“Wagah Border” is a famous international border crossing between India and Pakistan. Located near the Indian city of Amritsar and the Pakistani city of Lahore, it is known for its daily ceremonial closing of the border, a tradition that has been in place for decades. Read More Class 8 Hindi Summaries.
वाघा बार्डर Summary in Hindi
वाघा बार्डर पाठ का सार
‘वाघा बार्डर’ शीर्षक पाठ प्रो० नवसंगीत सिंह द्वारा लिखित है। इसमें लेखक ने बाघा बार्डर के बारे में बताया है। वाघा बार्डर को ‘एशिया की बर्लिन दीवार’ के नाम से भी जाना जाता है। भारत-पाकिस्तान को जोड़ने वाला यह बार्डर जी० टी० रोड पर स्थित है। इसके एक तरफ लाहौर और दूसरी तरफ अमृतसर है। यह अमृतसर से लगभग 33 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अमृतसर से वाघा जाते समय खालसा कालेज, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के अलावा छेहरटा, खासा एवं अटारी नामक गाँव आते हैं। अटारी की आदमकद प्रतिमा सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र है।
आज़ादी से पहले अंग्रेजों के समय में वाघा गांव पंजाब की लाहौर डिवीज़न में स्थित था। सन् 1947 ई० में विभाजन के बाद यह गाँव भारत-पाकिस्तान में बंट गया। भारत तथा पाकिस्तान के स्वतन्त्रता दिवस पर 14 और 15 अगस्त को दोनों देशों के अमन पसन्द नागरिकों ने वाघा बार्डर पर मोमबत्तियाँ जलाकर पारस्परिक स्नेह एवं सौहार्द को प्रकट किया था। यह भारत तथा पाकिस्तान के समझौते के रूप में जनता के बदले मन की प्रतिक्रिया स्वरूप था। जनता द्वारा आवाज़ उठाने पर ही दोनों देशों के बीच में सन् 2006 में व्यापार शुरू हुआ।
आज वाघा बार्डर पर्यटकों के लिए एक विशेष आकर्षण का केन्द्र है। यहाँ प्रतिदिन शाम को झंडा उतारने की रस्म होती है, जिसे देखने के लिए भारत तथा पाकिस्तान के सैलानी अपने-अपने देश की गैलरी में इकट्ठे होते हैं। ऐतिहासिक जी० टी० रोड पर बार्डर को सफेद रंग द्वारा रेखांकित किया जाता है। सड़क को लोहे के दो गेटों के साथ बंद कर दिया जाता है जिसके चारों तरफ कंटीले तार हैं। दोनों गेटों के ऊपर दोनों देशों के राष्ट्रीय ध्वज लहराते हैं।
अपने-अपने राष्ट्र की सुरक्षा के लिए बी० एस० एफ० जवान तथा पाकिस्तानी रेंजस चौबीस घंटे पहरा देते हैं। बार्डर की गैलरी तक पहुंचने के लिए करीब डेढ़-दो किलोमीटर लंबी पंक्ति में स्त्रियों तथा पुरुषों को अलग-अलग जाना पड़ता है। वहां बी० एस० एफ० जवान अच्छी तरह तलाशी लेते हैं। वहाँ न कोई खाने की सामग्री, बड़े पर्स नहीं ले जा सकते। फोन एवं कैमरे ले जा सकते हैं। झण्डा उतरने की रस्म से पहले स्पीकर ऊँची आवाज़ में देशभक्ति के गीतों का प्रसारण करते हैं।
उस समय सम्पूर्ण वातावरण भावमय हो जाता है। लोग जाति, धर्म, भाषा-भेदभाव को भूलकर पूरी तरह राष्ट्रीयता के रंग में रंग जाते हैं। इनमें अधिकांश स्त्रियाँ होती हैं जो अपने भावों को नृत्य द्वारा प्रकट करती हैं। इस सारी कार्यवाही में बी० एस० एफ० के जवानों की मुख्य भूमिका होती है।
बी० एस० एफ० के जवानों द्वारा भारतीय दर्शकों जिनमें विदेशी भी शामिल होते हैं तीन तरह के नारे लगा सकते हैं- हिन्दुस्तान जिंदाबाद, भारत-माता की जय तथा वन्दे मातरम्। भारतीय दर्शकों में विशेषकर लड़कियों और स्त्रियों के हाथ में तिरंगा लेकर मुख्य सड़क पर गेट के भीतर कुछ कदम दौड़ने की इजाजत होती है। दर्शक गैलरियों में भारतीय सैलानियों की भीड़ होती है।
मुख्य द्वारों के दोनों तरफ 4000 लोगों के बैठने की क्षमता है किन्तु वहाँ लगभग 8000 लोग एकत्र हो जाते हैं। रिट्रीट की रस्म प्रायः सायं 5:30 बजे शुरू होती है और लगभग आधे पौने घण्टे बाद पूरी होती है। इससे पूर्व बी० एस० एफ० के जवान पूरे उत्साह तथा जोश के साथ परेड में हिस्सा लेते हैं। वे पूरे वेग से अपने बूट धरती पर मारते हैं। दर्शक तालियों से उनका उत्साह बढ़ाते हैं। झण्डा उतारते समय लोहे के गेट खोल दिए जाते हैं।
दोनों देशों के सैनिक एक-दूसरे से हाथ मिलाते हैं। धीरे-धीरे दोनों देशों के जवान संगीत की मधुर ध्वनि में अपने-अपने देश के झण्डे उतारकर सम्भाल लेते हैं और गेटों को पुनः बंद कर दिया जाता है।