“Sadachar Ka Taweez” implies the idea of carrying or embracing virtuous and ethical behavior as if it were a protective charm or talisman. It encourages individuals to practice good conduct, moral values, and righteousness in their actions and interactions with others. Read More Class 10 Hindi Summaries.
सदाचार का तावीज़ Summary In Hindi
सदाचार का तावीज़ कहानी परिचय
हिंदी के सुप्रसिद्ध व्यंग्य लेखक हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त, सन् 1922 ई० को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी नामक गाँव में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई थी। इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। आपने कुछ वर्षों तक अध्यापन कार्य किया परंतु बार-बार स्थानांतरणों से तंग आकर अध्यापन कार्य छोड़ लेखन करने का निर्णय किया।
परसाई जी जबलपुर में बस गए और वहीं से कई वर्षों तक ‘वसुधा’ नामक पत्रिका निकालते रहे। आर्थिक कठिनाइयों के कारण उन्हें यह पत्रिका बंद करनी पड़ी। परसाई जी की रचनाएँ प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। सन् 1984 ई० में ‘साहित्य अकादमी’ ने इन्हें इनकी पुस्तक ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ पर पुरस्कृत किया था। मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग ने इन्हें इक्कीस हज़ार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया, जिसे वहां के मुख्यमंत्री ने स्वयं इनके घर जबलपुर आकर दिया। इन्हें बीस हज़ार रुपए के चकल्लस पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। परसाई जी प्रगतिशील लेखक संघ के प्रधान रहे हैं।
हिंदी व्यंग्य लेखन को सम्मानित स्थान दिलाने में परसाई जी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। सन् 1995 ई० में इनका देहांत हो गया। परसाई जी का व्यंग्य हिंदी साहित्य में अनूठा है। सुप्रसिद्ध पत्रिका ‘सारिका’ में इनका स्तंभ ‘तुलसीदास चंदन घिसे’ अत्यधिक लोकप्रिय हुआ था। इन सामाजिक विकृतियों को इन्होंने सदा ही अपने पैने व्यंग्य का विषय बनाया है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
कहानी संग्रह–’हंसते हैं रोते हैं’, ‘जैसे उनके दिन फिरे’, ‘दो नाक वाले लोग’, ‘माटी कहे कुम्हार से’। उपन्यास-‘रानी नागफनी की कहानी’ तथा ‘तट की खोज’। निबंध संग्रह–’तब की बात और थी’, ‘भूत के पांव पीछे’, ‘बेइमानी की परत’, ‘पगडंडियों का जमाना’, ‘सदाचार का ताबीज़’, ‘शिकायत मुझे भी है’, ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’, ‘निठल्ले की डायरी’।
व्यंग्य संग्रह-वैष्णव की फिसलन, तिरछी रेखाएँ, ठिठुरता हुआ गणतंत्र, विकलांग श्रद्धा का दौर। परसाई जी का सारा साहित्य ‘परसाई रचनावली’ के नाम से छप चुका है।
सदाचार का ताबीज कहानी का सारांश
‘सदाचार का तावीज़’ हरिशंकर परसाई द्वारा रचित एक व्यंग्य रचना है, जिसमें लेखक ने देश में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा उसके उन्मूलन के खोखले रूपों पर कटाक्ष किया है। लेखक एक काल्पनिक राज्य की कहानी सुनाता है जहाँ भ्रष्टाचार बहुत फैल गया था। वहाँ का राजा दरबारियों को कहता है कि प्रजा देश में फैले भ्रष्टाचार पर हल्ला मचा रही है, उन्हें तो आज तक यह नहीं दिखाई देता। अगर उन लोगों ने इसे कहीं देखा हो तो बताओ। दरबारियों को भी नहीं दिखाई देता। एक दरबारी के कहने पर विशेषज्ञों को भ्रष्टाचार ढूंढ़ने का काम सौंपा जाता है।
दो महीने की जांच के बाद विशेषज्ञ राजा को बताते हैं कि भ्रष्टाचार बहुत है पर उसे पकड़ कर नहीं लाया जा सकता क्योंकि वह सूक्ष्म तथा अगोचर है और सर्वत्र व्याप्त है। वह देखने की नहीं अनुभव करने की वस्तु है। राजा इन गुणों को ईश्वर के मानकर पूछता है कि तो क्या भ्रष्टाचार ईश्वर है ? वे उत्तर देते हैं कि अब तो भ्रष्टाचार ईश्वर हो गया है। उदाहरण के रूप में वे राजा को बताते हैं कि आप के सिंहासन के रंग का बिल झूठा बनाया गया। यह भ्रष्टाचार घूस के रूप में फैला हुआ है। जब राजा ने उनसे इसे दूर करने का उपाय पूछा तो उन्होंने व्यवस्था में बहुत से परिवर्तन करने तथा ठेकेदारी की प्रथा समाप्त करने के लिए कहा। राजा ने विचार करने के लिए उनकी योजना रख ली।
राजा और दरबारियों ने विशेषज्ञों की योजना का अध्ययन किया। राजा सोच-सोच कर बीमार हो गया तो एक दरबारी ने उन्हें कहा कि इस योजना को त्याग कर कोई ऐसा उपाय सोचना चाहिए जिससे बिना अधिक उलट-फेर किए ही भ्रष्टाचार समाप्त हो जाए। इसके लिए दरबारियों ने एक साधु को खोज लिया जिसने सदाचार की तावीज़ बना ली थी जिसे भुजा पर बांधने से व्यक्ति सदाचारी बन जाता था। राजा को यह उपाय पसंद आ गया। एक मंत्री के सुझाव पर उसने साधु को तावीज़ बनाने का ठेका और पाँच करोड़ रुपए इस कार्य को करने के लिए पेशगी दे दिए। लाखों तावीज़ बने और प्रत्येक सरकारी कर्मचारी की भुजा पर बांध दिए गए।
एक दिन राजा वेश बदलकर तावीज़ का प्रभाव देखने दो तारीख को एक कार्यालय में गया और किसी कर्मचारी को पाँच रुपए देकर अपना काम करवाना चाहा तो उसने उसे ‘यहाँ घूस लेना पाप है’ कह कर भगा दिया। राजा प्रसन्न हुआ कि तावीज़ ने कर्मचारी ईमानदार बना दिए हैं। वह एक दिन फिर इकतीस तारीख को उसी कर्मचारी के पास काम करवाने गया और उसे पाँच का नोट दिखाया जो उसने ले लिया। राजा ने उसे पकड़ लिया और पूछा कि क्या उसने तावीज़ नहीं बांधा है? उसने तावीज़ बांधी हुई थी। जब राजा ने तावीज़ पर कान लगाया तो उसमें से आवाज़ आ रही थी कि आज इकतीस है, आज तो लें ले !’
Read More Summaries: