In summary, Sri Guru Nanak Dev Ji was a visionary spiritual leader who founded Sikhism and spread a message of love, equality, and devotion to God. His life and teachings have left an enduring impact on Sikh philosophy and continue to inspire people of diverse backgrounds to lead ethical and spiritually fulfilling lives. Read More Class 10 Hindi Summaries.
श्री गुरु नानक देव जी Summary In Hindi
गुरु नानक देव जी का जीवन परिचय
डॉ० सुखविंदर कौर बाठ का जन्म सन् 1962 ई० में पंजाब के गुरदासपुर जिले के छिछरेवाला गाँव में हुआ था। इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही प्राप्त की थी। इन्होंने अमृतसर से एम० ए०, एम० फिल०, पी-एच० डी० तथा डी० लिट की उपाधियाँ प्राप्त की। इनके पिता देश की सीमाओं के रक्षक थे इसलिए वे प्रायः बाहर ही रहते थे। इनकी शिक्षा और साहित्यिक रुचियों को जगाने वाली इनकी माता जी ही थीं। ‘गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी : संदर्भ और विश्लेषण’ इन का शोध-विषय था। इन्हें पंजाबी लोक-जीवन से विशेष लगाव रहा है। इसी कारण इन्होंने पंजाबी भाषा, संस्कृति, लोक-जीवन, लोक-गीतों आदि पर बहुत कार्य किया है। आप पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला के पत्राचार विभाग में प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं।
डॉ० सुखविन्दर कौर बाठ की प्रमुख रचनाएं ‘पंजाब के संस्कार गत लोक-गीतों का विश्लेषणात्मक अध्ययन’, ‘पंजाबी लोक रंग’, ‘गुरु तेग़ बहादुर की वाणी : संदर्भ और विश्लेषण’ आदि हैं। हिसार से प्रकाशित ‘पंजाबी संस्कृति’ की आप अतिथि संपादिका हैं। आपने शिव कुमार बटालवी की रचना ‘लूणा’ का देवनागरी में लिप्यंत्रण भी किया है। आपके निबंधों की भाषा सहज, सरल तथा बोधगम्य है।
श्री गुरु नानक देव जी पाठ का सार
डॉ० सुखविंदर कौर बाठ द्वारा रचित लेख ‘श्री गुरु नानक देव जी’ में लेखिका ने अवतारी महापुरुष श्री गुरु नानक देव जी के जीवन के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने उनके उपदेशों को समस्त मानवता के लिए शुभ एवं हितकारी माना है।
श्री गुरु नानक देव जी के जन्म के समय देश की दशा बहुत खराब थी। लोग अनेक बुराइयों में फंस कर भिन्नभिन्न जातियों, धर्मों, सम्प्रदायों आदि में बंट गए थे। समाज रूढ़ियों तथा आडंबरों से ग्रस्त था। अनेक संतों ने अपने शुष्क तथा कट उपदेशों से लोगों को इन बुराइयों के लिए लताड़ कर अपने से नाराज़ कर दिया परंतु गुरु नानक देव जी ने अपनी कोमल वाणी से सब को अपने वश में करके समार्ग पर चलने की राह दिखायी।
पंजाब में भक्ति-आंदोलन को प्रारंभ करने वाले श्री गुरु नानक देव जी का जन्म शेखूपुरा जिले के तलवंडी गांव (पाकिस्तान) में सन् 1469 ई० को हुआ था। आपके पिता का नाम श्री मेहता कालू जी तथा माता का नाम तृप्ता देवी जी था। आप की एक बहन थी जिसका नामक नानकी था। सात वर्ष की आयु में आपको पाठशाला में पांडे जी से पढ़ने के लिए जाना पड़ा। इनके बाद आपने मौलवी सैय्यद हुसैन और पंडित ब्रजनाथ से भी शिक्षा प्राप्त की।
छोटी-सी आयु में ही आपने पंजाबी, अरबी, फारसी, संस्कृत आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया। आपके पिता ने आप को सांसारिक व्यापारों में लगाना चाहा लेकिन आप का मन उसमें नहीं लगा। आप अठारह वर्षों तक अनेक मतों को मानने वाले साधुओं की संगति में रहे। उनसे भारतीय धर्म शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त की। इसी समय आपने बीस रुपए से भूखे साधुओं को खाना खिला कर सच्चा सौदा किया। आपको गृहस्थ में बांधने के लिए आपके पिता ने आपका विवाह माता सुलक्खनी जी से कर दिया। आप की दो सन्तानें लखमीदास और श्री चन्द थीं।।
सुल्तानपुर में रहते हुए आप को शासन के अत्याचारों, धार्मिक आडंबरों, कर्मकांडों, अंधविश्वासों आदि का पता चला तो बहुत व्याकुल हो गए। आप वेई नदी में प्रवेश कर के तीन दिन तक आलोप रहे। जब आप प्रकट हुए तो आप की वाणी ने उच्चारण किया ‘न कोई हिन्दू न मुसलमान।’
श्री गुरु नानक देव जी ने सन् 1499 ई० से 1522 ई० तक चार उदासियाँ अर्थात् चार यात्रायें चारों दिशाओं में आसाम, लंका, ताशकंद, मक्का-मदीना आदि तक की थीं। इन यात्राओं में आपने सद्मार्ग से भटके हुए सभी वर्ग के लोगों को सद्मार्ग पर चलने का उपदेश दिया था। योगियों, सिद्धों, नेताओं, हिंदुओं और मुसलमानों सब को आपने सहज, सरल और मीठी निरंकारी भाषा से सहज धर्म पालन करने का उपदेश दिया।
उस युग के लोग आडंबरों, करामातों, तंत्र-मंत्र, चमत्कारों आदि में बहुत विश्वास रखते थे। आपने भोली-भाली जनता को उपदेश देकर सही मार्ग दिखाया।
श्री गुरु नानक देव जी के समय में शासन की दशा बहुत दयनीय थी। शासक जनता का शोषण करते थे। उनके वज़ीर भी कुत्तों के समान जनता का शोषण कर रहे थे। इस कारण आप ने अपनी वाणी में कहा है-
‘राजे सीहं मुकदम कुत्ते जाए जगाइन बैठे सुत्ते।’
आपने ऐसे जुल्मी शासन में दलित लोगों की सहायता की। इसलिए भाई गुरदास ने इसी कारण लिखा है-‘सुनी पुकार दातार प्रभु, गुरु नानक जगि माहिं पठाइया।’
श्री गुरु नानक देव जी एक श्रेष्ठ कवि तथा संगीताचार्य भी थे। ‘आदिग्रंथ’ में आपके 974 पद तथा 2 श्लोक संकलित हैं। आप ने इसमें उन्नीस रागों का प्रयोग किया है। इन पदों में सृष्टि, जीव और ब्रह्म, अकाल पुरुष, नाम सिमरण आदि विषयों पर चर्चा की गई है। इन पदों के अतिरिक्त आपने ‘जपुजी’ की रचना की है जिसमें सिक्ख सिद्धांतों का सार मिलता है। आपकी अन्य रचनाएँ ‘आसा दी वार’, सिद्ध गोसटि, दक्खनी ऊँकार, बारहमाह, पहरे-तिथि, सुचज्जि कुचन्जि, आरती आदि हैं। इनकी वाणी श्लोक, पद, अष्टपदियाँ, सोहले, छंद आदि के रूप में हैं। इनकी वाणी शैली पक्ष से अनूठी है।
श्री गुरु नानक देव जी ने सांसारिक ईर्ष्या, द्वेष, वैर आदि को मिटाने तथा प्रेम, समानता, सरलता आदि अपनाने का संदेश दिया है। इस कारण आप युग निर्माता तथा समाज सुधारक भी माने जाते हैं। वास्तव में आप ने अपने उपदेशों के द्वारा एक ऐसे धर्म का बीज बो दिया जो आगे चलकर सिक्ख धर्म के रूप में विशाल वृक्ष बन कर प्रसिद्ध हुआ। जीवन के अंतिम वर्ष आपने करतारपुर में सद्-उपदेश देते हुए व्यतीत किए थे। सन् 1539 ई० में आप ज्योति-ज्योत समा गए थे। आप ने कर्मकांडों, बहुदेव पूजन आदि को नकारते हुए एक परमेश्वर की पूजा करने का उपदेश दिया था।
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