The Hindi phrase “Hum rajy liye mrte hai” can be translated to English as “We die for power” or “We die for the sake of a kingdom.” This phrase suggests that some individuals are willing to go to extreme lengths, even sacrificing their lives, in pursuit of political power or authority. Read More Class 10 Hindi Summaries.
हम राज्य लिए मरते हैं Summary In Hindi
हम राज्य लिए मरते हैं कवि परिचय
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त भारतीयता के अमर गायक के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका जन्म सन् 1886 ई० में चिरगाँव जिला झांसी में हुआ था। उनके पिता श्री रामचरण गुप्त भगवान् राम के परम भक्त थे।
माता दयालु स्वभाव की थीं। इनके गुणों का प्रभाव उन पर भी पड़ना स्वाभाविक था। वे भी राम के अनन्य उपासक बन गए। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई। बाद में इन्होंने झांसी के मेकडॉनल स्कूल से शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने संस्कृत, हिंदी और बंगला के साहित्य का अध्ययन किया था और आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से इन्होंने काव्य-रचनाएँ की थीं जो ‘सरस्वती’ पत्रिका में छपने लगी थीं।
गुप्त जी पर गाँधी जी के व्यक्तित्व का भी प्रभाव था। वे अपने जीवन काल में बारह वर्षों तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे। आगरा विश्वविद्यालय ने डी० लिट् की उपाधि से तथा भारत सरकार ने पद्मभूषण अलंकार से इन्हें सम्मानित किया था। सन् 1964 ई० में गुप्त जी का देहावसान हुआ।
रचनाएँ-भारत भारती, रंग में भंग, नहुष, साकेत, यशोधरा, द्वापर, जयद्रथ वध, जय भारत, सिद्धराज, पंचवटी आदि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। ‘झंकार’ उनके गीतों का संग्रह है। ‘साकेत’ नामक महाकाव्य पर गुप्त जी को हिंदी-साहित्य सम्मेलन, प्रयाग का मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था। मानवतावादी दृष्टिकोण, राष्ट्रीयता की भावना, प्रकृति के विविध रूपों का चित्रण, भारतीय नारी का त्याग-भावना, संस्कृति प्रेम तथा नवीनता के प्रति आस्था आदि गुप्त जी के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ हैं। अपनी प्रारंभिक रचना ‘भारत भारती’ में उन्होंने राष्ट्र के अतीत, वर्तमान और भविष्य पर अपने विचार प्रकट किए हैं।
हम राज्य लिए मरते हैं कविता का सार
‘हम राज्य लिए मरते हैं’ शीर्षक कविता श्री मैथिलीशरण गुप्त की रचना ‘साकेत’ के नवम् सर्ग से ली गई है, जिसमें उर्मिला राज्य के कारण उत्पन्न गृह-कलह से दुःखी होकर किसानों के सुखमय जीवन की प्रशंसा करती है।
उर्मिला के अनुसार हम लोग तो राज्य के लिए लड़ते-झगड़ते रहते हैं जबकि सच्चा राज्य तो किसान करते हैं। उनके खेतों में अन्न है, वे संपन्न हैं, पत्नी सहित घूमते-फिरते हैं और संसार का सुख भोगते हैं। उनके पास गाय, उदारता, सहनशीलता, परिश्रम करने की शक्ति है। उनका अपने ऊपर गर्व करना, उत्सव-त्योहार मनाना, निडरतापूर्वक विचरण करना अत्यंत सहज कार्य है।
विद्वान् चाहे व्यर्थ में धर्म पर तर्क-वितर्क करते रहें परन्तु किसान तर्क-वितर्क छोड़ कर धर्म के मूल को समझते हैं। उर्मिला सोचती है कि यदि हम किसान होते तो राज्य की उलझनों से उत्पन्न मुसीबतों को कौन सहन करता? उन्हीं किसानों के सुख देखकर आज हमारे दुःख दूर हो सकते हैं हम राज्य के लिए ही परस्पर लड़-मर रहे हैं।
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