“Mamata” is a Hindi word that can be translated to English as “Motherly Love” or “Maternal Affection.” It represents the deep and nurturing love that a mother has for her child. This affectionate bond between a mother and her child is often seen as one of the most profound and unconditional forms of love in human relationships. Read More Class 10 Hindi Summaries.
ममता कहानी Summary In Hindi
ममता कहानी लेखक-परिचय
जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिंदी-साहित्य के प्रतिभावान कवि और लेखक थे। वे छायावाद के प्रवर्तक थे। उन्होंने हिंदी-साहित्य की कहानी, नाटक, उपन्यास, आलोचना आदि विभिन्न विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई। उनका जन्म सन् 1889 ई० में काशी के सुंघनी साहू नामक प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था। इनके पिता देवी प्रसाद साहू काव्य-प्रेमी थे। जब उनका देहांत हुआ तब प्रसाद जी की आयु केवल आठ वर्ष की थी। परिवारजनों की मृत्यु, आत्म संकट, पत्नी वियोग आदि कष्टों को झेलते हुए भी ये काव्य साधना में लीन रहे। काव्य साधना करते हुए तपेदिक के कारण उनका देहांत 15 नवंबर, सन् 1937 में हुआ था।
रचनाएँ- जयशंकर प्रसाद ने बड़ी मात्रा में साहित्य की रचना की थी। इन्होंने पद्य एवं गद्य दोनों क्षेत्रों में अनुपम रचनाएँ प्रस्तुत की थीं, जो निम्नलिखित हैं-
काव्य-‘चित्राधार’, ‘कानन कुसुम’, ‘झरना’, ‘लहर’, ‘प्रेम पथिक’, ‘आँसू’, ‘कामायनी’।
नाटक-‘चंद्रगुप्त’, ‘स्कंदगुप्त’, ‘अजातशत्रु’, ‘जनमेजय का नागयज्ञ’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘करुणालय’, ‘कामना’, ‘कल्याणी’, ‘परिणय’, ‘प्रायश्चित्त’, ‘सज्जन’, ‘राज्यश्री’, ‘विशाख’ और ‘एक चूंट’।
कहानी-‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘इंद्रजाल’, ‘आकाशदीप’, ‘आंधी’।
उपन्यास- कंकाल, तितली, इरावती (अपूर्ण)।
जयशंकर प्रसाद जी ने हिंदी-साहित्य को एक नई दिशा प्रदान की थी और हिंदी की प्रत्येक विधा को समृद्ध किया था। प्रसाद जी का योगदान सचमुच महत्त्वपूर्ण था। प्रसाद जी की भाषा-शैली परिष्कृत, स्वाभाविक, तत्सम शब्दावली प्रधान एवं सरस थी। छोटे-छोटे पदों में गंभीर भाव भर देना और उनमें संगीत लय का विधान करना उनकी शैली की प्रमुख विशेषता थी। वस्तुतः उनके साहित्य में सर्वतोन्मुखी प्रतिभा की झलक दिखाई देती है।
ममता कहानी का सारांश
‘ममता’ शीर्षक कहानी हिंदी के प्रमुख छायावादी कवि एवं नाटककार श्री जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखी गई है। इस कहानी में ऐतिहासिक आधार पर ममता के काल्पनिक चरित्र द्वारा भारत की नारी के आदर्श, कर्त्तव्य पालन, त्याग, तपस्वी जीवन का भावपूर्ण वर्णन किया है । इस कहानी में प्रसाद जी ने यह भी स्पष्ट करना चाहा है कि बड़े-बड़े सम्राटों को बनाने में जिन लोगों का हाथ रहा है, इतिहास ने उन्हें एकदम भुला दिया है। यह इतिहास का एवं हम सब का उनके प्रति अन्याय है, कृतघ्नता है।
ममता रोहतास दुर्ग के मंत्री चूडामणि की जवान विधवा बेटी थी। बेटी के भविष्य के प्रति चुडामणि सदैव चिंतित रहा करते थे। उन दिनों देश में शेरशाह सूरी का शासन था। चूड़ामणि अपने दुर्ग की सुरक्षा के प्रति सदा चिंतित रहते थे। इसी उद्देश्य के लिए उन्होंने शेरशाह से मित्रता करने की कोशिश की। शेरशाह का भी अपने स्वार्थ के लिए रोहतास दुर्ग पर अधिकार करना ज़रूरी था। इस कारण शेरशाह ने चूड़ामणि को सोने-चाँदी और हीरे जवाहरात से भरे थाल रिश्वत के रूप में भेंट किये। चूड़ामणि की बेटी ममता यह देख हैरान रह गयी। उसने अपने पिता से वह भेंट लौटा देने का आग्रह किया पर चूड़ामणि ऐसा न कर सके।
इस संधि को हुए अभी एक दिन भी नहीं बीता था कि शेरशाह के सिपाही स्त्री-वेश में रोहतास दुर्ग में प्रवेश कर गए। चूड़ामणि को जब पता चला तो उसने आपत्ति की, किंतु पठान सैनिकों ने उनकी हत्या कर दी और दुर्ग पर अपना अधिकार कर लिया। रोहतास का खजाना लूट लिया गया। ममता की खोज हुई पर वह अवसर पाकर वहाँ से भाग जाने से सफल हो गई।
रोहतास दुर्ग से भागकर ममता किसी तरह काशी पहुँच गई। वहाँ वह बौद्ध विहार के खंडहरों में झोंपड़ी बना कर उसमें एक तपस्विनी के समान जीवन बिताते हुए रहने लगी। शीघ्र ही अपनी सेवा-भावना से उसने आस-पास के गांवों के लोगों के मन जीत लिए। इस कारण ममता का गुजर-बसर ठीक तरह से होने लगा। एक रात जब ममता पूजा पाठ में मग्न थी उसने अपनी झोंपड़ी के द्वार पर एक भयानक-सी शक्ल वाले व्यक्ति को खड़े देखा। ज्यों ही ममता ने द्वार बंद करना चाहा उस व्यक्ति ने रात भर झोंपड़ी में आश्रय की भीख माँगी। उस व्यक्ति ने बताया कि वह मुग़ल हैं। अत्यधिक थक जाने के कारण चल नहीं सकता। रात बिताने के बाद वह चला जाएगा। मुग़ल का नाम सुनकर ममता की आँखों के सामने अपने पिता की हत्या का दृश्य उभर आया।
उसने चाहा कि वह आगंतुक को आश्रय देने से इन्कार कर दे किंतु अतिथि सेवा को अपना धर्म समझ कर उसने उस मुग़ल को अपनी झोंपड़ी में रात बिताने की आज्ञा दे दी और स्वयं खंडहरों में जाकर रात बिताई। रात बीती, सुबह हुई। ममता ने अपनी झोंपड़ी के आस-पास कई घुड़सवारों को घूमते हुए देखा। ममता उन्हें देख कर डर गई। तभी झोंपड़ी में रात बिताने वाले मुग़ल ने झोंपड़ी से बाहर जाकर पुकारा-‘मिर्ज़ा मैं इधर हूँ।’ ममता सहमी हुई यह सब देख रही थी। वह खंडहरों में ही छिपी रही। कुछ देर बाद ममता ने उस मुग़ल को यह कहते सुना- ‘वह बुढ़िया पता नहीं कहाँ चली गई है। उसे कुछ दे नहीं सका। यह स्थान याद रखना और झोंपड़ी के स्थान पर उसका घर बनवा देना।’ मुग़ल सैनिकों के वहाँ से चले जाने के बाद ममता खंडहरों से बाहर आई।
चौसा के मैदान में मुग़लों और पठानों के बीच हुए युद्ध को काफ़ी दिन बीत गये। ममता अब सत्तर साल की बुढ़िया हो गई थी। वह कुछ बीमार थी। गाँव की कुछ स्त्रियाँ उसके आस-पास बैठी थीं। तभी बीमार ममता ने बाहर से किसी को कहते सुना-जो चित्र मिर्जा ने बनाकर दिया था, वह तो इसी स्थान का होना चाहिए। अब किस से पूछू कि वह बुढ़िया कहाँ गई। ममता ने उस घुड़सवार को पास बुलवा कर कहा-“मुझे मालूम नहीं था कि वह शाहजहाँ हुमायूँ था या कि कौन। पर एक दिन एक मुग़ल इस झोंपड़ी में अवश्य रहा था। वे जाते-जाते मेरा घर बनवा देने की आज्ञा दे गया था। मैं जीवन भर अपनी झोंपडी के खोदे जाने के डर से डरती रही। पर अब मुझे कोई चिंता नहीं। अब मैं झोंपड़ी छोड़ कर जा रही हूँ। तुम इसकी जगह मकान बनाओ या महल, मेरे लिए कोई महत्त्व नहीं।” इतना कहते ममता के प्राण पखेरू उड़ गए।
कुछ दिनों में ही उस स्थान पर एक अष्टकोण मंदिर बन कर तैयार हो गया। उस पर लगाये शिलालेख पर लिखा था’सातों देश के नरेश हुमायूँ ने एक दिन यहाँ विश्राम किया था। उनके पुत्र अकबर ने यह गगनचुंबी मंदिर बनवाया।’ प्रसाद जी कहानी के अंत में लिखते हैं-‘ पर उस पर ममता का कहीं नाम नहीं था।’
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