दो कलाकार Summary In Hindi

दो कलाकार Summary In Hindi

Do Kalakar” can be translated to English as “Two Artists” or “Two Performers.” This phrase suggests a reference to two individuals involved in some form of artistic or creative endeavor, such as actors, musicians, painters, or performers of any kind. Read More Class 10 Hindi Summaries.

दो कलाकार Summary In Hindi

दो कलाकार लेखिका परिचय

सुप्रसिद्ध कथा लेखिका श्रीमती मन्नू भंडारी का जन्म 3 अप्रैल, सन् 1931 ई० को मध्य प्रदेश के भानपुरा नामक स्थान में हुआ था। सन् 1949 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक स्तर की परीक्षा पास करने के बाद एम० ए० हिंदी में शिक्षा प्राप्त कर वे कलकत्ता तथा दिल्ली में अध्यापन कार्य करती रही हैं। इन्होंने उपन्यास तथा कहानियाँ लिखी हैं। इनकी रचनाओं में सामाजिक जीवन का यथार्थ चित्रण प्राप्त होता है। पारिवारिक एवं नारी जीवन की विसंगतियों को इन्होंने मार्मिक रूप से प्रस्तुत किया है। अपने पात्रों के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण में ये अधिक सफल रही हैं। इनका विवाह हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार श्री राजेंद्र यादव के साथ हुआ था। मन्नू भंडारी ने अपने पति के साथ मिलकर ‘एक इंच मुस्कान’ की रचना की थी। इनकी कहानियाँ मानव-मन को बहुत गहरे से छू लेती हैं। लेखिका को सन् 2008 में व्यास सम्मान प्रदान किया गया था।

रचनाएँ-कहानी संग्रह-मैं हार गई, एक प्लेट सैलाब, यही सच है, तीन निगाहों की तस्वीर।
उपन्यास-आपका बंटी, स्वामी, महाभोज।

श्रीमती मन्नू भंडारी छठे दशक की प्रतिष्ठित कथाकार हैं। इस दशक में हिंदी कहानी में जो मोड़ आया, मन्नू भंडारी जी का उसमें योगदान उल्लेखनीय रहा है। उनकी कहानियों में घटनाओं का विस्तार कम तथा पात्रों का मानसिक विश्लेषण अधिक मिलता है। इनकी कहानियाँ अनेक प्रकार की हैं, कुछ कहानियों में जीवन की विसंगतियों को उभारा गया है, किन्हीं कहानियों में नारी जीवन का वर्णन है जो किन्हीं अन्य कहानियों में पारिवारिक जीवन को अभिव्यक्ति मिली है। इनके उपन्यास ‘यही सच है’ पर आधारित ‘रजनी गंधा’ फ़िल्म बनी थी जिसे फ़िल्मफेयर अवार्ड में सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म घोषित किया गया था। इन्होंने ‘स्वामी’ फ़िल्म के संवाद भी लिखे थे जो बासु चैटर्जी के द्वारा निर्देशित की गई थी।

दो कलाकार कहानी का सार

‘दो कलाकार’ कहानी लेखिका के “मैं हार गई” कहानी संग्रह से इस संकलन में संकलित किया गया है। इस कहानी में लेखिका ने एक महिला चित्रकार तथा एक महिला समाज सेविका की सोच का विश्लेषण करते हुए यह बताने का प्रयास किया है कि जीवन के सुख-दुःख सीधे जुड़कर ही कला उत्कृष्ट बनती है। चित्रा और अरुणा दो सहेलियाँ थीं तथा छात्रावास के एक ही कमरे में रहती थीं। चित्रा को चित्रकला का बहुत शौक था तथा अरुणा की समाज-सेवा में रुचि थी। चित्रा जब भी अपना कोई चित्र बनाती तो सबसे पहले अरुणा को दिखाती थी। अरुणा को चपरासियों के बच्चों को पढ़ाने, किसी बीमार की सेवा करने आदि में ही अधिक आनन्द आता था। एक बार फुलिया दाई का बच्चा बीमार हुआ तो अरुणा उसकी देखभाल में लगी रही और जब उस बच्चे की मृत्यु हो गई तो उसकी मृत्यु के दिन अरुणा ने खाना भी न खाया और दो-तीन दिन तक बहुत उदास भी रही थी।

चित्रा पढ़ाई समाप्त कर कला के विशेष अध्ययन के लिए विदेश जाना चाहती थी जबकि अरुणा यहीं रहना चाहती थी। वह कागज़ पर निर्जीव चित्र बनाने के स्थान पर समाज सेवा द्वारा कुछ लोगों के जीवन को सुधारना श्रेष्ठ मानती थी। अरुणा परीक्षा के दिनों में भी बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए भटकती रहती थी। दोनों के आचार-विचार, रहनसहन, रुचियों आदि में पर्याप्त भिन्नता होते हुए भी जो स्नेह था उससे समस्त छात्रावास की छात्राओं को ईर्ष्या थी। अन्त में चित्रा का विदेश जाने का दिन भी आ गया। छात्रावास में उसे शानदार विदाई पार्टी मिली।

अरुणा ने सुबह से ही उसका सामान ठीक कर दिया था। चित्रा गुरु जी से मिलने गई तो तीन बजे तक न लौटी। पांच बजे की गाड़ी से उसे जाना था। अरुणा उसे खुद जाकर देखने का विचार बना ही रही थी कि तभी हड़बड़ाती-सी चित्रा आ गई और अपनी देरी का कारण बताते हुए कहने लगी की गर्ग स्टोर के सामने पेड़ के नीचे जो भिखारिन बैठती थी वह मर गई थी तथा उसके दोनों बच्चे उसके सूखे शरीर से चिपक कर बुरी तरह रो रहे थे- वह उसी दृश्य का स्कैच बनाने के लिए वहाँ रुक गई थी। चित्रा का यह कथन सुनते ही अरुणा वहाँ से चुपके से खिसक गई थी और फिर वह चित्रा को विदा करने न आ सकी थी।

विदेश जाकर चित्रा अपनी कला की साधना में लीन हो गई। भिखमंगी तथा दो अनाथ बच्चों का उसका चित्र बहुत प्रशंसित हुआ। कुछ दिन उसका अरुणा से पत्र-व्यवहार होता रहा फिर वह भी बंद हो गया। तीन वर्ष बाद वह भारत आई तो उसका बहुत स्वागत हुआ। दिल्ली में उसके चित्रों की प्रदर्शनी लगी तो अरुणा उससे मिलने आई। उसके साथ आठ और दस साल के दो बच्चे भी थे। चित्रा के पूछने पर उसने उन बच्चों को अपने बच्चे बताया।

चित्रा ने बच्चों को प्रदर्शनी दिखाई और अंत में वे उसी चित्र के पास पहुँचे जिसमें भिखारिन और दो बच्चे थे। चित्रा ने अरुणा को बताया कि इसी चित्र ने उसे इतनी प्रसिद्धि दिलाई थी। बच्चे इस चित्र में मृत भिखारिन को देखकर उसके बच्चों के बारे में सोचने लगे थे। अरुणा ने बच्चों को अपने पति के साथ प्रदर्शनी देखने के लिए भेज दिया तथा स्वयं चित्रा के साथ बातचीत करने लगी। चित्रा ने उससे फिर उन बच्चों के विषय में जब पूछा तो अरुणा ने उसे बताया कि वे बच्चे चित्र में मरी हुई भिखारिन के अनाथ बच्चे थे तो चित्रां आश्चर्यचकित रह गई।

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अशिक्षित का हृदय Summary In Hindi

अशिक्षित का हृदय Summary In Hindi

Ashad Ka Hriday” can be translated to English as “The Heart of Ashad” or “Ashad’s Heart.” Ashad Ka Hriday is a heartfelt and poignant story that touches upon the complexities of human emotions. Written by renowned author, the story revolves around the protagonist, Ashad, and his journey of self-discovery and love. This captivating tale beautifully captures the essence of the human heart, delving into themes of passion, longing, and the pursuit of happiness. Read More Class 10 Hindi Summaries.

अशिक्षित का हृदय Summary In Hindi

अशिक्षित का हृदय लेखक परिचय

बहुमुखी प्रतिभा संपन्न श्री विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ का जन्म सन् 1890 ई० में तत्कालीन पंजाब प्रांत के अंबाला जिले में हुआ था। इन्हें हिंदी, उर्दू, पंजाबी, अंग्रेज़ी भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। इन्होंने भारतीय संस्कृति, धर्म, साधना का गहनता से अध्ययन किया था। इन्होंने कानपुर से मैट्रिक की शिक्षा प्राप्त की थी। संगीत तथा फोटोग्राफी में भी इनकी अत्यधिक रुचि थी। इनका देहावसान सन् 1944 ई० में हो गया था। कौशिक जी मूलरूप से कहानीकार थे। उन्होंने आदर्शवादिता और भावुकता से परिपूर्ण कहानियां लिखी थीं।

रचनाएँ – विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ एक महान् साहित्य सेवक थे। उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से अनेक साहित्यिक विधाओं का विकास किया। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
कहानी संग्रह – मणिमाला, चित्रशाला
पत्र-संग्रह – दूबे जी की डायरी
उपन्यास – माँ, भिखारिणी।

विश्वंभरनाथ शर्मा आधुनिक साहित्य के एक श्रेष्ठ साहित्यकार थे। हिंदी भाषा के गद्य के क्षेत्र में उनका योगदान महान् है। इनका गद्य-साहित्य समाज केंद्रित है। इन्होंने अपने गद्य-साहित्य में समकालीन समाज का यथार्थ चित्रण किया। इन्होंने समाज के सुख-दुःख, गरीबी, शोषण आदि का यथार्थ वर्णन किया है। इनका सारा जीवन साहित्य-सेवा में तथा समाज-उद्धार करने में लगा रहा।

अशिक्षित का हृदय कहानी का सार

‘अशिक्षित का हृदय’ कहानी के लेखक श्री विश्वंभरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ हैं। इस कहानी में लेखक ने एक अशिक्षित ग्रामीण के हृदय में निहित सच्चे प्रेम की झलक प्रस्तुत की है।

मनोहर सिंह नाम का एक ग्रामीण व्यक्ति था। उसने अपना यौवन काल फौज में व्यतीत किया था। अब वह अकेला रहता था। गाँव में दूर के एक-दो रिश्तेदार अवश्य थे, उन्हीं के यहां अपना भोजन बना लेता था। उसका कहीं आनाजाना नहीं था। अपने टूटे-फूटे मकान में रहता था और ईश्वर भजन किया करता था।

एक वर्ष पूर्व उसके मन में खेती कराने की इच्छा पैदा हुई थी। अतः उसने ठाकुर शिवपाल सिंह से कुछ भूमि लगान पर लेकर खेती कराई भी थी पर वर्षा न होने के कारण कुछ पैदावार न हुई। ठाकुर शिवपाल सिंह को लगान न दिया जा सका। उसे जो सरकार से पेंशन मिलती थी, वह उस पर खर्च हो जाती थी। अतः कुछ बचत न थी।

ठाकुर शिवपाल सिंह ऋण की रकम वापस लेने में कुछ कठोर हो जाया करता था। अंत में जब ठाकुर साहब को लगान न मिला तो उन्होंने मनोहर सिंह का नीम का पेड़ गिरवी रख लिया। मनोहर सिंह की झोंपड़ी के द्वार पर लगा यह पेड़ बहुत पुराना था। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि इसे मनोहर सिंह के पिता ने लगवाया था।

एक दिन ठाकुर शिवपाल सिंह अपना ऋण वापस लेने के लिये मनोहर सिंह के द्वार पर आ पहुँचा। मनोहर सिंह ने विनम्र भाव से कहा कि अभी रुपये उसके पास नहीं थे। फिर रुपयों को कोई खतरा नहीं था क्योंकि उसका नीम का पेड़ गिरवी रखा हुआ था। ठाकुर शिवपाल सिंह ने कहा कि डेढ़ साल का ब्याज मिलाकर कुल 25 रुपये बनते थे। वे रुपये अदा कर दो अन्यथा इसके बदले पेड़ कटवा लिया जायेगा। मनोहर सिंह घबराकर बोला कि पेड़ को कटवाया न जाए। ऋण अदा न होने पर वह पेड़ ठाकुर शिवपाल सिंह का हो जाएगा। ठाकुर ने मनोहर सिंह की बात नहीं मानी और कहा-“हमारा जो जी चाहेगा करेंगे। तुम्हें फिर कुछ कहने का अधिकार नहीं रहेगा।”

अशिक्षित का हृदय कहानी Summary

मनोहर सिंह को रुपया अदा करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया गया था। उसने रुपया चुका देने की हर संभव कोशिश की। बहुत दौड़-धूप की पर किसी ने भी रुपए नहीं दिए। वह पेड़ की शीतल छाया में लेटा हुआ पेड़ के उपकारों का स्मरण कर रहा था। वह पेड़ उसे बहुत प्रिय था। उसके कट जाने की कल्पना मात्र से उसका हृदय काँप उठता था।

वह उठकर बैठ गया और वृक्ष की ओर मुँह करके बोला-“यदि संसार में किसी ने मेरा साथ दिया है तो तूने। यदि संसार में किसी ने नि:स्वार्थ भाव से मेरी सेवा की है तो तूने। ……. पिता कहा करते थे-बेटा मनोहर, यह मेरे हाथ की निशानी है। इससे जब-जब तुझे और तेरे बाल-बच्चों को सुख पहुँचेगा तब-तब मेरी याद आएगी। पिता का देहांत हुए चालीस वर्ष व्यतीत हो गए……. इस संसार में तू ही एक पुराना मित्र है। तुझे वह दुष्ट काटना चाहता है।” हाँ, काटेगा क्यों नहीं। देखू कैसे काटता है।”

मनोहर सिंह अपने विचारों में डूबा हुआ बड़बड़ा ही रहा था कि उसी समय तेजा नाम का एक पंद्रह-सोलह वर्ष का लड़का आया। उसने आते ही मनोहर से पूछा कि वह किससे बातें कर रहा था। मनोहर सिंह ने तेजा को आप बीती कह सुनाई। तेजा बालक था इसलिए वह मनोहर सिंह की गंभीरता का अनुमान न लगा सका लेकिन जब उसे पेड़ की कहानी तथा उसके महत्त्व का पता चला तो उसके हृदय में मनोहर सिंह के प्रति सहानुभूति जागी। तेजा सिंह के लिए 25 रुपये की रकम बहुत बड़ी थी। दस-पाँच रुपये की बात होती तो वह कहीं से ला देता। मनोहर सिंह तेजा सिंह की सहानुभूति पाकर प्रभावित हो गया। उसने उसे आशीर्वाद दिया।

एक सप्ताह बीत गया। मनोहर सिंह रुपये अदा नहीं कर सका। आठवें दिन दोपहर के समय शिवपाल सिंह ने मनोहर सिंह को बुलवाया। मनोहर सिंह तलवार बग़ल में दबाए अकड़ता हुआ ठाकुर साहब के सामने आ पहुँचा। ठाकुर साहब ने कहा कि अब पेड़ उनका था। अतः उसे कटवाने का अधिकार भी उनका था। मनोहर सिंह पेड़ न कटवाने का अनुरोध करता रहा। पर ठाकुर साहब के कान पर तक न रेंगी। मनोहर सिंह भी आकर अपने पेड़ के नीचे चारपाई बिछाकर बैठ गया।

दोपहर ढलने पर दो-चार आदमी कुल्हाड़ियाँ लेकर आते दिखाई दिए। मनोहर सिंह ने तलवार निकाल ली और कहा-“संभल कर आगे बढ़ना। जो किसी ने भी पेड़ में कुल्हाड़ी लगाई, तो उसकी जान और अपनी जान एक कर दूंगा।” मज़दूर भाग खड़े हुए। शिवपाल सिंह घटना से परिचित होते ही दो लठबंद आदमियों तथा मज़दूरों के साथ वहाँ पहुँचे। मनोहर सिंह तथा ठाकुर शिवपाल सिंह में वाद-विवाद हुआ। मनोहर सिंह ने क्रोध से चुनौती भरे स्वर में कहा”ठाकुर साहब, जो आप सच्चे ठाकुर हैं, तो इस पेड़ को कटवा ले, जो मैं ठाकुर हूँगा, तो इसे न कटने दूंगा।” इसी समय तेजा सिंह ने मनोहर सिंह को रुपये लाकर दिये।

अब ठाकुर साहब पेड़ कटवाने की जिद्द पूरी करना चाहते थे। अतः उन्होंने रुपये लेने से इन्कार कर दिया। इसी बीच गाँव के लोग इकट्ठे हो गए। गाँव के लोगों के साथ तेजा सिंह का पिता भी आया था। जब उसे पता चला कि रुपये तेजा सिंह ने दिए थे और वह ये रुपये चुराकर लाया था। मनोहर सिंह ने रुपये लौटा दिए। शिवपाल सिंह को पता लग गया था कि मनोहर सिंह रुपये नहीं दे सकता। अतः उन्होंने कहा कि अगर मनोहर सिंह रुपए अभी दे दे तो वह स्वीकार कर लेंगे।

तेजा सिंह आगे बढ़ा और उसने अपनी अंगूठी ठाकुर साहब की तरफ बढ़ाते हुए कहा कि ‘यह एक तोले की है। इस पर बापू का कोई अधिकार नहीं क्योंकि यह मुझे अपनी नानी से प्राप्त हुई है।’ तेजा सिंह की इस भावना को देखकर उसके पिता आगे बढ़े और ठाकुर साहब को पच्चीस रुपये दे दिये।

ठाकुर साहब के चले जाने के बाद मनोहर सिंह ने तेजा को छाती से लगा लिया और सबके सामने कहा-भाइयो। मैं तुम सबके सामने यह पेड़ तेजा सिंह को देता हूँ। तेजा को छोड़कर इस पर किसी का कोई अधिकार न रहेगा।

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ममता कहानी Summary In Hindi

ममता Summary In Hindi

Mamata” is a Hindi word that can be translated to English as “Motherly Love” or “Maternal Affection.” It represents the deep and nurturing love that a mother has for her child. This affectionate bond between a mother and her child is often seen as one of the most profound and unconditional forms of love in human relationships. Read More Class 10 Hindi Summaries.

ममता कहानी Summary In Hindi

ममता कहानी लेखक-परिचय

जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिंदी-साहित्य के प्रतिभावान कवि और लेखक थे। वे छायावाद के प्रवर्तक थे। उन्होंने हिंदी-साहित्य की कहानी, नाटक, उपन्यास, आलोचना आदि विभिन्न विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई। उनका जन्म सन् 1889 ई० में काशी के सुंघनी साहू नामक प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था। इनके पिता देवी प्रसाद साहू काव्य-प्रेमी थे। जब उनका देहांत हुआ तब प्रसाद जी की आयु केवल आठ वर्ष की थी। परिवारजनों की मृत्यु, आत्म संकट, पत्नी वियोग आदि कष्टों को झेलते हुए भी ये काव्य साधना में लीन रहे। काव्य साधना करते हुए तपेदिक के कारण उनका देहांत 15 नवंबर, सन् 1937 में हुआ था।

रचनाएँ- जयशंकर प्रसाद ने बड़ी मात्रा में साहित्य की रचना की थी। इन्होंने पद्य एवं गद्य दोनों क्षेत्रों में अनुपम रचनाएँ प्रस्तुत की थीं, जो निम्नलिखित हैं-
काव्य-‘चित्राधार’, ‘कानन कुसुम’, ‘झरना’, ‘लहर’, ‘प्रेम पथिक’, ‘आँसू’, ‘कामायनी’।
नाटक-‘चंद्रगुप्त’, ‘स्कंदगुप्त’, ‘अजातशत्रु’, ‘जनमेजय का नागयज्ञ’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘करुणालय’, ‘कामना’, ‘कल्याणी’, ‘परिणय’, ‘प्रायश्चित्त’, ‘सज्जन’, ‘राज्यश्री’, ‘विशाख’ और ‘एक चूंट’।
कहानी-‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘इंद्रजाल’, ‘आकाशदीप’, ‘आंधी’।
उपन्यास- कंकाल, तितली, इरावती (अपूर्ण)।

जयशंकर प्रसाद जी ने हिंदी-साहित्य को एक नई दिशा प्रदान की थी और हिंदी की प्रत्येक विधा को समृद्ध किया था। प्रसाद जी का योगदान सचमुच महत्त्वपूर्ण था। प्रसाद जी की भाषा-शैली परिष्कृत, स्वाभाविक, तत्सम शब्दावली प्रधान एवं सरस थी। छोटे-छोटे पदों में गंभीर भाव भर देना और उनमें संगीत लय का विधान करना उनकी शैली की प्रमुख विशेषता थी। वस्तुतः उनके साहित्य में सर्वतोन्मुखी प्रतिभा की झलक दिखाई देती है।

ममता कहानी का सारांश

‘ममता’ शीर्षक कहानी हिंदी के प्रमुख छायावादी कवि एवं नाटककार श्री जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखी गई है। इस कहानी में ऐतिहासिक आधार पर ममता के काल्पनिक चरित्र द्वारा भारत की नारी के आदर्श, कर्त्तव्य पालन, त्याग, तपस्वी जीवन का भावपूर्ण वर्णन किया है । इस कहानी में प्रसाद जी ने यह भी स्पष्ट करना चाहा है कि बड़े-बड़े सम्राटों को बनाने में जिन लोगों का हाथ रहा है, इतिहास ने उन्हें एकदम भुला दिया है। यह इतिहास का एवं हम सब का उनके प्रति अन्याय है, कृतघ्नता है।

ममता रोहतास दुर्ग के मंत्री चूडामणि की जवान विधवा बेटी थी। बेटी के भविष्य के प्रति चुडामणि सदैव चिंतित रहा करते थे। उन दिनों देश में शेरशाह सूरी का शासन था। चूड़ामणि अपने दुर्ग की सुरक्षा के प्रति सदा चिंतित रहते थे। इसी उद्देश्य के लिए उन्होंने शेरशाह से मित्रता करने की कोशिश की। शेरशाह का भी अपने स्वार्थ के लिए रोहतास दुर्ग पर अधिकार करना ज़रूरी था। इस कारण शेरशाह ने चूड़ामणि को सोने-चाँदी और हीरे जवाहरात से भरे थाल रिश्वत के रूप में भेंट किये। चूड़ामणि की बेटी ममता यह देख हैरान रह गयी। उसने अपने पिता से वह भेंट लौटा देने का आग्रह किया पर चूड़ामणि ऐसा न कर सके।

इस संधि को हुए अभी एक दिन भी नहीं बीता था कि शेरशाह के सिपाही स्त्री-वेश में रोहतास दुर्ग में प्रवेश कर गए। चूड़ामणि को जब पता चला तो उसने आपत्ति की, किंतु पठान सैनिकों ने उनकी हत्या कर दी और दुर्ग पर अपना अधिकार कर लिया। रोहतास का खजाना लूट लिया गया। ममता की खोज हुई पर वह अवसर पाकर वहाँ से भाग जाने से सफल हो गई।

रोहतास दुर्ग से भागकर ममता किसी तरह काशी पहुँच गई। वहाँ वह बौद्ध विहार के खंडहरों में झोंपड़ी बना कर उसमें एक तपस्विनी के समान जीवन बिताते हुए रहने लगी। शीघ्र ही अपनी सेवा-भावना से उसने आस-पास के गांवों के लोगों के मन जीत लिए। इस कारण ममता का गुजर-बसर ठीक तरह से होने लगा। एक रात जब ममता पूजा पाठ में मग्न थी उसने अपनी झोंपड़ी के द्वार पर एक भयानक-सी शक्ल वाले व्यक्ति को खड़े देखा। ज्यों ही ममता ने द्वार बंद करना चाहा उस व्यक्ति ने रात भर झोंपड़ी में आश्रय की भीख माँगी। उस व्यक्ति ने बताया कि वह मुग़ल हैं। अत्यधिक थक जाने के कारण चल नहीं सकता। रात बिताने के बाद वह चला जाएगा। मुग़ल का नाम सुनकर ममता की आँखों के सामने अपने पिता की हत्या का दृश्य उभर आया।

उसने चाहा कि वह आगंतुक को आश्रय देने से इन्कार कर दे किंतु अतिथि सेवा को अपना धर्म समझ कर उसने उस मुग़ल को अपनी झोंपड़ी में रात बिताने की आज्ञा दे दी और स्वयं खंडहरों में जाकर रात बिताई। रात बीती, सुबह हुई। ममता ने अपनी झोंपड़ी के आस-पास कई घुड़सवारों को घूमते हुए देखा। ममता उन्हें देख कर डर गई। तभी झोंपड़ी में रात बिताने वाले मुग़ल ने झोंपड़ी से बाहर जाकर पुकारा-‘मिर्ज़ा मैं इधर हूँ।’ ममता सहमी हुई यह सब देख रही थी। वह खंडहरों में ही छिपी रही। कुछ देर बाद ममता ने उस मुग़ल को यह कहते सुना- ‘वह बुढ़िया पता नहीं कहाँ चली गई है। उसे कुछ दे नहीं सका। यह स्थान याद रखना और झोंपड़ी के स्थान पर उसका घर बनवा देना।’ मुग़ल सैनिकों के वहाँ से चले जाने के बाद ममता खंडहरों से बाहर आई।

चौसा के मैदान में मुग़लों और पठानों के बीच हुए युद्ध को काफ़ी दिन बीत गये। ममता अब सत्तर साल की बुढ़िया हो गई थी। वह कुछ बीमार थी। गाँव की कुछ स्त्रियाँ उसके आस-पास बैठी थीं। तभी बीमार ममता ने बाहर से किसी को कहते सुना-जो चित्र मिर्जा ने बनाकर दिया था, वह तो इसी स्थान का होना चाहिए। अब किस से पूछू कि वह बुढ़िया कहाँ गई। ममता ने उस घुड़सवार को पास बुलवा कर कहा-“मुझे मालूम नहीं था कि वह शाहजहाँ हुमायूँ था या कि कौन। पर एक दिन एक मुग़ल इस झोंपड़ी में अवश्य रहा था। वे जाते-जाते मेरा घर बनवा देने की आज्ञा दे गया था। मैं जीवन भर अपनी झोंपडी के खोदे जाने के डर से डरती रही। पर अब मुझे कोई चिंता नहीं। अब मैं झोंपड़ी छोड़ कर जा रही हूँ। तुम इसकी जगह मकान बनाओ या महल, मेरे लिए कोई महत्त्व नहीं।” इतना कहते ममता के प्राण पखेरू उड़ गए।

कुछ दिनों में ही उस स्थान पर एक अष्टकोण मंदिर बन कर तैयार हो गया। उस पर लगाये शिलालेख पर लिखा था’सातों देश के नरेश हुमायूँ ने एक दिन यहाँ विश्राम किया था। उनके पुत्र अकबर ने यह गगनचुंबी मंदिर बनवाया।’ प्रसाद जी कहानी के अंत में लिखते हैं-‘ पर उस पर ममता का कहीं नाम नहीं था।’

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जड़ की मुसकान Summary In Hindi

जड़ की मुसकान Summary In Hindi

The title “Jad Ki Muskaan” suggests a poetic exploration of the concept of a smile or happiness expressed by a tree. This could symbolize the beauty and serenity of nature or the idea that even inanimate objects like trees can convey a sense of joy or contentment. Read More Class 10 Hindi Summaries.

जड़ की मुसकान Summary In Hindi

जड़ की मुसकान कवि परिचय

श्री हरिवंशराय बच्चन हिंदी-कविता में हालावाद के प्रवर्तक कवि माने जाते हैं। इनका जन्म 21 नवंबर, सन् 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के प्रयाग (इलाहाबाद) के कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा म्युनिसिपल स्कूल, कायस्थ पाठशाला तथा गवर्नमेंट स्कूल में हुई। सन् 1938 ई० में इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एम० ए० किया तक तथा सन् 1942 से सन् 1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत रहे। इसके बाद ये इंग्लैंड चले गये। वहां इन्होंने सन् 1952 से 1954 तक रहकर कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पीएच० डी० की उपाधि प्राप्त की थी। सन् 1955 ई० में भारत सरकार ने इन्हें विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के पद पर नियुक्त किया।

ये राज्यसभा के सदस्य भी रहे। इन्हें सोवियतलैंड तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ‘दशद्वार से सोपान तक’ रचना पर इन्हें सरस्वती सम्मान दिया गया। इनकी प्रतिभा और साहित्य सेवा को देखकर भारत सरकार ने इन्हें ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया। 18 जनवरी, सन् 2003 में ये इस संसार को छोड़कर चिरनिद्रा में लीन हो गए।

रचनाएँ– हरिवंशराय बच्चन जी बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। उन्होंने अनेक विधाओं पर सफल लेखनी चलाई है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

काव्य संग्रह– मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल-अंतर, मिलन यामिनी, सतरंगिणी, आरती और अंगारे, नए पुराने झरोखे, टूटी-फूटी कड़ियाँ, बुद्ध और नाचघर।
आत्मकथा चार खंड- क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक।
अनुवाद- हैमलेट, जनगीता, मैकबेथ।
डायरी- प्रवास की डायरी।

जड़ की मुसकान कविता का सार

‘जड़ की मुसकान’ शीर्षक कविता में बच्चन जी ने स्पष्ट किया है कि किस प्रकार लोग अपने मूल आधार को भूल कर स्वयं को ही महत्व देने लगते हैं। एक वृक्ष का तना जड़ को सदा जीवन से भयभीत ज़मीन में गड़ी रहने वाली कह कर उसका उपहास करता है तथा स्वयं को उससे अधिक श्रेष्ठ बताता है। डालियाँ स्वयं को तने से भी अधिक अच्छा बताती हैं क्योंकि तना तो एक ही स्थान पर खड़ा रहता है जबकि वे दिशा-दिशा में जाकर हवा में डोलती रहती हैं।

पत्तियाँ स्वयं को डाल से अधिक महत्त्वपूर्ण इसलिए मानती हैं क्योंकि वे मर-मर्र स्वर में बोल भी सकती हैं। फूल सर्वत्र सुगंध फैलाने वाले, भँवरों को आकर्षित करने वाले, अपनी सुंदरता से सबको अपनी ओर खींचने वाले जानकर स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं । इन सब की बातों को सुन कर जड़ केवल मुसकराती है, क्योंकि वह जानती है कि इन सब का अस्तित्व उसके कारण ही है। यदि वह सलामत है तो वृक्ष भी है। जैसे मज़बूत नींव मज़बूत भवन बनाती है, वैसे हो मज़बूत जड़ वृक्ष को भी हरा-भरा रखती है।

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गाता खग कविता Summary In Hindi

गाता खग कविता Summary In Hindi

Gata Khag” is a Hindi poem written by the famous Indian poet Maithili Sharan Gupt. The poem revolves around the theme of freedom and the desire for liberation. “Gata Khag” can be roughly translated to “The Departing Bird” in English. The poem depicts a bird that yearns to break free from its cage and soar into the open sky. The bird represents the human spirit’s desire for freedom and the longing to break free from constraints, whether they are physical, societal, or personal. Read More Class 10 Hindi Summaries.

गाता खग कविता Summary In Hindi

गाता खग कवि परिचय

छायावादी हिंदी-काव्य के उन्नायकों में श्री सुमित्रानंदन पंत का नाम प्रमुख है। इनका बचपन का नाम गुसाई दत्त था। अल्मोड़ा के निकट कौसानी नामक ग्राम में 20 मई, सन् 1900 ई० को उत्पन्न पंत जी को अपनी माँ का प्रेम नहीं मिल पाया था क्योंकि इन्हें जन्म देते ही वह सदा के लिए इस संसार को छोड़ गई थी। इनका जीवन प्रकृति की गोद में बीता था। इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल से ही प्राप्त की थी।

केवल नौ वर्ष की आयु में ही संस्कृत का ज्ञान प्राप्त कर लेने के पश्चात् इन्होंने सन् 1919 में म्योर सेंट्रल कॉलेज, इलाहाबाद में शिक्षा प्राप्ति के दौरान अंग्रेजी और बंगला की काव्य-कृतियों से परिचय प्राप्त किया। अंग्रेज़ी के शैली, वर्ड्सवर्थ, टैनीसन, कॉलरिज तथा बंगला के रविंद्र नाथ टैगोर की सौंदर्यात्मक रचनाओं ने इन्हें बहुत प्रभावित किया।

सन् 1921 ई० में गाँधी जी के असहयोग आंदोलन के प्रभावस्वरूप इन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी लेकिन राजनीति में सक्रिय भाग न लेकर अपनी काव्य-साधना जारी रखी थी। सन् 1930 ई० में ये कलाकांकर के महाराज के स्नेहभाजन बन कर रहने के लिए उनके पास ही चले गए और दस वर्ष तक इन्होंने ‘रूपाभ’ नामक पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया था पर किन्हीं कारणों से यह एक वर्ष से अधिक न चल सकी। कुछ वर्ष तक रेडियो से संबंधित रहने के पश्चात् इन्होंने स्वतंत्र रूप से लेखन कार्य किया। इन्होंने रूस, जर्मनी, फ्रांस आदि देशों की यात्राएँ भी कीं। इन्हें कार्ल मार्क्स, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गाँधी, अरविंद जैसी महान् विभूतियों के दर्शन ने अत्यन्त प्रभावित किया। सन् 1977 ई० में इनका देहांत हो गया था।

रचनाएँ-उच्छवास, ग्रंथि, वीणा, पल्लव, गुंजन, युगांत, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्ण-किरण, स्वर्ण-धूलि, युगपथ, उत्तरा, शिल्पी, वाणी, कला और बूढ़ा चांद, लोकायतन आदि। पंत जी के काल में प्रकृति-चित्रण के अतिरिक्त सौंदर्य-चित्रण, मानव प्रेम, शोषितों की पीड़ा, गांधीवादी विचारधारा आदि का प्रभाव भी दिखाई देता है। इसके काव्य में गीति-तत्व की प्रमुखता है। भाषा इनकी तत्सम प्रधान होते हुए भी तद्भव, देशज, विदेशी आदि शब्दों से युक्त है।

गाता खग कविता का सारांश

‘गाता खग’ कविता में सुमित्रानंदन पंत ने प्रकृति के माध्यम से मानव-जीवन, उसकी कामनाओं, कार्य-व्यापारों, नश्वरता आदि का वर्णन किया है। प्रभातकालीन आकाश में विचरण करते पक्षियों का कलरव, जीवन के सौंदर्य और सुख का संदेश देता है। अनंत आकाश में छाए अंधकार में टिमटिमाते तारे मानव जीवन की करुणा और दुःख का संदेश देते प्रतीत होते हैं। सुबह सवेरे खिले फूल वातावरण को सुगंधित करते हुए मानव को अपना जीवन प्रसन्नता और आनंद से व्यतीत करने की प्रेरणा देते हैं। सागर अथवा नदी में उठने वाली लहरों से मानव को निरंतर गतिमान रहते हुए साधना करने के लिए प्रेरित किया है। लहरों की सिहरन, किनारे से टकरा कर चूर-चूर हो कर सागर में समा जाना आसीम का असीम में समा जाना है।

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हम राज्य लिए मरते हैं Summary In Hindi

हम राज्य लिए मरते हैं Summary In Hindi

The Hindi phrase “Hum rajy liye mrte hai” can be translated to English as “We die for power” or “We die for the sake of a kingdom.” This phrase suggests that some individuals are willing to go to extreme lengths, even sacrificing their lives, in pursuit of political power or authority. Read More Class 10 Hindi Summaries.

हम राज्य लिए मरते हैं Summary In Hindi

हम राज्य लिए मरते हैं कवि परिचय

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त भारतीयता के अमर गायक के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका जन्म सन् 1886 ई० में चिरगाँव जिला झांसी में हुआ था। उनके पिता श्री रामचरण गुप्त भगवान् राम के परम भक्त थे।

माता दयालु स्वभाव की थीं। इनके गुणों का प्रभाव उन पर भी पड़ना स्वाभाविक था। वे भी राम के अनन्य उपासक बन गए। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई। बाद में इन्होंने झांसी के मेकडॉनल स्कूल से शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने संस्कृत, हिंदी और बंगला के साहित्य का अध्ययन किया था और आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से इन्होंने काव्य-रचनाएँ की थीं जो ‘सरस्वती’ पत्रिका में छपने लगी थीं।

गुप्त जी पर गाँधी जी के व्यक्तित्व का भी प्रभाव था। वे अपने जीवन काल में बारह वर्षों तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे। आगरा विश्वविद्यालय ने डी० लिट् की उपाधि से तथा भारत सरकार ने पद्मभूषण अलंकार से इन्हें सम्मानित किया था। सन् 1964 ई० में गुप्त जी का देहावसान हुआ।

रचनाएँ-भारत भारती, रंग में भंग, नहुष, साकेत, यशोधरा, द्वापर, जयद्रथ वध, जय भारत, सिद्धराज, पंचवटी आदि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। ‘झंकार’ उनके गीतों का संग्रह है। ‘साकेत’ नामक महाकाव्य पर गुप्त जी को हिंदी-साहित्य सम्मेलन, प्रयाग का मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था। मानवतावादी दृष्टिकोण, राष्ट्रीयता की भावना, प्रकृति के विविध रूपों का चित्रण, भारतीय नारी का त्याग-भावना, संस्कृति प्रेम तथा नवीनता के प्रति आस्था आदि गुप्त जी के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ हैं। अपनी प्रारंभिक रचना ‘भारत भारती’ में उन्होंने राष्ट्र के अतीत, वर्तमान और भविष्य पर अपने विचार प्रकट किए हैं।

हम राज्य लिए मरते हैं कविता का सार

‘हम राज्य लिए मरते हैं’ शीर्षक कविता श्री मैथिलीशरण गुप्त की रचना ‘साकेत’ के नवम् सर्ग से ली गई है, जिसमें उर्मिला राज्य के कारण उत्पन्न गृह-कलह से दुःखी होकर किसानों के सुखमय जीवन की प्रशंसा करती है।

उर्मिला के अनुसार हम लोग तो राज्य के लिए लड़ते-झगड़ते रहते हैं जबकि सच्चा राज्य तो किसान करते हैं। उनके खेतों में अन्न है, वे संपन्न हैं, पत्नी सहित घूमते-फिरते हैं और संसार का सुख भोगते हैं। उनके पास गाय, उदारता, सहनशीलता, परिश्रम करने की शक्ति है। उनका अपने ऊपर गर्व करना, उत्सव-त्योहार मनाना, निडरतापूर्वक विचरण करना अत्यंत सहज कार्य है।

विद्वान् चाहे व्यर्थ में धर्म पर तर्क-वितर्क करते रहें परन्तु किसान तर्क-वितर्क छोड़ कर धर्म के मूल को समझते हैं। उर्मिला सोचती है कि यदि हम किसान होते तो राज्य की उलझनों से उत्पन्न मुसीबतों को कौन सहन करता? उन्हीं किसानों के सुख देखकर आज हमारे दुःख दूर हो सकते हैं हम राज्य के लिए ही परस्पर लड़-मर रहे हैं।

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नीति के दोहे Summary In Hindi

नीति के दोहे Summary In Hindi

Niti ke Dohe” are a set of moral and ethical teachings encapsulated in poetic verses. They offer guidance on how to lead a virtuous and principled life. The dohe emphasize the importance of honesty, humility, compassion, and selflessness. They also caution against the pitfalls of ego, greed, and attachment to worldly possessions. Read More Class 10 Hindi Summaries.

नीति के दोहे Summary In Hindi

नीति के दोहे रहीम कवि परिचय

रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। इनका जन्म सन् 1553 ई० में हुआ था। इनके पिता अकबर बादशाह के अभिभावक मुग़ल सरदार बैरम खाँ खानखाना थे। अकबर के राज्यकाल में ये अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक थे। ये संस्कृत, अरबी, फारसी, ब्रज, अवधी आदि भाषाओं के विद्वान् तथा हिंदी काव्य के रचयिता थे। ये अत्यंत पानी तथा परोपकारी व्यक्ति थे। गोस्वामी तुलसीदास इनके प्रिय मित्र थे। इन्होंने मुग़ल साम्राज्य के विस्तार के लिए अनेक युद्ध भी लड़े थे। जहाँगीर के शासनकाल में इन्हें राजद्रोह के अपराध में बंदी बना लिया गया था तथा इनकी सारी जागीर भी छीन ली गई थी। इनकी वृद्धावस्था बहुत ग़रीबी में बीती थी। सन् 1625 ई० में इनका देहांत हो गया था।

रचनाएँ-इनकी प्रमुख रचनाएँ रहीम सतसई, बरवै नायिका भेद, श्रृंगार सोरठ, मदनाष्टक और रास पंचाध्यायी हैं। इनकी भाषा अत्यंत सरल, सहज तथा शैली भावानुरूप है। इन्होंने दोहा, सोरठा, सवैया, कवित्त, बरवै छंदों का प्रयोग किया है।

नीति के दोहे बिहारी कवि परिचय

रीतिकाल के सप्रसिद्ध कवि बिहारी का जन्म सन् 1603 ई० में बसुआ गोबिंदपुर गाँव (ग्वालियर) में हुआ था। इनके पिता का नाम केशवराय था। बिहारी ने अपनी शिक्षा महात्मा नरहरिदास के आश्रम में रह कर ग्रहण की थी। इनका विवाह मथुरा में हुआ था तथा इनकी पत्नी भी विदुषी एवं कवयित्री थी। बिहारी को मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने अपने दरबार में आमंत्रित किया था। जयपुर नरेश महाराजा जयसिंह के ये दरबारी कवि थे। एक बार जयपुर के राजा जयसिंह अपनी नव विवाहिता पत्नी के राग-रंग में इतने अधिक तल्लीन हो गए थे कि अपना समस्त राज-काज भी भुला बैठे थे तब बिहारी ने उन्हें निम्नलिखित दोहा लिख कर भिजवाया था-

“नाहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहि काल।
अलि कली ही सौ बंध्यौ, आगे कौन हवाल।”

इस दोहे ने महाराज को सचेत कर दिया था तथा वे राज-काज में रुचि लेने लगे थे। बिहारी रीति काल के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। सन् 1664 ई० में वृंदावन में इनका स्वर्गवास हो गया था।

रचनाएँ: बिहारी द्वारा रचित केवल ‘सतसई’ ही मिलती है। इसमें सात सौ तेरह दोहे हैं। कुछ विद्वानों ने दोहों की संख्या सात सौ छब्बीस भी मानी है। इस रचना में मुख्य रूप से श्रृंगार रस की प्रधानता है। कवि ने श्रृंगार रस के अतिरिक्त नीति, वैराग्य, भक्ति आदि से संबंधित कुछ दोहों की रचना की है। बिहारी सतसई की लोकप्रियता से प्रभावित होकर इसकी अनेक टीकाएँ भी की गई हैं। संस्कृत, उर्दू, फारसी, खड़ी बोली, अंग्रेज़ी, मराठी आदि भाषाओं में भी इसके अनुवाद किए गए हैं।

नीति के दोहे वृन्द कवि परिचय

वृन्द रीतिकाल के ‘सूक्तिकार’ कवियों में प्रमुख माने जाते हैं। इनका जन्म सन् 1685 ई० में मेड़ता (मेवाड़) जोधपुर में हुआ था। ये कृष्णगढ़ नरेश महाराज राजसिंह के गुरु थे। इनके संबंध में प्रसिद्ध है कि ये कृष्णगढ़ नरेश के साथ औरंगज़ेब की सेना में ढाका तक गए थे। इनके वंशजों के बारे में कहा जाता है कि वे अब भी कृष्णगढ़ में रहते हैं। इनका देहावसान सन् 1765 ई० में हुआ था।

रचनाएँ-वृन्द की प्रमुख रचना ‘वृन्द सतसई’ है। इसमें नीति से संबंधित सात सौ दोहे हैं। इनकी अन्य रचनाएँ ‘श्रृंगार शिक्षा’, ‘पवन पचीसी’, ‘हितोपदेश संधि’, ‘वचनिका’ तथा ‘भावपंचाशिका’ हैं। इनकी काव्य भाषा अत्यंत सरल, सहज, सरस तथा भावपूर्ण है। अपने काव्य में इन्होंने सूक्तियों का बहुत सुंदर तथा सटीक प्रयोग किया है।

नीति के दोहे रहीम दोहों का सार

पाठ्य-पुस्तक में रहीम जी के चार दोहे संकलित हैं। पहले दोहे में कवि ने कहा है कि अच्छे समय में तो सभी मित्र बन जाते हैं परंतु सच्चा मित्र वही होता है जो मुसीबत के समय साथ देता है। दूसरे दोहे में कवि एकनिष्ठ भाव से एक की ही साधना करने पर बल देते हैं। तीसरे दोहे में स्वार्थ की अपेक्षा परमार्थ करने का लाभ बताया गया है तथा चौथे दोहे में बड़ी वस्तु देखकर छोटी वस्तु की उपयोगिता को नहीं भूलने के लिए कहा गया है।

नीति के दोहे बिहारी दोहों का सार

पाठ्यपुस्तक में बिहारी के चार दोहे संकलित हैं। पहले दोहे में धन-संपत्ति के नशे, दूसरे दोहे में मनुष्य के आशावादी होने का, तीसरे दोहे में एक जैसे स्वभाव वालों के परस्पर मेल-जोल से रहने तथा चौथे दोहे में कवि ने गुणों के महत्त्व का वर्णन किया है।

नीति के दोहे वृन्द दोहों का सार

पाठ्यपुस्तक में वृन्द के चार दोहे संकलित हैं। पहले दोहे में कवि ने परिश्रम का महत्त्व बताया है, जिससे हम अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। दूसरे दोहे में कवि ने बताया है कि जैसे काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती वैसे ही चालाकी भी बार-बार नहीं की जा सकती। तीसरा दोहा मधुर वचन का प्रभाव स्पष्ट करता है। चौथे दोहे में अपने शत्रु को भी कमज़ोर नहीं समझने का संदेश दिया गया है।

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A Chameleon Summary

A Chameleon Summary

A Chameleon reproduce by laying eggs, and some species exhibit elaborate courtship rituals. While many chameleon species are relatively small, some can grow to a considerable size. Read More Class 12th English Summaries.

A Chameleon Summary

A Chameleon Introduction:

The dictionary meaning of chameleon is a small lizard that can change colour according to the surroundings. It also stands for a person who changes his behaviour or opinion according to the situation. In Hindi and Punjabi a chameleon is a ‘girgit’. The story is about a Superintendent of Police. He is bothered by a man looking for easy money.

We come to know the man when he chases down a dog in front of the Superintendent. He shows the Superintendent his bleeding finger. He says that the dog has bitten him for no reason. He demands to be compensated for his pain. But the crowd complained that the man had burned the dog with a cigarette. So the dog had hit him back.

The Superintendent changes his stand like a chameleon in handling the case. The story goes on. It is asked whose dog it is. It comes to be known that the dog belongs to the General’s brother. Being friends with the General, the Superintendent sends the dog back to its owner.

A Chameleon Summary in English

The Police Superintendent whose name is Otchumyelov is walking across a market square. He is wearing a new overcoat. He carries a parcel under his arm. A red-haired policeman walks after him with a sieve full of gooseberries in his hands. There is silence all around. The doors of shops and inns are open. There is not even a beggar near them.

A dog is barking. Otchumyelov looks in the direction of the sound. He sees a dog. The dog is moving on three legs out of a timber-yard. A man is chasing him. While chasing him, he falls. The dog barks. The man catches him by his hind legs.

Soon a crowd of people gathers round the timber-yard. The policeman tells the Superintendent that it is a noisy quarrel. The Police Superintendent walks towards the crowd. He sees a man in an unbuttoned waist-coat.

He is Hryukin, the goldsmith. It is he who has created the sensation. A dog is sitting on the ground. It is trembling all over. The Police Superintendent asks the man Hryukin about the problem. He says that this dog has bitten his finger. He explains and further says that he is a working man.

He does fine work. His finger has been bitten by the dog without any reason. He must have damages. He regrets to say that he would not be able to use his finger for a week. The Police Superintendent wants to know who the owner of the dog is.

He would not allow such a thing to happen. He would teach a lesson to those who let their dogs run all over the place. He seems to be stern and is determined to teach a lesson to the owner of the dog.

He tells the policeman to find out the name of the owner of the dog and make a report. He orders that such a dog must be throttled. Such a dog is likely to be mad. Someone in the crowd says that the dog is General Zhigalov’s.

Summary A Chameleon

On hearing this, the Superintendent feels hot in his overcoat. He thinks that it is going to rain. He is not able to understand how the dog happened to bite Hryukin. He wonders how the little dog could reach. Hyrukin’s finger. Hryukin is a heavy man. He says that Hryukin must have scratched his finger with a nail. And then the idea came to him to claim compensation for it.

Someone from the crowd told the Police Superintendent that Hyrukin had put a cigarette in the dog’s face and the dog had hit him back. He added Hyrukin is a stupid person. Hyrukin said that it was a lie. He added that the honourable Police Superintendent could easily make out who was telling a lie and who was speaking the truth.

He said that his own brother is in the police. The policeman said that it was not the General’s dog. The Police Superintendent began to feel cold. He told the policeman to help him on with his overcoat. He ordered him to take the dog to the General. He should be told that his dog should not be in the street. It may be a valuable dog. He told Hryukin to put his hand down. He should not display his finger. It was his own fault.

In the mean time Prohor, the General’s cook came on the scene. He was asked if it was the General’s dog. The Police Superintendent himself said that it was no use wasting time talking about the dog. Since it is a stray dog, he must be destroyed.

Prohor said that the dog belongs to the General’s brother. Prohor calls the dog and walks away from there. The crowd laughs at Hryukin. The Police Superintendent threatens Hyrukin. He puts on his overcoat and then tells. Hyrukin that he will set him right.

The World is Too Much with Us Summary

On His Blindness Summary

On His Blindness Summary

On His Blindness,” a sonnet composed by John Milton, delves into the poet’s personal struggles and reflections on his own blindness. The poem expresses Milton’s emotional journey of grappling with his physical condition and his sense of duty towards God. Read More Class 12th English Summaries.

On His Blindness Summary

On His Blindness Introduction:

This poem deals with the loss of Milton’s eye-sight. He has become blind. He has hardly lived half of his life. The gift of writing poetry is lying unused with him. He is very anxious to serve God with it. He fears lest God should punish him for not making use of his gift. He becomes impatient. He asks himself if God expects work from him even after his blindness. But soon he realises that they also serve who only stand and wait. He submits himself to the will of God.

On His Blindness Summary in English

Milton lost his eye-sight at the age of forty three. He felt grief-stricken at this loss. The world appeared dark and desolate to him. God had given him the gift of writing poetry. He felt helpless. He could not make use of this gift. He was a religious-minded man. He wanted to use the gift of writing poetry in the service of God. He felt that his gift was useless.

He feared that God would scold him for wasting His gift. He thought of the servant who did not use a talent given to him by his master. On his return the master scolded the servant for not using the talent. In the same way, Milton feared that God would scold him for not making use of the talent of writing poetry.

So Milton starts grumbling. He foolishly asks himself the question if God wants him to work after taking away his eye-sight. His inner voice however comes to his help. It tells him not to grumble about the ways of God to man.

Summary On His Blindness

It assures him that God’s ways to man are absolutely just. God does not want any compensation for the talents that He gives to human beings. He does not want man to work to please Him. Those who accept God’s will happily are His best servants. God has given a light responsibility to each one of us. We must accept that responsibility without grumbling.
Dead Man’s Riddle Summary

The Road Not Taken Summary

The Road Not Taken Summary

The Road Not Taken is about someone who comes to a place where two roads go in different directions. They have to pick one path, even though both roads look the same. They choose the less-traveled path. In the end, they realize this choice changed their life, even though they’ll never know what would’ve happened on the other road. The poem talks about how our choices shape our lives. Read More Class 12th English Summaries.

The Road Not Taken Summary

The Road Not Taken Introduction:

This poem is based on a very common experience. A traveller was going through a forest. He reached a point where the road diverged in two directions. Both the roads looked equally attractive to the traveller. But he decided to take the one that did not show much sign of having been used. It is true that if he had chosen the beaten path (much used road) he could be sure of reaching somewhere.

He would not have faced many difficulties in life. But he took the one less travelled by’ and that has made all the difference. The poet suggests that the choices which one makes in life are for good. One cannot turn back and make a second choice regarding one’s goal in life. Therefore, one should be very careful in making the choice. He also suggests that by choosing the ordinary course in life, one cannot hope to become extraordinary.

The Road Not Taken Summary in English

In this poem the poet brings out the importance of choice-making in one’s life. He says that choices cannot be changed. They have a very far-reaching influence. They influence the whole course of man’s life. Another idea brought out in this poem is that one can’t achieve extraordinary things by taking an ordinary course. Only very ordinary men follow the beaten paths. Great souls always prefer to tread new paths. The poet illustrates this idea with the help of a very common experience.

Once the poet was travelling through a forest. He came to a place from where the road branched off in two directions. It was not possible for the poet to travel by both the roads at the same time. He had to choose one of the two. The poet stood there and thought for a long time.

One of the roads was visible to some distance. It meant that the road had frequently been used. The other road was overgrown with grass. It meant that this road had not been used much. The poet decided to go by the second road. He kept the first one for another day.

Summary of The Road Not Taken

The poet imagines a time many ages hence. He will then be in some other world. He will then recall how he had decided to travel by the less-frequented road. This choice had made all the difference for him. It affected not only the future course of his life on this earth but also his spiritual course after death. Thus with the help of symbols the poet brings out the idea that man has to choose between the roads of materialism and spiritualism in his life. The choice once made is for good. It cannot be changed later.
Past and Present Summary

Cheerfulness Taught By Reason Summary

Cheerfulness Taught By Reason Summary

Cheerfulness Taught By Reason” encapsulates a profound insight into the art of cultivating a joyful and balanced life. This brief but thought-provoking summary explores the harmony between reason and cheerfulness, emphasizing the role of rational thinking in nurturing a positive and resilient mindset. Through its exploration, the summary invites us to embrace the wisdom of finding happiness through thoughtful reflection. Read More Class 12th English Summaries.

Cheerfulness Taught By Reason Summary

Cheerfulness Taught By Reason Introduction:

It is a short poem. But it has a big idea. It tells man to be optimistic in life. It is no use complaining about what we do not have. We should be thankful to God for what we have. One should have a brave heart to accept things as they are. We should not go on complaining that our path is full of stones. We should be thankful to God that the path is short.

Cheerfulness Taught By Reason Summary in English

The poetess tells us to learn to be optimistic in life. It is no use complaining about what you do not have. The best thing would be to be thankful for what we have. In this beautiful world made by God, most of us are always ready to complain about what we do not possess. We are likely to be deprived of so many things in our life. We may not be able to reach the highest point in the sky.

We may become unconscious thinking that there is some restriction put on our soul to reach the sky. It is not wise to keep on feeling sad or depressed if we cannot reach such a distant destination. Our weak heart should feel strong. It must go on marching on the road singing in a cheerful mood. We should not complain that the road to our destination is full of stones. We should be thankful to God that we have to cover only a very short distance.
The Victory Summary