“Vah Chidiya Ek Alarm Ghadi Thi” translates to “That Bird Was an Alarm Clock” in English. Read More Class 9 Hindi Summaries.
वह चिड़िया एक अलार्म घड़ी थी…. Summary In Hindi
वह चिड़िया एक अलार्म घड़ी थी….. लेखक-परिचय
जीवन-परिचय-गोविंद कुमार ‘गुंजन’ आधुनिक हिन्दी-साहित्य के प्रमुख साहित्यकार माने जाते हैं। उनका जन्म 28 अगस्त, सन् 1956 ई० में मध्य प्रदेश प्रांत के सनवाद में हुआ था। इन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एम० ए० की परीक्षा पास की। इनकी साहित्य-प्रतिभा तथा साहित्य-साधना को देखते हुए सन् 1994 में प्रथम समानांतर नवगीत अलंकार, सन् 2002 में अखिल भारतीय अम्बिका प्रसाद दिव्य प्रतिष्ठा पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हिन्दी निबंध हेतु इन्हें सन् 2002 में निर्मल पुरस्कार प्रदान किया गया। सन् 2007 में इन्हें मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी का बाल कृष्ण शर्मा नवीन पुरस्कार देकर अलंकृत किया गया। रचनाएँ-रुका हुआ संवाद (कविता संग्रह), समकालीन हिन्दी गजलें (सहयोगी प्रकाशन), कपास के फूल, सभ्यता की तितली, पंखों पर आकाश, ज्वाला भी जलधारा भी।
साहित्यिक विशेषताएँ-गोविंद कुमार ‘गुंजन’ आधुनिक संवेदना से ओत-प्रोत साहित्यकार हैं। गुंजन जी के लेखन की महत्त्वपूर्ण विशेषता है कि हर उम्र और हर वर्ग के पाठकों के मध्य उनकी भिन्न-भिन्न रचनाएँ लोकप्रिय हैं। मानवता उनके साहित्य की प्राण तत्व हैं। गुंजन जी के साहित्य में आधुनिक युग की विसंगतियों, समस्याओं, मूल्यहीनता आदि का सुन्दर चित्रण हुआ है। अनेक स्थलों पर इनका साहित्य अत्यन्त मार्मिक बन पड़ा है। ‘गुंजन’ जी श्रेष्ठ कवि होने के साथ-साथ एक श्रेष्ठ ललित निबन्धकार हैं। कहानी लेखन में गुंजन जी पूर्णतः सिद्धहस्त हैं।
भाषा-शैली-‘गुंजन’ जी एक श्रेष्ठ कवि होने के साथ-साथ श्रेष्ठ गद्यकार भी हैं। उनके गद्य लेखन में सहजता और आत्मीयता है। वे बड़ी-से-बड़ी बात को भी बातचीत की शैली में कहते हैं और सीधे पाठकों के मन को छ लेते हैं। लेखक ने मुख्यतः खड़ी बोली भाषा का सहज स्वाभाविक प्रयोग किया है।
वह चिड़िया एक अलार्म घड़ी थी….. कहानी का सार
“वह चिड़िया एक अलार्म घड़ी थी…….” गोविंद कुमार गुंजन द्वारा रचित एक श्रेष्ठ कहानी है। लेखक ने अपनी इस कहानी के माध्यम से मनुष्य की आदत पर प्रकाश डालना चाहा है। लेखक ने कहानी में बताया है कि मनुष्य की आदत कभी नहीं बदलती किंतु कभी-कभी कुछ कारण ऐसे बन जाते हैं जिनके कारण मानव को अपनी आदतों में बदलाव लाना पड़ता है।
बाज़ार में पहले अलार्म घड़ियाँ खूब बिका करती थीं। वर्तमान समय में मोबाइल फ़ोन में अलार्म रहने के कारण इनकी माँग लगातार कम होती जा रही है। पुराने समय में अलार्म घड़ी का अपना विशेष महत्त्व हुआ करता था। बच्चों की परीक्षा के समय अलार्म घड़ी उन्हें सुबह-सवेरे उठाने का काम करती थी। सुबह किसी यात्रा में जाना होता था तो अलार्म घड़ी सुबह जल्दी उठाने का काम करती थी। जिस प्रकार आज सभी के पास मोबाइल फ़ोन हैं, उसी प्रकार पहले सभी के पास अलार्म घड़ियाँ नहीं हुआ करती थीं।
घड़ी उपहार में देने की वस्तु हुआ करती थी। परीक्षा में पास होने पर घड़ी दी जाती थी। कॉलेज में प्रवेश लेने पर तथा ससुराल पक्ष वालों की तरफ से घड़ी अवश्य दी जाती थी। कई सरकारी विभागों में भी सेवा-निवृत्ति पर घड़ी देने की परंपरा थी। लेखक को पहली बार हाथ घड़ी उस समय मिली थी, जब उसने कॉलेज में प्रवेश लिया था। उसे पहली अलार्म घड़ी भी कॉलेज में एक बिनंध प्रतियोगिता में भाग लेने पर मिली थी।
लेखक को उस अलार्म घड़ी की आवाज़ अत्यंत मनमोहक लगती थी। आज महँगे-महँगे मोबाइल फ़ोन की आवाज़ उसे पहले के समान मधुर नहीं लगती। लेखक के बचपन में जब उसके पास घड़ी नहीं थी तो उसके पिता जी उससे कहा करते थे कि यदि तुम्हें सुबह जल्दी उठना हो तो अपने तकिए से कह दिया करो वह तुम्हें जल्दी उठा दिया करेगा। लेखक पिता द्वारा दी सीख का पालन करता था और तकिया उसे सुबह जल्दी उठा देता था। लेखक को सुबह जल्दी उठना पसंद नहीं था। वह देर रात तक पढ़ता था और सुबह देर से उठता था। उसने सुबह की सुंदरता का अनुभव कविताओं में किया था। आज दशकों बाद भी लेखक के पास वह अलार्म घड़ी है। अब घड़ी ठीक होने योग्य नहीं बची। लेखक भी अपनी आदत में कहाँ सुधार कर पाया।
अस्सी के दशक में पहली बार लेखक की नौकरी लगी थी। पहली बार लेखक घर से बाहर आया था। उसने एक कमरा किराये पर ले लिया। कमरे में उसने महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला तथा तुलसी दास जी की तस्वीरें फ्रेम करवा कर टाँगी हुई थीं। रात में देर तक जागकर कविता लिखना लेखक को स्वर्ग में जीना लगता था। रात में देर तक जागने के कारण उसे सुबह जल्दी उठना अत्यंत कठिन होने लगा था। वह अक्सर देर से दफ्तर पहुँचता था। लेखक ने जो कमरा किराए पर लिया था उसमें मात्र एक दरवाज़ा था। कमरे में हवा आने-जाने का दरवाज़े के अतिरिक्त अन्य कोई दूसरा रास्ता न था। पहले की तरह तकिया अब लेखक की बात नहीं सुनता था।
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लेखक अपनी किताबों की दुनिया में खोया इतना बेख़बर था कि एक चिड़िया ने कब उसके कमरें में टंगी पंत जी की तस्वीर के पीछे अपना घोंसला बना लिया उसे पता ही नहीं चला। देर शाम को चिड़िया दरवाज़ा खुला पाकर कमरे में आ जाया करती थी। एक सुबह चिड़िया लेखक के सिरहाने बैठ कर चीं-चीं की ध्वनि कर उसे उठाने का प्रयास कर रही थी। उसकी ध्वनि में लेखक को गुस्सा नज़र आ रहा था। वह चाहती थी कि लेखक उठकर दरवाज़ा खोले और वह बाहर जाए।
दूसरे दिन लेखक की नींद फिर देर से खुली। इस बार फिर चिड़ियाँ की झुंझलाहट भरी चहचहाहट ने उसे जगा दिया। पलंग के सिरहाने बैठी चिड़िया उसे देखकर नाराज़ हो रही थी कि वह अभी तक क्यों सोया है ? तब चिड़िया ने अपनी चोंच से लेखक की रज़ाई का एक कोना पकड़ उसे उठाने का प्रयास किया। ऐसा करने से चिड़िया को तनिक भी डर नहीं लग रह था।
चिड़िया द्वारा इस प्रकार से जगाने पर लेखक को अपनी माँ की याद आ जाती थी। उसकी माँ भी इसी प्रकार सुबह-सवेरे जल्दी उठाती थी। अब लेखक ने वास्तव में सुबह सवेरे का सुंदर दृश्य अपनी आँखों से महसूस किया। उसने अब चिड़िया के साथ जल्दी उठना सीख लिया था। आज भी लेखक उस वात्सल्यमयी चिड़िया के उस उपकार को बहुत कृतज्ञता से महसूस करता जिसने उसे सुबह की मनोरम तथा मनमोहक छवि के दर्शन कराए और उपहार में ओस के मोती तथा नए खिलने वाले फूल दिखाए।
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