“Prerana” is a Sanskrit word that can be translated to “inspiration” or “motivation” in English. It is often used to describe the source of inspiration or the act of motivating oneself or others. “Prerana” refers to the concept of inspiration or motivation in various contexts, including personal development, education, and creativity. Read More Class 11 Hindi Summaries.
प्रेरणा Summary In Hindi
प्रेरणा कहानी का सारांश
‘प्रेरणा’ कहानी मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित है। इस कहानी में मानवीय स्वभाव की विचित्रता और अनिश्चिता का वर्णन किया गया है। मनुष्य पर जब कोई दायित्व आ जाता है। तब उसके अन्दर से एक ऐसी प्रेरणा प्रस्फुटित होती है जो उसके जीवन की दिशा बदल देती है।
कथावाचक एक स्कूल में अध्यापक थे। उस स्कूल में सूर्यप्रकाश नाम का एक लड़का बड़ा उदंड था। उसने खुदाई फ़ौजदारों की एक फ़ौज बना ली थी और उसके आतंक से वे सारी पाठशाला पर शासन किया करता था। मुख्याध्यापक से लेकर स्कूल के अर्दली तथा चपड़ासी तक उससे थर-थर काँपते थे। एक दिन तो उसने कमाल ही कर दिया। स्कूल में इंस्पैक्टर साहब आने वाले थे। मुख्याध्यापक ने सब लड़कों को आधा घण्टा पहले आने का आदेश दिया। किन्तु ग्यारह बजे तक कोई भी छात्र स्कूल नहीं आया। सूर्यप्रकाश ने उन सबको रोक रखा था, पर पूछने पर किसी ने भी उसका नाम नहीं लिया। परीक्षा में वह कथावाचक की असाधारण देखभाल के कारण अच्छे अंक प्राप्त कर सका। उसकी शरारतें देखकर लेखक को लगा कि एक दिन वह जेल जाएगा या पागलखाने में।
लेखक का उस स्कूल से तबादला हो गया। फिर वह इंग्लैण्ड पढ़ने के लिए चला गया। तीन साल बाद वहाँ से लौटा तो एक कॉलेज का प्रिंसीपल बना दिया गया। उसका शिक्षा प्रणाली को लेकर मंत्री महोदय से झगड़ा हो गया। परिणामस्वरूप उन्होंने उसे पदच्युत कर दिया। तब लेखक ने किसी गाँव में आकर एक छोटी-सी पाठशाला खोली। एक दिन वह अपनी कक्षा को पढ़ा रहा था कि पाठशाला के पास जिले के डिप्टी कमिश्नर की कार आकर रुकी। कथावाचक ने झेंपते हुए उनसे हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो डिप्टी कमिश्नर ने उसके पैरों की ओर झुककर अपना सिर उन पर रख दिया। डिप्टी कमिश्नर ने बताया कि उसका नाम सूर्यप्रकाश है। उसने बताया कि आज वह जो कुछ है उन्हीं के आशीर्वाद का परिणाम है।
सूर्यप्रकाश ने अपनी राम कहानी सुनाते हुए कहा कि किस तरह उसने अपने ऊपर अपने छोटे भाई की ज़िम्मेदारी ली और शरारती लड़के से एक कर्मठ और जिम्मेवार व्यक्ति बन गया। उसने अपने छोटे भाई मोहन के बीमार होने पर बहुत सेवा की, किन्तु उसे बचा न सका। छोटे भाई की पवित्र आत्मा ही उसकी प्रेरणा बन गई और वह कठिन से कठिन परीक्षाओं में भी सफल होता गया। उस दिन से लेखक कई बार सूर्यप्रकाश से मिले। वह अब भी मोहन को अपना इष्टदेव समझता है। मानव प्रकृति का यह एक ऐसा रहस्य है जिसे लेखक आज तक नहीं समझ पाया है।
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