कबीर के दोहे Summary In Hindi

“Kabir Ke Dohe Summary” The “Dohas” of Kabir, often referred to as “Kabir Ke Dohe,” are a collection of couplets written by the revered Indian mystic poet, Kabir. These couplets are known for their profound spiritual wisdom, social commentary, and simplicity that transcends religious boundaries. The dohas convey complex philosophical ideas in a straightforward and accessible manner. Read More Class 11 Hindi Summaries.

कबीर के दोहे Summary In Hindi

कबीर वाणी जीवन परिचय

भक्ति-काल की निर्गुण भक्ति-धारा के सन्त कवियों में कबीरदास का नाम विशेष सम्मान से लिया जाता है। इनके जन्म सम्वत् तथा स्थान को लेकर मतभेद है। अधिकांश विद्वान् इनका जन्म सम्वत् 1455 ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा (सन् 1398) को मानते हैं। इनका पालन-पोषण जुलाहा परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम नीरू तथा माता का नाम नीमा था। इन की पत्नी का नाम लोई था। इनके कमाल नामक पुत्र तथा कमाली नामक पुत्री थी। कबीर जी की शिक्षा-दीक्षा नहीं हुई थी परन्तु इन्हें अन्तर्ज्ञान था। इनके गुरु का नाम स्वामी रामानन्द था। साधु-संगति, गुरु-महत्त्व तथा जीवन में सहज प्रेमानुभूति की विशेष स्थिति इनकी रचनाओं में मिलती है। इनका देहावसान सम्वत् 1575 (सन् 1518) में काशी के निकट मगहर में हुआ। इनके शिष्य हिन्दू और मुसलमान दोनों थे। इसलिए काशी के निकट मगहर में इन की समाधि और मकबरा दोनों विद्यमान हैं।

कबीर ने स्वयं किसी ग्रन्थ की रचना नहीं की थी। इन की साखियों और पदों को इनके शिष्यों ने संकलित किया था। इनके उपदेश ‘बीजक’ नामक रचना में साखी, सबद और रमैणी तीन रूप में संकलित हैं। कबीर की कुछ उलटबांसियों का भी उल्लेख मिलता है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब’ में भी कबीर की वाणी सुशोभित है। कबीर को सधुक्कड़ी भाषा का कवि कहा जाता है। इन की भाषा में ब्रज, अवधी, खड़ी बोली, बुंदेलखंडी, भोजपुरी, पंजाबी तथा राजस्थानी भाषाओं के अनेक शब्द प्राप्त होते हैं। कबीर की शैली में एक सपाट-स्पष्ट सी बात करने की क्षमता है। अलंकारों की सहजता के साथ लोकानुभव की सूक्ष्मता, सत्यता, वचन-वक्रता और गेयता के गुण इनकी शैली में हैं।

साखी का सार

संत कबीर ने निर्गुण भक्ति के प्रति अपनी आस्था के भावों को प्रकट करते हुए माना है कि मानव जन्म मिलना बहुत दुर्लभ है। यह शरीर नाशवान है इसलिए इस पर अहंकार नहीं करना चाहिए। मनुष्य को अहं त्याग कर प्रेम से रहना चाहिए क्योंकि ईश्वर सर्वशक्तिमान है वही सब कुछ करने वाला है। कबीर जी मनुष्य को मधुर वाणी बोलने का उपदेश देते हैं। हमें परमात्मा के नाम में भेदभाव करने से मना करते हैं क्योंकि परमात्मा का स्वरूप एक है। मनुष्य को अपने मन को साफ रखना चाहिए। उसे छोटे-बड़े में भेद नहीं करना चाहिए। कई बार बड़ी वस्तु की अपेक्षा छोटी वस्तु अधिक महत्त्वपूर्ण प्रतीत होती है। मनुष्य को सत्कर्म रूपी धन का संचय करना चाहिए। यही धन मनुष्य के अंत समय में साथ जाता है। सदगुरु ही मनुष्य को सद्मार्ग दिखाते हैं। अहं का त्याग करना तथा गुरुओं की वाणी का आदर करना सिखाते है। जीवन में दुःख-सुख सभी आते-जाते रहते हैं परन्तु हमें प्रभु भक्ति को कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए।

कबीर के दोहे Summary

सबद का सार

निर्गुण-भक्ति के प्रति अपने निष्ठाभाव को प्रकट करते हुए कबीर जी मानते हैं कि वे प्रभु के पुत्र हैं। वे प्रभु को माँ रूप में तथा स्वयं को पुत्र रूप में मानते हैं। इस सम्बन्ध से आत्मा-परमात्मा को अनन्य सम्बन्ध की सृष्टि की गई है। कबीर जी मानते हैं कि वे एक छोटे बालक हैं। माँ बच्चों के अपराध क्षमा कर देती है। माँ स्नेह का पात्र होती है जिसमें अपने बच्चों के लिए प्यार होता है। वह अपने बच्चों को कभी भी दु:खी नहीं देख सकती। इसलिए वह मेरे सभी अपराध क्षमा करके मुझे अपनी शरण में ले।

रमैणी का सार

निर्गुण भक्ति के प्रति अपने निष्ठाभाव को प्रकट करते हुए कबीर जी मानते हैं कि ईश्वर का कोई रूप नहीं है वह सर्वशक्तिमान है। उनके स्वरूप को किसी ने नहीं समझा है। हिन्दू और मुसलमान भी ईश्वर के साकार रूप में भटक रहे हैं। वे ईश्वर की माया को समझ नहीं पा रहे हैं।

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