The title “Jad Ki Muskaan” suggests a poetic exploration of the concept of a smile or happiness expressed by a tree. This could symbolize the beauty and serenity of nature or the idea that even inanimate objects like trees can convey a sense of joy or contentment. Read More Class 10 Hindi Summaries.
जड़ की मुसकान Summary In Hindi
जड़ की मुसकान कवि परिचय
श्री हरिवंशराय बच्चन हिंदी-कविता में हालावाद के प्रवर्तक कवि माने जाते हैं। इनका जन्म 21 नवंबर, सन् 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के प्रयाग (इलाहाबाद) के कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा म्युनिसिपल स्कूल, कायस्थ पाठशाला तथा गवर्नमेंट स्कूल में हुई। सन् 1938 ई० में इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एम० ए० किया तक तथा सन् 1942 से सन् 1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत रहे। इसके बाद ये इंग्लैंड चले गये। वहां इन्होंने सन् 1952 से 1954 तक रहकर कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पीएच० डी० की उपाधि प्राप्त की थी। सन् 1955 ई० में भारत सरकार ने इन्हें विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के पद पर नियुक्त किया।
ये राज्यसभा के सदस्य भी रहे। इन्हें सोवियतलैंड तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ‘दशद्वार से सोपान तक’ रचना पर इन्हें सरस्वती सम्मान दिया गया। इनकी प्रतिभा और साहित्य सेवा को देखकर भारत सरकार ने इन्हें ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया। 18 जनवरी, सन् 2003 में ये इस संसार को छोड़कर चिरनिद्रा में लीन हो गए।
रचनाएँ– हरिवंशराय बच्चन जी बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। उन्होंने अनेक विधाओं पर सफल लेखनी चलाई है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
काव्य संग्रह– मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल-अंतर, मिलन यामिनी, सतरंगिणी, आरती और अंगारे, नए पुराने झरोखे, टूटी-फूटी कड़ियाँ, बुद्ध और नाचघर।
आत्मकथा चार खंड- क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक।
अनुवाद- हैमलेट, जनगीता, मैकबेथ।
डायरी- प्रवास की डायरी।
जड़ की मुसकान कविता का सार
‘जड़ की मुसकान’ शीर्षक कविता में बच्चन जी ने स्पष्ट किया है कि किस प्रकार लोग अपने मूल आधार को भूल कर स्वयं को ही महत्व देने लगते हैं। एक वृक्ष का तना जड़ को सदा जीवन से भयभीत ज़मीन में गड़ी रहने वाली कह कर उसका उपहास करता है तथा स्वयं को उससे अधिक श्रेष्ठ बताता है। डालियाँ स्वयं को तने से भी अधिक अच्छा बताती हैं क्योंकि तना तो एक ही स्थान पर खड़ा रहता है जबकि वे दिशा-दिशा में जाकर हवा में डोलती रहती हैं।
पत्तियाँ स्वयं को डाल से अधिक महत्त्वपूर्ण इसलिए मानती हैं क्योंकि वे मर-मर्र स्वर में बोल भी सकती हैं। फूल सर्वत्र सुगंध फैलाने वाले, भँवरों को आकर्षित करने वाले, अपनी सुंदरता से सबको अपनी ओर खींचने वाले जानकर स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं । इन सब की बातों को सुन कर जड़ केवल मुसकराती है, क्योंकि वह जानती है कि इन सब का अस्तित्व उसके कारण ही है। यदि वह सलामत है तो वृक्ष भी है। जैसे मज़बूत नींव मज़बूत भवन बनाती है, वैसे हो मज़बूत जड़ वृक्ष को भी हरा-भरा रखती है।
Read More Summaries: