“राष्ट्रीयता का तीर्थ खटकड़ कला” एक अद्वितीय कला रूप है जो भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को प्रकट करता है और इसकी गहरी महत्वपूर्णता को दर्शाता है। यह खटकड़ कला भारतीय राष्ट्रीयता और विविधता के प्रतीक के रूप में माना जाता है। Read More Class 6 Hindi Summaries.
राष्ट्रीयता का तीर्थ खटकड़ कला Summary In Hindi
राष्ट्रीयता का तीर्थ खटकड़ कला पाठ का सार
अमर शहीद भगत सिंह का जन्म लायलपुर (पाकिस्तान) में बंगा चक में हुआ था, खटकड़ कलाँ में नहीं। अब जन्म स्थल पाकिस्तान में छूट जाने के कारण उनके पैतृक गांव खटकड़ कलाँ (बंगा के निकट) को ही जन्म स्थान के बराबर आदर-सत्कार दिया जा रहा है। इसीलिए इसे तीर्थ स्थल के समान भी माना जाता है। खटकड़ कलाँ गांव नवांशहर-बंगा रोड पर स्थित है। वहां सड़क के किनारे शहीद भगत सिंह की कांसे की मूर्ति स्थापित है।
सन् 1919 को वैशाखी के दिन यानी 13 अप्रैल को अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक जनसभा का आयोजन हुआ था। उस जनसभा में एकत्रित हुए लोगों पर अंग्रेज़ पुलिस अधिकारी जनरल डायर के आदेश पर अन्धा-धुन्ध गोलियां चलाई गई थीं। उस समय भगत सिंह बहत छोटे थे पर वे अपनी बहन अमरजीत कौर को बताए बिना अमृतसर गए थे और उस बाग के रक्त से भीगी मिट्टी लेकर लौटे थे। भगत सिंह आजादी पाने की उधेड़-बुन में लीन रहते थे। वे घर छोड़ कर कानपुर पहुंच गए। वहां वह गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’ के समाचार-पत्र में काम करने लगे। भगत सिंह ‘बलवन्त’ के नाम से लेख लिखते थे।
शहीद भगत सिंह की स्मृति में 23 मार्च को प्रति वर्ष खटकड़ कलाँ और फिरोज़पुर के निकट सतलुज के किनारे हुसैनीवाला में मेले लगते हैं। वे अपने साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ 23 मार्च, सन् 1931 को हंसते-हंसते फांसी के तख्ते पर झूल गए थे। सुखदेव पंजाब के लुधियाना नगर में ही जन्मे थे तो राजगुरु महाराष्ट्र, प्रदेश के वासी थे परन्तु भारत माता की गुलामी की बेड़ियां काटने के लिए विभिन्न राज्यों के क्रान्तिकारी एक साथ चले थे और फांसी के फंदे चूमे थे।
भगत सिंह के आदर्श शहीद करतार सिंह सराभा थे और वे उनका चित्र हर समय अपनी जेब में रखते थे। सराभा का चित्र भी स्मारक में लगा हुआ है। शहीद भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह का चित्र भी देखने को मिलेगा। वे उनसे भी प्रभावित थे। अजीत सिंह का निधन 15 अगस्त, सन् 1947 को हुआ था। जैसे ही उन्होंने डल्हौज़ी में भारत के स्वतन्त्र होने का समाचार सुना तब उन्होंने कहा कि हमारा प्रण पूरा हुआ और प्राण त्याग दिए।
शहीद भगत सिंह की माता विद्यावती ने स्वतन्त्रता के बाद खटकड़ कला में अपना जीवन बिताया। उन्हें ‘पंजाब माता’ का सम्मान दिया गया था। इसलिए खटकड़ कलाँ एक स्मारक ही नहीं, एक तीर्थ स्थल भी है।
Conclusion:
“राष्ट्रीयता का तीर्थ खटकड़ कला” के माध्यम से हम देखते हैं कि कला हमारी राष्ट्रीय और सांस्कृतिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा है और हमारे समृद्ध विरासत को सुरक्षित रखने का माध्यम हो सकता है। यह कला हमारी एकता, गरिमा, और विविधता की महत्वपूर्ण प्रतीक है, जो हमें हमारे राष्ट्र के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा देता है।