“Varisanama Svaraaj” translates to “Declaration of Independence” in English. It’s a historically significant term often associated with India’s struggle for freedom from British colonial rule. Read More Class 11 Hindi Summaries.
वारिसनामा-स्वराज के लिए बहे लहू Summary In Hindi
वारिसनामा स्वराज के लिए बड़े लहू जीवन-परिचय
सुरेश चन्द्र वात्स्यायन का जन्म 7 फरवरी, सन् 1934 को पसरूर (पाकिस्तान) में हुआ था। इनके पिता पं० अमरनाथ शास्त्री अविभाजित पंजाब के सुप्रसिद्ध संस्कृत, हिन्दी सेवी शिक्षा विद शास्त्री थे। इनका पैतृक धाम हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में सुंकाली नामक गांव में है। इन्होंने लुधियाना से शिक्षा प्राप्त की। इन्हें हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेज़ी, जर्मन के अतिरिक्त वेद उपनिषद-पुराण-गुरुवाणी के साथ-साथ पंजाबी, उर्दू-बंगाली, तमिल भाषाओं का निजी अध्ययन किया।
सुरेश जी की काव्य प्रतिभा का परिचय छात्र-जीवन से ही मिलने लगा था।’अंकुर’, ‘प्रवाल’, और ‘मुकुल शैलानी’ इनके तीन काव्य संग्रह हैं। ये पंजाब और भारत सरकार द्वारा अपने लेखन कार्य के लिए कई बार पुरस्कृत हुए हैं। लोक धुन, नवगीत, अंग्रेज़ी सॉनेट के सामान्तर चतुर्दशी, उर्दू रुबाई के समानान्तर षटपदी और यति क्रम पर आधारित अतुकांत लेकिन लयपूर्ण कविताओं में सुरेश की सृजनशीलता अंकुरित और प्रवाहमयी है। सुरेश का कवि रूप बहु आयामी है। कवि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की सही पहचान इनकी एक रूपता में है। इन्हें प्रगतिशील भारतीय चिन्तन के प्रतिनिधि मंत्र कविता के प्रवर्तक कवि रूप में मिल चुकी है। इन्हें अखिल भारतीय स्तर पर अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। भाषा विभाग, पंजाब ने इन्हें सन् 1992 में शिरोमणि साहित्यकार के रूप में अलंकृत किया है।
वारिसनामा स्वराज के लिए बड़े लहू कविता का सार
‘वारिसनामा’-स्वराज के लिए बहेलह के कवि सुरेश चन्द्र वात्स्यायन हैं। ‘वारिसनामा’ एक कचहरी तथा कानुनी शब्द है जिसका अर्थ घर के बुजुर्ग अपने जमीन जायदाद आदि का वारिस नामांकित करते हैं। इस कविता में कवि ने भगत सिंह, सुखदेव, तथा राजगुरु आदि शहीदों की समाधियों को आज की पीढ़ी के लिए धरोहर बताया है। ये समाधियाँ ही इस नई पीढ़ी को नवनिर्माण के लिए प्रेरित करेंगी। आज वे वीर पुरुष नहीं हैं जो हमें हमारे इतिहास से परिचित करा सकें परन्तु उनके संदेश ही हमारे लिए वसीयत है कि हमें उनके बताए मार्ग पर चलना है तथा आगे बढ़ना है। आज कोई चाणक्य जैसा राजनीतिज्ञ नहीं जो चन्द्रगुप्त का निर्माण कर सके।
इसीलिए हमें अपने अन्दर छिपे चन्द्रगुप्त को बाहर निकालना है। हमें अपने समाज में छिपे उन लोगों को पहचान कर बाहर फेंकना है जो सभ्य पुरुष का मुखौटा पहने बैठे है। हम लोगों में त्रिशक्ति का अंश है इसलिए किसी सहारे की उम्मीद छोड़कर उठ खड़े होना है और हमें भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की तरह बनकर भारत माता के सम्मान की रक्षा करनी है।