The story named ‘Saaye‘ is a great work written by storyteller Himanshu Joshi. This is a character driven story. This story is very touching. In the modern era, due to greed for money and selfishness, man is moving away from his ideals. But even today there are many people in the society who are far above selfishness. He still loves his ideals. Ready to spend his whole life to keep the promise given to his friend. Read More Class 9 Hindi Summaries.
साए Summary In Hindi
साए लेखक-परिचय
जीवन परिचय- श्री हिमांशु जोशी बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार हैं। उन्होंने गद्य की विविध विधाओं की रचना कर हिन्दी-साहित्य में एक विशेष स्थान प्राप्त किया है। उनका जन्म कुमाऊँ के पर्वतीय अंचल में 4 मई, सन् 1935 ई० में हुआ। यहीं उनका बचपन व्यतीत हुआ। उनकी शिक्षा दीक्षा नैनीताल तथा दिल्ली में सम्पन्न हुई। बचपन से ही लेखन के प्रति उनकी रुचि थी। इसी रुचि के विकास ने उन्हें हिन्दी-साहित्य में ला खड़ा किया। उनकी पहली कहानी सन् 1954 ई० में प्रकाशित हुई। जोशी जी ने पत्रकारिता तथा स्वतन्त्र लेखन को अपनी जीविका को आधार बनाया। वे साप्ताहिक हिन्दुस्तान के विशेष संवाददाता के कार्यभार को सम्भाले हुए हैं।
रचनाएँ- जोशी जी ने कहानियाँ, उपन्यास, कविताएँ, यात्रा वृत्तान्त आदि गद्य की विभिन्न विधाओं तथा बाल साहित्य से सम्बन्धित लगभग 24 पुस्तकों की रचना की है। उनकी उल्लेखनीय रचनाएँ निम्नलिखित हैंउपन्यास-अरण्य, महासागर, छाया मत छूना मन, कगार की आग, समय साक्षी है, तुम्हारे लिए, सु-राज।
कहानी-संग्रह-अंततः, रथचक्र, मनुष्य, चिन्ह, जलते हुए डैने, इस बार बर्फ गिरी तो, इकहत्तर कहानियाँ गंधर्व गाथा, हिमांशु जोशी की इक्यावन कहानियाँ आदि। विशिष्ट रचनाओं का संग्रह-उत्तर पूर्व।
बाल साहित्य-तीन तारे, बचपन की याद रही कहानियाँ, सुबह के सूरज, हिम का साथी, विश्व की श्रेष्ठ लोककथाएँ, नार्वेः सूरज चमके आधी रात, कालापानी।
कविता-संग्रह-अग्नि सम्भव, नील नदी का वृक्ष, एक आँखर की कविता।
साहित्यिक विशेषताएँ-सहजता, सरलता तथा स्वाभाविकता हिमांशु जोशी की रचनाओं की उल्लेखनीय विशेषताएँ हैं। इन गुणों के कारण इनका साहित्य पाठकों की रुचि का विषय बन गया है। कुमाऊं का पर्वतीय अंचल इनकी रचनाओं में बड़े प्रभावशाली ढंग से चित्रित हुआ है। इनके उपन्यास सुराज पर कला फ़िल्म भी बन चुकी है। कगार की आग, कोई एक मसीहा, छाया मत छूना, मन का सफल मंचन भी हो चुका है। दिल्ली अकादमी ने उन्हें उनके कहानी-संग्रह पर पुरस्कृत किया है। हिन्दी संस्थान, उत्तर प्रदेश ने भी उन्हें छाया मत छूना मन, मनुष्य, चिह्न तथा अरण्य के लिए सम्मानित किया है। हिमांशु जी की कुछ रचनाओं का भारतीय भाषाओं के साथ-साथ अंग्रेजी, चीनी, जापानी आदि भाषाओं में अनुवाद हुआ है।
भाषा-शैली-हिमांशु जोशी की भाषा सरल तथा सहज है। कहीं-कहीं नाटकीयता तथा जटिलता का भी समावेश है। संस्कृत के शब्दों के साथ-साथ उन्होंने आंचलिक शब्दों का भी खुलकर प्रयोग किया है।
कहानी का सार/प्रतिपाद्य
‘साए’ नामक कहानी कथा-शिल्पी हिमांशु जोशी द्वारा रचित एक श्रेष्ठ रचना है। यह एक चरित्र प्रधान कहानी है। यह कहानी अत्यंत मर्मस्पर्शी है। आधुनिक युग में धन लोलुपता के कारण तथा स्वार्थपरता के कारण आज मनुष्य अपने आदर्शों से हटता जा रहा है। किन्तु आज भी समाज में ऐसे बहुत-से लोग हैं जो स्वार्थपरता से कहीं ऊपर हैं। उन्हें आज भी आदर्श प्यारे हैं। मित्र को दिए वचन को निभाने के लिए सारा जीवन बिताने को तैयार हैं। एक बीमार शरीर अपने दो नन्हें-नन्हें बच्चों को लेकर उम्मीद भरी आँखों से प्रतिदिन डाकिए की प्रतीक्षा किया करती थी। वह अफ्रीका में गए अपने पति के पत्र की प्रतीक्षा में रोज़ पलकें बिछाए बैठी रहती थी। लेकिन डाकिया था कि आता ही नहीं था।
बहुत दिनों के बाद एक पत्र आया जिस पर रंग-बिरंगी टिकटें लगी थीं। पत्र नैरोबी के एक अस्पताल से आया था। पत्र बड़ा ही अजीब था जो करुणा और दर्द से भरा हुआ था। पत्नी ने पत्र पढ़ना शुरू किया। पत्र उसके पति का था। पति ने पत्र में लिखा था कि रंगभेद के कारण उसे यूरोपियन लोगों के अस्पताल में जगह नहीं मिल पाई। उसकी हालत काफ़ी गंभीर थी। इलाज में देरी के कारण रोग काबू से बाहर हो गया था। काफ़ी मेहनत तथा सिफ़ारिश लगवाने पर अस्पताल में भर्ती कर लिया गया हूँ। तुम्हारी और बच्चों की सोच दिन-रात सताती रहती है। पत्नी पत्र पढ़तेपढ़ते रोती जा रही थी। नन्हें अबोध बालक माँ को आँसू भरे नेत्रों से देखते जा रहे थे। पत्नी ने पति की सूचना के लिए कई पत्र तथा तार डाले। कुछ दिनों के बाद उन्हें केन्या की मोहर लगा एक विदेशी लिफाफा मिला। पत्र उसके पति का था।
अब उसकी हालत में काफ़ी सुधार था। पत्र के साथ उसने कुछ रुपए भी भेजे थे। बीमार पत्नी का स्वास्थ्य अब ठीक होने लगा था। बच्चों के मुरझाए चेहरे खिल उठे थे। पत्रों का आदान-प्रदान नियमित रूप से हो रहा था। पति की ओर से अब बड़े ही अच्छे पत्र आने लगे थे। सभी परिवार वाले खुश थे। घर वाले चाहते थे कि विदेश गया उनका पिता, पति कुछ समय के लिए स्वदेश आ जाए। बच्चे पिता को देखना चाहते थे। पत्नी-पति के दर्शन करना चाहती थी। पत्नी पत्र में पति को लिखकर बताती थी कि उनके द्वारा दी गई सभी नसीहतों को बच्चे अच्छे से मानते हैं। समय पर पढते हैं। पुत्र के बारे में बताते हुए वह कहती है कि अज्जू बड़ा होकर आपकी तरह ही अफ्रीका जाएगा। अब अजू पूरे बारह साल का हो गया है। तनु अठारह साल पूरे कर चुकी है।
पति की ओर से पत्र आया। उसमें लिखा था कि वह अभी नहीं आ पाएगा। अगले वर्ष तनु की शादी पर ज़रूर आ जाएगा। उसने यह भी लिखा की स्वदेश में ही तनु के लिए वर की तलाश करना। वर ढूँढ़ने में अधिक कठिनाई नहीं हुई। शायद इसलिए कि वर पक्ष के लोगों को लग रहा था कि पिता अफ्रीका में है। रुपए पैसे की कोई परेशानी न होगी। आखिरकार शादी का दिन आ गया। शादी भी हो गई, किन्तु तनु के पिता जी नहीं आए। उन्होंने कपड़े, जेवर, रुपए भेज दिए थे। विवाह के बाद तनु के विवाह के चित्र अफ्रीका में भेज दिए गए।
अजू ने भी इनाम में मिली सारी वस्तुओं के फोटो अपने पापा को अफ्रीका भेजे। पिता ने भी पत्र के उत्तर में एक कैमरा, एक गर्म सूट का कपड़ा तथा घड़ी भेज दी। पिता के स्वदेश न आने पर बच्चों ने इच्छा जताई की वे ही अफ्रीका आ जाएँ तब उत्तर यह मिला कि उनका कोई एक ठिकाना नहीं है इसलिए यहाँ आना बेकार है। एक दिन ऐसा भी आया जब अजू ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली। वह नौकरी की तालाश में लग गया।
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पिता के स्वदेश न आने पर उसने स्वयं अफ्रीका जाने का प्रबन्ध कर लिया। शीघ्र ही वह पत्र में लिखे पते पर अफ्रीका में जा पहुँचा। शाम को एक वृद्ध ने घर का ताला खोला। वृद्ध ने अज्जू से उसका परिचय पूछा और अज्जू को अपनी बाँहों में भर लिया। भोजन करने के बाद उन्होंने दीवार पर लगी एक तस्वीर दिखाई जिसे देखकर अजू ने कहा कि, वह उसकी अपनी फोटो है। यह सुनकर वृद्ध व्यक्ति ज़ोर से हँसा और बोला बेटा यह तुम इतने बड़े हो गए। अज्जू के चेहरे की ओर देखते हुए उन्होंने कहा कि-तुम शायद नहीं जानते, तुम्हारे पिता का मैं कितना जिगरी दोस्त हूँ।
मैं और तुम्हारे पिता एक साथ रहते थे। हम दोस्त की तरह नहीं अपितु सगे भाइयों की तरह थे। उन्होंने ही मुझे हिन्दुस्तान से यहाँ अफ्रीका बुलाया था। कुछ देर मौन रहने के बाद वृद्ध ने अज्जू से कहा कि कभी-कभी हमें तिनको का सहारा छोड़कर उनके साए में जीना पड़ता है। वृद्ध ने खाँसते हुए अज्जू से बताया कि बेटा तुम ही सोचो कि आज तुम्हारे पिता की मृत्यु आज से 10-15 वर्ष पहले हो जाती तो तुम्हारा क्या होता। तुम अनाथ हो गए होते। तुम्हारी माँ मर चुकी होती। आज जो तुम हो वह न बन पाते।
अजू को समझाते हुए वृद्ध ने कहा कि हम जीवन में कभी-कभी सहारे की एक अदृश्य डोर से अपना जीवन व्यतीत कर जाते हैं। इतना कहते ही उनका गला भर आया। उन्होंने अज्जू को बताया कि उसके पिता का देहांत उसके बचपन में ही हो गया था। वह ही साझे के कारोबार से अज्जू के पिता के हिस्से के पैसे उन्हें लगातार भेजता रहा था। अब तुम बड़े हो चुके हो। अब तुम इस कारोबार को संभाल लो। मैंने तुम्हारे पिता को दिया अपना वचन पूरा कर दिया। इतना कहते हुए वृद्ध की आँखें आँसुओं से भर आईं।
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