राजेंद्र बाबू Summary In Hindi

Dr. Rajendra Prasad was a prominent leader in the Indian independence movement and played a vital role in shaping the nation’s destiny. His tenure as the first President of India and his contributions to education and governance have left an indelible mark on the country’s history. Read More Class 10 Hindi Summaries.

राजेंद्र बाबू Summary In Hindi

राजेंद्र बाबू का जीवन परिचय

जीवन परिचय– छायावादी काव्य के चार प्रमुख कवियों में से एक मात्र कवयित्री महादेवी वर्मा का जन्म होली के दिन सन् 1907 में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद कस्बे में हुआ। इनकी आरंभिक शिक्षा इंदौर में हुई। मिडल की परीक्षा में सारे प्रांत में प्रथम आई थीं। इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम० ए० किया। कुछ समय बाद ही उनकी नियुक्ति प्रयाग महिला विद्यापीठ में ही हो गई। इन्हें इसी संस्थान की प्राचार्य के पद पर कार्य करने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। गाँधीवादी विचारधारा तथा बौद्ध दर्शन ने महादेवी को काफ़ी प्रभावित किया। स्वाधीनता आंदोलन में भी महादेवी वर्मा ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। उन्होंने कुछ वर्षों तक ‘चाँद’ नामक पत्रिका का संपादन कार्य कुशलतापूर्वक किया। 11 सितंबर, सन् 1987 को इनका देहावसान हो गया।

रचनाएँ– महादेवी वर्मा की मुख्य रचनाएँ निम्नलिखित हैंकाव्य
संग्रह– ‘निहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्यगीत’, दीपशिखा, ‘प्रथम आयाम’, ‘अग्नि रेखा’।
गद्य रचनाएँ-‘पथ के साथी’, ‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’, ‘मेरा परिवार और चिंतन के क्षण’।

‘यामा’ पर उन्हें ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ पुरस्कार प्राप्त हुआ तथा भारत सरकार ने उन्हें सन् 1956 में ‘पद्मभूषण अलंकरण’ से सम्मानित किया।

महादेवी वर्मा छायावाद की प्रमुख स्तंभ हैं। उनके काव्य में जन-जागरण की चेतना के साथ स्वतंत्रता की कामना भी अभिव्यक्त की गई है। उन्होंने भारतीय समाज में नारी पराधीनता के यथार्थ और स्वतंत्रता की विवेचना की है। नारी के दुःख, वेदना और करुणा की त्रिवेणी ने महादेवी को अन्य कवियों से अधिक संवेदनशील एवं भावुक बना दिया है। अपनी प्रेमानुभूति में उन्होंने अज्ञात एवं असीम प्रेमी को संबोधित किया है। इसलिए आलोचकों ने उसकी कविता में रहस्यवाद को खोजा है। अपने आराध्य प्रियतम के प्रति महादेवी वर्मा ने दुःख की अनुभूति के साथ करुणा का बोध भी अभिव्यक्त किया है।

महादेवी वर्मा एक सफल गद्यकार हैं। उन्होंने गद्य कृतियों में नारी स्वतंत्रता, असहाय चेतना और कमजोर वर्ग के प्रति संवेदनशील अनुभूतियाँ अभिव्यक्त की हैं। उन्होंने सामान्य मानवीय संवेदनाओं को अपने साहित्य की मूल प्रवृत्ति बनाया है।

राजेंद्र बाबू पाठ का सारांश

लेखिका श्रीमती महादेवी वर्मा ने राजेंद्र बाब को पहली बार पटना स्टेशन पर देखा। प्रथम दृष्टि में उनकी जो आकृति लेखिका की स्मृति पटल पर अंकित हुई, वह वर्षों के पश्चात् भी यथावत् बनी हुई थी। काले घने कटे हुए बाल, चौड़ा मुख, बड़ी-बड़ी आँखें, गेहुँआ वर्ण, बड़ी-बड़ी ग्रामीणों जैसी मूछे, लंबा कदकाठ ग्रामीणों की-सी वेश-भूषा, सिर पर गाँधी टोपी पहने हुए राजेंद्र बाबू का व्यक्तित्व बरबस हर व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित कर लेता था।

न केवल आकृति, शारीरिक गठन और वेश-भूषा में ही, अपितु अपने स्वभाव और रहन-सहन में भी वे एक सामान्य भारतीय का प्रतिनिधित्व करते थे। प्रतिभा और बुद्धि की विशिष्टता के साथ उनकी संवेदनशीलता भी उनके सामान्य व्यक्तित्व को गरिमामयी बना देती थी। राजेंद्र बाबू की वेश-भूषा और अपनी इस अस्त-व्यस्तता वास्तव में उनकी व्यवस्था का ही परिणाम होती थी और अपनी इस अस्त-व्यवस्ता के प्रकट होने की स्थिति में वे भूल करने वाले किसी बालक की तरह ही सिमट जाते थे।

लेखिका को राजेंद्र बाबू के संपर्क में आने का अवसर सन् 1937 में मिला, जब कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में बाबू जी ने महिला विद्यापीठ के महाविद्यालय के भवन की नींव डाली। तभी उन्होंने अपनी पौत्रियों की शिक्षा-व्यवस्था के लिए महादेवी से आग्रह किया और उन्हें विद्यापीठ के छात्रावास में भर्ती करवा दिया। इसी बीच लेखिका का परिचय राजेंद्र बाबू की पत्नी से हुआ जो स्वभाव की बहुत सरल, सीधी-सादी, क्षमाशील और ममत्व की मूर्ति थीं। एक ज़मींदार परिवार की वधू और महान् स्वतंत्रता सेनानी की पत्नी होने पर भी उनमें अहंकार लेशमात्र भी न था। छात्रावास की बालिकाओं तथा नौकर-चाकरों पर वह समान रूप से अपने स्नेह की वर्षा करती थीं।

राजेंद्र बाबू भी सभी छात्राओं को स्नेहपूर्ण दृष्टि से देखते थे। यही नहीं उन्होंने अपनी पौत्रियों को भी सामान्य बालिकाओं के साथ सादगी एवं संयम से रहने का पाठ पढ़ाया था। वे उनमें अहंकार की भावना न देखना चाहते थे। इसलिए भारत के राष्ट्रपति बनने पर भी उन्होंने अपनी पोतियों को पहले की तरह ही सादगीपूर्ण रहते हुए कर्मनिष्ठ बनने की शिक्षा दी थी। राजेंद्र बाबू की पत्नी में भी कोई परिवर्तन न आया था। राष्ट्रपति भवन में रहते हुए भी वह एक सामान्य भारतीय नारी की तरह जीवन यापन करती थीं।

एक दिन जब महादेवी दिल्ली आने का विशेष निमंत्रण पाकर राष्ट्रपति-भवन पहुँची, तो वहाँ उनका खूब अतिथिसत्कार हुआ। भोजन के समय राजेंद्र बाबू और उनकी पत्नी का उपवास होने के कारण महादेवी को उनके साथ फलाहार लेना उचित लगा। उस दिन भारत के प्रथम राष्ट्रपति को सामान्य आसन पर बैठ कर दिन भर के उपवास के उपरान्त कुछ उबले हुए आलू खाकर पेट भरते देखकर लेखिका को आश्चर्य हुआ और उन्होंने उनके चेहरे पर संतोष की एक झलक महसूस की। वास्तव में जीवन मूल्य की सच्ची पहचान रखने वाले वे एक महान् व्यक्ति थे, जिन्हें ‘देशरत्न’ (भारत रत्न) की उपाधि दी गई। स्वभाव की इसी सरलता से उनके जीवन में कोई शत्रु नहीं था।

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