नींव की ईंट Summary In Hindi

“Neenv Ki Eent” translates to “The Foundation Stone” in English. Read More Class 9 Hindi Summaries.

नींव की ईंट Summary In Hindi

नींव की ईंट जीवन-परिचय

जीवन-परिचय-श्री रामवृक्ष बेनीपुरी का हिंदी गद्य-साहित्य में अद्भुत योगदान है। इनका जन्म सन् 1902 ई० में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर नामक गाँव में हुआ था। बचपन में ही इनके माँ-बाप की मृत्यु हो गई थी। इन्होंने अनेक कष्ट सहकर दसवीं तक की पढ़ाई की। सन् 1920 ई० में गांधी जी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित 7 सितंबर, सन् 1968 ई० को मृत्यु हो गई।

रचनाएं- श्री रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी के श्रेष्ठ लेखक माने जाते हैं। इनकी प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं

  1. कहानी-चिता के फल
  2. उपन्यास-पतितों के देश में
  3. नाटक-आम्रपाली
  4. जंजीरें और दीवारें-रेखाचित्र।

साहित्यिक विशेषताएँ- श्री रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी के श्रेष्ठ साहित्यकार माने जाते हैं। उनका गद्य-साहित्य बहुत श्रेष्ठ है। इनके निबंधों में देशभक्ति की भावना का अनूठा वर्णन हुआ है। इन्होंने देश के युवाओं को देश एवं समाज पर बलिदान एवं त्याग करने के लिए प्रेरित किया है। इन्होंने समाज में फैली बुराइयों का सच्चा वर्णन किया है। इनकी भाषा सहज, सरल एवं स्वाभाविक है जिसमें तत्सम एवं तद्भव शब्दों का प्रयोग है। मुहावरों के प्रयोग से इनकी भाषा में निखार आ गया है।

नींव की ईंट निबंध का सार

‘नींव की ईंट’ लेखक श्री रामवृक्ष बेनीपुरी का अत्यंत रोचक एवं प्रेरक निबंध है। इसमें लेखक ने मनुष्य को नि:स्वार्थ त्याग एवं बलिदान की प्रेरणा दी है। प्रत्येक मनुष्य को अपने देश तथा समाज के कल्याण के लिए सदा तैयार रहना चाहिए। लेखक को इस बात का दुःख है कि आजकल हर आदमी भवन के कँगूरे की तरह बनना चाहता है। उसकी नींव की ईंट कोई बनना नहीं चाहता। लेखक चमकीली सुंदर एवं मज़बूत इमारत की नींव को ध्यान देने को कहता है। उसे दुःख है कि आज दुनिया केवल चमक-दमक देखती है किंतु उसके नीचे ठोस सत्य को कोई नहीं देखता। ठोस सत्य सदा शिवम् होता है किंतु वह सदा सुंदर हो यह जरूरी नहीं। सत्य कठोर होता है। कठोरता और भद्दापन एक साथ जन्म लेते हैं। लोग सदा कठोरता से भागते हैं। भद्देपन से मुँह मोड़ते हैं इसलिए वे सत्य से दूर जाते हैं।

कँगूरे पर चढ़ने वाली ईंट धन्य है जो लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करती है किंतु इमारत की नींव की ईंट धन्य होती है जिसके ऊपर इमारत खड़ी होती है। इस ईंट के हिलने से कँगूरा ज़मीन पर गिर जाता है इसलिए हमें कँगूरे की ईंट को नहीं बल्कि नींव की ईंट के गीत गाने चाहिए। यह ईंट इमारत की शोभा बढ़ाने के लिए सदा ज़मीन के अंदर दबी रहती है और अपना त्याग एवं बलिदान करती है। इसी प्रकार जो समाज के लिए अपना बलिदान देते हैं वही समाज का आधार होते हैं। ईसा की शहादत ने ईसाई धर्म को अमर बनाया। वास्तव में ईसाई धर्म को अमर तो उन अनाम लोगों ने बनाया जिन्होंने इसका प्रचार करने में चुपचाप अपना बलिदान किया।

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वह चिड़िया एक अलार्म घड़ी थी…. Summary In Hindi

वह चिड़िया एक अलार्म घड़ी थी…. Summary In Hindi

Vah Chidiya Ek Alarm Ghadi Thi” translates to “That Bird Was an Alarm Clock” in English. Read More Class 9 Hindi Summaries.

वह चिड़िया एक अलार्म घड़ी थी…. Summary In Hindi

वह चिड़िया एक अलार्म घड़ी थी….. लेखक-परिचय

जीवन-परिचय-गोविंद कुमार ‘गुंजन’ आधुनिक हिन्दी-साहित्य के प्रमुख साहित्यकार माने जाते हैं। उनका जन्म 28 अगस्त, सन् 1956 ई० में मध्य प्रदेश प्रांत के सनवाद में हुआ था। इन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एम० ए० की परीक्षा पास की। इनकी साहित्य-प्रतिभा तथा साहित्य-साधना को देखते हुए सन् 1994 में प्रथम समानांतर नवगीत अलंकार, सन् 2002 में अखिल भारतीय अम्बिका प्रसाद दिव्य प्रतिष्ठा पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हिन्दी निबंध हेतु इन्हें सन् 2002 में निर्मल पुरस्कार प्रदान किया गया। सन् 2007 में इन्हें मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी का बाल कृष्ण शर्मा नवीन पुरस्कार देकर अलंकृत किया गया। रचनाएँ-रुका हुआ संवाद (कविता संग्रह), समकालीन हिन्दी गजलें (सहयोगी प्रकाशन), कपास के फूल, सभ्यता की तितली, पंखों पर आकाश, ज्वाला भी जलधारा भी।

साहित्यिक विशेषताएँ-गोविंद कुमार ‘गुंजन’ आधुनिक संवेदना से ओत-प्रोत साहित्यकार हैं। गुंजन जी के लेखन की महत्त्वपूर्ण विशेषता है कि हर उम्र और हर वर्ग के पाठकों के मध्य उनकी भिन्न-भिन्न रचनाएँ लोकप्रिय हैं। मानवता उनके साहित्य की प्राण तत्व हैं। गुंजन जी के साहित्य में आधुनिक युग की विसंगतियों, समस्याओं, मूल्यहीनता आदि का सुन्दर चित्रण हुआ है। अनेक स्थलों पर इनका साहित्य अत्यन्त मार्मिक बन पड़ा है। ‘गुंजन’ जी श्रेष्ठ कवि होने के साथ-साथ एक श्रेष्ठ ललित निबन्धकार हैं। कहानी लेखन में गुंजन जी पूर्णतः सिद्धहस्त हैं।

भाषा-शैली-‘गुंजन’ जी एक श्रेष्ठ कवि होने के साथ-साथ श्रेष्ठ गद्यकार भी हैं। उनके गद्य लेखन में सहजता और आत्मीयता है। वे बड़ी-से-बड़ी बात को भी बातचीत की शैली में कहते हैं और सीधे पाठकों के मन को छ लेते हैं। लेखक ने मुख्यतः खड़ी बोली भाषा का सहज स्वाभाविक प्रयोग किया है।

वह चिड़िया एक अलार्म घड़ी थी….. कहानी का सार

“वह चिड़िया एक अलार्म घड़ी थी…….” गोविंद कुमार गुंजन द्वारा रचित एक श्रेष्ठ कहानी है। लेखक ने अपनी इस कहानी के माध्यम से मनुष्य की आदत पर प्रकाश डालना चाहा है। लेखक ने कहानी में बताया है कि मनुष्य की आदत कभी नहीं बदलती किंतु कभी-कभी कुछ कारण ऐसे बन जाते हैं जिनके कारण मानव को अपनी आदतों में बदलाव लाना पड़ता है।

बाज़ार में पहले अलार्म घड़ियाँ खूब बिका करती थीं। वर्तमान समय में मोबाइल फ़ोन में अलार्म रहने के कारण इनकी माँग लगातार कम होती जा रही है। पुराने समय में अलार्म घड़ी का अपना विशेष महत्त्व हुआ करता था। बच्चों की परीक्षा के समय अलार्म घड़ी उन्हें सुबह-सवेरे उठाने का काम करती थी। सुबह किसी यात्रा में जाना होता था तो अलार्म घड़ी सुबह जल्दी उठाने का काम करती थी। जिस प्रकार आज सभी के पास मोबाइल फ़ोन हैं, उसी प्रकार पहले सभी के पास अलार्म घड़ियाँ नहीं हुआ करती थीं।

घड़ी उपहार में देने की वस्तु हुआ करती थी। परीक्षा में पास होने पर घड़ी दी जाती थी। कॉलेज में प्रवेश लेने पर तथा ससुराल पक्ष वालों की तरफ से घड़ी अवश्य दी जाती थी। कई सरकारी विभागों में भी सेवा-निवृत्ति पर घड़ी देने की परंपरा थी। लेखक को पहली बार हाथ घड़ी उस समय मिली थी, जब उसने कॉलेज में प्रवेश लिया था। उसे पहली अलार्म घड़ी भी कॉलेज में एक बिनंध प्रतियोगिता में भाग लेने पर मिली थी।

लेखक को उस अलार्म घड़ी की आवाज़ अत्यंत मनमोहक लगती थी। आज महँगे-महँगे मोबाइल फ़ोन की आवाज़ उसे पहले के समान मधुर नहीं लगती। लेखक के बचपन में जब उसके पास घड़ी नहीं थी तो उसके पिता जी उससे कहा करते थे कि यदि तुम्हें सुबह जल्दी उठना हो तो अपने तकिए से कह दिया करो वह तुम्हें जल्दी उठा दिया करेगा। लेखक पिता द्वारा दी सीख का पालन करता था और तकिया उसे सुबह जल्दी उठा देता था। लेखक को सुबह जल्दी उठना पसंद नहीं था। वह देर रात तक पढ़ता था और सुबह देर से उठता था। उसने सुबह की सुंदरता का अनुभव कविताओं में किया था। आज दशकों बाद भी लेखक के पास वह अलार्म घड़ी है। अब घड़ी ठीक होने योग्य नहीं बची। लेखक भी अपनी आदत में कहाँ सुधार कर पाया।

अस्सी के दशक में पहली बार लेखक की नौकरी लगी थी। पहली बार लेखक घर से बाहर आया था। उसने एक कमरा किराये पर ले लिया। कमरे में उसने महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला तथा तुलसी दास जी की तस्वीरें फ्रेम करवा कर टाँगी हुई थीं। रात में देर तक जागकर कविता लिखना लेखक को स्वर्ग में जीना लगता था। रात में देर तक जागने के कारण उसे सुबह जल्दी उठना अत्यंत कठिन होने लगा था। वह अक्सर देर से दफ्तर पहुँचता था। लेखक ने जो कमरा किराए पर लिया था उसमें मात्र एक दरवाज़ा था। कमरे में हवा आने-जाने का दरवाज़े के अतिरिक्त अन्य कोई दूसरा रास्ता न था। पहले की तरह तकिया अब लेखक की बात नहीं सुनता था।

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लेखक अपनी किताबों की दुनिया में खोया इतना बेख़बर था कि एक चिड़िया ने कब उसके कमरें में टंगी पंत जी की तस्वीर के पीछे अपना घोंसला बना लिया उसे पता ही नहीं चला। देर शाम को चिड़िया दरवाज़ा खुला पाकर कमरे में आ जाया करती थी। एक सुबह चिड़िया लेखक के सिरहाने बैठ कर चीं-चीं की ध्वनि कर उसे उठाने का प्रयास कर रही थी। उसकी ध्वनि में लेखक को गुस्सा नज़र आ रहा था। वह चाहती थी कि लेखक उठकर दरवाज़ा खोले और वह बाहर जाए।

दूसरे दिन लेखक की नींद फिर देर से खुली। इस बार फिर चिड़ियाँ की झुंझलाहट भरी चहचहाहट ने उसे जगा दिया। पलंग के सिरहाने बैठी चिड़िया उसे देखकर नाराज़ हो रही थी कि वह अभी तक क्यों सोया है ? तब चिड़िया ने अपनी चोंच से लेखक की रज़ाई का एक कोना पकड़ उसे उठाने का प्रयास किया। ऐसा करने से चिड़िया को तनिक भी डर नहीं लग रह था।

चिड़िया द्वारा इस प्रकार से जगाने पर लेखक को अपनी माँ की याद आ जाती थी। उसकी माँ भी इसी प्रकार सुबह-सवेरे जल्दी उठाती थी। अब लेखक ने वास्तव में सुबह सवेरे का सुंदर दृश्य अपनी आँखों से महसूस किया। उसने अब चिड़िया के साथ जल्दी उठना सीख लिया था। आज भी लेखक उस वात्सल्यमयी चिड़िया के उस उपकार को बहुत कृतज्ञता से महसूस करता जिसने उसे सुबह की मनोरम तथा मनमोहक छवि के दर्शन कराए और उपहार में ओस के मोती तथा नए खिलने वाले फूल दिखाए।

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साए Summary In Hindi

साए Summary In Hindi

The story named ‘Saaye‘ is a great work written by storyteller Himanshu Joshi. This is a character driven story. This story is very touching. In the modern era, due to greed for money and selfishness, man is moving away from his ideals. But even today there are many people in the society who are far above selfishness. He still loves his ideals. Ready to spend his whole life to keep the promise given to his friend. Read More Class 9 Hindi Summaries.

साए Summary In Hindi

साए लेखक-परिचय

जीवन परिचय- श्री हिमांशु जोशी बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार हैं। उन्होंने गद्य की विविध विधाओं की रचना कर हिन्दी-साहित्य में एक विशेष स्थान प्राप्त किया है। उनका जन्म कुमाऊँ के पर्वतीय अंचल में 4 मई, सन् 1935 ई० में हुआ। यहीं उनका बचपन व्यतीत हुआ। उनकी शिक्षा दीक्षा नैनीताल तथा दिल्ली में सम्पन्न हुई। बचपन से ही लेखन के प्रति उनकी रुचि थी। इसी रुचि के विकास ने उन्हें हिन्दी-साहित्य में ला खड़ा किया। उनकी पहली कहानी सन् 1954 ई० में प्रकाशित हुई। जोशी जी ने पत्रकारिता तथा स्वतन्त्र लेखन को अपनी जीविका को आधार बनाया। वे साप्ताहिक हिन्दुस्तान के विशेष संवाददाता के कार्यभार को सम्भाले हुए हैं।

रचनाएँ- जोशी जी ने कहानियाँ, उपन्यास, कविताएँ, यात्रा वृत्तान्त आदि गद्य की विभिन्न विधाओं तथा बाल साहित्य से सम्बन्धित लगभग 24 पुस्तकों की रचना की है। उनकी उल्लेखनीय रचनाएँ निम्नलिखित हैंउपन्यास-अरण्य, महासागर, छाया मत छूना मन, कगार की आग, समय साक्षी है, तुम्हारे लिए, सु-राज।

कहानी-संग्रह-अंततः, रथचक्र, मनुष्य, चिन्ह, जलते हुए डैने, इस बार बर्फ गिरी तो, इकहत्तर कहानियाँ गंधर्व गाथा, हिमांशु जोशी की इक्यावन कहानियाँ आदि। विशिष्ट रचनाओं का संग्रह-उत्तर पूर्व।
बाल साहित्य-तीन तारे, बचपन की याद रही कहानियाँ, सुबह के सूरज, हिम का साथी, विश्व की श्रेष्ठ लोककथाएँ, नार्वेः सूरज चमके आधी रात, कालापानी।
कविता-संग्रह-अग्नि सम्भव, नील नदी का वृक्ष, एक आँखर की कविता।
साहित्यिक विशेषताएँ-सहजता, सरलता तथा स्वाभाविकता हिमांशु जोशी की रचनाओं की उल्लेखनीय विशेषताएँ हैं। इन गुणों के कारण इनका साहित्य पाठकों की रुचि का विषय बन गया है। कुमाऊं का पर्वतीय अंचल इनकी रचनाओं में बड़े प्रभावशाली ढंग से चित्रित हुआ है। इनके उपन्यास सुराज पर कला फ़िल्म भी बन चुकी है। कगार की आग, कोई एक मसीहा, छाया मत छूना, मन का सफल मंचन भी हो चुका है। दिल्ली अकादमी ने उन्हें उनके कहानी-संग्रह पर पुरस्कृत किया है। हिन्दी संस्थान, उत्तर प्रदेश ने भी उन्हें छाया मत छूना मन, मनुष्य, चिह्न तथा अरण्य के लिए सम्मानित किया है। हिमांशु जी की कुछ रचनाओं का भारतीय भाषाओं के साथ-साथ अंग्रेजी, चीनी, जापानी आदि भाषाओं में अनुवाद हुआ है।

भाषा-शैली-हिमांशु जोशी की भाषा सरल तथा सहज है। कहीं-कहीं नाटकीयता तथा जटिलता का भी समावेश है। संस्कृत के शब्दों के साथ-साथ उन्होंने आंचलिक शब्दों का भी खुलकर प्रयोग किया है।

कहानी का सार/प्रतिपाद्य

‘साए’ नामक कहानी कथा-शिल्पी हिमांशु जोशी द्वारा रचित एक श्रेष्ठ रचना है। यह एक चरित्र प्रधान कहानी है। यह कहानी अत्यंत मर्मस्पर्शी है। आधुनिक युग में धन लोलुपता के कारण तथा स्वार्थपरता के कारण आज मनुष्य अपने आदर्शों से हटता जा रहा है। किन्तु आज भी समाज में ऐसे बहुत-से लोग हैं जो स्वार्थपरता से कहीं ऊपर हैं। उन्हें आज भी आदर्श प्यारे हैं। मित्र को दिए वचन को निभाने के लिए सारा जीवन बिताने को तैयार हैं। एक बीमार शरीर अपने दो नन्हें-नन्हें बच्चों को लेकर उम्मीद भरी आँखों से प्रतिदिन डाकिए की प्रतीक्षा किया करती थी। वह अफ्रीका में गए अपने पति के पत्र की प्रतीक्षा में रोज़ पलकें बिछाए बैठी रहती थी। लेकिन डाकिया था कि आता ही नहीं था।

बहुत दिनों के बाद एक पत्र आया जिस पर रंग-बिरंगी टिकटें लगी थीं। पत्र नैरोबी के एक अस्पताल से आया था। पत्र बड़ा ही अजीब था जो करुणा और दर्द से भरा हुआ था। पत्नी ने पत्र पढ़ना शुरू किया। पत्र उसके पति का था। पति ने पत्र में लिखा था कि रंगभेद के कारण उसे यूरोपियन लोगों के अस्पताल में जगह नहीं मिल पाई। उसकी हालत काफ़ी गंभीर थी। इलाज में देरी के कारण रोग काबू से बाहर हो गया था। काफ़ी मेहनत तथा सिफ़ारिश लगवाने पर अस्पताल में भर्ती कर लिया गया हूँ। तुम्हारी और बच्चों की सोच दिन-रात सताती रहती है। पत्नी पत्र पढ़तेपढ़ते रोती जा रही थी। नन्हें अबोध बालक माँ को आँसू भरे नेत्रों से देखते जा रहे थे। पत्नी ने पति की सूचना के लिए कई पत्र तथा तार डाले। कुछ दिनों के बाद उन्हें केन्या की मोहर लगा एक विदेशी लिफाफा मिला। पत्र उसके पति का था।

अब उसकी हालत में काफ़ी सुधार था। पत्र के साथ उसने कुछ रुपए भी भेजे थे। बीमार पत्नी का स्वास्थ्य अब ठीक होने लगा था। बच्चों के मुरझाए चेहरे खिल उठे थे। पत्रों का आदान-प्रदान नियमित रूप से हो रहा था। पति की ओर से अब बड़े ही अच्छे पत्र आने लगे थे। सभी परिवार वाले खुश थे। घर वाले चाहते थे कि विदेश गया उनका पिता, पति कुछ समय के लिए स्वदेश आ जाए। बच्चे पिता को देखना चाहते थे। पत्नी-पति के दर्शन करना चाहती थी। पत्नी पत्र में पति को लिखकर बताती थी कि उनके द्वारा दी गई सभी नसीहतों को बच्चे अच्छे से मानते हैं। समय पर पढते हैं। पुत्र के बारे में बताते हुए वह कहती है कि अज्जू बड़ा होकर आपकी तरह ही अफ्रीका जाएगा। अब अजू पूरे बारह साल का हो गया है। तनु अठारह साल पूरे कर चुकी है।

पति की ओर से पत्र आया। उसमें लिखा था कि वह अभी नहीं आ पाएगा। अगले वर्ष तनु की शादी पर ज़रूर आ जाएगा। उसने यह भी लिखा की स्वदेश में ही तनु के लिए वर की तलाश करना। वर ढूँढ़ने में अधिक कठिनाई नहीं हुई। शायद इसलिए कि वर पक्ष के लोगों को लग रहा था कि पिता अफ्रीका में है। रुपए पैसे की कोई परेशानी न होगी। आखिरकार शादी का दिन आ गया। शादी भी हो गई, किन्तु तनु के पिता जी नहीं आए। उन्होंने कपड़े, जेवर, रुपए भेज दिए थे। विवाह के बाद तनु के विवाह के चित्र अफ्रीका में भेज दिए गए।

अजू ने भी इनाम में मिली सारी वस्तुओं के फोटो अपने पापा को अफ्रीका भेजे। पिता ने भी पत्र के उत्तर में एक कैमरा, एक गर्म सूट का कपड़ा तथा घड़ी भेज दी। पिता के स्वदेश न आने पर बच्चों ने इच्छा जताई की वे ही अफ्रीका आ जाएँ तब उत्तर यह मिला कि उनका कोई एक ठिकाना नहीं है इसलिए यहाँ आना बेकार है। एक दिन ऐसा भी आया जब अजू ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली। वह नौकरी की तालाश में लग गया।

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पिता के स्वदेश न आने पर उसने स्वयं अफ्रीका जाने का प्रबन्ध कर लिया। शीघ्र ही वह पत्र में लिखे पते पर अफ्रीका में जा पहुँचा। शाम को एक वृद्ध ने घर का ताला खोला। वृद्ध ने अज्जू से उसका परिचय पूछा और अज्जू को अपनी बाँहों में भर लिया। भोजन करने के बाद उन्होंने दीवार पर लगी एक तस्वीर दिखाई जिसे देखकर अजू ने कहा कि, वह उसकी अपनी फोटो है। यह सुनकर वृद्ध व्यक्ति ज़ोर से हँसा और बोला बेटा यह तुम इतने बड़े हो गए। अज्जू के चेहरे की ओर देखते हुए उन्होंने कहा कि-तुम शायद नहीं जानते, तुम्हारे पिता का मैं कितना जिगरी दोस्त हूँ।

मैं और तुम्हारे पिता एक साथ रहते थे। हम दोस्त की तरह नहीं अपितु सगे भाइयों की तरह थे। उन्होंने ही मुझे हिन्दुस्तान से यहाँ अफ्रीका बुलाया था। कुछ देर मौन रहने के बाद वृद्ध ने अज्जू से कहा कि कभी-कभी हमें तिनको का सहारा छोड़कर उनके साए में जीना पड़ता है। वृद्ध ने खाँसते हुए अज्जू से बताया कि बेटा तुम ही सोचो कि आज तुम्हारे पिता की मृत्यु आज से 10-15 वर्ष पहले हो जाती तो तुम्हारा क्या होता। तुम अनाथ हो गए होते। तुम्हारी माँ मर चुकी होती। आज जो तुम हो वह न बन पाते।

अजू को समझाते हुए वृद्ध ने कहा कि हम जीवन में कभी-कभी सहारे की एक अदृश्य डोर से अपना जीवन व्यतीत कर जाते हैं। इतना कहते ही उनका गला भर आया। उन्होंने अज्जू को बताया कि उसके पिता का देहांत उसके बचपन में ही हो गया था। वह ही साझे के कारोबार से अज्जू के पिता के हिस्से के पैसे उन्हें लगातार भेजता रहा था। अब तुम बड़े हो चुके हो। अब तुम इस कारोबार को संभाल लो। मैंने तुम्हारे पिता को दिया अपना वचन पूरा कर दिया। इतना कहते हुए वृद्ध की आँखें आँसुओं से भर आईं।

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दो हाथ कहानी Summary In Hindi

दो हाथ कहानी Summary In Hindi

In summary, “Do Haath” is a powerful short story by Premchand that delves into the struggles of two impoverished individuals, their aspirations, and the difficult choices they make in their pursuit of a better life. It serves as a reflection on the socio-economic challenges faced by the underprivileged in rural India during the author’s time. Read More Class 9 Hindi Summaries.

दो हाथ कहानी Summary In Hindi

दो हाथ लेखक-परिचय

जीवन-परिचय-हिन्दी-गद्य की प्रसिद्ध लेखिका डॉ० इन्दुबाली का साहित्य में अप्रतिम स्थान है। इनका जन्म सन् 1932 में लाहौर पाकिस्तान में हुआ। विभाजन के बाद इन्दुबाली भारत आ गई। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा पहले लाहौर तथा विभाजन के बाद शिमला में हुई। इन्होंने उच्च शिक्षा लुधियाना तथा चंडीगढ़ से प्राप्त की। डॉ० इन्दुबाली ने साहित्य, दर्शन-शास्त्र तथा उपन्यासों का भी गंभीरता से अध्ययन किया है। अध्यापन को इन्होंने व्यवसाय के रूप में चुना। पंजाब के विभिन्न शहरों में इन्होंने प्राध्यापिका के रूप में अध्यापन कार्य किया। इन्होंने प्राचार्या के रूप में भी अनेक स्थानों पर कार्य किया। इनका सारा जीवन अध्यापन और अध्ययन के क्षेत्र में बीता। पंजाब प्रदेश के कहानीकारों में इनका विशिष्ट स्थान है। इनकी साहित्य सेवा को देखते हुए पंजाब के भाषा विभाग की ओर से इन्हें शिरोमणि साहित्यकार के सम्मान से अलंकृत किया। इसके अतिरिक्त इन्हें समय-समय पर और भी अनेक पुरस्कार मिलते रहे हैं। आजकल आप चंडीगढ़ में सेवानिवृत्त हो कर अपना जीवन व्यतीत कर रही हैं।

रचनाएँ- डॉ० इन्दुबाली एक महान साहित्य सेवी हैं। वे बहमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार मानी जाती हैं। उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से अनेक साहित्यिक विधाओं का विकास किया है। इनकी लगभग पंद्रह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
कहानी संग्रह- मन रो दिया, दो हाथ, मेरी तीन मौतें, दूसरी औरत होने का सुख, टूटती-जुड़ती, मैं खरगोश होना चाहती हूँ।
उपन्यास- बांसुरिया बज उठी, सोए प्यार की अनुभूति। इनकी प्रथम कहानी सन् 1964 में धर्मयुग में ‘मैं दूर से देखा करती हूँ” शीर्षक से प्रकाशित हुई।

साहित्यिक विशेषताएँ-डॉ० इन्दुबाली साहित्य सेवी और समाज सेवी दोनों रूप में प्रसिद्ध हैं। इनका गद्य साहित्य समाज केंद्रित है। इन्होंने अपने गद्य साहित्य में समाज का यथार्थ चित्रण किया है। समाज के सुख-दुःख, ग़रीबी, शोषण आदि का यथार्थ वर्णन किया है। इनकी कहानियों में राणाज में फैली गरीबी, कुरीतियों, जाति-पाति, विसंगतियों का यथार्थ के धरातल पर अंकन हुआ है। वे एक समाज सेवी लेखिका थी। अत: आज तक वह साहित्य सेवा के द्वारा समाज का उद्धार करने में लगी हुई हैं।

भाषा शैली- इनकी भाषा शैली अत्यंत सहज, सरल एवं प्रवाहपूर्ण है। इन्होंने अपने गद्य साहित्य में अनेक शैलियों को स्थान दिया है। इनकी भाषा में प्रवाहमयता और सजीवता है। इनकी भाषा पाठक के विषय से तारतम्य स्थापित कर उसके हृदय पर अमिट छाप छोड़ देती है।

दो हाथ कहानी का सार/प्रतिपाद्य

डॉ० इन्दुबाली द्वारा रचित कहानी ‘दो हाथ’ मनोविज्ञान पर आधारित कहानी है। इस कहानी में लेखिका ने एक बालिका की उस मानसिक दशा का चित्रण किया है, जिसमें वह अपने हाथों के सौंदर्य को लेकर चिंतित रहती है। इससे बालिका का समुचित विकास नहीं हो पाता। वह माँ की कमी को अक्सर महसूस करती है।

नीरू बिना माँ की एक मेहनती लड़की थी। उसे घर का सारा काम करना पड़ता था। वह कर्म करने में विश्वास करती थी। रसोई का सारा काम करना। घर की साफ-सफाई तथा कॉलेज की पढ़ाई करना बस यही उसका जीवन था। उसे अपने जीवन में माँ का अभाव प्रायः दुःख देता था। वह अक्सर सोचती थी कि यदि उसकी माँ आज जीवित होती तो वह भी बे-फिक्र होकर अपनी सहेलियों के साथ खेल सकती थी। किंतु वह अपना मन मसोसकर रह जाती थी।

वह अपने दुःख को घर के काम तथा पढ़ाई के बीच डालकर शांत करने का प्रयत्न करती थी। जब कभी पढ़ते और काम करते समय उसका ध्यान अपने हाथों की ओर जाता था तो वह अत्यंत निराश और हताश हो जाती थी। अपनी निराशा को छुपाने के लिए वह तरह-तरह के विचार करने लगती थी। वह सोचने लगती थी कि मोर के पैर भी तो कुरूप होते हैं लेकिन मोर फिर भी सुंदर है। इसी तरह क्या वह मोर से कम सुंदर है ? घर में सारा दिन काम करने के कारण उसके हाथ कट-फट चुके थे। कभी बर्तन मांजते हुए, कभी झाड़ लगाते हुए तो कभी रोटियाँ सेकते हुए। जब कभी नीरू के पिता प्यार और दुलार से उसके सिर पर अपना हाथ रख देते थे तो वह सभी अभावों को भूल कर सुखद आनंद का अनुभव करने लगती थी। जब कभी वह उदास हो जाती थी तो पिता जी उसकी उदासी का कारण पूछते तो वह अक्सर टाल दिया करती थी।

पिता जी को पता चल जाता था कि उसे अपनी माँ की याद आ रही होगी शायद इसीलिए वह फूट-फूट कर रोने लगती थी। तब पिता जी ने नीरू से कहा कि शायद वह नीरू को पूरा प्यार नहीं दे पाते, तभी तो वह छुप-छुप कर रोती है। तभी नीरू को ध्यान आया कि अभी तो उसे रसोई का सारा काम करना है। झूठे बर्तन धोने हैं। चूल्हे की लिपाई करनी है। कल की रसोई के लिए कोयले तोड़ने हैं। उसे याद आता है कि पहले जब कभी वह अपनी मां का हाथ बँटाने की बात करती थी तो उसकी माँ उसे नहीं करने देती थी।

उसे कहती थी कि “तुम्हारी उंगलियाँ ककड़ी की तरह कोमल हैं, इन पाँच उंगलियों में पाँच अंगूठियाँ डालूँगी, मेंहदी रचाऊँगी, कलाई को चूड़ियों से सजाऊँगी।” घर का सारा काम करते हुए उसे माँ की बातें याद आते ही उसकी आँखों से आँसू बहने लगते थे। वह अनजाने में अपने हाथ को साड़ी के पल्लू में छिपाने की अक्सर कोशिश करती थी। एक दिन नीरू ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। पिता के पूछने पर उसने बताया कि उसकी सभी सहेलियाँ उसके गंदे-भद्दे हाथों को देखकर उस पर हँसती हैं तथा कहती हैं कि तुझसे कोई शादी नहीं करेगा। तब पिता जी नीरू को समझाते हुए कहते हैं कि काम करने वाले की सुंदरता तो उसके हाथों में होती है।

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काम करने वाली लड़की तो शक्ति तथा सम्पन्नता की प्रतीक होती है। पुत्री को कर्म और शक्ति का उपदेश देते-देते वह गंभीर हो गए। पिता की बातों का नीरू पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि उसमें एक नई जागृति आ गई और उमंग से भर गई। जब से नीरू की माँ का देहांत हुआ था, तभी से उसने अपने भाई बहनों की ज़िम्मेदारी का बोझ उठा रखा था। घर के काम में चलने वाले नीरू के हाथ पढ़ाई में भी खूब चलते थे।

अगले दिन कॉलेज में वार्षिक उत्सव था तथा नीरू को काफ़ी सारे इनाम भी मिलने वाले थे। नीरू ने पढ़ाई के साथ-साथ संगीत, चित्रकला तथा खेलों में बहुत-से इनाम जीते थे। वार्षिक उत्सव को लेकर नीरू काफी परेशानी में थी। वह सारी रात सो नहीं पाई थी। उसे अपने हाथों की चिंता सताए जा रही थी। सुबह का समय अत्यधिक व्यस्तता का समय होता है। सभी को जल्दी होती है। घर में कोई न कोई किसी-न-किसी चीज़ की पुकार में लगा ही होता है। नीरू घर का सारा काम निपटा कर कॉलेज में पहुँची। वह अपनी कुर्सी पर उदास एवं खोई हुई बैठी थी। इनाम देने के लिए नीरू का नाम बड़े सम्मान और तारीफ़ों के साथ लिया गया। इनाम लेने के लिए जैसे ही वह मंच पर पहुँची तो अपने हाथों को देखकर उसे बहुत शर्म आ रही थी। उसकी आँखों से आँसू टपक रहे थे। इनाम बँट जाने के बाद सभापति ने एक विशेष इनाम की घोषणा की। उन्होंने सबसे सुंदर हाथों को पुरस्कृत करने की बात कही।

नीरू सभापति की बातों को सुनकर चुपचाप खड़ी थी। उसे लग रहा था कि अब मारे शर्म के वह धरती में ही गड़ जाएगी जब सभापति ने सुंदर हाथों का निर्णय सुनाया तो सभी चकित रह गए थे। उन्होंने कहा कि सबसे सुंदर हाथ नीरू के हैं क्योंकि कर्मशीलता ही हाथों की शोभा होते हैं। नीरू के हाथ कर्मशीलता का साक्षात् उदाहरण थे। नीरू जब इनाम लेकर घर लौट रही थी तो वह धीर और गंभीर थी। आज उसे अपने गंदे, भद्दे हाथ बहुत सुंदर लग रहे थे। वह अपने हाथों को निरंतर देखती ही जा रही थी।

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पाजेब कहानी Summary In Hindi

पाजेब कहानी Summary In Hindi

The story ‘Pajeb‘ composed by Jainendra Kumar can be placed in the stories based on the events of the middle class family. This story was written in 1944. Read More Class 9 Hindi Summaries.

पाजेब कहानी Summary In Hindi

जैनेंद्र कुमार लेखक-परिचय

जीवन-परिचय:
श्री जैनेंद्र कुमार हिंदी-साहित्य के सुप्रसिद्ध कथाकार हैं। उनको मनोवैज्ञानिक कथाधारा का प्रवर्तक माना जाता है। इसके साथ-साथ वे एक श्रेष्ठ निबंधकार भी हैं। उनका जन्म सन् 1905 ई० को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के कौड़ियागंज नामक स्थान पर हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा हस्तिनापुर के जैन गुरुकुल में हुई। उन्होंने वहीं पढ़ते हुए दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् काशी हिंदू विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा हेतु प्रवेश लिया लेकिन गाँधी जी के असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर उन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी और वे गाँधी जी के साथ असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। वे गाँधी जी से अत्यधिक प्रभावित हुए। गाँधी जी के जीवन-दर्शन का प्रभाव उनकी रचनाओं में स्पष्ट दिखाई देता है। सन् 1984 ई० में उनको साहित्य-सेवा की भावना के कारण उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान में भारत-भारती सम्मान से सुशोभित किया। उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। भारत सरकार ने उनकी साहित्यिक सेवाओं के कारण पद्मभूषण अलंकृत किया। सन् 1990 ई० में ये महान् साहित्य सेवी संसार से सदा के लिए विदा हो गए।

रचनाएँ:
जैनेंद्र कुमार जी एक कथाकार होने के साथ प्रमुख निबंधकार भी थे। उन्होंने उच्च कोटि के निबंधों की भी रचना की है। हिंदी कथा साहित्य को उन्होंने अपनी लेखनी से समृद्ध किया है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

उपन्यास:
परख, अनाम स्वामी, सुनीता, कल्याणी, त्यागपत्र, जयवर्द्धन, मुक्तिबोध, विवर्त। कहानी संग्रह-वातायन, एक रात, दो चिड़िया, फाँसी, नीलम देश की राज कन्या, पाजेब। निबंध संग्रह-जड़ की बात, पूर्वोदय, साहित्य का श्रेय और प्रेय, संस्मरण, इतस्ततः, प्रस्तुत प्रश्न, सोच विचार, समय और हम।

साहित्यिक विशेषताएँ:
हिंदी-कथा साहित्य में प्रेमचंद के पश्चात् जैनेंद्र जी प्रतिष्ठित कथाकार माने जाते हैं। उन्होंने अपने उपन्यासों का विषय भारतीय गाँवों की अपेक्षा नगरीय वातावरण को बनाया है। उन्होंने नगरीय जीवन की मनोवैज्ञानिक समस्याओं का चित्रण किया है। इनके परख, सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी में नारी-पुरुष के प्रेम की समस्या का मनोवैज्ञानिक धरातल पर अनूठा वर्णन किया है।

जैनेंद्र जी ने अपनी कहानियों में दार्शनिकता को अपनाया है। कथा-साहित्य में उन्होंने मानव-मन का विश्लेषण किया है। यद्यपि जैनेंद्र का दार्शनिक विवेचन मौलिक है लेकिन निजीपन के कारण पाठक में ऊब उत्पन्न नहीं करता। इनकी कहानियों में जीवन से जुड़ी विभिन्न समस्याओं का उल्लेख किया गया है। उन्होंने समाज, धर्म, राजनीति, अर्थनीति, दर्शन, संस्कृति, प्रेम आदि विषयों का प्रतिपादन किया है तथा सभी विषयों से संबंधित प्रश्नों को सुलझाने का प्रयास किया है।

जैनेंद्र जी का साहित्य गाँधीवादी चेतना से अत्यंत प्रभावित है जिसका सुष्ठु एवं सहज उपयोग उन्होंने अपने साहित्य में किया है। उन्होंने गाँधीवाद को हृदयगम करके सत्य, अहिंसा, आत्मसमर्पण आदि सिद्धांतों का अनूठा चित्रण किया है। इससे उनके कथा साहित्य में राष्ट्रीय चेतना का भाव भी मुखरित होता है। लेखक ने अपने समाज में फैली कुरीतियों, शोषण, अत्याचार, समस्याओं का डटकर विरोध किया है।

भाषा शैली:
जैनेंद्र जी एक मनोवैज्ञानिक कथाकार हैं। उनकी कहानियों की भाषा शैली अत्यंत सरल, सहज एवं भावानुकूल है। इनके निबंधों में भी सहज, सरल एवं स्वाभाविक भाषा शैली को अपनाया गया है। इनके साहित्य में संक्षिप्त कथानक संवाद, भावानुकूल भाषा शैली आदि विशेषताएँ सर्वत्र विद्यमान हैं।

पाजेब कहानी का सारांश

जैनेंद्र कुमार द्वारा रचित ‘पाजेब’ कहानी को मध्यवर्गीय परिवार की घटनाओं पर आधारित कहानियों में रखा जा सकता है। यह कहानी सन् 1944 में लिखी गई थी।
कहानीकार की दो संतानें थीं। एक लड़का और दूसरी लड़की थी। लड़का लड़की से आयु में बड़ा था। उसका नाम आशुतोष था। लड़की का नाम मुन्नी था और उस की आयु चार वर्ष थी।
बाज़ार में इस समय एक नए प्रकार की पाजेब चल पड़ी थी। पैरों में पहनने के बाद वह पाजेब बहुत ही अच्छी लगने लगती थी। उस पाजेब की खास बात यह थी कि उसकी कड़ियाँ आपस में लचक के साथ जुड़ी रहती थीं। वह जिस किसी के भी पाँव पड़ जाती थी, वहीं सुंदर लगने लगती थी। जैसे उसका अपना कोई व्यक्तित्व ही नहीं था। आस-पड़ोस में रहने वाली सभी छोटी बड़ी लड़कियाँ वह पाजेब पहने घूम रही थीं। पहले किसी एक ने पहनी, फिर उसे देख दूसरी ने, तीसरी ने इस प्रकार पाजेब को पहनने का चलन बढ़ गया। मुन्नी, जो कहानीकार की पुत्री थी। वह भी जिद्द करने लगी कि वह भी अपने पैरों में पाजेब पहनेगी। पिता ने पूछा कि कैसी पाजेब पहनेगी तो उसने कहा कि जैसी पाजेब रुक्मन और शीला पहनती हैं, वह वैसी ही पाजेब पहनना चाहती है।

पिता ने पाजेब लाने की हामी भर दी। कुछ देर तो मुन्नी पाजेब की बात भूलकर किसी काम में लग गई लेकिन बाद में फिर उसे पाजेब की याद आ गई। उसकी बुआ भी दोपहर बाद आ गई। मुन्नी ने पाजेब लाने का प्रस्ताव अपनी बुआ के सामने भी रखा। बुआ ने मुन्नी को मिठाई खिलाई और उसे गोद में उठाते हुए कहा कि वह रविवार को अवश्य ही उसके लिए पाजेब लाएगी। जब रविवार आया तो मुन्नी की बुआ उसके लिए पाजेब लेकर आई। देखने में पाजेब बहुत सुंदर थी। वह चाँदी की थी जिसमें दो-तीन लड़ियाँ-सी लिपटी हुई थीं।

पाजेब पाकर मुन्नी की खुशी का ठिकाना न रहा। उसने यह पाजेब अपनी सहेलियों को भी दिखाई। मुन्नी का बड़ा भाई आशुतोष उसे पाजेब सहित दिखाने के लिए आस-पास ले गया। अब आशुतोष भी जिद्द करने लगा कि उसे भी साइकिल चाहिए। बुआ ने उसे समझाते हुए कहा कि उसके जन्म-दिन पर वह उसे साइकिल दिला देगी। सारा दिन बीत जाने के बाद शाम को पाजेब निकाल कर रख दी गई । पाजेब पर बारीक काम होने की वजह से वह महँगी भी थी-पाजेब की सुंदरता और बनावट को देखकर कथाकार की पत्नी का मन भी उस पाजेब को लेने का कर गया। रात को जब कथाकार अपनी मेज़ के पास बैठे थे, तब उनकी पत्नी ने उन्हें बताया कि मुन्नी की पाजेब नहीं मिल रही है। उन्होंने पाजेब जिस स्थान पर रखी थी, अब पाजेब वहाँ नहीं है। सारे घर में पाजेब की तलाशी का काम शुरू हो गया।

घर में एक नौकर था। उसका नाम बंशी था। पत्नी को घर के नौकर बंशी पर शक था कि उसने ही पाजेब चुराई होगी। पाजेब रखते समय वह वहाँ मौजूद था। कथाकार को नौकर पर तनिक भी शक नहीं था। जब उन्होंने अपने पुत्र आशुतोष के बारे में जाँच-पड़ताल की तो उन्हें पता चला कि वह शाम को पतंग और डोर का नया पिन्ना लाया है। कथाकार का शक उस पर गहराता जा रहा था। सुबह होते ही उन्होंने आशुतोष को अपने पास बुलाकर बड़े ही प्यार से पाजेब के बारे में पूछा। किंतु पाजेब को उठाने की बात आशुतोष ने कबूल नहीं की। उस समय कथाकार के मन में तरह-तरह के विचार घूमने लगे कि-अपरांध के प्रति करुणा ही होनी चाहिए। रोष का अधिकार नहीं।

पाजेब कहानी pdf

प्रेम से ही अपराध वृत्ति को जीता जा सकता है। आशुतोष किसी भी प्रकार से अपराध कबूल नहीं रहा था। उसने सिर हिलाते हुए क्रोध से अस्थिर और तेज आवाज़ में कहा कि उसने कोई पाजेब नहीं ली है। उस समय कथाकार को लगा कि उग्रता दोष का लक्षण है। आशुतोष को बहलाने का बहुत प्रयत्न किया गया अंत में उसके दोस्त छुन्नू का नाम भी चोरी की इस घटना में आ गया। आशुतोष ने हाँ में सिर हिला दिया। जब उससे पाजेब माँग लाने को कहा गया तब आशुतोष कहने लगा कि छुन्नू के पास यदि पाजेब नहीं हुई तो वह कहाँ से लाकर देगा।

बात बढ़ते-बढ़ते छुन्नू की माँ तक पहुँच गई। छुन्नू की माँ मानने को तैयार नहीं थी कि उसके लड़के ने पाजेब ली है। आशुतोष ने जिद्द बाँधते हुए कहा कि पाजेब छुन्नू ने ही ली है। इस पर छुन्नू की माँ ने उसे खूब पीटा। किंतु मामले का निपटारा नहीं हो सका। छुन्नू से सवाल जवाब करने पर उसने कहा कि पाजेब उसने आशुतोष के हाथ में देखी थी। उसने वह पाजेब पतंग वाले को दे दी है।

झमेला इतना अधिक बढ़ गया था कि अगले दिन कथाकार समय पर अपने दफ़्तर भी नहीं पहुंच पाया था। जाते समय कथाकार अपनी पत्नी से कह गया था कि बच्चे को अधिक धमकाना नहीं। प्यार से काम लेना। धमकाने से बच्चे बिगड़ जाते हैं और हाथ कुछ नहीं लगता। शाम के समय जब कथाकार दफ्तर से वापस आया तो उसकी पत्नी ने उसे बताया कि आशुतोष ने सारी बात सच-सच बता दी है। ग्यारह आने में उसने पतंग वाले को पाजेब बेच दी है। पैसे उसने थोड़े-थोड़े करके देने को कहा है। उसने जो पाँच आने दिए वे छुन्नू के पास हैं। पता चलने के बाद छुन्नू से पैसे माँगने की बात होने लगी। लेकिन वह किसी भी प्रकार से पैसे माँगने को तैयार नहीं था। तब आशुतोष के पिता ने ज़ोर से उसके कान खींचें और अपने नौकर से कहा कि इसे ले जाकर कमरे में बंद कर दो।

नौकर बंशी ने आशुतोष को कमरे में ले जाकर बंद कर दिया। कुछ देर बाद आशुतोष से पतंग वाले के बारे में पूछा गया और उसे चाचा और बंशी के साथ पतंग वालों के पास भेज दिया गया। पाजेब लेने से दोनों पतंग वालों ने पूरी तरह से नकार दिया। आशुतोष से दुबारा पूछताछ होने लगी। इसी बीच आशुतोष की बुआ भी आ गई। कुछ देर बातचीत करने के बाद, वह एक बक्से को सरकाते हुए बोली कि इनमें वह कागज़ है जो तुमने माँगे थे। तभी बुआ ने अपनी बॉस्केट की जेब में हाथ डालकर पाजेब निकाली और बोली कि दिन में भूल से यह पाजेब उसके साथ चली गई थी।

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पंच परमेश्वर कहानी Summary In Hindi

पंच परमेश्वर कहानी Summary In Hindi

Panch Parmeshwar Summary,” The novel explores various themes such as social inequality, poverty, the exploitation of the rural poor, and the impact of caste-based discrimination on individuals and communities. It also delves into the complexities of human relationships and the moral dilemmas faced by the characters. Read More Class 9 Hindi Summaries.

पंच परमेश्वर कहानी Summary In Hindi

मुंशी प्रेमचन्द लेखक-परिचय

जीवन परिचय:
मुंशी प्रेमचन्द हिन्दी-साहित्य के ऐसे प्रथम कलाकार हैं जिन्होंने साहित्य का नाता जन-जीवन से जोड़ा। उन्होंने अपने कथा-साहित्य को जन-जीवन के चित्रण द्वारा सजीव बना दिया है। वे जीवन भर आर्थिक अभाव की विषमं चक्की में पिसते रहे। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त आर्थिक एवं सामाजिक विषमता को बड़ी निकटता से देखा था। यही कारण है कि जीवन की यथार्थ अभिव्यक्ति का सजीव चित्रण उनके उपन्यासों एवं कहानियों में उपलब्ध होता है।

प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई, सन् 1880 ई० में वाराणसी जिले के लमही नामक ग्राम में हुआ था। उनका वास्तविक नाम धनपत राय था। आरम्भ में वे नवाबराय के नाम से उर्दू में लिखते थे। युग के प्रभाव ने उनको हिन्दी की ओर आकृष्ट किया। प्रेमचन्द जी ने कुछ पत्रों का सम्पादन भी किया। उन्होंने सरस्वती प्रेस के नाम से अपनी प्रकाशन संस्था भी
स्थापित की।

जीवन में निरन्तर विकट परिस्थितियों का सामना करने के कारण प्रेमचन्द जी का शरीर जर्जर हो रहा था। देशभक्ति के पथ पर चलने के कारण उनके ऊपर सरकार का आतंक भी छाया रहता था, पर प्रेमचन्द जी एक साहसी सैनिक के समान अपने पथ पर बढ़ते रहे। उन्होंने वही लिखा जो उनकी आत्मा ने कहा। वे बम्बई (मुम्बई) में पटकथा लेखक के रूप में अधिक समय तक कार्य नहीं कर सके क्योंकि वहाँ उन्हें फ़िल्म निर्माताओं के निर्देश के अनुसार लिखना पड़ता था। उन्हें स्वतन्त्र लेखन ही रुचिकर था। निरन्तर साहित्य साधना करते हुए 8 अक्तूबर, सन् 1936 को उनका स्वर्गवास हो गया। :

रचनाएँ: प्रेमचन्द की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

उपन्यास: वरदान, सेवा सदन, प्रेमाश्रय, रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला, प्रतिज्ञा, गबन, कर्मभूमि, गोदान एवं मंगलसूत्र (अपूर्ण)।

कहानी संग्रह: प्रेमचन्द जी ने लगभग 400 कहानियों की रचना की। उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं।

नाटक: कर्बला, संग्राम और प्रेम की वेदी। निबन्ध संग्रह- कुछ विचार।

साहित्यिक विशेषताएँ:
प्रेमचन्द जी प्रमुख रूप से कथाकार थे। उन्होंने जो कुछ भी लिखा, वह जन-जीवन का मुँह बोलता चित्र है। वे आदर्शोन्मुखी-यथार्थवादी कलाकार थे। उन्होंने समाज के सभी वर्गों को अपनी रचनाओं का विषय बनाया पर निर्धन, पीड़ित एवं पिछड़े हुए वर्ग के प्रति उनकी विशेष सहानुभूति थी। उन्होंने शोषक एवं शोषित दोनों वर्गों का बड़ा विशद् चित्रण किया है। ग्राम्य जीवन के चित्रण में प्रेमचन्द जी सिद्धहस्त थे।

भाषा शैली:
हिन्दी कथा साहित्य में कथा सम्राट के नाम से प्रसिद्ध प्रेमचन्द ने अपना समस्त साहित्य बोलचाल की हिन्दुस्तानी भाषा में लिखा है जिसमें लोक-प्रचलित उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत भाषाओं के सभी शब्दों का मिश्रित रूप दिखायी देता है। इनकी शैली वर्णनात्मक है जिसमें कहीं-कहीं संवादात्मक, विचारात्मक, चित्रात्मक, पूर्वदीप्ति आदि शैलियों के दर्शन भी हो जाते हैं। कहीं-कहीं इनकी शैली काव्यात्मक भी हो जाती है।

पंच परमेश्वर कहानी का सार/परिपाद्य

‘पंच-परमेश्वर’ मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित एक सुविख्यात कहानी है जिसका प्रकाशन सन् 1915 में हुआ था। हिन्दी साहित्य जगत में कुछ आलोचक पंच परमेश्वर’ कहानी को हिन्दी की प्रथम कहानी मानते हैं। सच्चे अर्थों में यह कहानी एक आदर्शवादी कहानी है।

जुम्मन शेख और अलगू चौधरी दोनों में बचपन से बहुत गहरी मित्रता थी। दोनों मिलकर साझे में खेती करते थे। दोनों को एक-दूसरे पर गहरा विश्वास था। दोनों एक-दूसरे के भरोसे अपना घर, सम्पत्ति छोड़ देते थे। उनकी मित्रता का मूल मंत्र उनके आपसी विचारों का मिलना था। जुम्मन शेख की एक बूढ़ी मौसी थी। मौसी के पास उसके अपने नाम से थोड़ी-सी ज़मीन थी। किंतु उसका कोई निकट संबंधी नहीं था।

जुम्मन ने मौसी से लम्बे-चौड़े वादे किए और ज़मीन को अपने नाम लिखवा लिया। जब तक ज़मीन की रजिस्ट्री नहीं हुई थी तब तक जुम्मन तथा उसके परिवार ने मौसी का खूब आदर-सत्कार किया। मौसी को तरह-तरह के पकवान खिलाए जाते थे। जिस दिन से रजिस्ट्री पर मोहर लगी, उसी समय से सभी प्रकार की सेवाओं पर भी मोहर लग गई। जुम्मन की पत्नी अब मौसी को रोटियां देने के साथ साथ कड़वी बातों के कुछ तेज सालन भी देने लगी थी। बात-बात में वह मौसी को कोसती रहती थी।

पंच परमेश्वर कहानी Summary

जुम्मन शेख भी मौसी का कोई ध्यान नहीं रखते थे। सभी बूढ़ी मौसी के मरने का इंतजार कर रहे थे। एक दिन जब मौसी से सहा नहीं गया तो उसने जुम्मन से कहा कि वह उसे रुपये दे दिया करे ताकि वह स्वयं अपना भोजन पकाकर खा सके। उसके परिवार के साथ अब उसका निर्वाह नहीं हो सकेगा। जब जुम्मन ने मौसी की बात को नकार दिया तो मौसी ने पंचायत करने की धमकी दे डाली। जुम्मन पंचायत करने की धमकी का स्वर सुनकर मन ही मन खूब प्रसन्न था। उसे पूर्ण विश्वास था कि पंचायत में उसी की जीत होगी।

सारा इलाका उसका ऋणी था, इसलिए उसे फैसले की तनिक भी चिंता न थी। वह पूर्णत: आश्वस्त था कि फैसला उसी के पक्ष में होगा। बूढ़ी मौसी कई दिनों तक लकड़ी का सहारा लिए गाँव-गाँव घूमती रही, वह सभी को अपनी दुःख भरी कहानी सुनाती रही। गाँव में दीन-हीन बुढ़िया का दुखड़ा सुनने वाले और उसे सांत्वना देने वाले लोग बहुत ही कम थे। सारे गाँव में घूमने के बाद अंत में घूमते-घूमते मौसी अलगू चौधरी के पास जाकर उसे पंचायत में आने का निमंत्रण देने लगी। अलगू चौधरी पंचायत में आने को तैयार हो गया। उसने मौसी से कहा कि जुम्मन उसका पक्का मित्र है इसलिए वह उसके विरोध में कुछ नहीं बोलेगा, वह वहाँ चुप चाप बैठा रहेगा। मौसी ने प्रतिवार करते हुए कहा कि-“क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे ?” मौसी द्वारा कहे गए इन शब्दों का अलगू के पास कोई उत्तर नहीं था।

आखिरकार एक दिन शाम के समय एक पेड़ के नीचे पंचायत बैठी। जुम्मन शेख ने पहले से ही फ़र्श बिछाया हुआ था। पंचायत में आने वाले सभी लोगों के सत्कार का उसने पूरा प्रबंध कर रखा था। उनके खाने के लिए पान, इलायची, हुक्के-तंबाकू आदि का पूर्ण प्रबंध कर रखा था।

पंचायत में जब कोई आता था तो वह दबे हुए सलाम के साथ उनका आदर-सत्कार करते हुए स्वागत करता था। पंचों के बैठने के बाद बूढ़ी मौसी अपनी करुण कहानी सुनाते हुए कहने लगी कि तीन वर्ष पहले उसने अपनी सारी जायदाद जुम्मन शेख के नाम लिखी थी। जुम्मन शेख ने भी उसे उम्र भर रोटी कपड़ा देना स्वीकार किया था। साल भर तो किसी तरह रो-पीट कर दिन निकाल लिए लेकिन अब अत्याचार नहीं सहे जाते। आप पंचों का जो भी आदेश होगा वह मैं स्वीकार करूँगी। सभी ने मिलकर अलगू चौधरी को सरपंच बना दिया। अलगू के सरपंच बनते ही जुम्मन आनंद से भर गए। उन्होंने अपने भाव अपने मन में रखते हुए कहा कि उन्हें अलगू का सरपंच बनना स्वीकार है। अलगू के सरपंच बनने पर रामधन मिश्र और जुम्मन के अन्य विरोधी-जन बुढ़िया को अपने मन ही मन कोसने लगे।

जुम्मन को अब फैसला अपनी तरफ आता दिखाई दे रहा था। पं द्वारा पूछा गया एक-एक प्रश्न जुम्मन को हथौड़े की एक-एक चोट के समान लग रहा था। अंततः अलगू चौधरी ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि बूढ़ी मौसी की जायदाद से इतना लाभ अवश्य होगा कि उसे महीने का खर्च दिया जा सके। इसलिए जुम्मन को मौसी को महीने का खर्च देना ही होगा। यदि जुम्मन को फैसला अस्वीकार है तो जायदाद की रजिस्ट्री रद्द समझी जाए। सभी ने अलगू के फैसले को खूब सराहा। फैसला सुनते ही जुम्मन सन्नाटे में आ गए।

अलगू के इस फैसले ने जुम्मन के साथ उसकी दोस्ती की जड़ों को पूरी तरह से हिला दिया था। जुम्मन दिन-रात बदला लेने की सोचता रहता था। शीघ्र ही जुम्मन की कुटिल सोच की प्रतिक्षा समाप्त हुई। अलगू चौधरी पिछले वर्ष ही बटेसर से बैलों की एक जोड़ी मोल खरीद लाया था। बैल पछाही जाति के थे। दुर्भाग्यवश पंचायत के एक महीने बाद अलगू का एक बैल मर गया। अब अकेला बैल अलगू के किसी काम का नहीं था। उसने बैल समझू साहू को बेच दिया। बैल की कीमत एक महीने बाद देने की बात निश्चित हुई। अब समझू साहू दिन में नया बैल मिलने से तीन-तीन, चार-चार खेपे करने लगे। उन्हें केवल काम से मतलब था।

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बैलों की देख-रेख तथा चारे से उन्हें कोई लेना-देना नहीं था। भोजन-पानी के अभाव में एक दिन सामान लाते हुए रास्ते में बैल ने दम तोड़ दिया। समझू साहू को मार्ग में ही रात बितानी पड़ी। सुबह जब वह उठे तो उनकी धन की थैली तथा तेल के कुछ कनस्तर चोरी हो चुके थे। समझू साहू रोते-पीटते घर पहुँचे।

काफी दिनों के बाद अलगू चौधरी अपने बैल की कीमत लेने समझू साहू के घर गए, किंतु साहू ने पैसे देने के स्थान पर अलगू को भला बुरा कहना शुरू कर दिया। अंतत: पंचायत बैठी। सरपंच जुम्मन शेख को चुना गया। सरपंच के रूप जुम्मन ने न्याय संगत फैसला सुनाया। उसने समझू साहू को कसूरवार मानते हुए अलगू को बैल की कीमत लेने का हकदार बताया। क्योंकि जिस समय समझू साहू ने बैल खरीदा था। उस समय वह पूर्णत: स्वस्थ था।

बैल की मृत्यु का कारण बीमारी न होकर अधिक परिश्रम करना था, जुम्मन के फैसले को सुनकर चारों तरफ ‘पंच परमेश्वर की जय’ का उद्घोष होने लगा। अलगू ने जुम्मन को गले से लगा लिया। दोनों के नेत्रों से गिरते आँसुओं ने दोनों के दिलों के मैल को धो दिया। दोनों की दोस्ती रूपी लता जो कभी मुरझा गई थी वह अब हरी-भरी हो गई थी।

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पाँच मरजीवे Summary In Hindi

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योगेन्द्र बख्शी कवि-परिचय

जीवन परिचय:
डॉ. योगेन्द्र बख्शी का जन्म सन् 1939 ई० में जम्मू तवी में हुआ था। इन्होंने हिन्दी-साहित्य में एम०ए० करने के बाद पीएच०डी० की उपाधि प्राप्त की थी। अध्यापक के साथ-साथ इनका लेखन कार्य भी चलता रहा। राजकीय महेन्द्रा कॉलेज, पटियाला के स्नातकोत्तर हिन्दी-विभाग के अध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त होकर भी ये साहित्यसाधना में लीन हैं।

रचनाएँ:
काव्य रचनाएँ-सड़क का रोग, खुली हुई खिड़कियाँ, कि सनद रहे, आदमीनामा : सतसई, गज़ल के .. रूबरू।

आलोचना:
प्रसाद का काव्य तथा कामायनी, हिन्दी तथा पंजाबी उपन्यास का तुलनात्मक अध्ययन। संपादित पुस्तकें-निबंध परिवेश, काव्य विहार, गैल गैल, आओ हिन्दी सीखें : आठ । बाल साहित्य-बंदा बहादुर, मैथिलीशरण गुप्त। अनुवाद-पैरिस में एक भारतीय- एस०एस० अमोल के यात्रा वृत्तांत का अनुवाद । विशेषताएँ-इनके काव्य में आस-पास के जीवन की घटनाओं का अत्यंत यथार्थ चित्रण प्राप्त होता है। ‘पाँच मरजीवे’ कविता में कवि ने खालसा पंथ की नींव की ऐतिहासिक घटना का अत्यंत स्वाभाविक चित्रण किया है।

पाँच मरजीवे कविता का सार

कविता का सार कवि ‘योगेन्द्र बख्शी’ जी ने ‘पाँच मरजीवे’ कविता में खालसा पंथ की नींव की ऐतिहासिक घटना का प्रभावशाली ढंग से चित्रण किया है। औरंगज़ेब के जुल्मों से दुःखी हिन्दुओं में नई चेतना जागृत करने के लिए गुरु गोबिन्द सिंह जी ने आन्नदपुर साहिब में सन् 1699 ई० में बैसाखी वाले दिन लोगों से धर्म की रक्षा के लिए एक ऐसे पुरुष की मांग जो धर्म के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर सके। उनकी यह मांग सुनकर चारों ओर सन्नाटा छा गया। अचानक भीड़ में से लाहौर निवासी खत्री दयाराम आगे आया और धर्म की बेदी पर बलिदान होने के लिए गुरु गोबिन्द सिंह जी के पास चला गया। गुरु गोबिन्द सिंह जी उसे लेकर अन्दर गए और बाहर खड़े लोगों ने सिर कटने की आवाज़ सुनी। इस प्रकार गुरु गोबिन्द सिंह ने बारी-बारी और चार व्यक्ति मांगे।

हस्तिनापुर का जाट धर्मराय, द्वारिका के मोहकम चन्द धोबी, बिदर के साहब चन्द नाई और पुरी के हिम्मतराय ने भी अपने को बलिदान के लिए प्रस्तुत किया। थोड़ी देर बाद लोगों ने उन पाँचों को गुरु जी के साथ तम्बू के बाहर जीवित खड़े देखा तो लोग हैरान रह गए। उस दिन उन पाँच लोगों के आत्मबलिदान की मांग करके उन्होंने खालसा पंथ की नींव डाली। उस खालसा पंथ ने हिन्दुओं के लिए औरंगजेब के अत्याचारों का विरोध किया। बाद में इसी खालसा पंथ ने सिक्ख सम्प्रदाय रूप में अपनी पहचान भी स्थापित की।

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मैंने कहा, पेड़ Summary In Hindi

मैंने कहा, पेड़ Summary In Hindi

The phrase “Maine Kaha Ped” translates to “I Said to the Tree” in English. It suggests that this is the beginning of a poem or a literary work in which the speaker addresses or communicates with a tree. The theme of talking to nature, including trees, is a common motif in poetry and literature, often used to explore deeper philosophical or environmental themes. Read More Class 9 Hindi Summaries.

मैंने कहा, पेड़ Summary In Hindi

अज्ञेय कवि-परिचय

जीवन-परिचय:
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ हिंदी-साहित्य के प्रसिद्ध कवि, कथाकार, ललित निबंधकार, संपादक और सफल अध्यापक के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। आप हिंदी-साहित्य के प्रयोगवादी काव्यधारा के प्रवर्तक माने जाते हैं। आपका जन्म 7 मार्च, सन् 1911 ई० में देवरिया जिले में स्थित कुशीनगर (कसया पुरातत्व खुदाई शिविर) में हुआ था। आपके पिता पंडित हीरानंद शास्त्री पुरातत्व विभाग में थे और स्थान-स्थान पर घूमते रहते थे। इनका बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार और मद्रास में बीता था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर में हुई थी। इन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। इन्होंने लाहौर से सन् 1929 में बीएस०सी० की परीक्षा पास की थी और फिर अंग्रेजी विषय में एम०ए० करने के लिए प्रवेश लिया था लेकिन क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने के कारण इनकी पढ़ाई बीच में छूट गई थी। इन्हें सन् 1936 तक अनेक बार जेल-यात्रा करनी पड़ी थी। ‘चिंता’ और ‘शेखर : एक जीवनी’ नामक पुस्तकों को इन्होंने जेल में लिखा था। इन्होंने जापानी हाइफू कविताओं का अनुवाद किया था। साहित्यकार होने के साथ-साथ यह अच्छे फ़ोटोग्राफर और पर्यटक भी थे।

अज्ञेय ने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से लेकर जोधपुर विश्वविद्यालय तक पढ़ाया था। यह ‘दिनमान’ और ‘नवभारत टाइम्स’ के संपादक भी रहे थे। इन्हें सन् 1964 में ‘आंगन के पार द्वार’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार और ‘कितनी नावों में कितनी बार’ पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ था। इनका देहांत 4 अप्रैल, सन् 1987 में हो गया था।

रचनाएँ: अज्ञेय ने अपने जीवन में निम्नलिखित रचनाओं को रचा था-

काव्य: ‘भग्नदूत’, ‘चिन्ता’, ‘इत्यलम्’, ‘हरी घास पर क्षण-भर’, ‘बावरा अहेरी’, ‘इन्द्रधनुष रौंदे हुए ये’, ‘अरी ओ करुणा प्रभामय’, ‘आँगन के पार द्वार’, ‘पूर्वी’, ‘सुनहरे शैवाल’, ‘कितनी नावों में कितनी बार’, ‘क्योंकि मैं उसे पहचानता हूँ’, ‘सागर मुद्रा’, ‘सन्नाटा बुनता हूँ।

नाटक : ‘उत्तर प्रियदर्शी’।

कहानी संग्रह : ‘विपथगा’, ‘परम्परा’, ‘ये तेरे प्रतिरूप’, ‘कोठरी की बात’, ‘शरणार्थी’, ‘जिज्ञासा और अन्य कहानियाँ।

उपन्यास : शेखर एक जीवनी’ (दो भागों में), ‘नदी के द्वीप’, ‘अपने-अपने अजनबी’।

भ्रमण : वृत्त-‘अरे यायावर रहेगा याद’, ‘एक बूंद सहसा उछली’ ।

निबन्ध : संग्रह-‘त्रिशंकु ‘, ‘सबरंग’, ‘आत्मनेपद’, ‘हिंदी साहित्यः एक आधुनिक परिदृश्य सब रंग और ‘कुछ राग आलवाल’ ।

अनुदित: श्रीकांत’, (शरत्चंद्र का उपन्यास), टू इज़ हिज़ स्ट्रेंजर (अपने-अपने अजनबी)।

विशेषताएँ:
अज्ञेय ने अपने साहित्य में विश्व भर की पीड़ा को समेटने का प्रयत्न किया था। वे अहंवादी नहीं थे। उन्होंने प्रेम और विद्रोह को एक साथ प्रस्तुत करने की कोशिश की थी। वे मानते थे कि प्रेम ऐसे पेड़ के रूप में है जो जितना ऊपर उठता है उतनी ही उसकी गहरी जड़ें ज़मीन में धंसती जाती हैं। उन्होंने छोटी-छोटी कविताओं के द्वारा जीवन की गहरी बातों को प्रकट करने में सफलता प्राप्त की। उन्होंने अपने साहित्य में गरीब लोगों के प्रति सहानुभूति प्रकट की थी। उनकी कविता में प्रकृति के सुंदर रंगों की शोभा विद्यमान है। इनके साहित्य में परिवार, समाज, जीवन मूल्यों की गिरावट, राजनीतिक पैंतरेबाजी, जीवन की विषमता आदि को स्थान दिया गया है।

लेखक की भाषा अनगढ़ नहीं है पर वह इतनी सहज है कि बोझिल महसूस नहीं होती। इनकी कविता में लोक शब्दों का प्रयोग हुआ है। इसमें प्रवाहात्मकता है।

कवि कहता है कि उसने पेड़ से पूछा कि अरे पेड़ ,तुम इतने बड़े हो, इतने सख्त और मज़बूत हो । पता नहीं कि कितने सौ वर्षों से खड़े हो। तुमने सैकड़ों वर्ष की आँधी-तूफ़ान,पानी को अपने ऊपर झेला है पर फिर भी अपनी जगह पर सिर ऊँचा करके वहीं रुके हुए हो। प्रातः सूरज निकलता है और शाम को फिर डूब जाता है।

मैंने कहा, पेड़ कविता का सार

‘मैंने कहा, पेड़’ नामक कविता में पेड़ की सहनशीलता और मज़बूती को प्रकट किया गया है। पेड़ तरह-तरह की मुसीबतें झेलता है पर फिर भी शांत खड़ा रहता है। कवि ने पेड़ की प्रशंसा करते हुए कहा है कि वह बहुत बड़ा है। वह मज़बूत भी बहुत है। न जाने कितने सैंकड़ों वर्ष से वह अपनी जगह पर खड़ा है। तरह-तरह की ऋतुएँ उस पर अपना प्रभाव दिखाती हैं। गर्मी-सर्दी-वर्षा सब उस पर अपने रंग दिखाती हैं पर फिर भी वह उनसे अप्रभावित ही बना रहता है। यह सुनकर पेड़ की पत्तियाँ कांपती हुई बोली कि ऐसा नहीं है। मुझे इस मज़बूती का श्रेय मत दो। मैं गिरता, झुकता, उखड़ता और अब तक तो मैं ढूँठ बन कर टूट गया होता। मेरे इस प्रकार खड़े रहने का श्रेय तो मेरे नीचे की मिट्टी को है जिस में मेरी जड़ें धंसी हुई हैं। मैं जितना ऊँचा उठा हुआ हूँ उतनी ही गहराई में मेरी जड़ें समायी हुई हैं। श्रेय तो केवल इस मिट्टी को ही है। अपने सैंकड़ों वर्ष लंबे जीवन में मैंने बस इतना ही सीखा है कि जो मरण-धर्मा हैं वे ही जीवनदायी हैं।

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झाँसी की रानी की समाधि पर कविता Summary In Hindi

झाँसी की रानी की समाधि पर कविता Summary In Hindi

The phrase “Jhansi Ki Rani Ki Samadhi Par Kavita” translates to “Poem on the Tomb of Rani of Jhansi” in English. It suggests that this is a poem dedicated to the memorial or tomb of Rani Lakshmi Bai, the iconic queen of the princely state of Jhansi in India who played a significant role during the Indian Rebellion of 1857 against British colonial rule. The poem likely pays tribute to her valor, patriotism, and her role in the struggle for independence. Read More Class 9 Hindi Summaries.

झाँसी की रानी की समाधि पर कविता Summary In Hindi

झाँसी की रानी की समाधि पर कवि-परिचय

जीवन-परिचय:
सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म सन् 1904 ई० की नागपंचमी के दिन प्रयाग में हुआ था। कुछ विद्वान् इनका जन्म सन् 1905 ई० में मानते हैं। इनके पिता का नाम ठाकुर राम नाथ सिंह था। इनकी शिक्षा क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में हुई थी। जब ये आठवीं कक्षा में पढ़ रही थीं तब इनका विवाह स्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मण सिंह से हो गया था। स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय भाग लेने के कारण इन्हें भी कई बार जेल जाना पड़ा था। इनका समग्र जीवन संघर्षमय रहा था। सन् 1948 ई० की बसंत पंचमी के दिन इनका निधन हो गया था।

रचनाएँ:
इनकी प्रमुख काव्य रचनाएँ ‘मुकुल’ और ‘त्रिधारा’ हैं। इनकी ‘झाँसी की रानी’ कविता भाषा, भाव, छंद की दृष्टि से सुप्रसिद्ध वीर गीत है। इनकी अन्य प्रसिद्ध कविताएँ ‘वीरों का कैसा हो वसंत’, ‘राखी की चुनौती’, ‘जलियाँवाला बाग में बसंत’ आदि हैं। इन्होंने अनेक यथार्थवादी मार्मिक कहानियाँ भी लिखी हैं।

विशेषताएँ:
सुभद्रा कुमारी चौहान की कविताओं में राष्ट्रप्रेम, वीरों के प्रति श्रद्धा, तत्कालीन परिस्थितियों का यथार्थ अंकन प्राप्त होता है। उनकी मान्यता थी कि “परीक्षाएँ जब मनुष्य के मानसिक स्वास्थ्य को क्षत-विक्षत कर डालती हैं, तब उनमें उत्तीर्ण होने-न-होने का कोई मूल्य नहीं रह जाता।” उनके मन का गंभीर, ममता-सजल और वीरभाव है वह उनकी कविताओं में झलकता है। जीवन के प्रति ममता भरा विश्वास ही उनके काव्य का प्राण माना जाता है

“सुख भरे सुनहले बादल, रहते हैं मुझको घेरे।
विश्वास प्रेम साहस है, जीवन के साथी मेरे।”

झाँसी की रानी की समाधि पर कविता का सार

‘झाँसी की रानी की समाधि पर’ कविता में कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने अंग्रेज़ी सेना के साथ प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में युद्ध करते हुए अपने प्राणों का आहुति देने वाली झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की समाधि के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की है। उनके अनुसार इस समाधि में एक ऐसी राख की ढेरी छिपी हुई है जिसने स्वयं जल कर भारत की स्वतंत्रता की चिंगारी को भड़काया था। इसी स्थल पर युद्ध करते हुए उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। इस प्रकार युद्ध क्षेत्र में अपने प्राणों का बलिदान देने से वीरों का आदर-सत्कार बढ़ जाता है। इसलिए अब हमें रानी से भी अधिक उनकी समाधि प्रिय है क्योंकि यह हमें भविष्य में स्वतंत्रता दिलाने की आशा दिलाती है। संसार. में इससे भी सुंदर समाधियाँ होंगी परन्तु कवियों ने अपनी वाणी से इस समाधि की अमर गाथा गाई है। कवयित्री ने बुंदेलखंड के यशोगान गायकों से झाँसी की रानी की मर्यों के समान युद्ध करने की गाथा सुनी थी। यह उसी रानी की सदा रहने वाली समाधि है जो उनके युद्ध क्षेत्र का अंतिम स्थल था।

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कर्मवीर कविता Summary In Hindi

कर्मवीर कविता Summary In Hindi

Karmveer Kavitha Summary,” we delve into the captivating world of Karmveer Kavitha, a renowned poet who has left an indelible mark on Indian literature. This article aims to provide a comprehensive overview of her life, work, and contributions to the field of poetry. By examining the key themes and motifs present in her poems, we hope to gain a deeper understanding of Karmveer Kavitha’s unique artistic vision and the impact she has had on readers and fellow poets alike. Join us as we explore the essence of Karmveer Kavitha’s literary journey and unravel the beauty of her poetic expressions. Read More Class 9 Hindi Summaries.

कर्मवीर कविता Summary In Hindi

कर्मवीर कवि-परिचय

जीवन परिचय:
द्विवेदी युग के सबसे बड़े कवि श्री अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का जन्म 15 अप्रैल, सन् 1865 ई० में उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले के निज़ामाबाद नामक कस्बे में हुआ। इनके वंश में गुरुदयाल उपाध्याय ने सिक्ख धर्म में दीक्षा ले ली थी इसी कारण ब्राह्मण होकर भी उपाध्याय वंश के लड़के अपने नाम के साथ सिंह लगाने लगे। अयोध्या सिंह जी के पिता का नाम भोला सिंह उपाध्याय तथा माता का नाम रुक्मिणी देवी था। मिडिल की परीक्षा पास करके आप निज़ामाबाद के तहसीली स्कूल में अध्यापक नियुक्त हो गए थे। इन्हें बंगला, अंग्रेजी, गुरुमुखी, उर्दू, फ़ारसी एवं संस्कृत का ज्ञान था। सन् 1889 में आप कानूनगो बन गये और 32 वर्ष तक इसी पद पर आसीन रहे। रिटायर होने के बाद पं० मदन मोहन मालवीय जी की प्रेरणा से आप ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में सन् 1941 तक पढ़ाया। 16 मार्च, सन् 1947 को इनका स्वर्गवास हो गया था। इन्हें ‘मंगला प्रसाद’, पुरस्कार प्राप्त हुआ था। साहित्य सम्मेलन ने इन्हें ‘विद्यावाचस्पति’ की उपाधि प्रदान की थी।

रचनाएँ:
उपाध्याय जी ने अपने जीवन काल में लगभग 45 ग्रंथों की रचना की थी। इनमें से प्रमुख काव्य ग्रंथ हैंप्रिय प्रवास, पद्य प्रसून, चुभते चौपदे, चोखे चौपदे, बोलचाल, पारिजात, रस-कलश तथा वैदेही वनवास। ‘प्रिय-प्रवास’ इनका लोकप्रिय महाकाव्य है।

विशेषताएँ:
इनके काव्य में कृष्ण भक्ति की प्रमुखता है। प्रिय-प्रवास’ कृष्ण के वियोग में संतप्त गोपियों की गाथा है। इन्होंने कृष्ण काव्य को राष्ट्र भक्ति तथा समाज सुधार से जोड़ा है। स्वदेश प्रेम तथा कर्म करने की प्रेरणा देना इनकी काव्य की प्रमुख विशेषता है। इन्होंने अपनी रचनाओं में खड़ी बोली का प्रयोग किया है जिसमें तत्सम, तद्भव, देशज तथा विदेशी शब्दों का प्रयोग भी देखा जा सकता है।

कर्मवीर कविता का सार

‘कर्मवीर’ कविता में ‘हरिऔध’ जी ने कर्मशील व्यक्तियों की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए बताया है कि वे कभी भी विघ्न, बाधाओं को देख कर घबरातें नहीं हैं तथा कठिन से कठिन कार्य भी मन लगा कर पूरा करते हैं। अपनी मेहनत से वे अपने बुरे दिनों को भी भला बना लेते हैं। वे कभी भी किसी काम को कल पर टालते हैं। वे जो कुछ सोचते हैं, वही कर के भी दिखाते हैं। वे अपना कार्य स्वयं करते हैं तथा कभी किसी से सहायता नहीं मांगते। वे अपने समय को अमूल्य समझकर व्यर्थ की बातों में गंवाते नहीं हैं। वे न तो काम से जी चुराते हैं और न ही टाल-मटोल करते हैं। वे तो दूसरों के लिए आदर्श हैं। अपनी मेहनत से वे आकाश की ऊँचाइयों को छू लेते हैं तथा दुर्गम पर्वतों की चोटियों को भी जीत लेते हैं। उन्हें घने जंगलों के अंधकार, गर्जते सागर की लहरों, आग की लपटों आदि भी विचलित नहीं करती तथा वे सदा अपने कार्यों में सफल रहते हैं।

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सूरदास के पद Class 9 Summary In Hindi

सूरदास के पद Class 9 Summary In Hindi

Surdas Ke Pad” is a collection of devotional songs and poems that celebrate the love and devotion of Surdas towards Lord Krishna. These compositions are an expression of Surdas’ deep spiritual connection with the divine and his intense longing for union with God. The poetry is rich in emotion and explores various facets of the divine relationship between the poet and Lord Krishna. Read More Class 9 Hindi Summaries.

सूरदास के पद Class 9 Summary In Hindi

सूरदास के पद कवि परिचय

जीवन परिचय:
मध्यकालीन सगुणोपासक एवं कृष्णभक्त कवि सूरदास जी का जन्म सन् 1478 ई० में दिल्ली के निकट सीही ग्राम में एक सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। कुछ विद्वान् इन्हें जन्म से ही अन्धा मानते हैं तो कुछ मानते हैं कि यह किसी कारणवश बाद में अन्धे हो गए लेकिन इसका कोई भी साक्ष्य नहीं मिलता। सूरदास जी महाप्रभु वल्लभाचार्य जी द्वारा वल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित हुए और उन्हीं की प्रेरणा से ब्रज में श्रीनाथ जी के मन्दिर में कीर्तन करने लगे। इनका देहांत सन् 1583 ई० में मथुरा के निकट पारसौली नामक गाँव में हृया था।

रचनाएँ:
सूरदास जी रचित तीन रचनाएँ सूरसागर, सूरसारावली और साहित्य लहर। हैं। सूरसागर की रचना श्रीमद्भागवत पुराण के आधार पर की गई है। इनका काव्य ब्रजभाषा में रचित, गीतात्मक, माधुर्य गुण से युक्त तथा अलंकारपूर्ण है। . विशेषताएँ-इनके काव्य में श्रृंगार और वात्सल्य का बहुत सहज और स्वाभाविक चित्रण प्राप्त होता है। शृंगार के वियोग पक्ष में इन्होंने गोपियों के कृष्ण के विरह के संतप्त हृदय का मार्मिक चित्रण किया है। श्रीकृष्ण लीलाओं में इनकी बाललीलाओं का वर्णन बेजोड़ है। सूरदास जी की भक्ति भावना सख्य भाव की है।

Surdas Ke Pad class 9 summary

सूरदास के पद पदों का सार

सूरदास के इन पदों में वात्सल्य रस का मोहक चित्रण किया गया है। पहले पद में यशोदा श्रीकृष्ण को पालने में झूला झुलाकर और लोरी देकर सुला रही है। श्रीकृष्ण कभी पलकें मूंद लेते हैं तो कभी व्याकुल हो उठ जाते हैं। यशोदा उन्हें लोरी गा कर फिर से सुला देती है। दूसरे पद में यशोदा श्रीकृष्ण को दूर खेलने जाने के लिए मना करती है। तीसरे पद में माँ यशोदा श्रीकृष्ण को चोटी बढ़ने का लालच देकर बहाने से दूध पिलाती है परंतु श्रीकृष्ण चोटी न बढ़ने से चिंतित हो कर माखन रोटी खाने के लिए देने के लिए कहते हैं। चौथे पद में श्रीकृष्ण माँ से गायें चराने जाने के लिए हठ करते हैं। परन्तु उनकी बाल-अवस्था देखकर यशोदा उन्हें जाने से रोकना चाहती है।

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