“स्वागत है!” एक छोटा सा वाक्यांश है, लेकिन इसका अर्थ बहुत गहरा है। यह एक व्यक्ति या समूह को किसी स्थान पर आने पर आदर और सम्मान के साथ अभिवादन करने का एक तरीका है। यह यह भी बताता है कि आप उस व्यक्ति या समूह के आने से खुश हैं।
स्वागत है! Summary in Hindi
स्वागत है! कवि परिचय :
शाम दानीश्वर जी का जन्म 1943 में हुआ। आपने प्राथमिक शिक्षा poudre d’or Hamlet, Mauritius सरकारी पाठशाला में माध्यमिक शिक्षा Goodlands, Mauritius स्कूल में प्राप्त की। शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात आप हिंदी अध्यापक के रूप में कार्यरत रहे। हिंदी के प्रति लगाव होने के कारण साहित्य रचना में रुचि जागृत हुई। प्रवासी साहित्य में मॉरिशस के कवि के रूप में आपकी पहचान बनी।
अपने परिजनों से बिछोह का दुख, गुलामी का दंश और पीड़ा आपके काव्य में पूरी संवेदना के साथ उभरी है। यथार्थ अंकन के साथ भविष्य के प्रति आशावादिता आपके काव्य की विशेषता है। साहित्य सृजन समाज संस्थान के प्रधान 1994 जुलाई से सह मुख्य अध्यापक, 1964 से 1994 तक अध्यापन कार्य आदि पद प्राप्त किए। शाम दानीश्वर जी की मृत्यु 2006 में हुई।
स्वागत है! प्रमुख कृतियाँ :
पागल, कमल कांड (उपन्यास) प्रवासी भारतीय हिंदी साहित्य-संग्रह
स्वागत है! काव्य परिचय :
प्रस्तुत कविता में कवि ने गिरमिटियों (indentured labour) के जीवन में आए सकारात्मक पहलुओं को उजागर किया है। गिरमिटियों की पीढ़ियों के मन में स्थित भारतीयों की संवेदनाओं और सृजनात्मक प्रतिभाओं के दर्शन कराए हैं। साथ ही गिरमिटियों को अपनी विगत दुखद स्मृतियों को भुलाकर मॉरिशस आने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। अब मॉरिशस की भूमि नैहर के समान है, जहाँ परिजनों से मिलाप होगा।
अब यहाँ पर कीचड़ में कमल उगने लगे हैं। कवि विविध देशों में बिखरे हुए बंधुओं को बुलाकर उनका स्वागत करते हैं।
कवि शाम दानीश्वर प्रवासी साहित्य में मॉरिशस के कवि के रूप में जाने जाते हैं। प्रस्तुत कविता में कवि प्रवासी भारतीयों को बिछुड़ने का गम भुलाकर, इतिहास के दुःस्वप्न को पीछे धकेलकर लघु भारत अर्थात मॉरिशस की भूमि पर लौट आने का न्यौता) आमंत्रण देते हैं।
कवि अपने समस्त भाइयों का और अंग्रेजों के गुलाम बनकर बिखरे हुए सभी परम दोस्तों का मॉरिशस में स्वागत करते हैं। कवि आगे कहते हैं कि एक ही भारत माँ के हम सभी बालक हैं लेकिन अंग्रेजों ने हमें गुलामी की जंजीरों में जकड़कर भिन्न-भिन्न देशों में बिखेर दिया। आज कई युगों के बाद हमारा मिलन होने जा रहा है। कवि कहते हैं कि तुम सब लघु भारत अर्थात मॉरिशस की भूमि पर पधार रहे हो, आप सब का इस भूमि पर स्वागत है।
हम सब जहाज से प्रवास करने वाले जहाजिया बांधव (brother) ठहरे। मॉरिशस जाने के लिए कोई इस जहाज पर सवार हो गया तो कोई उस जहाज पर क्योंकि हम सब भिन्न-भिन्न देशों से आ रहे थे। अलग-अलग देशों से हमें लेकर आने वाले जहाज पानी में आगे सरकने लगे (बहने लगे)।
बहुत दूर आने पर जब एक समुद्र तट पर जहाज का लंगर पड़ा तब हम आश्चर्यचकित होकर यहाँ-वहाँ ताकने लगे। समझ में ही नहीं आ रहा था कि हम कहाँ आ गए हैं? मेरे भाई-भतीजे कहाँ हैं? इस जहाज पर उन्हें जगह नहीं मिली थी लेकिन दूसरे जहाज पर तो चढ़े ही थे, फिर वे कहाँ हैं?
इस जहाज से हो या उस जहाज से हो, आने वाले सभी जहाजों से मॉरिशस लौटने वाले अपने सभी बांधवों का, दोस्तों का कवि सहर्ष स्वागत कर रहे हैं।
कवि अपने बांधवों से उस पुरानी लंबी कहानी को, गुलामी के दंश और पीड़ा को, अपने सगे-संबंधियों से बिछुड़ने के गम को भुला देने की बिनती करते हैं। कवि अपने जिगर के टुकड़ों से कहते हैं कि परतंत्रता (dependence) के कारण अंग्रेजों ने हमें गुलाम बना-बना कर जहाजों में बिठाकर भिन्न-भिन्न देशों में भेज दिया, यह इतिहास था, अब उसे भूल जाओ। जो भी हमारे नसीब में था वह सब अब हो चुका।
अब उसे याद कर हम क्यों रोए ? जहाज आकर हमें जबरदस्ती ले गए थे, वह हमारा भूतकाल था। युग-युगांतरो के बाद ही सही लेकिन आज तो हम मिल ही रहे हैं, यह वास्तव है। यह नजारा कितना सुंदर है कि आज हम सब लघु भारत के विशाल आँगन में तृप्त होकर एक-दूसरे से मिल रहे हैं।
लंबे अरसे के बाद गले मिलने का यह सौभाग्य आज हमें प्राप्त हुआ है। कवि इन सारे सुरागवार (clue) बांधवों का, दोस्तों का मॉरिशस में स्वागत करते हैं।
हमारे सब बांधवों के मन में पानी में चलने वाले जहाज को लेकर डर-सा समा गया है। भय लग रहा है, कहीं वह काला, भयंकर, इतिहास फिर से दोहराया न जाए। उनके सामने सवाल है कि पानी में चलने वाले इस जहाज पर अब कौन चढ़ेगा? यह जहाज दोबारा इतिहास को वापिस न लाए।
इस धरती पर फिर से हम बिखर न जाए और ना ही फिर एक बार अपने ही बंधुओं कों ढूँढ़ते रह जाना पड़े। अब तो हम सब आसमान में उड़कर मॉरिशस की धरती पर उतर जाएँगे। वहीं हमारा नैहर होगा और वहीं हमें हमारे (पिता) और परिवार के लोग मिलेंगे।
अब देश-परदेश से छुटकारा मिलेगा और दुःखाश्रुओं को थामकर वहीं हम सब मिलेंगे। आसमान में उड़कर मॉरिशस की धरती पर उतरने वाले सभी बांधवों का और दोस्तों का कवि तहे दिल से स्वागत करते हैं।
हे मेरे गिरमिटिया भाइयो, अंग्रेजों के गुलाम बनकर झेले गए अपार कष्टों को सहने में आपने जो हिम्मत दिखाई है वह सब हृदयद्रावक थी। अंग्रेजों के गुलाम (चाकर) बनकर कीचड़ की दलदल में फँस गए थे, कितने युग बाद उस कीचड़ में कमल खिलने लगा हैं।
(कितने युगों के बाद हम गुलामी से बाहर आ रहे हैं)। जिस प्रकार मारीच (राक्षस) से मॉरिशस (स्वर्ग) बनने में युग बीते वैसे ही कीचड़ से कमल उगने में भी कई युग बीते। मॉरिशस की इस पवित्र भूमि पर कई देशों से इकट्ठा कर हमारे बांधवों को सफलतापूर्वक ले जाया गया है।
उस सयम कोमलता भी पत्थर के समान कठोर बन गई थी। हमने पत्थर में प्राण फूंके हैं। इस देश को घूमकर देखने पर पता चलेगा कि आज तक बिछड़े सारे लहु-लुहान बंधु अब मॉरिशस में इकट्ठे हो रहे हैं। कवि दानीश्वर जी इन सब बंधु-बांधवो का मॉरिशस में हृदय से स्वागत करते हैं।
मेरे भारत-नेपाल-श्रीलंका, फीजी-सूरीनाम-पाक-गयाना के चहेते भाईयो साऊथ आफ्रिका-युके-यू.एस.ए., कनाडा, फ्रांस, रेनियन के प्यारे भाइयों मॉरिशस की इस भूमि में तुम्हारी सारी यादें गहराई तक खुदी हुई हैं। इस भूमि को हिंद महासागर का स्वर्ग कहते हैं।
यह कल्पना है या वास्तव पता नहीं परंतु मेरे प्यारे भाइयो अगर यह कोई कल्पना भी हो तो भी मुझे विश्वास है कि आप सब यहाँ आकर इस धरती को स्वर्ग में तबदील कर देंगे। इसलिए कवि कहते हैं कि आप सभी मेरे प्रियजनों का मॉरिशस में हार्दिक स्वागत है।
Conclusion
“स्वागत है!” एक छोटा सा वाक्यांश है, लेकिन इसका अर्थ बहुत गहरा है। यह एक ऐसा वाक्यांश है जिसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है, लेकिन यह वास्तव में बहुत महत्वपूर्ण है। जब हम किसी व्यक्ति या समूह को “स्वागत है!” कहते हैं, तो हम उन्हें यह बता रहे हैं कि हम उनकी परवाह करते हैं और उनकी उपस्थिति की सराहना करते हैं।