानी संग्रह: प्रेमचन्द जी ने लगभग 400 कहानियों की रचना की। उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं।
नाटक: कर्बला, संग्राम और प्रेम की वेदी। निबन्ध संग्रह- कुछ विचार।
साहित्यिक विशेषताएँ:
प्रेमचन्द जी प्रमुख रूप से कथाकार थे। उन्होंने जो कुछ भी लिखा, वह जन-जीवन का मुँह बोलता चित्र है। वे आदर्शोन्मुखी-यथार्थवादी कलाकार थे। उन्होंने समाज के सभी वर्गों को अपनी रचनाओं का विषय बनाया पर निर्धन, पीड़ित एवं पिछड़े हुए वर्ग के प्रति उनकी विशेष सहानुभूति थी। उन्होंने शोषक एवं शोषित दोनों वर्गों का बड़ा विशद् चित्रण किया है। ग्राम्य जीवन के चित्रण में प्रेमचन्द जी सिद्धहस्त थे।
भाषा शैली:
हिन्दी कथा साहित्य में कथा सम्राट के नाम से प्रसिद्ध प्रेमचन्द ने अपना समस्त साहित्य बोलचाल की हिन्दुस्तानी भाषा में लिखा है जिसमें लोक-प्रचलित उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत भाषाओं के सभी शब्दों का मिश्रित रूप दिखायी देता है। इनकी शैली वर्णनात्मक है जिसमें कहीं-कहीं संवादात्मक, विचारात्मक, चित्रात्मक, पूर्वदीप्ति आदि शैलियों के दर्शन भी हो जाते हैं। कहीं-कहीं इनकी शैली काव्यात्मक भी हो जाती है।
पंच परमेश्वर कहानी का सार/परिपाद्य
‘पंच-परमेश्वर’ मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित एक सुविख्यात कहानी है जिसका प्रकाशन सन् 1915 में हुआ था। हिन्दी साहित्य जगत में कुछ आलोचक पंच परमेश्वर’ कहानी को हिन्दी की प्रथम कहानी मानते हैं। सच्चे अर्थों में यह कहानी एक आदर्शवादी कहानी है।
जुम्मन शेख और अलगू चौधरी दोनों में बचपन से बहुत गहरी मित्रता थी। दोनों मिलकर साझे में खेती करते थे। दोनों को एक-दूसरे पर गहरा विश्वास था। दोनों एक-दूसरे के भरोसे अपना घर, सम्पत्ति छोड़ देते थे। उनकी मित्रता का मूल मंत्र उनके आपसी विचारों का मिलना था। जुम्मन शेख की एक बूढ़ी मौसी थी। मौसी के पास उसके अपने नाम से थोड़ी-सी ज़मीन थी। किंतु उसका कोई निकट संबंधी नहीं था।
जुम्मन ने मौसी से लम्बे-चौड़े वादे किए और ज़मीन को अपने नाम लिखवा लिया। जब तक ज़मीन की रजिस्ट्री नहीं हुई थी तब तक जुम्मन तथा उसके परिवार ने मौसी का खूब आदर-सत्कार किया। मौसी को तरह-तरह के पकवान खिलाए जाते थे। जिस दिन से रजिस्ट्री पर मोहर लगी, उसी समय से सभी प्रकार की सेवाओं पर भी मोहर लग गई। जुम्मन की पत्नी अब मौसी को रोटियां देने के साथ साथ कड़वी बातों के कुछ तेज सालन भी देने लगी थी। बात-बात में वह मौसी को कोसती रहती थी।
पंच परमेश्वर कहानी Summary
जुम्मन शेख भी मौसी का कोई ध्यान नहीं रखते थे। सभी बूढ़ी मौसी के मरने का इंतजार कर रहे थे। एक दिन जब मौसी से सहा नहीं गया तो उसने जुम्मन से कहा कि वह उसे रुपये दे दिया करे ताकि वह स्वयं अपना भोजन पकाकर खा सके। उसके परिवार के साथ अब उसका निर्वाह नहीं हो सकेगा। जब जुम्मन ने मौसी की बात को नकार दिया तो मौसी ने पंचायत करने की धमकी दे डाली। जुम्मन पंचायत करने की धमकी का स्वर सुनकर मन ही मन खूब प्रसन्न था। उसे पूर्ण विश्वास था कि पंचायत में उसी की जीत होगी।
सारा इलाका उसका ऋणी था, इसलिए उसे फैसले की तनिक भी चिंता न थी। वह पूर्णत: आश्वस्त था कि फैसला उसी के पक्ष में होगा। बूढ़ी मौसी कई दिनों तक लकड़ी का सहारा लिए गाँव-गाँव घूमती रही, वह सभी को अपनी दुःख भरी कहानी सुनाती रही। गाँव में दीन-हीन बुढ़िया का दुखड़ा सुनने वाले और उसे सांत्वना देने वाले लोग बहुत ही कम थे। सारे गाँव में घूमने के बाद अंत में घूमते-घूमते मौसी अलगू चौधरी के पास जाकर उसे पंचायत में आने का निमंत्रण देने लगी। अलगू चौधरी पंचायत में आने को तैयार हो गया। उसने मौसी से कहा कि जुम्मन उसका पक्का मित्र है इसलिए वह उसके विरोध में कुछ नहीं बोलेगा, वह वहाँ चुप चाप बैठा रहेगा। मौसी ने प्रतिवार करते हुए कहा कि-“क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे ?” मौसी द्वारा कहे गए इन शब्दों का अलगू के पास कोई उत्तर नहीं था।
आखिरकार एक दिन शाम के समय एक पेड़ के नीचे पंचायत बैठी। जुम्मन शेख ने पहले से ही फ़र्श बिछाया हुआ था। पंचायत में आने वाले सभी लोगों के सत्कार का उसने पूरा प्रबंध कर रखा था। उनके खाने के लिए पान, इलायची, हुक्के-तंबाकू आदि का पूर्ण प्रबंध कर रखा था।
पंचायत में जब कोई आता था तो वह दबे हुए सलाम के साथ उनका आदर-सत्कार करते हुए स्वागत करता था। पंचों के बैठने के बाद बूढ़ी मौसी अपनी करुण कहानी सुनाते हुए कहने लगी कि तीन वर्ष पहले उसने अपनी सारी जायदाद जुम्मन शेख के नाम लिखी थी। जुम्मन शेख ने भी उसे उम्र भर रोटी कपड़ा देना स्वीकार किया था। साल भर तो किसी तरह रो-पीट कर दिन निकाल लिए लेकिन अब अत्याचार नहीं सहे जाते। आप पंचों का जो भी आदेश होगा वह मैं स्वीकार करूँगी। सभी ने मिलकर अलगू चौधरी को सरपंच बना दिया। अलगू के सरपंच बनते ही जुम्मन आनंद से भर गए। उन्होंने अपने भाव अपने मन में रखते हुए कहा कि उन्हें अलगू का सरपंच बनना स्वीकार है। अलगू के सरपंच बनने पर रामधन मिश्र और जुम्मन के अन्य विरोधी-जन बुढ़िया को अपने मन ही मन कोसने लगे।
जुम्मन को अब फैसला अपनी तरफ आता दिखाई दे रहा था। पं द्वारा पूछा गया एक-एक प्रश्न जुम्मन को हथौड़े की एक-एक चोट के समान लग रहा था। अंततः अलगू चौधरी ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि बूढ़ी मौसी की जायदाद से इतना लाभ अवश्य होगा कि उसे महीने का खर्च दिया जा सके। इसलिए जुम्मन को मौसी को महीने का खर्च देना ही होगा। यदि जुम्मन को फैसला अस्वीकार है तो जायदाद की रजिस्ट्री रद्द समझी जाए। सभी ने अलगू के फैसले को खूब सराहा। फैसला सुनते ही जुम्मन सन्नाटे में आ गए।
अलगू के इस फैसले ने जुम्मन के साथ उसकी दोस्ती की जड़ों को पूरी तरह से हिला दिया था। जुम्मन दिन-रात बदला लेने की सोचता रहता था। शीघ्र ही जुम्मन की कुटिल सोच की प्रतिक्षा समाप्त हुई। अलगू चौधरी पिछले वर्ष ही बटेसर से बैलों की एक जोड़ी मोल खरीद लाया था। बैल पछाही जाति के थे। दुर्भाग्यवश पंचायत के एक महीने बाद अलगू का एक बैल मर गया। अब अकेला बैल अलगू के किसी काम का नहीं था। उसने बैल समझू साहू को बेच दिया। बैल की कीमत एक महीने बाद देने की बात निश्चित हुई। अब समझू साहू दिन में नया बैल मिलने से तीन-तीन, चार-चार खेपे करने लगे। उन्हें केवल काम से मतलब था।
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बैलों की देख-रेख तथा चारे से उन्हें कोई लेना-देना नहीं था। भोजन-पानी के अभाव में एक दिन सामान लाते हुए रास्ते में बैल ने दम तोड़ दिया। समझू साहू को मार्ग में ही रात बितानी पड़ी। सुबह जब वह उठे तो उनकी धन की थैली तथा तेल के कुछ कनस्तर चोरी हो चुके थे। समझू साहू रोते-पीटते घर पहुँचे।
काफी दिनों के बाद अलगू चौधरी अपने बैल की कीमत लेने समझू साहू के घर गए, किंतु साहू ने पैसे देने के स्थान पर अलगू को भला बुरा कहना शुरू कर दिया। अंतत: पंचायत बैठी। सरपंच जुम्मन शेख को चुना गया। सरपंच के रूप जुम्मन ने न्याय संगत फैसला सुनाया। उसने समझू साहू को कसूरवार मानते हुए अलगू को बैल की कीमत लेने का हकदार बताया। क्योंकि जिस समय समझू साहू ने बैल खरीदा था। उस समय वह पूर्णत: स्वस्थ था।
बैल की मृत्यु का कारण बीमारी न होकर अधिक परिश्रम करना था, जुम्मन के फैसले को सुनकर चारों तरफ ‘पंच परमेश्वर की जय’ का उद्घोष होने लगा। अलगू ने जुम्मन को गले से लगा लिया। दोनों के नेत्रों से गिरते आँसुओं ने दोनों के दिलों के मैल को धो दिया। दोनों की दोस्ती रूपी लता जो कभी मुरझा गई थी वह अब हरी-भरी हो गई थी।
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