कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ की रचित रचना “पाप के चार हथियार” एक व्यंग्यात्मक निबंध है। इस निबंध में लेखक ने संसार में व्याप्त पाप, अत्याचार और अन्याय के कारणों पर विचार किया है। उन्होंने पाप को एक ऐसी शक्ति के रूप में चित्रित किया है जो लोगों को अपने वश में कर लेती है और उन्हें अन्याय और अत्याचार करने के लिए प्रेरित करती है।
पेड़ होने का अर्थ Summary in Hindi
कवि का नाम : डॉ. मुकेश गौतम। (जन्म 1 जुलाई, 1970.)
पेड़ होने का अर्थ कवि परिचय : डॉ. मुकेश गौतम ने आधुनिक कवियों में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। आज के मनुष्य की समस्याएँ और प्रकृति के साथ होने वाला क्रूर अत्याचार आपकी कविता में प्रखरता से उभरता है। सामाजिक सरोकार की भावना आपके काव्य का मुख्य स्वर है।
प्रमुख कृतियाँ : अपनों के बीच, सतह और शिखर, सच्चाइयों के रू-ब-रू, वृक्षों के हक में, लगातार कविता, प्रेम समर्थक हैं पेड़, इसकी क्या जरूरत थी (कविता संग्रह) आदि।
विशेषता : आधुनिक भावबोध की सहज-सीधे रूप में अभिव्यक्ति। हास्य-व्यंग्य का सफल मंचन। भावों और विचारों का प्रभावशाली ढंग से संप्रेषण।
विधा : नई कविता
पेड़ होने का अर्थ टिप्पणियाँ
दधीचि : दधीचि एक महान ऋषि थे। कहा जाता है कि एक बार वृत्रासुर नामक राक्षस देवलोक पर अधिकार करने के लिए सभी देवताओं को तरह-तरह से परेशान कर रहा था। उसके अत्याचार बढ़ते ही जाते थे। ब्रह्मा जी ने देवताओं को बताया कि वृत्रासुर को मारने का एक ही उपाय है। वह है पृथ्वीवासी आत्म-त्यागी महर्षि दधीचि की अस्थियों से बना वज्र। देवराज इंद्र के कहने पर महर्षि ने बिना किसी हिचकिचाहट के उसी समय समाधि लगाई और अपनी देह त्याग दी।
विषय प्रवेश : पेड़ और मनुष्य का नाता आदि काल से रहा है। पेड़ मनुष्ये का बहुत बड़ा शिक्षक है। पेड़ मनुष्य का हौसला बढ़ाता है, समाज के प्रति जिम्मेदारी का निर्वाह करना सिखाता है। पेड़ ने भारतीय संस्कृति को जीवित रखा है और मानव को संस्कारशील बनाया है।
पेड़ होने का अर्थ कविता का सरल अर्थ
(1) आदमी पेड़ नहीं हो सकता ………………………………………….. हालात से लड़ता है।
प्रस्तुत कविता में कवि पेड़ के माध्यम से मनुष्य को मानवता, परोपकार आदि मानवोचित गुणों की प्रेरणा दे रहा है। कवि अपने कमरे में खिड़की के पास बैठा है। वह बाहर खड़े पेड़ को देखता है तो पेड़ का हौसला, उसकी दान की प्रवृत्ति कवि को सोचने पर विवश कर देती है। अनगिनत विचार उसके मस्तिष्क में उठने लगते हैं। कवि कहते हैं, मनुष्य कितना भी बड़ा क्यों हो जाए, वह पेड़ जैसा कभी नहीं बन सकता।
पेड़ के हौसले से मनुष्य को सीख लेनी चाहिए। पेड़ जबसे जन्म लेता है अर्थात जब वह कोमल-सा अंकुर होता है, तब से जीवनपर्यंत किसी का आश्रय वह नहीं लेता। कैसा भी आँधी-तूफान आए या सामने कोई कैसा भी बड़े-से-बड़ा, प्रतापी राजा आ जाए, पेड़ कभी किसी के सामने नहीं झुकता।
जब तक पेड़ जीवित रहता है, जैसी भी परिस्थिति हो, एक ही स्थान पर खड़े-खड़े उसका डटकर सामना करता है। जबकि मनुष्य का स्वभाव है कि शक्तिशाली व्यक्ति या स्वार्थपूर्ति करने वाले के पैरों में नाक रगड़ने से भी वह नहीं कतराता। साथ ही जरा-सी प्रतिकूल परिस्थिति आने पर या किसी कार्य में मनचाही सफलता न मिलने पर हौसला खो बैठता है।
(2) जहाँ भी खड़ा है ………………………………………….. पेड़ बहुत बड़ा हौसला है।
कवि कहते हैं, पेड़ जहाँ भी खड़ा हो, चाहे सड़क पर हो, किसी झील के किनारे हो या फिर पहाड़ के ऊपर हो, उसकी मनोस्थिति एक जैसी रहती है। पेड़ के सामने भेड़िया, बाघ जैसे हिंसक पशु आ जाएँ या शेर दहाड़ने लगे, पेड़ किसी से नहीं डरता। जबकि मनुष्य हिंसक पशु के सामने आने पर डर से ही मर जाता है। पेड़ मनुष्य के समान न कभी किसी की हत्या करता है, न ही आत्महत्या।
इसके विपरीत पेड़ थके हुए यात्रियों को ठंडी हवा देता है, शीतल छाया देता है। यही नहीं पेड़, राहगीरों के समक्ष पुष्प वर्षा करके मानो उन्हें अपनी राह पर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देता है। पेड़ के समीप जो भी आता है, पेड़ सभी का स्वागत करता है। यात्री जब थकान उतरने के बाद पेड़ के नीचे से उठकर चल देते हैं, तो पेड़ सभी को विदा भी करता है। कवि कहते हैं कि गाँव के रास्ते में मुस्कुराता पेड़ जाने कबसे टेढ़ा खड़ा है।
पहले वह पेड़ टेढ़ा नहीं था। वह पूरी रात तेज तूफान का सामना करता रहा। पेड़ घायल हो गया, इसी के कारण टेढ़ा भी हो गया, परंतु उसने अपना हौसला नहीं छोड़ा। पेड़ की शाखों में एक घोंसले में चिड़िया के चहचहाते छोटे-छोटे बच्चे थे। सारी रात भयंकर तूफान चलते रहने के बाद भी पेड़ के हौसले के कारण वह छोटा-सा घोंसला सुरक्षित है। सचमुच पेड़ का हौसला बहुत बड़ा है।
(3) दाता है पेड़ ………………………………………….. पेड़ संत है, दधीचि है।
पेड़ बहुत बड़ा दाता है। पेड़ के फलों के गुणों से तो सभी परिचित हैं, परंतु इसके साथ ही पेड़ की जड़, तना, शाखाएँ हों या पत्ते, फूल और बीज, पेड़ का कोई भी भाग अनुपयोगी नहीं होता। मानव समाज में ऐसे भी लोग हैं, जो पेड़ को पूजते हैं। दूसरी ओर अपने स्वार्थ के लिए पेड़ पर कुल्हाड़ी चलाने वाले, उसे काटने वालों की भी कमी नहीं है। लेकिन पेड़ मनुष्य के किसी भी दुर्व्यवहार पर कभी भी आँसू नहीं गिराता।
मानव पेड़ पर कैसा भी अत्याचार क्यों न करे, पेड़ उससे कभी बदला लेने का नहीं सोचता। वह तो जीवन भर देता ही रहता है। हम श्वासोच्छ्वास के माध्यम से जो विषैली वायु बाहर छोड़ते हैं, पेड़ उसे स्वच्छ करके हमें स्वास्थ्यवर्धक वायु प्रदान करता है। पेड़ रोगों के लिए विभिन्न प्रकार की औषधियाँ देता है।
मनुष्य समाज में किसी की शवयात्रा हो या कोई शुभ कार्य, या फिर किसी की बारात, पेड़ सभी को सजावट के लिए पुष्पों की सौगात देता है। जब से सृष्टि का आरंभ हुआ है, अनादि काल से पेड़ हमेशा मनुष्य को देता ही आया है। पेड़ कवि को कागज, कलम तथा स्याही प्रदान करता है।
पेड़ वैद्य और हकीम को विभिन्न रोगों के लिए दवाएँ देता है। पेड़ शासन और प्रशासन के लोगों को कुरसी, मेज और आसन देता है। वास्तव में देखा जाए तो पेड़ की ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है, जो मनुष्य के काम न आती हो। पेड़ संत के समान है, जो दूसरों को देते ही हैं, किसी से कुछ भी अपेक्षा नहीं रखते।
वास्तविकता तो यह है कि पेड़ दधीचि है। जिस प्रकार दधीचि ने देवताओं की रक्षा के लिए वज्रास्त्र बनाने के लिए जीते-जी अपनी अस्थियाँ भी दान कर दी थीं, उसी प्रकार पेड़ बिना किसी स्वार्थ के जीवन भर देता ही रहता है।