“Do Kalakar” can be translated to English as “Two Artists” or “Two Performers.” This phrase suggests a reference to two individuals involved in some form of artistic or creative endeavor, such as actors, musicians, painters, or performers of any kind. Read More Class 10 Hindi Summaries.
दो कलाकार Summary In Hindi
दो कलाकार लेखिका परिचय
सुप्रसिद्ध कथा लेखिका श्रीमती मन्नू भंडारी का जन्म 3 अप्रैल, सन् 1931 ई० को मध्य प्रदेश के भानपुरा नामक स्थान में हुआ था। सन् 1949 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक स्तर की परीक्षा पास करने के बाद एम० ए० हिंदी में शिक्षा प्राप्त कर वे कलकत्ता तथा दिल्ली में अध्यापन कार्य करती रही हैं। इन्होंने उपन्यास तथा कहानियाँ लिखी हैं। इनकी रचनाओं में सामाजिक जीवन का यथार्थ चित्रण प्राप्त होता है। पारिवारिक एवं नारी जीवन की विसंगतियों को इन्होंने मार्मिक रूप से प्रस्तुत किया है। अपने पात्रों के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण में ये अधिक सफल रही हैं। इनका विवाह हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार श्री राजेंद्र यादव के साथ हुआ था। मन्नू भंडारी ने अपने पति के साथ मिलकर ‘एक इंच मुस्कान’ की रचना की थी। इनकी कहानियाँ मानव-मन को बहुत गहरे से छू लेती हैं। लेखिका को सन् 2008 में व्यास सम्मान प्रदान किया गया था।
रचनाएँ-कहानी संग्रह-मैं हार गई, एक प्लेट सैलाब, यही सच है, तीन निगाहों की तस्वीर।
उपन्यास-आपका बंटी, स्वामी, महाभोज।
श्रीमती मन्नू भंडारी छठे दशक की प्रतिष्ठित कथाकार हैं। इस दशक में हिंदी कहानी में जो मोड़ आया, मन्नू भंडारी जी का उसमें योगदान उल्लेखनीय रहा है। उनकी कहानियों में घटनाओं का विस्तार कम तथा पात्रों का मानसिक विश्लेषण अधिक मिलता है। इनकी कहानियाँ अनेक प्रकार की हैं, कुछ कहानियों में जीवन की विसंगतियों को उभारा गया है, किन्हीं कहानियों में नारी जीवन का वर्णन है जो किन्हीं अन्य कहानियों में पारिवारिक जीवन को अभिव्यक्ति मिली है। इनके उपन्यास ‘यही सच है’ पर आधारित ‘रजनी गंधा’ फ़िल्म बनी थी जिसे फ़िल्मफेयर अवार्ड में सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म घोषित किया गया था। इन्होंने ‘स्वामी’ फ़िल्म के संवाद भी लिखे थे जो बासु चैटर्जी के द्वारा निर्देशित की गई थी।
दो कलाकार कहानी का सार
‘दो कलाकार’ कहानी लेखिका के “मैं हार गई” कहानी संग्रह से इस संकलन में संकलित किया गया है। इस कहानी में लेखिका ने एक महिला चित्रकार तथा एक महिला समाज सेविका की सोच का विश्लेषण करते हुए यह बताने का प्रयास किया है कि जीवन के सुख-दुःख सीधे जुड़कर ही कला उत्कृष्ट बनती है। चित्रा और अरुणा दो सहेलियाँ थीं तथा छात्रावास के एक ही कमरे में रहती थीं। चित्रा को चित्रकला का बहुत शौक था तथा अरुणा की समाज-सेवा में रुचि थी। चित्रा जब भी अपना कोई चित्र बनाती तो सबसे पहले अरुणा को दिखाती थी। अरुणा को चपरासियों के बच्चों को पढ़ाने, किसी बीमार की सेवा करने आदि में ही अधिक आनन्द आता था। एक बार फुलिया दाई का बच्चा बीमार हुआ तो अरुणा उसकी देखभाल में लगी रही और जब उस बच्चे की मृत्यु हो गई तो उसकी मृत्यु के दिन अरुणा ने खाना भी न खाया और दो-तीन दिन तक बहुत उदास भी रही थी।
चित्रा पढ़ाई समाप्त कर कला के विशेष अध्ययन के लिए विदेश जाना चाहती थी जबकि अरुणा यहीं रहना चाहती थी। वह कागज़ पर निर्जीव चित्र बनाने के स्थान पर समाज सेवा द्वारा कुछ लोगों के जीवन को सुधारना श्रेष्ठ मानती थी। अरुणा परीक्षा के दिनों में भी बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए भटकती रहती थी। दोनों के आचार-विचार, रहनसहन, रुचियों आदि में पर्याप्त भिन्नता होते हुए भी जो स्नेह था उससे समस्त छात्रावास की छात्राओं को ईर्ष्या थी। अन्त में चित्रा का विदेश जाने का दिन भी आ गया। छात्रावास में उसे शानदार विदाई पार्टी मिली।
अरुणा ने सुबह से ही उसका सामान ठीक कर दिया था। चित्रा गुरु जी से मिलने गई तो तीन बजे तक न लौटी। पांच बजे की गाड़ी से उसे जाना था। अरुणा उसे खुद जाकर देखने का विचार बना ही रही थी कि तभी हड़बड़ाती-सी चित्रा आ गई और अपनी देरी का कारण बताते हुए कहने लगी की गर्ग स्टोर के सामने पेड़ के नीचे जो भिखारिन बैठती थी वह मर गई थी तथा उसके दोनों बच्चे उसके सूखे शरीर से चिपक कर बुरी तरह रो रहे थे- वह उसी दृश्य का स्कैच बनाने के लिए वहाँ रुक गई थी। चित्रा का यह कथन सुनते ही अरुणा वहाँ से चुपके से खिसक गई थी और फिर वह चित्रा को विदा करने न आ सकी थी।
विदेश जाकर चित्रा अपनी कला की साधना में लीन हो गई। भिखमंगी तथा दो अनाथ बच्चों का उसका चित्र बहुत प्रशंसित हुआ। कुछ दिन उसका अरुणा से पत्र-व्यवहार होता रहा फिर वह भी बंद हो गया। तीन वर्ष बाद वह भारत आई तो उसका बहुत स्वागत हुआ। दिल्ली में उसके चित्रों की प्रदर्शनी लगी तो अरुणा उससे मिलने आई। उसके साथ आठ और दस साल के दो बच्चे भी थे। चित्रा के पूछने पर उसने उन बच्चों को अपने बच्चे बताया।
चित्रा ने बच्चों को प्रदर्शनी दिखाई और अंत में वे उसी चित्र के पास पहुँचे जिसमें भिखारिन और दो बच्चे थे। चित्रा ने अरुणा को बताया कि इसी चित्र ने उसे इतनी प्रसिद्धि दिलाई थी। बच्चे इस चित्र में मृत भिखारिन को देखकर उसके बच्चों के बारे में सोचने लगे थे। अरुणा ने बच्चों को अपने पति के साथ प्रदर्शनी देखने के लिए भेज दिया तथा स्वयं चित्रा के साथ बातचीत करने लगी। चित्रा ने उससे फिर उन बच्चों के विषय में जब पूछा तो अरुणा ने उसे बताया कि वे बच्चे चित्र में मरी हुई भिखारिन के अनाथ बच्चे थे तो चित्रां आश्चर्यचकित रह गई।
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