हम पंछी उन्मुक्त गगन के Summary In Hindi

हम पंछी उन्मुक्त गगन के Summary In Hindi

“हम पंछी उन्मुक्त गगन के” एक प्रसिद्ध हिन्दी कविता है जो दिनेश्वर नाथ माध्यमिक विद्यालय के छात्र दिनेश्वर नाथ कौशिक द्वारा रची गई है। इस कविता में, पंछियों के द्वारा आकाश के अनन्त स्वतंत्रता का सुंदर प्रतीक प्रस्तुत किया गया है, जो मनुष्यों को उनकी आपातकालिन दिक्कतों से मुक्ति की ओर प्रेरित करता है। यह कविता गगन की शांति और स्वतंत्रता के संदेश के साथ हमें प्रेरित करती है। Read More Class 7 Hindi Summaries.

हम पंछी उन्मुक्त गगन के Summary In Hindi

हम पंछी उन्मुक्त गगन के कविता का सार

शिव मंगल सिंह सुमन द्वारा रचित कविता ‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के’ में कवि ने आज़ादी से उड़ने वाले पक्षी के विचारों का वर्णन किया है। कवि लिखता है कि खुले आकाश में उड़ने वाला पक्षी कहता है कि वह पिंजरे में बन्द हो कर गा नहीं सकेगा क्योंकि पिंजरे की सोने की तीलियों से टकराकर उसके आनन्द में मग्न पंख टूट जाएंगे। वे सदा बहता हुआ जल पीते हैं तथा उन्हें पिंजरे में सोने की कटोरी में दिए गए स्वादिष्ट भोजन की अपेक्षा कड़वी नीम की निबौरी ही अच्छी लगती है। सोने के पिंजरे में बन्द होकर वे अपनी स्वाभाविक चाल और गति भी भूल जाते हैं और पेड़ की फुनगी पर बैठने से मिलने वाले झूले का आनन्द उनके लिए स्वप्न ही बन जाता है। वे नीले आकाश में बहुत ऊँचे उड़कर अपनी लाल चोंच से तारों रूपी अनार के दानों को चगना चाहते थे। वे असीम क्षितिज को अपने पंखों से नाप लेना चाहते थे जिस से वे उसे पा लेते अथवा उनकी साँसों की डोरी तन जाती। वे चाहते हैं कि चाहे उन्हें किसी टहनी पर रहने के लिए घोंसला न दो परन्तु यदि पंख दिए हैं तो उन्हें निर्विघ्न उड़ान भरने दो।

Conclusion:

“हम पंछी उन्मुक्त गगन के” कविता का संक्षेप इसके मुख्य संदेश को स्पष्ट करता है, जो है – स्वतंत्रता का मूल्य हमारे जीवन में महत्वपूर्ण है, और हमें अपनी आवश्यकताओं और दिक्कतों के बावजूद आगे बढ़ना चाहिए। यह कविता हमें यह याद दिलाती है कि सफलता और स्वतंत्रता का मार्ग हमारे अंतरात्मा में ही है, और हमें उसे खोजने का प्रयास करना चाहिए।

माँ तुलसी मेरे आँगन की Summary In Hindi

माँ तुलसी मेरे आँगन की Summary In Hindi

“माँ तुलसी मेरे आँगन की” एक हिन्दी कहानी है जो एक माँ की संघर्षपूर्ण जीवन कहानी को दर्शाती है, जिसमें वह अपने बच्चे के लिए सब कुछ करने का प्रयास करती है। कहानी ने माँ-बेटे के बंधन और माँ के प्रेम की महत्वपूर्ण भूमिका को प्रस्तुत किया है। Read More Class 7 Hindi Summaries.

माँ तुलसी मेरे आँगन की Summary In Hindi

माँ तुलसी मेरे आँगन की पाठ का सार

‘माँ तुलसी मेरे आँगन की’ पाठ में लेखक ने तुलसी के पौधे के औषधीय गुणों का शशि और सिम्पी के वार्तालापों के माध्यम से वर्णन किया है। राशि स्नान के बाद माँ तुलसी मेरे आँगन की गुनगुनाती हुई तुलसी के पौधे को जल चढ़ा कर शीतलता, शान्ति और पवित्रता का अनुभव कर उसी में लीन है और सिम्पी की आवाज़ नहीं सुन पाती और उस के यह कहने पर कि क्या वह ‘मैं तुलसी मेरे आँगन की’ फ़िल्म देख कर गुनगुना रही है? उसे उत्तर देती है कि तुलसी को जल चढ़ा कर उसे ऐसा लगता है जैसे उसे माँ के आंचल की छाया मिल गई हो। सिंपी भी अपने आँगन में तुलसी का पौधा मँगवा कर लगाना चाहती है। शशि उसे अपने तुलसे के चबूतरे से तुलसी का नन्हा पौधा ले जाकर अपने घर लगाने के लिए कह कर उसे उस के वृन्दा के देवी रूप के विषय में बताती है जो कहीं हर-शिव तथा जालंधर की पत्नी के रूप में प्रसिद्ध है। वृन्दावन में भी तुलसी-दलों की ही अधिकता रही होगी।

सिम्पी बताती है कि उसके घर आए एक वैद्यराज ने इसे महौषधि बताकर इसे सामान्य बुखार, जुकाम, खाँसी, मलेरिया, खून के विकारों को दूर करने में लाभदायक बताया था। शशि कहती है कि तुलसी से रोग ही दूर नहीं होते बल्कि इसके नियमित सेवन से रोग पास भी नहीं आते। इसे चरणामृत और प्रसाद में रखते हैं। इस की सुगन्ध मच्छर कीटाणुओं, साँप तक को दूर भगाती है। चाय में इस की महक बहुत अच्छी लगती है। यह दो प्रकार की सामान्य और श्यामा तुलसी होती है तथा दोनों के गुण सामान्य होते हैं। सिम्पी को भी तुलसी माता जैसी लगती है और दोनों गुनगुनाने लगती हैं ‘माँ तुलसी मेरे आँगन की।

बहू की विदा Summary In Hindi

बहू की विदा Summary In Hindi

“बहू की विदा” एक हिन्दी कहानी है जो एक परंपरागत भारतीय परिवार के माध्यम से पारंपरिक मूल्यों और समाज में किसी औरात की विदा की चुनौती को दर्शाती है। इस कहानी में मुख्य पात्री की विदा के लिए अपने परिवार और समाज के बीच उसके साथ के संघर्ष का वर्णन होता है। यह कहानी समाज के विचारों, मान्यताओं, और विवादों को बयां करने का प्रयास करती है। Read More Class 7 Hindi Summaries.

बहू की विदा Summary In Hindi

बहू की विदा पाठ का सार

‘बहू की विदा’ विनोद रस्तोगी द्वारा रचित एक एकांकी है जो दहेज-प्रथा पर आधारित है। जीवन लाल पचास वर्षीय धनी व्यापारी था। उनकी बहू कमला का भाई प्रमोद पहले सावन के अवसर पर अपनी बहन को विदा कराने आया था परन्तु जीवन लाल उसे तब तक विदा करने के लिए तैयार नहीं था जब तक उन्हें दहेज की शेष राशि पाँच हजार रुपए नकद न मिल जाते। प्रमोद ने उस समय बहन की विदाई के लिए प्रार्थना की तथा गौने में उनकी सभी माँगें पूरी करने की बात कही परन्तु वे नहीं माने और अपनी बेटी गौरी के धूमधाम से किए विवाह की बात कहते हुए उसे स्पष्ट कह दिया कि अभी विदा नहीं हो सकती। प्रमोद ने उनसे बहन से मिलने की आज्ञा मांगी तो उसने और पत्नी से प्रमोद की बहन को उस से मिलने के लिए भेजने के लिए कहा स्वयं वहाँ से चला गया।

कमला अपने भाई प्रमोद से मिलकर सिसकने लगी। प्रमोद ने उसे समझाया और कहा कि वह उसके ससुर को पाँच हज़ार रुपए देकर उसे विदा करा के ले जाएगा। इस कार्य के लिए वह अपना घर तक बेचने के लिए तैयार था। कमला ने उसे इस के लिए मना किया है और कहा है कि उस की ननद गौरी आ रही है, इसलिए उस का ससुराल में ही मन लग जाएगा और वह यहीं सावन मना लेगी। उसे अपनी सखियों की कमी भी नहीं खलेगी। कमला ने अपनी सास राजेश्वरी की प्रशंसा और कहा कि वह उसके ससुर के समान नहीं थी। वे बहुत अच्छी थी। तभी राजेश्वरी वहाँ आई और अपने पास से प्रमोद को रुपए देकर कमला के ससुर को देने के लिए कहा, जिससे वह अपनी बहन को विदा करा के ले जा सके।

प्रमोद इसके लिए तैयार हुआ। तभी जीवन लाल ने आ कर गौरी के आगमन पर उसके स्वागत की तैयारी करने के लिए कहा। बाहर से कार के हार्न की आवाज़ सुनकर जीवनलाल ने कहा कि गौरी आ गई है, उसके लिए मिठाई का थाल लाओ। गौरी का भाई रमेश आया और बताया कि गौरी को उसके ससुराल वालों ने विदा नहीं किया क्योंकि उन्होंने दहेज पूरा नहीं दिया था। इस पर राजेश्वरी ने उसे बुरा-भला कहा और कहा कि बहू-बेटी में अन्तर करने का यही नतीजा होता है। प्रमोद जाने लगा तो जीवनलाल ने उसे बहन को विदा कराने के ले जाने की आज्ञा दे दी तथा पत्नी को बहू को विदा करने की तैयारियाँ करने के लिए कहा।

Conclusion:

“बहू की विदा” कहानी हमें परंपरागत और सामाजिक मूल्यों के साथ महिलाओं के अधिकारों के मामले में उत्तराधिकारियों के साथ उठी चुनौती का प्रतिष्ठान दिलाती है। यह कहानी हमें सामाजिक सुधार की महत्वपूर्ण आवश्यकता को बयां करती है और महिलाओं के अधिकारों की समर्थन में एक महत्वपूर्ण संदेश प्रस्तुत करती है। इसके माध्यम से हमें समाज में सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में काम करने की आवश्यकता का अवसर मिलता है।

हार की जीत Summary In Hindi

हार की जीत Summary In Hindi

“हार की जीत” एक कहानी है जो सामाजिक नैतिकता, संघर्ष, और सफलता के मुद्दों को दर्शाती है। इस कहानी में मुख्य पात्री ने अपने असफलता को सफलता में बदलने के लिए संघर्ष किया है और उसने दिखाया है कि आत्म-समर्पण और समर्पण से हार को भी जीत में बदला जा सकता है। यह कहानी हमें महत्वपूर्ण सबक सिखाती है कि हालातों के बावजूद, संघर्ष और आत्म-विश्वास से हर कठिनाई को पार किया जा सकता है। Read More Class 7 Hindi Summaries.

हार की जीत Summary In Hindi

हार की जीत पाठ का सार

श्री सुदर्शन द्वारा लिखित कहानी ‘हार की जीत’ में एक डाक के हृदय परिवर्तन की घटना का वर्णन किया गया है। बाबा भारती के पास एक बहुत सुन्दर घोड़ा था। उसकी मशहूरी दूर-दूर तक फैल गई थी। बाबा भारती सब कुछ छोड़कर साधु बन गये थे, परन्तु घोड़े को छोड़ना उनके वश में न था। वे उसे ‘सुलतान’ कह कर पुकारते थे। संध्या के समय वे सुलतान पर चढ़कर आठ दस मील का चक्कर लगा लेते थे। उस इलाके के मशहूर डाकू खड्ग सिंह के कानों में भी सुलतान की चर्चा पहुँची। वह उसे देखने के लिए बेचैन हो उठा और एक दिन दोपहर के समय बाबा भारती के पास पहुँचा। उन्हें नमस्कार करके बैठ गया।

बाबा भारती ने उससे पूछा कि कहो खड्ग सिंह क्या हाल है ? इधर कैसे आना हुआ। खड्ग सिंह ने कहा, कि आपकी कृपा है। सुलतान को देखने की चाह मुझे यहाँ खींच लाई। इस पर बाबा भारती ने उत्तर दिया कि सचमुच घोड़ा बाँका है। उन्होंने खड्ग सिंह को अस्तबल में ले जाकर घोड़ा दिखाया। खड्ग सिंह उस पर लटू हो गया। वह मन ही मन सोचने लगा कि ऐसा घोड़ा तो उसके पास होना चाहिए था। वहाँ से जातेजाते वह बोला कि बाबा जी! मैं यह घोड़ा आपके पास न रहने दूंगा। यह सुन कर बाबा भारती को डर के मारे अब नींद न पड़ती। वे सारी रात अस्तबल में घोड़े की रखवाली में बिताते।

एक दिन संध्या के समय बाबा भारती घोड़े पर सवार होकर घूमने जा रहे थे। अचानक उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी- “ओ बाबा!” इस कंगले की बात सुनते जाना।” उन्होंने देखा एक अपाहिज वृक्ष के नीचे बैठा कराह रहा है। बाबा भारती ने पूछा, तुम्हें क्या तकलीफ है। वह बोला, मैं दुखी हूँ। मुझे पास के रामांवाला गाँव जाना है। मैं दुर्गादत्त वैद्य का सौतेला भाई हूँ। मुझे घोड़े पर चढ़ा लो।”

बाबा भारती ने उस अपाहिज को घोड़े पर चढ़ा लिया और स्वयं लगाम पकड़ कर चलने लगा। अचानक लगाम को झटका लगा और लगाम उनके हाथ से छूट गई। अपाहिज घोड़े पर तन कर बैठ गया। अपाहिज के वेश में वह खड्ग सिंह था। बाबा भारती के मुँह से चीख निकल गई। बाबा भारती थोड़ी देर चुप रहने के बाद चिल्लाकर बोले, “खड्ग सिंह मेरी बात सुनते जाओ।” वह कहने लगा, “बाबा जी अब घोड़ा न दूँगा।

बाबा भारती बोले- “घोड़े की बात छोड़ो। अब मैं घोड़े के बारे में कुछ न कहूँगा। मेरी एक प्रार्थना है कि इस घटना के बारे में किसी से कुछ न कहना, क्योंकि लोगों को यदि इस घटना का पता चल गया तो वे किसी दीन-हीन गरीब पर विश्वास न करेंगे।” बाबा भारती सुलतान की ओर से मुँह मोड़ कर ऐसे चले गए मानो उसके साथ उनका कोई सम्बन्ध न था।

बाबा जी के उक्त शब्द खड्ग सिंह के कानों में गूंजते रहे। एक रात खड्ग सिंह घोड़ा लेकर बाबा भारती के मन्दिर में पहुँचा, चारों ओर खामोशी थी। अस्तबल का फाटक खुला था। उसने सुलतान को वहाँ बाँध दिया और फाटक बन्द करके चल दिया। उसकी आँखों से पश्चाताप के आँसू बह रहे थे। रात के आखिरी पहर में बाबा भारती स्नान आदि के बाद अचानक ही अस्तबल की ओर चल दिए पर फाटक पर पहुँच कर उन्हें वहाँ सुलतान के न होने की बात याद आई तो उनके पैर स्वयं रुक गए। तभी उन्हें अस्तबल से सुलतान के हिनहिनाने की आवाज़ सुनाई दी। वे प्रसन्नता से दौड़ते हुए अन्दर आए और सुलतान से ऐसे लिपट गए जैसे कोई पिता अपने बिछुड़े हुए पुत्र से मिल रहा हो और बोले कि अब कोई गरीबों की सहायता से मुँह नहीं मोड़ेगा।

Conclusion:

“हार की जीत” कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में सफलता पाने के लिए संघर्ष और समर्पण की आवश्यकता होती है। यह दिखाती है कि हार केवल एक स्थिति होती है, लेकिन सामर्थ्य और आत्म-संघर्ष से हम उसको जीत में बदल सकते हैं।

ज़िन्दगी-एक रिक्शा Summary In Hindi

“ज़िन्दगी-एक रिक्शा” एक हिन्दी कहानी है जो एक रिक्शावाले के जीवन को बयां करती है। इस कहानी में रिक्शावाला अपने कठिन परिस्थितियों के बावजूद अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए संघर्ष करता है और जीवन के मूल्य को समझता है। यह कहानी हमें संघर्ष, समर्पण, और आत्म-समर्पण के महत्वपूर्ण संदेश के साथ रोचकता से प्रेरित करती है। Read More Class 7 Hindi Summaries.

ज़िन्दगी-एक रिक्शा Summary In Hindi

ज़िन्दगी-एक रिक्शा कविता का सार

“ज़िन्दगी-एक रिक्शा’ कविता में कवि डॉ० राकेश कुमार बब्बर ने ज़िन्दगी को रिक्शा के साथ जोड़कर यह संदेश दिया है कि जिस प्रकार रिक्शा में दो सवारियों को बैठा कर रिक्शावाला रिक्शा आराम से चलाता है तथा अपनी रिक्शा को भी ठीक-ठाक रखता है, वैसे . ही मनुष्य अपने जीवन को सीमित परिवार में रखकर सुखी ज़िन्दगी व्यतीत कर सकता है।

ज़िन्दगी-एक रिक्शा Summary images

कवि कहता है कि जिंदगी एक रिक्शे के समान है जिसे हर कोई चला तो रहा है परन्तु कोई घसीट कर, कोई दौड़ा कर, कोई अकेले तो कोई कइयों को लादकर चलता है। यदि रिक्शा ठीक-ठाक रखनी है तो वह उतनी ही सवारियां बैठाता है, जितनी वह सहन कर सकता है। अधिक कमाई करने के लालच में वह अपना संतुलन बिगाड़ देता है और अपनी : ………………. हैसियत से अधिक परिवार बनाने पर व्यक्ति की ज़िन्दगी की दशा खराब हो जाती है। इसलिए जैसे रिक्शावाला अपनी रिक्शा को ठीक-ठाक रखने के लिए उसकी ब्रेक, पुर्जे, टायर आदि ठीक रखता है और उतनी सवारियां बैठाता है जिन्हें वह आसानी से ले जा सकता हैं वैसे ही मनुष्य को भी अपना परिवार अपनी हैसियत के अनुसार बनाना चाहिए।

Conclusion:

“ज़िन्दगी-एक रिक्शा” कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन के हर मोड़ पर संघर्षों और चुनौतियों का सामना करना होता है, लेकिन आत्म-समर्पण और लक्ष्यों के प्रति समर्पित रहने से हम अपने माक्सदों को हासिल कर सकते हैं। रिक्शावाले की मेहनत और संघर्ष ने उसको सफलता प्राप्त करने में मदद की और हमें याद दिलाया कि जीवन की यात्रा में संघर्ष ही सफलता की कुंजी हो सकता है।

Kirathavritham Summary in Malayalam

Kirathavritham Summary in Malayalam

“Kirathavritham” (English: The Vow of the Kiratas) is a short story by M. T. Vasudevan Nair. The Summary is set in the Himalayas and tells the tale of a group of Kiratas, a tribe of hunters, who encounter a strange man one day. The man is dressed in white and has a long beard. He is carrying a staff and a water pot.

The Kiratas are initially suspicious of the man, but he soon wins their trust with his kindness and wisdom. He tells them that he is a traveler and that he is on his way to a holy place. The Kiratas offer to help him on his journey, and they set off together.

Kirathavritham Summary in Malayalam

ഗ്രസുകാരപരിചയം – കടമ്മനിട്ട

ആധുനിക മലയാള കവികളിൽ പ്രമുഖനാണ് കടമ്മനിട്ട രാമ കൃഷ്ണൻ, കടമ്മനിട്ട് എന്നു കേട്ടാൽ കവിയാണോയെന്നും പട യണിയാണോയെന്നും വ്യത്യാസപ്പെടുത്തുവാൻ കഴിയാത്ത വിധത്തിൽ ഒന്നിച്ചുചേർന്ന ഒരു ഓർമ്മയാണ് മലയാളിക്കുള്ളത്.

‘കുത്തെ, തുള്ളാൻ സമയമില്ലിപ്പോൾ കാഞ്ഞ വെയിലത്ത് കാലു പൊള്ളു എന്നും എന്റെ ചിറകിന്റെ കീഴിൽ നിന്ന്, നിന്റെ വയറു നിറയ്ക്കാൻ എന്ന് തോന്നുന്ന തോന്നല് വേണ്ടാ…. നിന്റെ ജീവിതം നിൻ കാര്യം മാത്രം’ സ്വപ്നാടനങ്ങളിൽ നിന്നും മലയാളിയെ ചരലും മുള്ളും നിറത്തെ പടനിലങ്ങളിലേക്ക് കൊണ്ടുവന്ന കവിയാണ് കടമ്മനിട്ട രാമകൃഷ്ണൻ.

ജീവിതവത്താന്തം

പത്തനംതിട്ട ജില്ലയിലെ കടമ്മനിട്ട ഗ്രാമത്തിൽ നിന്നാണ് കട മ്മനിട്ട രാമകൃഷ്ണൻ എന്ന് പിൽക്കാലത്ത് അറിയപ്പെട്ട കവി ജനിച്ചത്. അച്ഛൻ മേലേത്തറയിൽ രാമൻ നായർ. അമ്മ കുട്ടിയമ്മ കടമ്മനിട്ടക്കാവിലുണ്ടായിരുന്ന അനുഷ്ഠാനകലയായ പടയണിയുടെ ആശാനായിരുന്നു അച്ഛൻ അധ്വാനിക്കുകയും

പടയണി തുള്ളു കയും പഠിപ്പിക്കുകയും ചെയ്യുന്ന അച്ഛൻ ഭർത്താവിന്റെ ശിഷ്യ ന്മാർക്ക് ചക്കരക്കാപ്പിയും മരച്ചീനിയും പുഴുങ്ങിയതും തയ്യാറാ ക്കികൊടുക്കുകയും രാവിലെയും സന്ധ്യക്കും നിലവിളക്കിനു മുമ്പിൽ ഈശ്വരനാമം ഭജിക്കുകയും ചെയ്യുന്ന അമ്മ. ഈ അന്നു രീക്ഷത്തിലാണ് കവി വളരുന്നത്.

Kirathavritham Summary in Malayalam 1

അച്ഛൻ രാമകൃഷ്ണനെ പടയണി പഠിപ്പിച്ചില്ല. അയാൾ ഉദ്യോ ഗസ്ഥനാകണമെന്ന് അച്ഛൻ ആഗ്രഹിച്ചു. മൈലപ്ര സ്കൂളിലായി രുന്നു വിദ്യാഭ്യാസം. പഠിക്കാൻ സമർത്ഥനായിരുന്നു. തുടർന്ന് കോട്ടയം സി.എം.എസ്. കോളേജിൽ പഠിച്ചു. അഡ്വ. എൻ. ഗോവി അമേനോന്റെ വീട്ടിലായിരുന്നു താമസം. അവിടെവെച്ച് രാമക ഷ്ണൻ രാഷ്ട്രീയത്തിൽ ആകൃഷ്ടനായി. അവിഭക്ത കമ്മ്യൂണിസ്റ്റ് പാർട്ടിയിൽ പ്രവർത്തിച്ചു. പത്തനംതിട്ട താലൂക്ക് കമ്മിറ്റി അംഗമായി പ്രവർത്തിച്ചു. കാറൽ മാർക്സിന്റെ മൂലധനവും മറ്റ് മാർക്സി യൻ ക്ലാസിക്കുകളും വായിച്ച ഈ

കാലഘട്ടം രാഷ്ട്രീയ പ്രബു ദ്ധമായിരുന്നു. 1959ൽ മദ്രാസിൽ പോസ്റ്റൽ ഓഡിറ്റ് എറ്റ് അക്ക ങ്സിൽ ജോലി ലഭിച്ചു. 1967 മുതൽ 1992ൽ ഔദ്യോഗികജീവിത ത്തിൽ നിന്ന് വിരമിക്കുന്നതുവരെ തിരുവനന്തപുരത്തായിരുന്നു. കേരള സ്റ്റേറ്റ് ലൈബ്രറി കൗൺസിലിന്റെ പ്രസിഡന്റായി സേവനം ചെയ്തു.

1996 ഏപ്രിലിൽ നിയമസഭാ തിരഞ്ഞെടുപ്പിൽ ആറന്മു ളയിൽ നിന്നും എം എൽ എ ആയി. 1976ൽ പ്രസിദ്ധപ്പെടുത്തിയ കവിതയാണ് ആദ്യ പുസ്തകം, ആശാൻ പ്രസ് (1982) കേരള സാഹിത്യ അക്കാദമി അവാർഡ് (1982) അബുദാബി മലയാളി സമാജം അവാർഡ് (1982) ന്യൂയോർക്കിലെ മലയാളം ഇന്റർനാഷണൽ ഫൗണ്ടേഷൻ അവാർഡ് (1980), മസ്കറ്റ് കേരള കൾച്ചറൽ സെന്റർ അവാർഡ് എന്നിവ ലഭിച്ചു.

സാമുവൽ ബക്കറ്റിന്റെ വെയ്റ്റിംഗ് ഫോർ സൺ സ്റ്റോൺ എന്നിവ വിവർത്തനം ചെയ്തിട്ടുണ്ട്. മഴ പെയ്യുന്നു മദ്ദളം കൊട്ടുന്നു, കടിഞ്ഞൂൽപ്പൊട്ടൽ, കടമ്മനിട്ടക്കവിതകൾ എന്നിവ യാണ് പ്രധാന കൃതികൾ. ശാന്തയാണ് ഭാര്യ.

കടമനിട്ടയെകുറിച്ച് ഒ എൻ. വി. കുറുപ്പ് പറയുന്നത്

ആധുനിക കവിതയുടെ ദീപ്തമുഖമാണ് കടമ്മനിട്ടയുടെ കവി തയിൽ പ്രതിഫലിക്കുന്നത്. കടമ്മനിട്ടക്കവിതകൾ മണ്ണിന്റെ കവി തയാണ്. അത് പൂർണ്ണമായും മാനുഷികമാണ്. നിങ്ങളോർക്കുക നിങ്ങളോർക്കുക നിങ്ങളെങ്ങനെ നിങ്ങളായെന്ന് ഓർത്ത് നോക്ക ണമെന്ന് കടമ്മനിട്ടയുടെ ഓർമപ്പെടുത്തൽ മലയ അമ്പര പ്പിച്ചതാണ്.

രൗദ്രമൂർത്തികളെ പ്രീതിപ്പെടുത്താൻ ദേവതകളെ വിളിച്ചിറക്കുന്ന രീതി പുരാതന ഗ്രീസിലുണ്ടായിരുന്നു. നിഗ്രഹാനുഗ്രഹ ശക്തിയുള്ള ദേവതകളെ ഭക്തർ ഉന്മാദത്തോടെ പാടി തിക്കും. ദേവിയെ ശ്രീകോവിലിൽ നിന്നും നാട്ടിലേക്ക് വിളിക്കുന്നത് ദേശത്തിന്റെ വക്താവാണ്. ആ വക്താവാണ് കടമ്മനിട്ട രാമക ഷ്ണൻ.

കടമ്മനിട്ടക്കവിതകളുടെ പൊതു സവിശേഷതകൾ 

കടമ്മനിട്ട മലയാളികളെ മുഴുവനോടെ സ്വാധീനിച്ച ഒരു കാല ഘട്ടത്തിന്റെ കവിയായിരുന്നു. സൗഹൃദസംഘങ്ങളിൽ കവിതകൾ ചൊല്ലിയിരുന്ന കടമ്മനിട്ട കേരളത്തിലുടനീളം വേദികൾ രൂപപ്പെടുത്തി. കവിതകൾ

താളമേളങ്ങളോടെ കൊട്ടിയാസ്വദിക്കുന്ന സമൂഹം കേരളത്തിൽ പുതിയ കാഴ്ചയായിരുന്നു.

കടമ്മനിട്ടയുടെ സ്വരം പരുക്കനും ഒപ്പം കവിതയുടെ ഭാവത്തിന് വിധേയവുമായിരുന്നു. നിങ്ങളെന്റെ കറുത്ത മക്കളെ ചുട്ടു തിന്നുന്നോ എന്ന് ചോദിക്കുമ്പോൾ ഗർജ്ജിക്കുകയും എവിടെ യുന്ന കടമ്മനിട്ട മലയാളിയെ പുതിയ സംസ്കാരത്തിലേക്ക് നയിച്ചു. കവിത ഭരിക്കുന്ന ജനസമൂഹം ഇവിടെ ഉണ്ടായി.

നാട്ടിൻപുറ ത്തിന്റെ ഗ്രാമ്യഭംഗിയും ദ്രാവിഡപ്പാട്ടുകളുടെ ധ്വനികളും സാമൂ ഹ്യമായ അനുഷ്ഠാനങ്ങളുടെയും കടമ്മനിട്ടയുടെ സ്വരത്തിനുണ്ടായിരുന്നു കടമ്മനിട്ടക്കാവുകളിൽ ഉണ്ടായിരുന്ന അനുഷ്ഠാന കലാരൂപ മായ പടയണിയുടെ താളവും വരികളും കടമ്മനിട്ടക്കവിതയിൽ പല യിടങ്ങളിലും കാണാം.

പടയണിയിലെ ദേവി സങ്കൽപ്പം കടമ്മനിട്ടക്ക് സ്ത്രീത്വത്തിന്റെ ശാക്തീകരണത്തിലൂടെ അടിച്ചമർത്തപ്പെട്ട വർക്ക് ലദിക്കുന്ന അതീതത്വമാണ്. കുറത്തി എന്ന കവിതയിൽ ഒരു സാധാരണക്കാരിയായ കുറത്തിയാട്ടക്കാരി മർദ്ദിതരുടെ കാളിയായി മാറുന്നതാണ് കാണുന്നത്.

കവിതാച്ചുരുക്കം

കടമ്മനിട്ടയുടെ നാരായത്തിൽ മലയാളത്തിന് ലഭിച്ച അപൂർവ്വമായ വംശസ്മൃതികളുടെ ബിംബമാണ് കാട്ടാളൻ. കാട്ടാളൻ എന്ന കവിത യിലും കിരാതവൃത്തത്തിലും വംശത്തിന്റെ പ്രാചീനതയിലെ സാർത്ഥ കമായ ജീവിതത്തിനായി കാട്ടാളൻ നിൽക്കുന്നു.

തീ പിടിച്ച് നിറായിത്തീർന്ന വനത്തിൽ കാട്ടാളൻ നിൽക്കുന്നു. നെഞ്ചത്ത് ആരോ തറച്ച പന്തം കുത്തി നിന്ന് കത്തുന്നു. കാട്ടാളന്റെ കണ്ണുകളിൽ പെട്ടുകിടക്കുന്ന പുലിയുടെ ഈറൻ കണ്ണ് കാണാം. കരി മൂർഖൻ പാമ്പിന്റെ വാല് വളഞ്ഞതുപോലെ പുരികം വളച്ചുവെച്ചിരി ക്കുന്നു. വനം ദഹിച്ചതിൽ കാട്ടാളൻ കുപിതനാണ്.

ആകാശത്ത് അച്ഛൻ ചത്തുകിടക്കുന്നു. മലയോരത്ത് അമ്മയിരുന്ന് ദഹിക്കുന്നു. മുല പകുതി മുറിഞ്ഞവൾ ആറ്റിൻ തീരത്ത് കനലായി വിളിച്ചത് ചാട്ടുളിയായി കാട്ടാളന്റെ കരളിൽ ചെന്ന് തറച്ചു. കാട്ടാളൻ അലറുകയാണ്. അപ് തറച്ച കരിമ്പുലി പോലെയും ഉരുൾപ്പൊട്ടിയ മാമലപോലെയും കാട്ടാ ളൻ അലറുന്നു.

ഈ സന്ദർഭങ്ങളിൽ കാട്ടാളൻ എന്ന ബിംബത്തെ ഒരു സ്ഥലരാശി യിൽ നിർത്തി

വളർത്തിയെടുക്കുന്നു. അയാളുടെ പരിസരങ്ങളിൽ കാണുന്ന ജീവിതാഭിലാഷങ്ങളുടെ തിരസ്ക്കാരങ്ങൾക്ക് നേരെ കാട്ടാ ളൻ അലറുന്നു. കാട്ടാളൻ ഏതൊരു നാടിന്റെയും ആദിമമായ വന്യജീ വിതത്തിന്റെ പ്രതിനിധിയാണ്. കാട്ടാളനെ ചൂണ്ടി മാ നിഷാദാ (അരുത് കാട്ടാളായെന്ന് വാത്മീകി പറഞ്ഞതായ സന്ദർഭം വാത്മീകി വനത്തിലൂടെ നടക്കുമ്പോൾ ഒരു കാട്ടാളനെ കണ്ടു. ആ കാട്ടാളൻ ഇണപ്പക്ഷി കളിൽ ഒന്നിനെ അമ്പെയ്യുന്നത് വാത്മീകി കണ്ടു.

വാത്മീകിക്ക് ഇത് സഹിച്ചില്ല. അരുത് കാട്ടാളാ എന്ന് പറഞ്ഞ് വാത്മീകി ഈ പ്രവൃത്തിയെ തടഞ്ഞു. അപ്പോഴേക്കും ക്രൗഞ്ചപ്പക്ഷികളിൽ പെൺകിളിക്ക് അമ്പേ റ്റിരുന്നു. ആൺകിളി അമ്പിൽ കുടുങ്ങിയ പെൺകിളിയുടെ അടുത്തു പറന്നിരുന്ന് കരയുന്നത് കണ്ടപ്പോൾ വാത്മീകിക്കുണ്ടായ ശോകമാണ് ശ്ലോകമായി പരിണമിച്ചത് – രാമായണമായത് എന്ന് പറഞ്ഞ് ആരംഭിച്ച താണ് ആധുനിക മനുഷ്യന്റെ സംസ്കാരം.

കാട്ടാളനെ തിരസ്കരിച്ചത് അവൻ ആയുധം ഉപയോഗിക്കുന്നതിനാലും അവന് മര്യാദകൾ ഇല്ലാ ത്ത തി നാലും ആയി രു ന്നു. ദൗർഭാഗ്യവശാൽ തുടർന്നു ണ്ടായ സംസ്കാരം നാഗരികമാകുകയും ആയുധങ്ങൾ യഥേഷ്ടം ഉപയോ ഗിച്ച് വനം നശിപ്പിക്കുകയും മര്യാദകൾ

കാറ്റിൽ പറത്തി പ്രകൃതിക്കും മാനവികതയ്ക്കും ഭീഷണി ഉയർത്തുകയും ചെയ്തു. അപ്പോൾ, കാട്ടാ ളന്റെ ജീവിതമായ വനം ചുട്ട് നശിപ്പിച്ചത് നാഗരികതയായിരുന്നു.

ഈ കാട്ടാളന്റെ പ്രകൃതിയിലുള്ള ജീവിതം വന്യമായ വനജീവിത ത്തിന് തുല്യമായിരുന്നു. അച്ഛൻ ആകാശത്തു ചത്തു കിടക്കുകയും അമ്മ മലയോരത്തിരുന്ന് ദഹിക്കുകയും ചെയ്യുമ്പോൾ കവിതയിലെ സ്ഥലമെന്നത് വായനക്കാരന് സാധിക്കുന്നു.

ശവും മലയോരവും അച്ഛന്റേയും അമ്മയുടെയും ദാരുണമായ അന്ത സ്ഥലമായി കവിതയിൽ വായിക്കപ്പെടുമ്പോൾ കാട്ടാളന്റെ വനജീവി തത്തിന്റെ ആഴം മനസ്സിലാകുന്നു. – അലകടലിന്റെ പേരു പറിക്കാൻ കുതറുന്ന കാട്ടാളൻ കാടിന്റെ നീരുവകളിലാണ് അലകടലിന്റെ വേരുകൾ കണ്ടെത്തുന്നത്.

തുടർന്നുള്ള വരികളിൽ കാട്ടാളനു ചുറ്റുമുള്ള പ്രകൃതിയെ കാണു ന്നു. അത് ജീവനറ്റ പ്രകൃതിയാണ്. മാനം മൗനമായിരിക്കുന്നു. ഒരു കിളി പോലും പറക്കുന്നില്ല. ഇലകൾ കാറ്റിലാടുന്നില്ല. വേഴാമ്പൽ തേങ്ങി ക്കരയുന്നതുപോലെ മഴയ്ക്കായി കാട്ടാളൻ കാത്തിരിക്കുന്നു. മാന്തോ പുകളുരുകുന്ന

മണ്ണിലാണ് കാട്ടാളൻ ഇരിക്കുന്നത്. ഭ്രാന്തമായ സ്നേഹ ത്തിനായി ദാഹം പെരുകുന്നു. ചത്തുകിടക്കുന്ന കരിമേഘങ്ങളുടെ കകോളക്കടലാണോ ആകാശമെന്ന നൈരാശ്യത്തിലാണ് കാട്ടാളനി പ്പോൾ കഴിയുന്നത്. കരിഞ്ഞ മരണം കാവൽ ഇരിക്കുന്ന കടുത്ത നോവിന്റെ കോട്ടയിൽ താൻ അകപ്പെട്ടിരിക്കുന്നു.

തന്റെ കാടും മാനവും നഷ്ടമായിരിക്കുന്നു. എന്റെ കിനാവുകൾ വിതച്ചിരുന്ന ഇടി മിന്നൽ പൂത്തിരുന്ന മാനം ഇന്നെവിടെ? തുളസിക്കാടുകൾ പോയപോ യി. ഈറൻ മുടി കോതിയ സന്ധ്യകൾ നഷ്ടമായി. ഈ വരിയിൽ ൽ ഒരു സ്ത്രീ രൂപം ദൃശ്യമാണ്. ഈറൻ മുടി കോതുന്നത് | സന്ധ്യയാണെങ്കിലും അതിലെ സന്ധ്യക്കു കാണുന്ന സ്ത്രീരൂപത്തിന്റെ പശ്ചാത്തലത്തിൽ കാട്ടാളന്റെ പ്രിയതമയുടെ ഓർമ്മകൾ ഉണ്ടായിരിക്കാം.

ഈ സന്ദർഭത്തിൽ കാണുന്നത് കണ്ണകിയാണെന്ന് ഇവിടെ ഒരു വ്യാഖ്യാനമുണ്ട്. കണ്ണകി മുല പറിച്ചെറിഞ്ഞ് മധുര വെണ്ണീറാക്കിയ സംഭ വമാണ് ഇവിടെ കാണുന്നത്. കണ്ണകിയുടെ പുരാവൃത്തം ഈ പാഠ ത്തിന്റെ ഒടുവിലായി കൊടുത്തിട്ടുണ്ട്.

അവൾ മുല പാതി മുറിഞ്ഞവളാണ്. ആറ്റിൻകരയിലെ അവളുടെ നിലവിളി കനലായി മാറുകയും ആ കനലിന്റെ നിലവിളി കാട്ടാളന്റെ നെഞ്ചിൽ ചാട്ടുളിയായി ആഞ്ഞുതറച്ചതുമാണ്. പ്രകൃതിയുടെ പച്ചപ്പും സുഭഗതയും കാട്ടാളന്റെ സ്വന്തം ഇടമാണ്. അതിന്റെ കാട്ടാളൻ വീണ്ടും നോക്കുന്നു.

മുത്തങ്ങാപ്പുല്ലുകളും അതിൽ തുള്ളി യിരുന്ന പച്ചക്കളും കാണാതായിരിക്കുന്നു. മഴയുടെയും മണ്ണിന്റെയും കുളിരണിയുന്നതുപോലെയാണ് നമ്മുടെ മാമലകളിലും താഴ്വരകളിലും മുത്തങ്ങപ്പുല്ലുകൾ വളരുന്നത്. അതിൽ തുള്ളിച്ചാടുന്ന ചെറു വിരലിനേക്കാൾ ചെറിയ പച്ചക്കാളകൾ, പച്ചകൈയ്യുകൾ മണ്ണിൽ നോക്കിനടക്കുന്ന ഏതൊരു മനുഷ്യന്റേയും പച്ചപ്പുള്ള ഓർമ്മയാണ്. കറുകപ്പുല്ലുകളുടെ തുമ്പിൽ രാത്രിയിലെ അമ്പിളിയുടെ നിലാവ് കള മെഴുതുന്നു.

ആ കളങ്ങളിൽ ദേവി സ്തുതികൾ പാടി രസിച്ചിരുന്ന രാത്രികൾ കാട്ടാളൻ അയവിറക്കുന്നു. പ്രകൃതിയുടെ കളമെഴുത്തും കളംപാട്ടും കാട്ടാളൻ അറിഞ്ഞതും കണ്ടതുമായ ദേവീ സങ്കല്പത്തോട് ചേർന്നാണ് ആവിഷ്കരിച്ചിരിക്കുന്നത്. കവുങ്ങിൻ

ചോലകളിലും കോലങ്ങളിലും ആടുന്ന പടയണിയുടെ രാത്രിയായിരിക്കാം കവിയുടെ മനസ്സിൽ ഉണരുന്നത്. ആ രാത്രിയെയായിരിക്കും കാട്ടാളന്റെ മനസ്സിൽ തുടികൊട്ടുന്നത്. – ഈ രാത്രിയുടെ വന്യമായ സന്തോഷം പങ്കിട്ട് നാളുകൾ കാട്ടാളൻ ഓർക്കുന്നു. ആ രാത്രിക്ക് ചിലങ്കകൾ കെട്ടിയത് കാറ്റായിരുന്നു.

തരിവള മുട്ടിയത് കാട്ടാറും. തണൽമരങ്ങളുടെ ചുവട്ടിൽ കാടത്തികൾ ചുവടൊത്തു കളിക്കുന്നു. ഈ കാടത്തികളെ വർണ്ണിക്കുന്നത് ആദിമ ദ്രാവിഡ സൗന്ദര്യത്തിന്റെ വന്യതയോടെയാണ്. അവരുടെ ശരീരം കരി വീട്ടി മരത്തിന്റെ കാതൽ.

(മരത്തിന്റെ ഉൾഭാഗത്തെ കറുപ്പ് നിറവും നിറചാരുതയും ചേർന്ന ഉറപ്പുള്ളത്) കൺപീലികൾ കൊണ്ടൊരു കാട് വളർന്നിരിക്കുന്നു. കവിളത്ത് അഴകേഴും വീണിരിക്കുന്നു. മുടി കെട്ടഴിഞ്ഞ് ഉണർന്നിരിക്കുന്നു. ഉടല് ഇളകി അരക്കെട്ട് ഇളകി മുലകൾ ഇളകി ഉയർന്നും താഴ്ന്നം കാർമേഘം പോലുള്ള നിറമുള്ള മുടികൾ ചിതറിയുമാണ് കാടത്തി കളിക്കുന്നത്.

ഈ സമയങ്ങളിൽ ഈ നൃത്തം കണ്ട് ആസ്വദിച്ച് 
മുളനാഴിയിൽ പഴഞ്ചാറ് നിറച്ചത് ഒരു മോന്ത

മോന്തി ലഹരി പിടിച്ചവനായിരുന്നു കാട്ടാളൻ.. തുടർന്നുള്ള ഭാഗങ്ങളിൽ കാട്ടാളൻ ഇന്നിന്റെ അവസ്ഥയെ ചിന്തിക്കുന്നു. കാട്ടാളത്തികളുടെ നൃത്തം ആസ്വദിച്ചിരുന്ന താൻ ഇന്നെവിടെ? എന്റെ കിടാങ്ങളെവിടെ? അവർ തേൻകുട്ടുകൾ തേടിപ്പോയ എന്റെ ആൺകുട്ടികളായിരുന്നു. പൂക്കും നിറയ്ക്കാൻ പോയ പെൺകുട്ടിക ളായിരുന്നു എന്റെ കിടാങ്ങൾ. അമ്മിഞ്ഞ കുടിച്ച് കുഞ്ഞ് തന്നുടെ ചുണ്ടത്തൊട്ടിയ ആമ്പൽ പൂമൊട്ടുകളായ കൊച്ചരിപ്പല്ലുകളെവിടെ?

ഇപ്പോൾ ഈ വനത്തിലുയരുന്ന കരിഞ്ഞമണം തളിയെല്ലുകൾ കരി യുന്നതിന്റെതാണോ? മലകൾ ഉരുകിയൊലിക്കുന്ന നിറങ്ങളാണോ ദിക്കുകളിൽ നിറയുന്നത്? ഈ ഘട്ടത്തിൽ ഈറ്റപ്പുലി മുരളുന്ന കാട്ടാളന്റെ കണ്ണിൽ നിന്നും ഒരു തീത്തുള്ളി ഊറിയടർന്നു. കരളിൽ നുറുങ്ങിപ്പോയ നോവിന്റെ കോട്ടയിൽ താൻ അകപ്പെട്ടിരിക്കുന്നു.

തന്റെ കാടും മാനവും നഷ്ടമായിരിക്കുന്നു. കിനാവുകൾ വിതച്ചിരുന്ന ഇടി മിന്നൽ പൂത്തിരുന്ന മാനം ഇന്നെവിടെ? തുളസിക്കാടുകൾ പോയപോ യി. ഈറൻ മുടി കോതിയ സന്ധ്യകൾ നഷ്ടമായി. ഈ വരിയിൽ ഒരു സ്ത്രീ രൂപം ദൃശ്യമാണ്. ഈറൻ മുടി കോതുന്നത് സന്ധ്യയാണെങ്കിലും അതിലെ സന്ധ്യക്കു കാണുന്ന

സ്ത്രീരൂപത്തിന്റെ പശ്ചാത്തലത്തിൽ കാട്ടാളന്റെ
പ്രിയതമയുടെ ഓർമ്മകൾ ഉണ്ടായിരിക്കാം.

ഈ സന്ദർഭത്തിൽ കാണുന്നത് കണ്ണകിയെയാണെന്ന് ഇവിടെ ഒരു വ്യാഖ്യാനമുണ്ട്. കണ്ണകി മുല പറിച്ചെറിഞ്ഞ് മധുര വെണ്ണീറാക്കിയ സംഭ വമാണ് ഇവിടെ കാണുന്നത്. കണ്ണകിയുടെ പുരാവൃത്തം ഈ പാഠ ത്തിന്റെ ഒടുവിലായി കൊടുത്തിട്ടുണ്ട്.

അവൾ മുല പാതി മുറിഞ്ഞവളാണ്. ആറ്റിൻകരയിലെ അവളുടെ നിലവിളി കനലായി ആഞ്ഞു പ്രകൃതിയുടെ പച്ചപ്പും സുഭഗതയും കാട്ടാളന്റെ സ്വന്തം ഇടമാണ്. അതിന്റെ തകർച്ചയിലേക്ക് കാട്ടാളൻ വീണ്ടും നോക്കുന്നു.

മുത്തങ്ങാപ്പുല്ലുകളും അതിൽ തുള്ളി യിരുന്ന പച്ചക്കളും കാണാതായിരിക്കുന്നു. മഴയുടെയും മണ്ണിന്റെയും കുളിരണിയുന്നതുപോലെയാണ് നമ്മുടെ മാമലകളിലും താഴ്വരകളിലും മുത്തങ്ങപ്പുല്ലുകൾ വളരുന്നത്. അതിൽ തുള്ളിച്ചാടുന്ന ചെറു വിരലിനേക്കാൾ ചെറിയ പച്ചക്കാളകൾ, പച്ചകൈയ്യുകൾ മണ്ണിൽ നോക്കിനടക്കുന്ന ഏതൊരു മനുഷ്യന്റേയും

പച്ചപ്പുള്ള ഓർമ്മയാണ്. കറുകപ്പുല്ലുകളുടെ തുമ്പിൽ രാത്രിയിലെ അമ്പിളിയുടെ നിലാവ് കള മെഴുതുന്നു. ആ കളങ്ങളിൽ ദേവി സ്തുതികൾ പാടി രസിച്ചിരുന്ന രാത്രികൾ കാട്ടാളൻ അയവിറക്കുന്നു. പ്രകൃതിയുടെ കളമെഴുത്തും കളംപാട്ടും കാട്ടാളൻ അറിഞ്ഞതും കണ്ടതുമായ ദേവീ സങ്കല്പത്തോട് ചേർന്നാണ് ആവിഷ്കരിച്ചിരിക്കുന്നത്.

കവുങ്ങിൻ ചോലകളിലും കോലങ്ങളിലും ആടുന്ന പടയണിയുടെ രാത്രിയായിരിക്കാം കവിയുടെ മനസ്സിൽ ഉണരുന്നത്. ആ രാത്രിയെയായിരിക്കും കാട്ടാളന്റെ മനസ്സിൽ തുടികൊട്ടുന്നത്.

ഈ രാത്രിയുടെ വന്യമായ സന്തോഷം പങ്കിട്ട് നാളുകൾ കാട്ടാളൻ ഓർക്കുന്നു. ആ രാത്രിക്ക് ചിലങ്കകൾ കെട്ടിയത് കാറ്റായിരുന്നു. തരി വള മുട്ടിയത് കാട്ടാറും. തണൽമരങ്ങളുടെ ചുവട്ടിൽ കാടത്തികൾ ചുവടൊത്തു കളിക്കുന്നു. ഈ കാടത്തികളെ വർണ്ണിക്കുന്നത് ആദിമ ദ്രാവിഡ സൗന്ദര്യത്തിന്റെ വന്യതയോടെയാണ്. അവരുടെ ശരീരം കരി വീട്ടി മരത്തിന്റെ കാതൽ. (മരത്തിന്റെ ഉൾഭാഗത്തെ കറുപ്പ് നിറവും നിറചാരുതയും ചേർന്ന ഉറപ്പുള്ളത്) കൺപീലികൾ കൊണ്ടൊരു കാട്

വളർന്നിരിക്കുന്നു. കവിളത്ത് അഴകേഴും വീണിരിക്കുന്നു. മുടി കെട്ടഴിഞ്ഞ് ഉണർന്നിരിക്കുന്നു. ഉടല് ഇളകി അരക്കെട്ട് ഇളകി മുലകൾ ഇളകി ഉയർന്നും താഴ്ന്നം കാർമേഘം പോലുള്ള നിറമുള്ള മുടികൾ ചിതറിയുമാണ് കാടത്തി കളിക്കുന്നത്. ഈ സമയങ്ങളിൽ ഈ നൃത്തം കണ്ട് ആസ്വദിച്ച് മുളനാഴിയിൽ പഴഞ്ചാറ് നിറച്ചത് ഒരു മോന്ത മോന്തി ലഹരി പിടിച്ചവനായിരുന്നു കാട്ടാളൻ.

തുടർന്നുള്ള ഭാഗങ്ങളിൽ കാട്ടാളൻ ഇന്നിന്റെ അവസ്ഥയെ ചിന്തിക്കുന്നു. കാട്ടാളത്തികളുടെ ന്യത്തം ആസ്വദിച്ചിരുന്ന താൻ ഇന്നെവിടെ? എന്റെ കിടാങ്ങളെവിടെ? അവർ തേൻകുട്ടുകൾ തേടിപ്പോയ എന്റെ ആൺകുട്ടികളായിരുന്നു. പൂക്കും നിറയ്ക്കാൻ പോയ പെൺകുട്ടിക ളായിരുന്നു എന്റെ കിടാങ്ങൾ. അമ്മിഞ്ഞ കുടിച്ച് കുഞ്ഞ് തന്നുടെ ചുണ്ടത്തൊട്ടിയ ആമ്പൽ പൂമൊട്ടുകളായ കൊച്ചരിപ്പല്ലുകളെവിടെ?

ഇപ്പോൾ ഈ വനത്തിലുയരുന്ന കരിഞ്ഞമണം തളിയെല്ലുകൾ കരി യുന്നതിന്റെതാണോ? മലകൾ ഉരുകിയൊലിക്കുന്ന നിറങ്ങളാണോ ദിക്കു കളിൽ നിറയുന്നത്? ഈ ഘട്ടത്തിൽ ഈറ്റപ്പുലി മുരളുന്ന കാട്ടാളന്റെ കണ്ണിൽ നിന്നും ഒരു തീത്തുള്ളി ഊറിയടർന്നു. കരളിൽ നുറുങ്ങിപ്പോയ നട്ടെല്ല്

നിവർന്ന് കാട്ടാളൻ എഴുന്നേറ്റു. ചുരമാന്തിയെഴുന്ന കരുത്തിന്റെ ചീറിയലച്ചു. കാട്ടാളന്റെ തിരമാലകൾ തകർന്ന ഹൃദയം ഈ വരികളിൽ വ്യക്തമാണ്. സ്വന്തം വീര്യം നഷ്ടപ്പെടുത്തേണ്ടി വന്ന കാട്ടാളന്റെ കരളിന്റെ ദൈന്യത അവന് അറിയാം. കാട്ടാളന്റെ ഇന്നത്തെ ദാരുണമായ അവസ്ഥക്ക് മുമ്പിലാണ് വായനക്കാർ വന്നു നിൽക്കുന്നത്.

കാട്ടാളന്റെ സ്വത്വം ഉണർന്നു പ്രവർത്തിക്കുന്നു. തുടർന്നുള്ള വരികളിൽ കാട്ടാളൻ തന്റെ പ്രദേശത്തിന്റെ വാസസ്ഥലത്തിന്റെ തിരിച്ചു പിടിക്കലിനായി ശക്തി സംഭരിക്കുന്നു. കമഴു എടുത്ത് വേട്ടക്കാരുടെ കൈകൾ വെട്ടുമെന്ന് അറിയിക്കുന്നു. മല തീണ്ടി അശുദ്ധമാക്കിയവരെ തലയില്ലാതെ ഒഴുക്കണം.

മരങ്ങളരിഞ്ഞ് എന്റെ കുലം നശിപ്പിച്ചവരുടെ കുടൽമാലകൾ എടുത്ത് ജഗത്തിൽ (ലോകത്തിൽ) തൂക്കിയിടും. കൊരല് ഊരിയെടുത്ത് കുഴലൂതി വിളിക്കും. ഈ സമയങ്ങളിൽ മത്താടി മയങ്ങിയ ശക്തികൾ എത്തുമ്പോൾ കുലവില്ലിൽ പ്രാണന്റെ ഞരമ്പു കൾ പിരിച്ച് ഞാണ് ഏറ്റി ഇടിമിന്നലൊടിച്ച് അഗ്നിക്കിരയുതിർത്ത് അത് കരിമുകിലിൽ ചെന്നുരഞ്ഞ് പേമാരിയായി പെയ്യും. ആ മഴ പേമഴയായി പൊടിവേരുകൾ

മുളപ്പിക്കും. പടരുന്ന മുള പൊട്ടി വിളിക്കും, സുര ന്റെ കിരണം കാണും. അതിന് നിഴലായി അമ്പിളി ഉയരും. വനത്തിന്റെ സുഭഗത ആടിത്തെളിയും. വനമൂർച്ഛയിൽ എല്ലാ ദുഃഖങ്ങളും ഇല്ലാ താകും. താനന്നു ചിരിക്കുമെന്ന് കാട്ടാളൻ ഉറച്ചു പറഞ്ഞു.

പദപരിചയം

  • കാകോളം – വിഷം 
  • ന്റ് – ചാരം
  • പൂഞ്ചായൽ – ഭംഗിയുള്ള തലമുടി
  • രോദനം – കരച്ചിൽ
  • രൗദ്രം – കോപം
  • കുരൽ – കഴുത്ത്
  • നോട്ടുകിടക്കും – കാത്തിരിക്കും

Conclusion:

At the end of the story, the man reaches his destination and disappears. The Kiratas are saddened by his departure, but they are determined to uphold the vow they made to him. They return to their village and begin to live their lives according to his teachings.

श्री गुरु अर्जुन देव जी Summary In Hindi

श्री गुरु अर्जुन देव जी Summary In Hindi

श्री गुरु अर्जुन देव जी, सिख धर्म के पांचवें गुरु और पहले प्रतिपालक हुए थे। उन्होंने सिख समुदाय को धार्मिक और सामाजिक उन्नति की दिशा में मार्गदर्शन किया और अर्थराजकता, समाज में सामाजिक असमानता के खिलाफ उठे। उनके द्वारा लिखी गई “आदि ग्रंथ” सिखों का महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ है और उनकी महान धार्मिक और सामाजिक योगदान को माना जाता है। Read More Class 7 Hindi Summaries.

श्री गुरु अर्जुन देव जी Summary In Hindi

श्री गुरु अर्जुन देव जी पाठ का सार

‘श्री गुरु अर्जुन देव जी’ पाठ में ‘पंचम पातशाह जी’ के नाम से सिक्ख परंपरा में विख्यात श्री गुरु अर्जुन देव जी के जीवन चरित्र का वर्णन किया गया है। श्री गुरु अर्जुन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, सन् 1563 को गोइंदवाल में हुआ था। आप के पिता श्री गुरु रामदास जी चौथे सिक्ख गुरु थे। आपकी माता जी का नाम बीबी भानी जी था। वे तीसरे सिख गुरु श्री गुरु अमरदास जी की सुपुत्री थी। इस प्रकार गुरु अमरदास जी श्री गुरु अर्जुन देव जी के नाना हुए। गुरु अर्जुन देव जी अपने माता-पिता की तीसरी सन्तान थे। सोलह वर्ष की आयु में गुरु अर्जुन देव जी का विवाह मउ गाँव के श्रीकृष्ण चन्द की बेटी गंगा जी के साथ हुआ था। आप सन् 1581 ई० में गुरुगद्दी पर बैठे और ‘पंचम पातशाह जी’ के नाम से विख्यात हुए।

श्री गुरु अर्जुन देव जी ने ‘दसवंध मर्यादा’ का आरम्भ किया। गुरु जी ने मुस्लिम फकीर साईं.मियां मीर जी को आमंत्रित करके श्री हरमन्दिर साहिब की नींव रखवाई थी। दरबार साहिब के नाम से प्रसिद्ध यह सिक्ख धर्म का महान् तीर्थ माना जाता है। मुग़ल सम्राट अकबर भी इसकी यात्रा करने आया था और उसने गुरु जी के दर्शन किये थे।

श्री गुरु अर्जुन देव जी गुरुद्वारे में आने वाले श्रद्धालुओं को स्वयं भोजन परोसा करते थे। वे थके-मांदे की सेवा करते थे। गुरु जी की सबसे बड़ी देन ‘श्री गुरु ग्रन्थ साहिब’ है। उन्होंने बाबा बुड्डा जी को दरबार साहिब में ग्रन्थी बनाकर ग्रन्थी परम्परा शुरू की थी। श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में गुरु जी के 22 सौ ‘श्लोक’ तथा ‘शबद’ हैं। अकबर की मृत्यु के बाद गुरु जी के विरोधियों ने मुग़ल सम्राट् जहाँगीर के कान भरे क्योंकि उन्होंने जहाँगीर के पुत्र खुसरो की मुसीबत में सहायता की थी। दीवान चन्दू शाह ने गुरु जी को कैद में डाल दिया था। वह उन्हें अनेक यातनाएँ देता था। वे 30 मई, सन् 1606 ई० को शहीद हो गए। गुरु जी का शहीदी दिवस हर साल संसार भर में मनाया जाता है और ‘पंचम पातशाह जी’ के नाम से उनको स्मरण किया जाता है।

Conclusion:

श्री गुरु अर्जुन देव जी के योगदान ने सिख धर्म को मानवता, न्याय, और समाजिक समरसता के माध्यम से सजीव किया। उनका धार्मिक और सामाजिक उपकार आज भी सिख समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है और उन्हें गुरु अर्जुन देव जी के प्रति आभार और समर्पण की याद किया जाता है।

एण्ड्रोक्लीज़ और शेर Summary In Hindi

एण्ड्रोक्लीज़ और शेर Summary In Hindi

“एण्ड्रोक्लीज़ और शेर” एक प्रमुख यूनानी नाटक है जो एस्किलस द्वारा लिखा गया था और पुरानी यूनानी तथा विश्वसाहित्य के महत्वपूर्ण हिस्से में माना जाता है। इस नाटक में मुख्य कथाओं में एण्ड्रोक्लीज़ का वीरता और शेर का विजय कार्य उद्घाटित है, जिससे वे महान योद्धाओं के रूप में प्रसिद्ध होते हैं। “एण्ड्रोक्लीज़ और शेर” नृत्य, कला, और जीवन के महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार करने का एक माध्यम होता है और इसे क्लासिकल ग्रीक नाटकों का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। Read More Class 7 Hindi Summaries.

एण्ड्रोक्लीज़ और शेर Summary In Hindi

एण्ड्रोक्लीज़ और शेर पाठ का सार

‘एण्ड्रोक्लीज़ और शेर’ कहानी में लेखक ने गुलामी को एक अभिशाप बताते हुए यह भी स्पष्ट किया है कि किए हुए उपकार का फल अवश्य मिलता है। पशु भी उन पर किए गए अहसान को कभी नहीं भूलते हैं। इस कहानी में रोम में गुलामी की प्रथा का वर्णन किया गया है।

एण्ड्रोक्लीज़ रोम का एक गुलाम था। उसका मालिक उसे रोम से अफ्रीका ले गया। वहाँ उससे खूब काम लिया जाता था, परन्तु एण्ड्रोक्लीज़ को न पहनने को पूरे कपड़े मिलते और न ही पेट भर भोजन। वह मालिक के बर्ताव से बहुत तंग आ चुका था। एक दिन वह घर से भाग निकला। वह अंधेरे में रास्ता भूल गया और भटकते-भटकते पहाड़ की खोह में जाकर लेट गया, जहाँ वह सो गया। एक दिल दहलाने वाली दहाड़ सुन कर वह जाग उठा। उसने देखा कि एक शेर रास्ते रोके खड़ा था। उसने देखा शेर बारबार अपना पंजा चाट रहा था। उसके पंजे से खून बह रहा था। पंजे में एक बड़ा काँटा चुभा हुआ था। एण्ड्रोक्लीज़ ने शेर के पंजे से काँटा निकाल दिया। थोड़ी देर में पंजे से खून बहना बन्द हो गया।

एण्ड्रोक्लीज़ और शेर Summary image

शेर लंगड़ाता हुआ वहाँ से चला गया। थोड़ी देर बाद शेर ने एक मरा हुआ खरगोश लाकर वहाँ डाल दिया। एण्ड्रोक्लीज़ ने खरगोश को भूनकर खा लिया। दोनों दोस्त बनकर खोह में रहने लगे। एण्ड्रोक्लीज़ को वहाँ कई महीने बीत गए। जंगल के जीवन से तंग आकर एक दिन वह वहाँ से चल दिया। कुछ दिनों बाद एण्ड्रोक्लीज़ को सिपाहियों ने पकड़ लिया। उसे कानून के अनुसार मौत की सज़ा सुनाई गई। भूखे शेर को पिंजरे से निकालकर कर दंगल के मैदान में छोड़ दिया गया। एण्ड्रोक्लीज़ को दंगल के मैदान में लाया गया। शेर दहाड़ता हुआ आगे बढ़ा, पर एण्ड्रोक्लीज़ को देखकर एकाएक रुक गया। शेर एण्ड्रोक्लीज़ के सामने पालतू कुत्ते के समान दुम हिलाने लगा। यह वही शेर था जिसके साथ वह खोह में रहा था। उसने शेर की पीठ थपथपाई।

बादशाह ने एण्ड्रोक्लीज़ को अपने पास बुलाया। उसने बादशाह को सारा किस्सा सुनाया। बादशाह सुनकर दंग रह गया। उसने सोचा पशु भी अपने ऊपर किये उपकार को नहीं भूलते। उसने एण्ड्रोक्लीज़ को आज़ाद कर दिया। शेर भी उसे सौंप दिया गया। शेर उसके साथ पालतू कुत्ते की तरह रहता था।

Conclusion:

“एण्ड्रोक्लीज़ और शेर” एक महत्वपूर्ण यूनानी नाटक है जो महाकवि में दिग्दर्शित किए गए वीरता, धर्म, और विजय के महत्वपूर्ण पहलुओं को प्रस्तुत करता है। एस्किलस की रचना ने साहित्य और नाटक के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान किया है और इसके मुख्य पात्रों की वीरता और संघर्ष के माध्यम से हमें जीवन के अद्वितीय पहलुओं को समझाने का अवसर प्रदान किया है। इस नाटक का संदेश है कि विश्वास, साहस, और समर्पण के साथ हर कठिनाई को पार किया जा सकता है।

हिम्मती सुमेरा Summary In Hindi

हिम्मती सुमेरा Summary In Hindi

“हिम्मती सुमेरा” एक हिन्दी कहानी है जो एक साहसी और संघर्षशील लड़की, सुमेरा, की कहानी पर आधारित है। यह कहानी सुमेरा के जीवन के विभिन्न पहलुओं को दिखाती है, जिसमें उसके सपनों की पूर्ति के लिए उसकी हिम्मत और संघर्ष का महत्वपूर्ण संदेश होता है। यह कहानी समर्पण और संघर्ष के आदर्श को प्रकट करती है। Read More Class 7 Hindi Summaries.

हिम्मती सुमेरा Summary In Hindi

हिम्मती सुमेरा पाठ का सार

‘हिम्मती सुमेरा’ एक ऐसे गरीब बालक की कहानी है जो अपनी मेहनत और लगन से एक सफल व्यापारी बन गया। सुमेरा पुराने से बस्ते को लेकर पढ़ने स्कूल जाता है। उसकी माँ की मृत्यु हो गई है तथा पिता बस अड्डे पर सामान ढोने का काम करता है। पिता उसे सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते पर चलने की शिक्षा देते हैं। एक दिन शाम को सुमेरा घर का काम-काज करने के बाद पढ़ रहा था कि तीन-चार आदमी उसके पिता को उठा कर लाए जो सिर चकराने से बेहोश हो गए थे। उन्हें अस्पताल ले जाया गया। जहाँ वे दो दिन बेहोश रहे। बेहोशी टूटने पर पता चला कि उन के दोनों पैरों को लकवा मार गया था। दस वर्षीय सुमेरा समझ नहीं रहा था कि अब क्या करें?

सुमेरा ने दिन में स्कूल, सुबह पिता की सेवा और बाकी समय में सब्जी बेचने का निश्चय किया। उसके पास पैसे नहीं थे। उसने अपनी सारी दशा अपने मास्टर जी को बताई तो उन्होंने उसे तीस रुपए उसकी हिम्मत से खुश होकर इनाम में दिए परन्तु सुमेरा ने इन्हें उधार समझकर लौटाने के लिए कहा।

सुमेरा ने मंडी से तीस रुपए के संतरे खरीदे और सवेरे-सवेरे सब्जी वालों के बीच में उन्हें गा-गा कर बेचता रहा। शाम तक उसने छत्तीस रुपए के संतरे बेच लिए तथा बचे हुए चार संतरे वह पिता के खाने के लिए ले आया। अगले दिन फिर उसने यही किया। उसकी बिक्री ठीक हो रही थी कि शाम को साइकिल पर थैला लटकाए कोई वसूला करने आया। पास वाले ने उसे साइकिल वाले के थैले में दो रुपए डालने के लिए कहा पर उसने नहीं डाले। दो दिन बाद कमेटी की गाड़ी आई और उस का सामान उठा कर ले गए क्योंकि उस के पास लाइसेंस नहीं था।

सवेरा होने पर वह दिल्ली के राजा के घर गया पर पहेरदारों ने उसे अन्दर नहीं जाने दिया। वह वही बैठा रहा। राजा बड़ी-सी मोटर में बाहर निकला पर सुमेरा के वहाँ तक पहुँचने से पहले ही गाड़ी वहाँ से निकल गई। सुमेरा वहीं बैठकर राजा के लौटने की प्रतीक्षा करने लगा। शाम को राजा की गाड़ी आते देख वह दोनों हाथ फैलाकर सड़क के बीच में राजा की गाड़ी के सामने खड़ा हो गया। गाड़ी रोककर ड्राइवर ने उसे डाँटा तो वह राजा साहब की खिड़की के सामने कुछ कह कर सुबकने लगा। तब राजा साहब ने उसे कोठी में बुलाकर सब कुछ पूछा और सुमेरा को दस रुपए देकर अगले दिन आने के लिए कहा। अगले दिन राजा साहब ने उसे लाइसेंस और सौ रुपए दिए कि इन से वह अपना काम शुरू करे।

सुमेरा ने कठिन परिश्रम से अपना काम बढ़ाया, पिता का इलाज कराया, उन्हें दुकान पर बैठा कर वह पढ़ने जाता। उसने दो कमरों का पक्का मकान और दिल्ली के सब्जी बाज़ार में अपनी दुकान भी बना ली।

Conclusion:

“हिम्मती सुमेरा” कहानी द्वारा हमें सुमेरा जैसे साहसी और संघर्षशील व्यक्तित्व के महत्व को समझाया जाता है, जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए कभी हार नहीं मानता। इस कहानी का संदेश है कि संघर्ष और समर्पण से हम किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं और अपने लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं। “हिम्मती सुमेरा” हमें सपनों की पूर्ति के लिए निरंतर प्रयास करने का प्रेरणास्पद संदेश देती है।

Prakasam Jalam Pole Anu Summary in Malayalam

Prakasam Jalam Pole Anu Summary in Malayalam

M. T. Vasudevan Nair’s short story “Prakasam Jalam Pole Anu” (English: Light is like Water) is the Summary of a young rural man’s growth. The protagonist, Raju, goes to the city after the death of his mother. In the city, he faces new experiences and ideas. As a result of these experiences, he gains a new perspective on life.

Prakasam Jalam Pole Anu Summary in Malayalam

കഥാസംഗ്രഹം

മാഡ്രിഡിലെ ജനത്തിരക്കിൽ സ്വന്തം ബാല്യത്തിലെ നഷ്ടങ്ങളിൽ മനം നൊന്ത് കഴിയുന്ന രണ്ട് കുട്ടികൾ. ഒമ്പതും, ഏഴും വയസ്സുള്ള ടോട്ടോയും ജോവലും. കട്ജിസ് ഇന്ത്യാനയിലെ സുന്ദരമായ പ്രകൃതിഭംഗി തുളുമ്പുന്ന തുറ മുഖവും കടലും ഒത്തുചേർന്ന് മനോഹരമായേക്കാവുന്ന ദിനങ്ങൾ അവർ സ്വപ്നം കാണുന്നു.

Prakasam Jalam Pole Anu Summary in Malayalam 1
ഗബ്രിയേൽ ഗാർസിയ മാർകസ്

മുതിർന്നവരുടെ ഗൃഹാതുരത്വം തുളു സുന്ന വിവരണങ്ങളിൽ നിന്ന് അവരുടെ സ്വപ്നങ്ങളിൽ ചേക്കേറിയ അവരുടെ ജന്മനാട്. ജലം, അതുമാത്രമാണ് അവരുടെ നാട്ടിലെ ഏറ്റവും വലിയ സമ്പത്ത്.

അനന്തമായ കടലിന് അരികെ അതിലും വിശാലമായ സ്വപ്നങ്ങളുടെ കൂടെ കഴിയാൻ അവർ കൊതിച്ചു. മാഡി ഡിൽ സ്ഥിതിഗതികൾ തികച്ചും വ്യത്യസ്തമായിരുന്നു. കടലും, കപ്പലു മില്ലാതെ ജലം നൽകുന്ന സാന്ത്വനമില്ലാതെ,

അവരുടെ കുട്ടിക്കാലം വരണ്ടുപോയിരുന്നു. കുട്ടികളുടെ ഭാവന പലപ്പോഴും വന്യമാണ്. ഏതെങ്കിലും ഒരു സൂച നയിൽ നിന്ന് അവർ സങ്കല്പ സാമാജ്യങ്ങൾ തന്നെ സൃഷ്ടിച്ചുകളയും. അവരുടെ അതിരുവിട്ട ഭാവനകൾ പലപ്പോഴും മുതിർന്നവരുടെ വിമർശനങ്ങൾ ക്ഷണിച്ചുവരുത്തും.

അതുകൊണ്ടുതന്നെ അവരുടെ ഭാവനാ പ്രവർത്തനങ്ങൾ പലപ്പോഴും രഹസ്യാത്മകമായിരിക്കും. ടോട്ടോയും ജോവലും തങ്ങളുടെ സ്വപ്നയാത്രകൾ എല്ലാം രഹസ് മാക്കി വെച്ചു. ഇവിടെ കഥാകൃത്തിന്റെ സവിശേഷമായൊരു പ്രയോഗം കൊണ്ടുകൂടിയാണ് കുട്ടികൾ തങ്ങളുടെ വിശേഷപ്പെട്ട യാത്രകൾക്ക് തയ്യാറാകുന്നത്.

സ്കൂളിൽ പഠനത്തിൽ മികവു പുലർത്തിയാൽ അവ രുടെ ആവശ്യമായ തുഴവെള്ളം വാങ്ങികൊടുക്കാമെന്ന് അച്ഛനെ കൊണ്ട് അവർ സമ്മതിപ്പിച്ചു. വാക്ക് പാലിക്കാൻ ഒരു അലുമിനിയം വള്ളം തന്നെ അയാളവർക്ക് വാങ്ങികൊടുത്തു. കുട്ടികൾ ആ വള്ളം മുകളിലേക്കെത്തിച്ചു. എല്ലാ ബുധനാഴ്ചകളിലും മാതാപിതാക്കൾ സിനിമ കാണാൻ പോകുമ്പോൾ അവർ ആ വള്ളം സ്വീകരണ മുറി യിൽ ഇറക്കി.

ഏറ്റവും വലിയ ബൾബുതന്നെ പൊട്ടിച്ച് അതിൽ നിന്നുള്ള പ്രകാശത്തിന്റെ കുത്തൊഴുക്കിൽ നിറഞ്ഞ് ഒഴുകി തുഴഞ്ഞു നടന്നു. പ്രകാശം ജലം പോലെയാണെന്ന കഥാകൃത്തിന്റെ സവിശേ ഷമായൊരു പ്രയോഗം, പ്രായോഗിക ജീവിതത്തിൽ അവർ പകർത്തി.

അച്ഛനമ്മമാർ തിരിച്ചുവരുവോളം അവരാ സ്വീകരണമുറിയിലും മറ്റു മുറികളിലും വെളിച്ചപ്രവാഹത്തിൽ സ്വയം തുഴഞ്ഞുനടന്നു. കടലിൽ നാവികർ ദിശ കണ്ടെത്താൻ സഹായിക്കുന്ന ഉപകരണങ്ങളും അവർ ഇതിനകം സ്വന്തമാക്കി കഴിഞ്ഞിരുന്നു. മാസങ്ങൾ കഴിഞ്ഞതോടെ, ടോട്ടോയും, ജോവലും തങ്ങൾക്ക് മുങ്ങൽ പരീക്ഷണത്തിനുള്ള ഉപകരണങ്ങൾ കൂടി വാങ്ങിത്തരണമെന്ന് ആവശ്യവുമായെത്തി.

അതും ലഭിച്ചുകഴിഞ്ഞതോടെ ഓരോ ബുധനാ ഴ്ചകളിലും പണ്ട് കാണാതായി മറഞ്ഞുപോയ പലതും അവർ മുങ്ങി ഗബിയേൽ ഗാർസിയ മാർകെസ് കഥാസംഗ്രഹം മാഡ്രിഡിലെ ജനത്തിരക്കിൽ സ്വന്തം ബാല്യത്തിലെ നഷ്ടങ്ങളിൽ മനം നൊന്ത് കഴിയുന്ന രണ്ട് കുട്ടികൾ. ഒമ്പതും, ഏഴും വയസ്സുള്ള ടോട്ടോയും ജോവലും. കട്ജിസ് ഇന്ത്യാനയിലെ സുന്ദരമായ പ്രകൃതിഭംഗി തുളുമ്പുന്ന തുറ മുഖവും കടലും ഒത്തുചേർന്ന്

മനോഹരമായേക്കാവുന്ന ദിനങ്ങൾ അവർ സ്വപ്നം കാണുന്നു. മുതിർന്നവരുടെ ഗൃഹാതുരത്വം തുളു മ്പുന്ന വിവരണങ്ങളിൽ തുളുമ്പുന്ന നിന്ന് അവരുടെ സ്വപ്നങ്ങളിൽ ചേക്കേറിയ അവരുടെ ജന്മനാട്. ജലം, അതുമാത്രമാണ് അവരുടെ നാട്ടിലെ ഏറ്റവും വലിയ സമ്പത്ത്.

അനന്തമായ കടലിന് അരികെ അതിലും വിശാലമായ സ്വപ്നങ്ങളുടെ കൂടെ കഴിയാൻ അവർ കൊതിച്ചു. മാഡി ൽ സ്ഥിതിഗതികൾ തികച്ചും വ്യത്യസ്തമായിരുന്നു. കടലും, കപ്പലു മില്ലാതെ ജലം നൽകുന്ന സാന്ത്വനമില്ലാതെ, അവരുടെ കുട്ടിക്കാലം വരണ്ടുപോയിരുന്നു. കുട്ടികളുടെ ഭാവന പലപ്പോഴും വന്യമാണ്. ഏതെങ്കിലും ഒരു സൂച നയിൽ നിന്ന് അവർ സങ്കല്പ സാമാജ്യങ്ങൾ തന്നെ സൃഷ്ടിച്ചുകളയും.

അവരുടെ അതിരുവിട്ട ഭാവനകൾ പലപ്പോഴും മുതിർന്നവരുടെ വിമർശനങ്ങൾ ക്ഷണിച്ചുവരുത്തും. അതുകൊണ്ടുതന്നെ അവരുടെ ഭാവനാത്മക പ്രവർത്തനങ്ങൾ പലപ്പോഴും രഹസ്യാത്മകമായിരിക്കും. – ടോട്ടോയും ജോവലും തങ്ങളുടെ സ്വപ്നയാത്രകൾ എല്ലാം രഹസ് മാക്കി വെച്ചു. ഇവിടെ കഥാകൃത്തിന്റെ സവിശേഷമായൊരു പ്രയോഗം കൊണ്ടുകൂടിയാണ് കുട്ടികൾ തങ്ങളുടെ

വിശേഷപ്പെട്ട യാത്രകൾക്ക് തയ്യാറാകുന്നത്. സ്കൂളിൽ പഠനത്തിൽ മികവു പുലർത്തിയാൽ അവ രുടെ ആവശ്യമായ തുഴവെള്ളം വാങ്ങികൊടുക്കാമെന്ന് അച്ഛനെ കൊണ്ട് അവർ സമ്മതിപ്പിച്ചു. വാക്ക് പാലിക്കാൻ ഒരു അലുമിനിയം വള്ളം തന്നെ അയാളവർക്ക് വാങ്ങികൊടുത്തു.

കുട്ടികൾ ആ വള്ളം മുകളിലേക്കെത്തിച്ചു. എല്ലാ ബുധനാഴ്ചകളിലും മാതാപിതാക്കൾ സ കാണാൻ പോകുമ്പോൾ അവർ ആ വള്ളം സ്വീകരണ മുറി യിൽ ഇറക്കി. ഏറ്റവും വലിയ ബൾബുതന്നെ പൊട്ടിച്ച് അതിൽ നിന്നുള്ള പ്രകാശത്തിന്റെ കുത്തൊഴുക്കിൽ നിറഞ്ഞ് ഒഴുകി തുഴഞ്ഞു നടന്നു. പ്രകാശം ജലം പോലെയാണെന്ന കഥാകൃത്തിന്റെ ഷമായൊരു പ്രയോഗം, പ്രായോഗിക ജീവിതത്തിൽ അവർ പകർത്തി. 

അച്ഛനമ്മമാർ തിരിച്ചുവരുവോളം അവരാ സ്വീകരണമുറിയിലും മറ്റു മുറികളിലും വെളിച്ചപ്രവാഹത്തിൽ സ്വയം തുഴഞ്ഞുനടന്നു. കടലിൽ നാവികർ ദിശ കണ്ടെത്താൻ സഹായിക്കുന്ന ഉപകരണങ്ങളും അവർ ഇതിനകം സ്വന്തമാക്കി കഴിഞ്ഞിരുന്നു. മാസങ്ങൾ കഴിഞ്ഞതോടെ, ടോട്ടോയും, ജോവലും

തങ്ങൾക്ക് മു ങ്ങൽ പരീക്ഷണത്തിനുള്ള ഉപകരണങ്ങൾ കൂടി വാങ്ങിത്തരണമെന്ന് ആവശ്യവുമായെത്തി. അതും ലഭിച്ചുകഴിഞ്ഞതോടെ ഓരോ ബുധനാ ഴ്ചകളിലും പണ്ട് കാണാതായി മറഞ്ഞുപോയ പലതും അവർ മുങ്ങി തപ്പി കണ്ടെത്തി എടുക്കാൻ തുടങ്ങി. ഒടുവിൽ കൂട്ടുകാരെ മുഴു വൻ വിളിച്ച് നൽകുന്ന ഒരു പാർട്ടിയിൽ പ്രവാഹം എല്ലാ അതിരുകളും ലംഘിച്ച പുറത്തേക്ക് കുതിച്ചൊഴുകുന്നു.

അത് മട്ടുപ്പാവുകളും, അനേകം പടികളും മറികടന്ന് ഒഴുകിയൊഴുകി തെരുവിലെത്തുകയും പിന്നീട് പട്ടണത്തിന്റെ നേർക്ക് കുതിച്ചൊഴുകുകയും ചെയ്തു. ഫ്ളാറ്റിനകത്ത് അഗ്നിശമന സേനാംഗങ്ങൾ പ്രകാശത്തിന്റെ മേൽക്കൂര മുട്ടുന്ന പ്രവാഹമാണ് കണ്ടത്.

എലിമെന്ററി സ്കൂളിലെ കൂട്ടുകാരും ഗൃഹോപകരണങ്ങളും ആ പ്രകാശ കുത്തൊഴുക്കിൽ ഒഴു കിനടന്നു. ടോട്ടോയും ജോവലും തങ്ങളുടെ വള്ളത്തിൽ ഒരു തീരമ ണഞ്ഞു കിട്ടാൻ ശ്രമിക്കുകയായിരുന്നു. കുട്ടികളുടെ കുസൃതിത്തന്നെ യാണ് പ്രകാശപ്രവാഹത്തിനു കാരണമായത്. ഒന്നിച്ച് ഒരേ സമയം ഒരു പാട് വിളക്കുകൾ

പ്രവർത്തിപ്പിച്ചതുകൊണ്ടാണ് ഈ പ്രവാഹമുണ്ടായ ത്. ശാസ്ത്രത്തിന്റെ വിശകലന സിദ്ധാന്തങ്ങൾക്കപ്പുറം ഭാവനയുടെ വന്യമായ സഞ്ചാരപുറങ്ങളിലേക്ക് മാർകേസ് ഈ കഥയിലൂടെ വായ നക്കാരെ കൊണ്ടുപോകുന്നു. മാജിക്കൽ റിയലിസത്തിന്റെ വശ്യത അനു ഭവിപ്പിക്കുന്നു.

Conclusion:

By the end of the story, Raju has matured into an individual. He has come to understand the world better and his own place in it. He has also gained a new perspective on his mother’s death.

राखी की चुनौती Summary In Hindi

राखी की चुनौती Summary In Hindi

“राखी की चुनौती” एक हिन्दी कहानी है जो बंधन के महत्वपूर्ण त्योहार, रक्षाबंधन, के मौके पर आधारित है। इस कहानी में एक बहन अपने भाई से एक विशेष चुनौती देती है, जो उनके बंधन की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाती है। यह कहानी परिवार के बंधनों और स्नेह के महत्व को प्रमोट करने का संदेश देती है। Read More Class 7 Hindi Summaries.

राखी की चुनौती Summary In Hindi

राखी की चुनौती कविता का सार

राखी की चुनौती Summary In Hindi images

‘राखी की चुनौती’ कविता सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित है, जिस में कवयित्री ने रक्षा-बंधन के पर्व पर देश को स्वतंत्र कराने के लिए जेल में बन्द अपने भाई को राखी की चुनौती देते हुए भारत माँ की स्वाधीनता को वापस लाने के लिए कहा है। कवयित्री लिखती है कि आज राखी के दिन बहन मन में, बिजली बादलों में, घटा आकाश में और लता वन में फूली नहीं समा रही है। कहीं राखियाँ, कहीं वर्षा की बूंदे, कहीं फूल खिले हैं। पूर्णिमा के इस राखी पर्व पर उन्हें बधाई है, जिन्हें भाई मिले हैं। बहन घर में है पर उसका भाई यहाँ नहीं है, भादों है पर घटा छाई नहीं है, प्रसन्नता न होते हुए भी दुःख भी नहीं है। भाई भारत माता को गुलामी के बन्धनों से छुड़ाने के लिए जेल गया है। इसलिए गर्व तो है परन्तु भाई को राखी नहीं बांध सकती, वह होता तो खुशी दुगुनी हो जाती। यहाँ आनन्द मन रहा है और भाई जेल में तप रहा है, यही बहन को दुःख है। उस के पास भाई के लिए लोहे की हथकड़ी जैसी राखी है। वह चाहती है कि इस विषम परिस्थिति में यदि उसके भाई को कुछ भी लज्जा है तो वह इसका कैदी बन कर देखे कि राखी का बन्धन कैसा होता है? यही उसकी राखी उसे आज चुनौती दे रही है।

Conclusion:

“राखी की चुनौती” एक दिलचस्प हिन्दी कहानी है जिसमें रक्षाबंधन के पर्व पर आधारित है। कहानी में एक बहन अपने भाई से एक अद्वितीय चुनौती देती है और उसे अपने प्रेम और समर्पण के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करती है। इस कहानी का संदेश है कि परिवार के बंधन और प्यार हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं और हमें उनकी रक्षा करने के लिए समर्पित रहना चाहिए।