ठेले पर हिमालय Summary In Hindi

Thele Par Himalaya” suggests a stark contrast or an unlikely combination, as if one were trying to transport the colossal Himalayas on a simple cart. It may be used to describe a situation where something ambitious or extraordinary is being attempted using limited resources or means. Read More Class 10 Hindi Summaries.

ठेले पर हिमालय Summary In Hindi

ठेले पर हिमालय लेखक परिचय

डॉ० धर्मवीर भारती आधुनिक हिन्दी-साहित्य के प्रमुख साहित्यकार थे। उनका जन्म 25 दिसम्बर, सन् 1926 ई० में इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम० ए० तथा पीएच० डी० की उपाधियां प्राप्त की थीं। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी-प्राध्यापक भी रहे। वे साप्ताहिक पत्रिका ‘धर्मयुग’ के प्रधान सम्पादक भी रहे। उनकी साहित्यिक सेवाओं के उपलक्ष्य में भारत सरकार ने सन् 1972 में उन्हें पदम श्री से सुशोभित किया।

रचनाएँ- डॉ० धर्मवीर भारती बहुमुखी प्रतिभा के कलाकार थे। उन्होंने गद्य एवं पद्य दोनों क्षेत्रों में अपनी लेखनी चलाई। उनकी रचनाओं का उल्लेख इस प्रकार है-
कहानी संग्रह- स्वर्ग और पृथ्वी, चाँद और टूटे हुए लोग, मुर्दो का गाँव, बंद गली का आखिरी मकान, सांस की कलम से।
काव्य रचनाएं- सात गीत वर्ष, कनु प्रिया, ठंडा लोहा, सपना अभी भी। उपन्यास-सूरज का सातवां घोड़ा, ग्यारह सपनों का देश, गुनाहों का देवता, प्रारंभ व समापन। निबंध-संग्रह-कहानी-अनकहनी, ठेले पर हिमालय, पश्यंती। काव्य-नाटक-अंधायुग। आलोचना-प्रगतिवाद : एक समीक्षा, मानव मूल्य और साहित्य। विशेषताएँ-धर्मवीर भारती जी के काव्य में दार्शनिक तत्व की प्रधानता है। निबंधों एवं कथा-साहित्य में उन्होंने सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक समस्याओं का चित्रण किया है।
भाषा- धर्मवीर भारती जी की भाषा प्राय: सरल एवं सहज है। उनके साहित्यिक निबंधों की भाषा का स्तर स्वयं ही ऊँचा उठ गया है। अपने वर्णनात्मक निबंधों में उन्होंने तत्सम शब्दों तथा छोटे-छोटे वाक्यों को प्रमुखता दी है।

ठेले पर हिमालय पाठ का सार

‘ठेले पर हिमालय’ डॉ० धर्मवीर भारती का प्रमुख यात्रा वृत्तांत है। इस में लेखक ने पर्वतराज, हिम सम्राट हिमालय का सजीव एवं अनूठा चित्रण किया है। लेखक अपने शब्दों के माध्यम से पाठकों को उस हिमालय पर्वत के समीप ले जाता है जहां बादल ऊपर से नीचे उतर रहे थे और एक-एक कर नए शिखरों की हिम रेखाएं अनावृत हो रही थीं। इसमें लेखक ने अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य का चित्रण करते हुए पर्वतीय स्थानों के प्रति आकर्षण जगाने का प्रयास किया है।

लेखक अपने मित्रों शुक्ल, सेन आदि के साथ अलमोड़ा की यात्रा पर गए। वे वहाँ से केवल बर्फ़ को निकट से देखने के लिए ही कौसानी गए थे। वे नैनीताल से रानीखेत और रानीखेत से मझकाली के भयानक मोड़ों को पार करते हुए कोसी पहुँचे। यह रास्ता सूखा और कुरूप था किंतु कोसी से आगे का दृश्य बिल्कुल अलग था।

सुडौल पत्थरों पर कलकल करती हुई कोसी, किनारे पर छोटे-छोटे सुंदर गाँव और हरे मखमली खेत यहाँ सोमेश्वर की घाटी बहुत सुंदर थी। इस घाटी के उत्तर की पर्वतमाला ऊँची है। इसके शिखर पर कौसानी बसा हुआ है। कौसानी के बस अड्डे पर जब लेखक बस से उतरा तो अपार सौन्दर्य को देखकर पत्थर की मूर्ति-सा स्तब्ध खड़ा रह गया।

पर्वतमाला ने अपने आंचल में कत्यूर की रंग-बिरंगी घाटी छिपा रखी थी। चारों तरफ अद्भुत सौंदर्य महक रहा था। इसी घाटी के पार पर्वतराज हिमालय दिखाई पड़ा, जिसे बादलों ने ढक रखा था। शुक्ल, सेन आदि सभी ने इस दृश्य को देखा पर अचानक वह लुप्त हो गया। इस हिम दर्शन ने लेखक तथा उसके मित्रों पर एक जादू-सा कर दिया। इसे देख सारी खिन्नता, निराशा और थकावट छू मंतर हो गई। तत्पश्चात् सभी हिम-दर्शन कर इंतजार करने लगे किन्तु डाक बंगले के खानसामे ने बताया कि वे खुशकिस्मत है जो उन्हें अचानक ही हिमालय के दर्शन हो गए थे। इससे पहले चौदह पर्यटक हफ्ते भर इंतज़ार करते रहे थे लेकिन उन्हें हिमालय के दर्शन नहीं हुए थे।

लेखक अपने मित्रों के साथ बरामदे में बैठकर अपलक हिमालय के दर्शनों का इंतज़ार करता रहा। सूर्य डूबने लगा और धीरे-धीरे ग्लेशिमरों में पिघला केसर बहने लगा। बर्फ कमल के लाल फूलों में बदल गई तथा घाटियां गहरी पीली हो गईं। अंधेरा होने लगा तो लेखक अपने मित्रों के साथ उठ गया। वे सभी मायूस होकर आत्मलीन हो गए। दूसरे दिन वे घाटी में उतरकर मीलों दूर बैजनाथ पहुँच गए। वहाँ गोमती की उज्ज्वल जलराशि में हिमालय की बर्फीली चोटियों की छाया तैरती हुई दिखाई दे रही थी।

Read More Summaries:

Leave a Comment