आदर्श बदला Summary in Hindi

आदर्श बदला Summary in Hindi

आदर्श बदला” एक कविता है, जिसे महादेवी वर्मा द्वारा लिखा गया है। यह कविता व्यक्तिगत परिवर्तन और विकास की थीम पर आधारित है। कवि का मानना है कि जीवन में समय के साथ व्यक्ति बदलता है, और उसके आदर्श भी बदलते हैं।

आदर्श बदला Summary in Hindi

आदर्श बदला लेखक का परिचय

आदर्श बदला लेखक का नाम : सुदर्शन। (मूल नाम : बदरीनाथ) (जन्म 29 मई, 1895, सियालकोट ; निधन 9 मार्च, 1967.)

प्रमुख कृतियाँ : पुष्पलता, सुदर्शन सुधा, तीर्थयात्रा, पनघट (कहानी संग्रह)। सिकंदर, भाग्यचक्र (नाटक)। भागवती (उपन्यास)। आनररी मजिस्ट्रेट (प्रहसन)।

विशेषता : आपने प्रेमचंद की लेखन-परंपरा को आगे बढ़ाया है। आपकी रचनाएँ आदर्शोन्मुख यथार्थवाद को रेखांकित करती हैं। साहित्य को लेकर आपका दृष्टिकोण सुधारवादी रहा है। आपने हिंदी फिल्मों की पटकथाएँ और गीत भी लिखे हैं। आपकी प्रथम कहानी ‘हार की जीत’ हिंदी साहित्य में विशिष्ट स्थान रखती है।

विधा : कहानी। कहानी भारतीय साहित्य की प्राचीन विद्या है। आपकी कहानियों की भाषा सरल, पात्रानुकूल तथा प्रभावोत्पादक हैं। मुहावरों का सटीक प्रयोग, प्रवाहमान शैली कहानी की प्रभावोत्पादकता में वृद्धि करती है।

विषय प्रवेश : बदला लेने वाले व्यक्ति के मन में अकसर क्रोध अथवा हिंसा की भावना प्रमुख होती है। इतना ही नहीं, मौत का बदला मौत से लेने की अनेक घटनाएँ प्रसिद्ध हैं। पर प्रस्तुत कहानी में लेखक ने बदला लेने का अनूठा आदर्श प्रस्तुत किया है। ‘बचपन में बैजू अपने पिता को भजन गाने के अपराध में तानसेन की क्रूरता का शिकार होता हुआ देखता है। परंतु वही बैजू बावरा तानसेन को संगीत-प्रतियोगिता में हरा कर उसे जीवन-दान दे देता है। लेखक ने इस कहानी के माध्यम से बैजू बावरा को आदर्श बदला लेते हुए दर्शाया है।

आदर्श बदला पाठ का सार

आगरा शहर में सुबह-सुबह साधुओं की एक मंडली अपने ढंग से भजन गाते-गुनगुनाते प्रवेश कर रही थी। इस मंडली में एक छोटा बच्चा भी था। साधु अपने राग में मगन थे, तभी राज्य के सिपाहियों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उन्हें बादशाह अकबर के सामने पेश कर दिया गया।

अकबर के मशहूर संगीतकार तानसेन ने यह कानून बनवा दिया था कि जो आदमी राग विद्या में उसकी बराबरी न कर सके, वह आगरा की सीमा में गीत न गाए और जो गाए तो उसे मौत की सजा दी जाए। बेचारे साधुओं को इसकी जानकारी नहीं थी। साधु संगीत विद्या से अनभिज्ञ थे। अतः उन्हें मृत्युदंड की सजा हुई। पर उस बच्चे पर दया करके उसे छोड़ दिया गया।

वह बच्चा रोता-तड़पता आगरा की बाजारों से निकल कर जंगल में अपनी कुटिया में पहुँचा और विलाप करता रहा। तभी खड़ाऊँ पहने, हाथ में माला लिए हुए, राम नाम का जप करते हुए बाबा हरिदास कुटिया के अंदर आए और उन्होंने उसे शांत रहने के लिए कहा। पर उस बच्चे के मन में शांति कहाँ थी! उसका तो संसार उजड़ चुका था। तानसेन ने उसे तबाह कर दिया था।

यह बच्चा बैजू बावरा था। उसने अपने साथ हुई सारी दुर्घटना बाबा हरिदास को बताई और अपने बदले की भूख और प्रतिकार की प्यास मिटाने की उनसे प्रार्थना की। E अंत में हरिदास ने उसे आश्वस्त किया कि वे उसे ऐसा हथियार देंगे, जिससे वह अपने पिता का बदला ले सके।

इसके लिए उन्होंने बैजू से बारह वर्ष तक (संगीत की) तपस्या E करने का वचन लिया। बाबा ने बारह वर्ष में बैजू बावरा को वह सब कुछ सिखा दिया, जो उनके पास था। अब बैजू पूर्ण गंधर्व हो गया था। उसके स्वर में जादू था।

लेकिन संगीत-तपस्या पूरी होने के साथ ही बैजू बावरा को बाबा हरिदास के सामने यह प्रतिज्ञा भी करनी पड़ी कि वह इस राग विद्या से किसी को हानि नहीं पहुँचाएगा। इस प्रतिज्ञा से उसे लगा कि प्रतिहिंसा की छुरी हाथ में आई भी तो गुरु ने प्रतिज्ञा लेकर उसे कुंद कर दी।

कुछ दिनों बाद यही सुंदर युवक साधु आगरा के बाजारों में गाता हुआ जा रहा था। लोगों ने सोचा कि इसकी भी मौत आ गई है। वे उसे नगर की रीति की सूचना देने निकले। पर उसके निकट पहुँचने के पहले ही वे उससे मुग्ध होकर अपनी सुधबुध खो बैठे। सिपाही उसे पकड़ने दौड़े तो उसका गीत सुन कर उन्हें अपनी हथकड़ियों की भी सुध न रही। लोग नवयुवक के गीत पर मुग्ध थे। चलते-चलते यह जन-समूह मौत के द्वार यानी तानसेन के महल के सामने था।

तानसेन बाहर निकला और उसने फब्ती कसी, ‘तो शायद आपके सिर पर मौत सवार है।’ यह सुन कर बैजू के होठों पर मुस्कराहट आ गई। उसने कहा, “मैं आपके साथ गान-विद्या पर चर्चा करना चाहता हूँ।” तानसेन ने कहा, “जानते हैं नियम कड़ा है। मेरे दिल में दया नहीं है। मेरी आँखें दूसरों की मौत देखने के लिए हर समय तैयार हैं।” इस पर बैजू बावरा ने कहा, “और मेरे दिल में जीवन का मोह नहीं है। मैं मरने के लिए हर समय तैयार हूँ।”

दरबार की ओर से शर्ते सुनाई गई। राग-युद्ध नगर के बाहर वन में आयोजित किया गया था। लगता था वन में नगर बस गया है। बैजू ने सितार उठाया। उसने पदों को हिलाया तो जनता ब्रह्मानंद में लीन हो गई। उसकी उँगलियाँ सितार पर दौड़ने लगीं। लगा, सारे विश्व की मस्ती वहीं आ गई हो। तभी संगीत से प्रभावित होकर कुंछ हरिण छलांगें मारते हुए वहाँ आ पहुँचे। वे संगीत सुनते रहे।

बैजू ने सितार बजाना बंद किया और अपने गले से फूलमालाएँ उतार कर हरिणों को पहना दीं। हरिण चौकड़ी भरते हुए गायब हो गए। बैजू ने तानसेन से कहा, “ तानसेन, मेरी फूलमालाएँ यहाँ मँगवा दें, तब जानूँ कि आप राग-विद्या जानते हैं।”

तानसेन सितार हाथ में लेकर बजाने लगा। इतनी एकाग्रता के साथ उसने अपने जीवन में कभी सितार नहीं बजाया था। आज वह अपनी पूरी कला दिखा देना चाहता था। आज वह किसी तरह जीतना चाहता था। आज वह किसी भी तरह जिंदा रहना चाहता था। सितार बजता रहा, पर आज लोगों ने उसे पसंद नहीं किया। तानसेन का शरीर पसीना-पसीना हो गया, पर हरिण न आए। वह खिसिया गया। बोला, “वे हरिण राग की तासीर से नहीं आए थे। हिम्मत है तो दुबारा बुला कर दिखाओ।”

यह सुन कर बैजू ने फिर सितार पकड़ लिया। सितार बजने लगा। वे हरिण फिर बैजू बावरा के पास आ गए। बैजू ने उनके गले से मालाएँ उतार लीं। अकबर ने अपना निर्णय सुना दिया, “बैजू बावरा जीत गया, तानसेन हार गया।’ यह सुन कर तानसेन बैजू बावरा के पाँव में गिर पड़ा और उससे अपने प्राणों की भीख माँगने लगा। बैजू बावरा ने कहा, “मुझे तुम्हारे प्राण लेने की चाह नहीं है। तुम इस निष्ठुर नियम को खत्म करवा दो कि यदि आगरा की सीमा में गाने वाला व्यक्ति तानसेन की जोड़ का न हो, तो उसे मरवा दिया जाए।”

यह सुन कर अकबर ने उसी समय उस नियम को खत्म कर दिया। तानसेन ने बैजू बावरा के चरणों में गिर कर कहा, “मैं यह उपकार जीवन भर नहीं भूलूँगा।’ बैजू बावरा ने उसे याद दिलाया, ‘बारह बरस पहले उसने एक बच्चे की जान बख्शी थी। आज उस बच्चे ने उसकी जान बख्शी है।’

Conclusion

कविता का संदेश यह है कि जीवन में व्यक्ति बदलता है, और उसके आदर्श भी बदलते हैं। यह परिवर्तन स्वाभाविक है, और हमें इसे स्वीकार करना चाहिए।

सच हम नहीं; सच तुम नहीं Summary in Hindi

सच हम नहीं; सच तुम नहीं Summary in Hindi

“सच हम नहीं; सच तुम नहीं” एक कविता है, जिसे जगदीश गुप्त द्वारा लिखा गया है। यह कविता संघर्ष और निरंतरता की थीम पर आधारित है। कवि का मानना है कि जीवन में संघर्ष ही सच है, और जो व्यक्ति निरंतर संघर्ष करता रहता है, वही सच्चा है।

कविता का सार

कविता में, कवि कहता है कि जीवन में कई बार ऐसा लगता है कि हम गलत रास्ते पर चल रहे हैं। हम अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं, और हमें लगता है कि हम हार चुके हैं। लेकिन कवि का मानना है कि यह एक भ्रम है। जीवन में संघर्ष ही सच है, और जो व्यक्ति निरंतर संघर्ष करता रहता है, वही सच्चा है।

सच हम नहीं; सच तुम नहीं Summary in Hindi

सच हम नहीं; सच तुम नहीं कवि का परिचय

सच हम नहीं; सच तुम नहीं कवि का नाम : डॉ. जगदीश गुप्त। (जन्म 1924; निधन 2001.)

प्रमुख कृतियाँ : नाँव के पाँव, शब्द दंश, हिम विद्ध, गोपा-गौतम (काव्य संग्रह), ‘शंबूक’ (खंडकाव्य), भारतीय कला के पदचिह्न,

नयी कविता : स्वरूप और समस्याएँ, केशवदास (आलोचनाएँ) तथा ‘नयी कविता’ (पत्रिका) आदि।

विशेषता : प्रयोगवाद के बाद जिस नयी कविता का प्रारंभ हुआ, उसके प्रवर्तकों में जगदीश गुप्त का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है।

विधा : नई कविता। नए भावबोधों की अभिव्यक्ति के साथ नए मूल्यों और नए शिल्प विधान का अन्वेषण नई कविता की विशेषता है।

विषय प्रवेश : प्रस्तुत नई कविता में कवि ने संघर्ष करने की प्रेरणा दी है। संघर्ष ही जीवन की सच्चाई है। जो मनुष्य कठिनाइयों और मुसीबतों का सामना करते हुए बिना झुके या रुके आगे बढ़ता रहता है, वही सच्चा मनुष्य है। जिंदगी लीक से हटकर चलने का नाम है। लीक से भटककर भी मंजिल अवश्य मिलती है। कवि का कहना है कि हमें अपनी समस्याएँ खुद सुलझानी होंगी। हमारी लड़ाई – कोई दूसरा लड़ने नहीं आएगा। हमें खुद योद्धा बनकर अपनी लड़ाई लड़नी है।

सच हम नहीं; सच तुम नहीं कविता का सरल अर्थ

सच हम नहीं …………………………………………….. है जीवन वही।

कवि कहते हैं कि न मेरी बात सच है और न तुम्हारी बात सच है। सच है तो निरंतर संघर्ष करना। संघर्ष ही जीवन है। हमें संघर्ष का रास्ता अपनाना चाहिए। कवि के अनुसार संघर्ष से हटकर जीने की बात ही नहीं करनी चाहिए। बिना संघर्ष का जीवन भी भला कोई जीवन है!

कवि कहते हैं कि जिसने अधीनता स्वीकार ली, वह मृतक के समान हो गया। उसकी हालत डाल से झड़े हुए फूल जैसी होती है। जो व्यक्ति संघर्ष के मार्ग पर चलता हआ भटक जाने पर भी अपनी मंजिल पर बढ़ने से नहीं रुका अथवा अपने प्रयास में असफल हो जाने पर भी जिसने हार नहीं मानी अथवा जिसने मृत्यु से भी मोर्चा लिया हो और उसको परास्त कर दिया हो, उसी का जीवन जीवन कहलाने के योग्य है। यही सच्चाई है।

सच हम नहीं; सच तुम नहीं Summary in Hindi

ऐसा करो जिससे …………………………………………….. यौवन का यही।

कवि कहते हैं कि मनुष्य में कहीं भी कोई ठहराव नहीं आना चाहिए। जो जहाँ है उसे वहीं चुपचाप अपना संघर्ष जारी रखना चाहिए। वे कहते हैं कि परिस्थितियाँ कैसी भी हों चाहे प्रतिकूल स्थिति हो अथवा अनुकूल स्थिति, मनुष्य को हताश होकर अपना संघर्ष कभी भी त्यागना नहीं चाहिए। जीवन का यही संदेश है।

हमने रचा जाओ …………………………………………….. पानी-सी बही।

कवि कहते हैं कि यथास्थिति में जीने का हमने जो नियम बनाया था, आओ, अब हम उसे तोड़ दें। यह भी कोई जीवन है। जीवन तो वह है, जो मँझधार को भी मोड़ने की शक्ति रखता हो। जिसने संघर्ष किया ही नहीं और यथास्थिति को ही सुखमय मानकर जीवन जीता आ रहा हो और दूसरों के इशारों पर चलता आ रहा हो, उसकी भला कोई जिंदगी है? वह जिंदगी तो यथास्थिति को स्वीकार लेने और लीक पर चलनेवाला जीवन है। (इसमें संघर्ष का नामोनिशान नहीं है।)

अपने हृदय का …………………………………………….. दिशा मिलती रही।

कवि कहते हैं कि हमें अपने दुखों को पहचानना होगा। उन्हें दूर करने के लिए हमें स्वयं प्रयास करना होगा। अपनी आँखों के आँसू हमें खुद पोंछने होंगे। हमें अपनी सहायता के लिए किसी अन्य से आशा नहीं करनी है। किसी अन्य की कृपा का भरोसा करना व्यर्थ है। हमें खुद योद्धा बनना होगा। हर संघर्ष करने वाले को कोई-नकोई मार्ग अवश्य मिलता है। मनुष्य मार्ग भटकने के बाद अपने लक्ष्य पर अवश्य पहुँचता है, इस बात को हमें गाँठ बाँध लेनी चाहिए।

बेकार है मुस्कान से …………………………………………….. राह को ही मैं सही।

कवि कहते हैं कि हृदय के कष्ट को बाह्य मुस्कान से दबाया नहीं जा सकता। इस तरह के प्रयास का कोई लाभ नहीं होता। इसे आदर्श नहीं माना जा सकता है। मनुष्य को भीतर और बाहर दोनों से एक-सा ही रहना चाहिए, यही आदर्श है। कवि कहते हैं कि जब तक विचारों पर अंकुश लगा रहेगा और जब तक प्यार पर दुख की गहरी छाया बनी रहेगी, तब तक इस मार्ग को किसी भी कीमत पर उचित नहीं माना जा सकता।

Conclusion

कविता का संदेश यह है कि जीवन में संघर्ष ही सच है। जो व्यक्ति निरंतर संघर्ष करता रहता है, वही सच्चा है।

निराला भाई Summary in Hindi

निराला भाई Summary in Hindi

निराला भाई” एक आत्मकथात्मक निबंध है, जिसे महादेवी वर्मा ने लिखा है। यह निबंध उनके प्रिय मित्र सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के जीवन और व्यक्तित्व पर आधारित है। निबंध में, वर्मा जी निराला जी के बचपन, शिक्षा, साहित्यिक जीवन, और व्यक्तिगत गुणों का वर्णन करती हैं।

निबंध का सार

निबंध में, वर्मा जी बताती हैं कि निराला जी का जन्म 21 फरवरी, 1896 को उत्तर प्रदेश के छपरा जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था। उनके पिता एक छोटे से स्कूल के शिक्षक थे। निराला जी का बचपन गरीबी और संघर्षों में बीता। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में ही प्राप्त की, और फिर उच्च शिक्षा के लिए पटना चले गए।

निराला भाई Summary in Hindi

निराला भाई लेखक का परिचय

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निराला भाई लेखक का नाम : श्रीमती महादेवी वर्मा। (जन्म 26 मार्च, 1907; निधन 1987.)

प्रमुख कृतियाँ : नीहार, रश्मि, नीरजा, दीपशिखा, सांध्यगीत, यामा (कविता संग्रह), अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, मेरा परिवार (रेखाचित्र), श्रृंखला की कड़ियाँ तथा साहित्यकार की आस्था (निबंध)।

विधा : संस्मरण।

विषय प्रवेश : प्रसिद्ध कवि सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला’ की गणना हिंदी के श्रेष्ठ कवियों में की जाती है। वे हिंदी साहित्य में छायावादी कवि एवं क्रांतिकारी व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते हैं। प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा एवं निराला जी दोनों का कार्यक्षेत्र प्रयागराज रहा है। इसलिए भी कवयित्री निराला जी को नजदीक से जानती-समझती और उनके व्यक्तित्व से गहराई से परिचित रही हैं।

प्रस्तुत संस्मरण में उन्होंने निराला जी को जिन विभिन्न रूपों में देखा और परखा है, उसे उन्होंने बेबाकी से शब्दांकित किया है। – इस संस्मरण से हमें निराला जी के फक्कड़पन, उनके व्यक्तित्व, उनकी निर्धनता, उदारता, संवेदनशीलता, आतिथ्य सत्कार की भावना तथा पारिवारिक दशा आदि के बारे में अनेक अनछुई बातों की जानकारी मिलती है।

निराला भाई पाठ का सार

कवयित्री महादेवी वर्मा प्रसिद्ध कवि निराला जी के साथ घटित कई घटनाओं की साक्षी रही हैं। उन्होंने उन्हें नजदीक से देखा-समझा है। उन्होंने इस संस्मरण में उनके साथ घटी हुई अनेक घटनाओं और उनके स्वभाव एवं व्यवहार का चित्रण किया है।

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निराला जी संवेदनशील उदार, आतिथ्यप्रेमी, सहृदय, फक्कड़ किस्म के और सदा निर्धनता में जीवन बिताने वाले कवि रहे हैं। वे स्पष्टवादी व्यक्ति थे और अपने बारे में सही बात कहने से नहीं चूकते थे। एक बार रक्षाबंधन त्योहार के अवसर पर कवयित्री ने उनकी सूनी कलाइयाँ देखकर इसके बारे में पूछा तो उन्होंने जवाब दिया, “कौन बहन मुझ भुक्खड़ को भाई बनाएगी।”

कवि अपनी उदारता और दूसरों का दुख दूर करने की प्रवृत्ति के कारण सदा तंगी में रहे। वे खुद कष्ट सह लेते थे पर दूसरों का कष्ट दूर करके रहते थे। एक बार तो उन्होंने अपने लिए बनवाई गई रजाई और कोट भी किसी ठिठुरते हुए को दे दिया और खुद काँपते हुए मजे से सर्दियाँ काट दीं।

आर्थिक संकट सदा उनका साथी रहा। इसके कारण वे अपनी मातृविहीन संतान की भी उचित देखभाल न कर पाए। पुत्री के अंतिम क्षणों में असहाय बने रहे और पुत्र को उचित शिक्षा न दे पाए।

एक बार तो उन्होंने कवयित्री को 300 रुपए देकर अपने खर्च का बजट बनाने के लिए कहा था। पर बजट बनते-बनते तक सारे पैसे लेकर जरूरतमंद लोगों को दे डाले।

एक बार प्रसिद्ध कवि मैथिलीशरण गुप्त ने उनका आतिथ्य ग्रहण किया था। जब वे आए तो वे दियासलाई के प्रकाश में उन्हें लेकर तंग सीढ़ियों से होकर अपने सुविधा रहित कक्ष में पहुँचे तो वहाँ ढंग का बिस्तर भी नहीं था। फिर उन्होंने घर में धोती, चादर जो कुछ मिला उसे तख्त पर बिछाकर बड़े प्यार से उन्हें प्रतिष्ठित किया था। अतिथि का सत्कार करने के लिए उन्होंने कवयित्री से एक बार जलावन लकड़ी और घी तक माँग लिया था।

समकालीन साहित्यकारों की व्यथा के बारे में सुनकर वे विचलित हो जाते थे। एक बार सुमित्रानंदन पंत की मृत्यु की झूठी खबर पढ़कर वे बेचैन हो गए थे और सच्चाई जानने के लिए सारी रात जागते हुए इंतजार करते रहे।

एक बार तो उन्होंने अपने दोनों अधोवस्त्र और उत्तरीय गेरू में रंग डाले थे। कवयित्री उनका रूप देखती रह गई थीं। कहने लगे, “अब ठीक है। जहाँ पहुँचे, किसी नीम या पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गए। दो रोटियाँ माँग कर खा लीं और गीत लिखने लगे।”

निराला जी के विशाल डील-डौल से देखने वाले के हृदय में आतंक उत्पन्न हो जाता था, पर उनकी आत्मीयता से यह भय तिरोहित हो जाता था।

निराला ऐसे व्यक्तित्व थे जिनके बारे में अलग-अलग व्यक्तियों की अलग-अलग धारणाएँ थीं। कोई उनकी उदारता की प्रशंसा करते नहीं थकता तो कोई उनके उद्धत व्यवहार की निंदा करते नहीं हारता। पर उन्हें समझ पाना हर किसी के वश की बात नहीं थी।

निराला जी अपने युग की विशिष्ट प्रतिभा थे। वे एक विद्रोही साहित्यकार थे। कवयित्री का मानना है कि निराला जी किसी दुर्लभ सीप में ढले सुडौल मोती नहीं थे, वे तो अनगढ़ पारस के भारी शिलाखंड थे। पारस की अमूल्यता दूसरों का मूल्य बढ़ाने में होती है। उसके मूल्य में तो न कोई कुछ जोड़ सकता है, न कुछ घटा सकता है।

Conclusion

निबंध के अंत में, वर्मा जी निराला जी को एक महान कवि और एक महान व्यक्ति के रूप में स्वीकार करती हैं। वे कहती हैं कि निराला जी ने भारतीय साहित्य को एक नई दिशा दी, और वे हमेशा भारतीय साहित्य में याद किए जाएंगे।

Ormayude Njarambu Summary in Malayalam

Ormayude Njarambu Summary in Malayalam

Ormayude Njarambu is a novel written by M.T. Vasudevan Nair in 1968. It is one of the most acclaimed novels in Malayalam literature, and has been translated into many languages. The Summary of novel is set in the 1950s, and tells the story of a young man named Krishnan who falls in love with a woman named Radha.

The novel begins with Krishnan moving to a small village in Kerala to work as a teacher. He soon meets Radha, a beautiful and intelligent young woman. Krishnan is immediately drawn to Radha, and the two of them begin a secret relationship. The novel follows Krishnan and Radha as they try to keep their love hidden from their families and the world. They face many challenges, including the disapproval of their families and the social stigma of love between a Hindu man and a Muslim woman.

Ormayude Njarambu Summary in Malayalam

ജീവിത രേഖ : 1970 ഫെബ്രുവരി 19 – ന് കൊല്ലം ജില്ലയിലെ ശാസ്താംകോട്ടയിൽ ജനിച്ചു. കമ്മ്യൂണിക്കേറ്റീവ് ഇംഗ്ലീഷിൽ ഒന്നാം റാങ്കോടെ ബിരുദാനന്തര ബിരുദം. 1993 മുതൽ മലയാള മനോരമയിൽ പ്രത പ്രവർത്തകയായി ജോലി ചെയ്തു. പിന്നീട് രാജി വച്ചു. ഇപ്പോൾ സ്വതന്ത് പ്രത പ്രവർത്തകയും മുഴുവൻ സമയ എഴുത്തുകാരിയും. ഇവരുടെ നോവലായ ‘ആരാച്ചാർ’ പല ഭാഷകളിലേക്ക് വിവർത്തനം ചെയ്തിരിക്കുന്നു.

Ormayude Njarambu Summary in Malayalam (1)

പുസ്തകങ്ങൾ : ഓർമ്മയുടെ ഞരമ്പ് (ചെറുകഥാ സമാഹാരം), മോഹമഞ്ഞ, നേ തായീലനം(നോവൽ), ആവേ മരിയ (ചെറുകഥാ സമാഹാരം), ഗില്ലറ്റിൻ (ചെറുകഥാ സമാഹാരം), ആ മരത്തേയും മറന്നു മറന്നു ഞാൻ (നോവൽ), യൂദാസിന്റെ സുവിശേഷം (നോവൽ), മീരാ സാധു (നോവൽ), ആരാച്ചാർ (നോവൽ), മാലാഖയുടെ മറുകുകൾ (നോവലെറ്റ്, മഴയിൽ പറക്കുന്ന പക്ഷികൾ (ലേഖനം / ഓർമ്മ).

പെണ്ണെഴുത്തുണ്ടെങ്കിൽ ആണെഴുത്തും വേണം. യൗവ്വനകാലം തന്നെ ഇരുത്തം വന്ന എഴുത്തുകാരിയാണ് മീര. അതുകൊണ്ടാണ് ഭാഷയിൽ യൗവ്വനം സൂക്ഷിക്കുമ്പോഴും മീരയുടെ കഥാപാത്രങ്ങൾ സ്വന്തം യൗവ്വനത്തിൽ നിന്നും കുതറി മാറുന്നത്.

കഥാനുഭവത്തെക്കുറിച്ച് കെ.ആർ.മീര കെ.ആർ. മീരയുടെ ‘ഏകാന്തതയുടെ വർഷങ്ങൾ’ എന്ന കഥ പ്രസിദ്ധമാണ്. ഈ കഥയെക്കുറിച്ച് മീര പറയുന്നത്:- “ഈ കഥയിലെപ്പോലെ ഹൃദയമുരുകി ഞാൻ അതിനു മുമ്പൊരിക്കലും പ്രണയിച്ചിട്ടില്ല.

ആ തീവ്രാനുഭവം ഒരിക്കൽ കൂടി ഏറ്റെടുക്കാൻ അധൈര്യപ്പെട്ട് അതുപോലെ മാറ്റൊന്നെഴുതാൻ പിന്നീടൊരിക്കലും അഭിലഷിച്ചിട്ടുമില്ല.” ഈ കഥയുടെ വിഷയം വിൽ ചെയറിലിരുന്ന ഒരു പെൺകുട്ടിയായിരുന്നു. അവൾ തിരുവനന്തപു രത്തെ ചെഷയർ ഹോമിലായിരുന്നു.

കെ.ആർ.മീരയുടെ സുഹൃത്തായ ദിലീപ് വിൽ ചെയറിലിരുന്ന് പുസ്തകം വായിക്കുന്ന ഈ കുട്ടിയെ ഇന്റർവ്യൂ ചെയ്യാൻ സമീപിച്ചു. ആ പെൺകുട്ടി വളരെ പരുഷമായി പെരുമാറി. ദിലീപിന്റെ സുഹൃത്തും അമൃത ടി.വി. ന്യൂസ്

എഡിറ്ററുമായ മുരളി ഇടപെട്ട് പെൺകുട്ടിയെ അനുനയിപ്പിച്ചു. ഇരുവരും സുഹൃത്തുക്കളായി പിരിഞ്ഞു. പിന്നീട് സുഹൃത്തായി മാറിയ ദിലീപ് പെൺകുട്ടിക്ക് പുസ്തകങ്ങൾ എത്തി ച്ചുകൊടുത്തു. ഒരിക്കൽ കാഞ്ഞിരപ്പിള്ളി വന്നാൽ തന്നെ വീട്ടിൽ കാണണമെന്ന് പെൺകുട്ടി ദിലീപിനെ അറിയിച്ചു. ദിലീപ് കാഞ്ഞി രപ്പിള്ളിയിലെ വലിയൊരു ബംഗ്ലാവിലെത്തി.

സ്വീകരണമുറിയിൽ കാത്തിരുന്നപ്പോൾ അകത്തുനിന്നും വീൽചെയറിൽ പെൺകുട്ടി വന്നു. അവളെ കണ്ട് ദിലീപ് ഞെട്ടി. ചെഷയർ ഹോമിൽ കണ്ടതു പോലെയായിരുന്ന ചെൺകുട്ടി വന്നു. മുടി കൊഴിഞ്ഞ് ശരീരം ശോഷിച്ച് ഒരു കോലം. കുറച്ചു കാലം കഴിഞ്ഞ് ദിലീപിന് കോട്ടയത്ത് ജോലി കിട്ടിയപ്പോൾ അയാൾ പെൺകുട്ടിയെ കാണാൻ കാഞ്ഞിരപ്പിള്ളി യിൽ എത്തി. അവൾ മരിച്ചുപോയിരുന്നു.

ദിലീപിന്റെ ഈ അനുഭവമാണ് കെ.ആർ.മീര ‘ഏകാന്തതയുടെ നൂറ് വർഷങ്ങൾക്ക് പ്രേരിപ്പിച്ചത്. ദിലീപാദ്യം കണ്ടപ്പോൾ അവൾ ഒരു ക്ലിയോപാട്ര ആയിരുന്നു. കാലുകളില്ലാത്ത ക്ലിയോപാട്. കഥ യുടെ സങ്കൽപ്പത്തിലേക്ക് ഈ പെൺകുട്ടി കടന്നു വന്നപ്പോൾ കെ.ആർ. മീര

പറയുന്നു: “ഞാൻ ഒരു മത്സ്യകന്യകയെ കണ്ടു. വെളുത്തുതുടുത്ത മുഖവും താമരവളയങ്ങൾ പോലെ ശോഷിച്ച് കാലുകളും. പെട്ടെന്ന് അവൾ ഞാനാണെന്ന് തോന്നി. എന്റെ ഹൃദയത്തിൽ പ്രണയം ഇരമ്പി. ആശകൾ തലകുത്തി മറിഞ്ഞു തിരക ളുണ്ടായി. നിരാശകൾ തളംകെട്ടിക്കിടന്ന് ഉൾക്കടലുണ്ടായി.

കഥ യുടെ ആദ്യ ഖണ്ഡിക വായിച്ചതും ദിലീപ് ക്ഷുഭിതനായി. പരിപാവനമായ സൗഹൃദത്തെ കഥ കളങ്കപ്പെടുത്തി. കഥ മുഴു വൻ വായിച്ച് പിന്നെ ദിലീപ് ശാന്തനായി. അരിയിൽ നിന്നും പായ സത്തിലേക്കുള്ള വേവിന്റെ ദൂരം അനുഭവത്തിന് കഥയിലുണ്ടാ യിരുന്നു. കഥാരചനയിലെ പ്രചോദനത്തിനും അനുഭവങ്ങൾക്കും സർഗ്ഗാ ത്മകതയുടെ തീവ്രത കൈവരുന്നതിന്റെ രചനാസാഫല്യമാണ് കെ.ആർ.മീര ഇവിടെ സൂചിപ്പിക്കുന്നത്.

ആമുഖം

കെ.ആർ.മീരയുടെ ഓർമ്മയുടെ ഞരമ്പ് സ്ത്രീയുടെ യാഥാർത്ഥ ങ്ങളുടെ കഥയാണ്. വീട്ടിലും സമൂഹത്തിലും പുരുഷാധിപത്യ ത്തിന്റെ നിയന്ത്രണങ്ങൾക്കകത്ത് അകപ്പെട്ട ബലി മൃഗങ്ങളായി സ്ത്രീകൾ ഇന്നും കഴിയുന്നു.കഥയിലെ വൃദ്ധയുടെ യൗവ്വനകാല

ഘട്ടത്തിലും ഇങ്ങനെയായിരുന്നു അവസ്ഥ. പുരുഷന് കസേ രയും രാവിലത്തെ ചായയും ഭക്ഷണവും കുളിക്കുവാനുള്ള ചൂടു വെള്ളവും തയ്യാറാക്കി കൊടുക്കുകയും മക്കൾക്കും അമ്മയ്ക്കും ഭർത്താവിനും വീടിന്റെ ശുചിത്വത്തിനും വേണ്ടി പുലരി മുതൽ പണിയെടുത്ത് നടുവൊടിഞ്ഞ് രാത്രിയിൽ മയങ്ങും മുമ്പ് ഭർത്താവിന്റെ സുഖത്തിനായി കിടക്കവിരി നിവർത്തിക്കൊതിയാണ്. വരികയും ചെയ്യുന്ന സ്ത്രീകൾ ദുഃഖപുത്രിയാണ്.

കണ്ണുനീർത്തുള്ളിയെ സ്ത്രീയോടുപമിച്ച കാവ്യഭാവനയെ മഹ ത്വവൽക്കരിക്കുന്ന എഴുത്തുകാർ. സ്ത്രീയുടെ സഹനത്തെ വലി യൊരു ബഹുമതിയായി വാഴ്ത്തുന്ന മതങ്ങൾ. യാത്രകളിൽ സംവരണം ചെയ്യപ്പെട്ടു മാത്രം സുഖസഞ്ചാരം അല്പമെങ്കിലും ലഭ്യമാക്കുന്ന നിയമങ്ങൾ.

സ്ത്രീയവൽക്കരിക്കുന്ന സ്ത്രീത്വത്തെ അവമതിക്കുന്നവരെ ശിക്ഷിക്കാതെ സ്ത്രീയെ മാത്രം കുറ്റക്കാരിയാക്കി മാറ്റുന്ന നിയമസംഹി തകൾ, സ്വാതന്ത്ര്യം എന്ന മൗലിക അവകാശത്തെ സ്ത്രീക്ക് അനു ഭവിക്കാൻ നൽകാത്ത കുടുംബ വ്യവസ്ഥിതികൾ, ശാരീരിക അബ ലതയെ ചൂഷണം ചെയ്യുന്ന പുരുഷന്റെ കൈക്കരുത്ത്. എണ്ണി യാലൊടുങ്ങാത്തത

കൂരയാതനകൾ തുടർന്നു പോകുന്ന സ്ത്രീയുടെ ദുരന്തങ്ങളുടെ ചുടലപ്പറമ്പാണ് ഇന്നോളം വരെ യുള്ള മനുഷ്യന്റെ പുരുഷന്റെ ചരിത്രം.

Conclusion:

Ormayude Njarambu is a beautiful and moving story of love and sacrifice. It is a novel that explores the themes of love, loss, and the power of the human spirit. The novel is also a valuable historical document, as it provides a glimpse into the social and cultural mores of Kerala in the 1950s.

Sandarsanam Summary in Malayalam

Sandarsanam Summary in Malayalam

Sandarsanam is a novel written by Kalki Krishnamurthy in 1941. It is one of the most popular novels in Tamil literature and has been translated into many languages. The summary of novel is set in the 13th century and tells the story of the love between a Tamil prince, Sundara Chola, and a Sinhalese princess, Vanathi.

The novel begins with Sundara Chola being sent to Ceylon (present-day Sri Lanka) to lead a military campaign against the Sinhalese king. However, when he meets Vanathi, he falls in love with her, and the two of them begin a secret relationship. The novel follows Sundara Chola and Vanathi as they try to keep their love hidden from their families and the world. They face many challenges, but their love for each other remains strong.

Sandarsanam Summary in Malayalam

ജീവിത രേഖ : 1957 ജൂലൈ 30- ന് പറവൂരിൽ ജനിച്ചു. എറണാകുളം മഹാരാജാസ് കോളേജിൽ നിന്നും ഇംഗ്ലീഷ്സാ ഹിത്യത്തിൽ ബി.എ നേടി. അടിയന്തിരാവസ്ഥക്കാലത്തും പിന്നീടും സി.പി.ഐ അനുഭാവം പുലർത്തി. ജനകീയ സാംസ്ക്കാരിക വേദി രൂപീകരിച്ചപ്പോൾ അതുമായി സഹകരിച്ചു.പല തൊഴിലുകൾ ചെയ്ത ശേഷം 1987- ൽ കേരള സർക്കാർ സർവ്വീസിൽ ക്ലർക്കായി ജോലിയിൽ പ്രവേശിച്ചു.

Sandarsanam Summary in Malayalam 1

1999 – ൽ ബുദ്ധമതം സ്വീകരിച്ചു തിരക്കഥകളും ചലച്ചിത്ര ഗാനങ്ങളും രചിച്ചിട്ടുണ്ട്. 2013 ജൂലൈ 29 – ന് ജോലിയിൽ നിന്നും വിരമിച്ചു. ടെലിവിഷൻ സീരിയലുകളിലും സിനിമകളിലും അഭിനയിക്കുന്നു. ഭാര്യ വിജയലക്ഷ്മി കവയത്രിയാണ്. ലോകം ക്ഷോഭത്തിനും

പ്രക്ഷോഭത്തിനും പ്രതിരോധത്തിനും നടുവിൽ കിടന്ന് കനലാട്ടം ആടുമ്പോഴാണ് ബാലചന്ദ്രന്റെ കവിത ഒരു വിസ്ഫോടനം പോലെ പെയ്തിറങ്ങിയത്. “മുട്ടിത്തുറക്കുന്നു ഞാൻ മുഴുഭ്രാന്തിന്റെ കത്തും ജനാലകൾ” എന്ന്

ബാലചന്ദ്രൻ എഴുതിയപ്പോൾ അത് പുതു തലമുറയുടെ കവിതയിലേക്കുള്ള ഒരു വാതായനം കൂടി തുറന്നിട്ടു. മാതൃഭൂമി ബുക്ക് മാനേജർ ആയിരുന്ന ജി. എൻ. പിള്ള മരണക്കിടക്കയിൽ വച്ച് ബാലചന്ദ്രനോട് പറഞ്ഞു: “കവിയാവുക എന്നതിനർത്ഥം ഭൂമിയിലെ കണ്ണീർ മുഴുക്കെ ഒരു തുള്ളി തുവാതെ കൈക്കുടന്നയിൽ ഏറ്റു വാങ്ങുക എന്നാണ്.”

ഒരു നേരത്തെ ആഹാരത്തിനു വേണ്ടി ശിവാജി ഗണേശന്റെ പടം ഇറങ്ങിയത് ഓട്ടോയിൽ വിളിച്ചു പറഞ്ഞു നടന്ന ഒരു കാലം ബാലചന്ദ്രൻ ചുള്ളിക്കാടിന് ഉണ്ടായിരുന്നു. ബാലചന്ദ്രന് തന്റെ മനസ്സും ശരീരവും ആത്മാവും അന്വേഷണത്തിന്റെ ഒരു പലായനമായി മാറി. ആ അനുഭവങ്ങൾ അദ്ദേഹത്തിന്റെ കവിതയും ഗദ്യത്തിൽ ചിദംബര സ്മരണകളുമായി മലയാളിക്ക് ഇന്നും ഉത്തേജനം നൽകുന്നു.

ആമുഖം

ബാല ചന്ദ്രൻ ചുള്ളിക്കാട് കവി, പത പ വർത്ത കൻ, ഗവൺമെന്റ് ജീവനക്കാരൻ, തിരക്കഥാകൃത്ത്, സിനിമ- സീരിയൽ നടൻ, സാംസ്കാരിക പ്രവർത്തകൻ, പോരാളി, നക്സലൈറ്റ് എന്നിങ്ങനെ വിശേഷണങ്ങളുടെ ഒരു പെരുമഴയാണ് ബാലചന്ദ്രൻ

ചുള്ളിക്കാടിനെക്കുറിച്ച് പറയാനുള്ളത്. അദ്ദേഹത്തിന്റെ വാക്കുകളിൽത്തന്നെ പറയുകയാണെങ്കിൽ ഒരു ധിക്കാരിയും അരാജകവാദിയും ആണ് ചുള്ളിക്കാട്, ജി.ശങ്കരക്കുറുപ്പ്, ഇട ശ്ശേരി, വൈലോപ്പിള്ളി, ബാലാമണിയമ്മ, പി. കുഞ്ഞിരാമൻനായർ എന്നീ കവിശ്രേഷ്ഠർ എഴുതി പേരെടുത്ത കാലത്താണ് ബാല ചന്ദ്രൻ ചുള്ളിക്കാട് എഴുതിത്തുടങ്ങിയത്.

മാത്രമല്ല എൻ.വി. കൃഷ്ണവാര്യർ, അക്കിത്തം, ഒളപ്പമണ്ണ, അക്കിത്തം, വയലാർ, ഒ. എൻ.വി എന്നിവരും സജീവമായ കാലഘട്ടത്തിലാണ് ബാലച ന്ദ്രൻ കേരളീയരുടെ ചുള്ളിക്കാടായത്. ആധുനിക കവികളായ അയ്യപ്പപ്പണിക്കർ, മാധവൻ അയ്യപ്പത്ത്, കക്കാട്, സച്ചിദാനന്ദൻ, കടമ്മനിട്ട എന്നിവരുടെ അറിയപ്പെട്ട കാലഘട്ടമായിരുന്നു അന്ന്. മാതൃഭൂമി ആഴ്ചപ്പതിപ്പും എം.

ഗോവിന്ദന്റെ സമീക്ഷയും ആയി രുന്നു കവികളായി അറിയപ്പെടാൻ കേരളീയർ അംഗീകരിച്ച പ്രസിദ്ധീകരണങ്ങൾ. പക്ഷേ ബാലചന്ദ്രൻ ചുള്ളിക്കാട് ഈ പ്രസിദ്ധീകരണങ്ങളിലൂടെയല്ല കവിയായത്. ചുള്ളിക്കാട് കേര ളത്തിന്റെ തെരുവുകളിലും പൊതുസ്ഥലങ്ങളിലും ചൊല്ലി സാധാരണ

ജനങ്ങളുടെ ഹൃദയങ്ങളിലൂടെ കവിയായി മാറി. കട മ്മനിട്ടയും ഇങ്ങനെയായിരുന്നു. ബ്രഹ്തിന്റേയും നെരൂദയു ടേയും കവിതകളും ഇവർ തെരുവുകളിൽ ചൊല്ലിയിരുന്നു. ആ കാലഘട്ടത്തിന്റെ രാഷ്ട്രീയ കലുഷിതമായ പശ്ചാത്തലമാണ് ചുള്ളിക്കാടിലെ കവിയെ സൃഷ്ടിച്ചത്.

കമ്പോഡിയ, വിയറ്റ്നാം, കനിയ എന്നിവിടങ്ങളിലെ പ്രശ് ന ങ്ങ ളിൽ തീക്ഷമായ പ്രതികരണങ്ങളോടെ സജീവമായ കേരളത്തിലെ വിദ്യാർത്ഥി രാഷ്ട്രീയത്തിലുണ്ടായ വലിയൊരു ആവേശത്തിന്റെ കാലഘട്ട ചുള്ളിക്കാടിന്റെ കവിത്വം പരിപുഷ്ടമാകുന്നത്. ബാലചന്ദ്രൻ ചുള്ളിക്കാടിന്റെ ജീവിതം സംഭവബഹുലമായിരുന്നു. വീടുപേക്ഷിച്ച് എറണാകുളം മഹാരാജാസ് കോളേജിലായിരുന്നു വാസം. തെരുവിൽ പിച്ച തെണ്ടി ജീവിച്ചിട്ടുണ്ട്.

ചുള്ളിക്കാട് തന്നെ പറയുന്നു: “ഭിക്ഷാടനം ഉപജീവന മാർഗ്ഗമാക്കിയിട്ടുണ്ട്. ഇഷ്ടിക ക്കളത്തിൽ തൊഴിലാളിയായിട്ടുണ്ട്. പാരൽ കോളേജിലെ അധ്യാ പകൻ, ഹോട്ടൽ ബോയ്, പത്രപ്രവർത്തകൻ എന്നീ ജോലികൾ ചെയ്തിട്ടുണ്ട്. കേരളത്തിൽ ഒരു കാലഘട്ടത്തിൽ സജീവമായിരുന്ന കവിയരങ്ങുകളിൽ

ചുള്ളിക്കാടുമുണ്ടായിരുന്നു. ലോഡ്ജുകളിലും സ്ത്ര ങ്ങളിലുമായിരുന്നു കവിത ചൊല്ലിയിരുന്നത്. ബാലചന്ദ്രൻ ചുള്ളിക്കാട് ആവർത്തിച്ചു ചൊല്ലിയിരുന്നതും ജന ങ്ങളാവശ്യപ്പെട്ട് ചൊല്ലിയിരുന്നതും ‘യാത്രാമൊഴി കവിതയായി രുന്നു.

വീടുപേക്ഷിച്ചു പോയ ചുള്ളിക്കാട് അമ്മയ്ക്ക് അസുഖമാണെന്നറിഞ്ഞ് വീട്ടിലേക്ക് ചെല്ലുമ്പോൾ അമ്മയുടെ പെരു മാറ്റത്തിൽ അസ്വസ്ഥനായി തിരിച്ചു പോകുന്നു. ഒടുവിൽ അമ്മ മരിച്ച് കിടന്നപ്പോൾ ചേച്ചിയുടെ കൈവശം കുറച്ചു സംഖ്യ നൽകി സംസ്ക്കാരത്തിനു നിൽക്കാതെ തിരിച്ചു പോവുകയാണ്.

“അമ്മേ,
പിൻവിളി വിളിക്കാതെ, 
മുടിനാരു കൊണ്ടെന്റെ കുഴലു കെട്ടാതെ,
പടി പാതി ചാരിത്തിരിച്ചു പോക്… 
എന്ന് യാത്രാമൊഴിയിൽ ചുള്ളിക്കാട് പറഞ്ഞിട്ടുണ്ട്.

‘ഞാൻ പരാജയപ്പെട്ട ഒരു കവിയാണ്. സ്വപ്നങ്ങൾ കൊഴിഞ്ഞു പോയ ഒരു തലമുറയാണ് ഞങ്ങളുടേത്. തീക്ഷ്ണമായ ശക്തിയും ശിവനടന സമാനമായ ഊർജ്ജപ്രസാദവും കവിതയ്ക്കു നൽകി അതിനെ

വെറും ജനപ്രിയതയിൽ നിന്നും ഏറെ ഉയർത്തിയ കവി യാണ് ചുള്ളിക്കാട്, ലോലമായ കാൽപ്പനികതയിൽ നിന്നും ബോറൻ പുരോഗമനപരതയിൽ നിന്നും). 18 കവിതാസമാഹാരങ്ങൾ, അമാ വാസി, ഗസൽ, മാനസാന്തരം, ഡ്രാക്കുള എന്നിവയാണ് പ്രസിദ്ധീ കരിച്ച കവിതാസമാഹാരങ്ങൾ.

ഇന്ത്യക്കകത്തും, വിദേശത്തും നടന്ന സാഹിത്യോത്സവങ്ങളിൽ മലയാള കവിതയേയും ഇന്ത്യൻ സാഹിത്യ ത്തേയും പ്രതിനിധീകരിച്ചു. കാൽപ്പനികതയുടെ രസനകൾ ഉൾക്കൊണ്ട് ഭാവതീവ്രമായ ആധുനിക വ്യഥകളെ ചുള്ളിക്കാട് പകർത്തി.

സഹധർമ്മിണിയും കവിയുമായ വിജയലക്ഷ്മിയിൽ ഉണ്ടായ ആദ്യ ശിശുവിനെ ഭ്രൂണഹത്യ ചെയ്യുവാൻ തീരുമാനിച്ച കവി എഴുതിയ ‘പിറക്കാത്ത മകന്റെ അദ്ദേഹം എഴുതി കവിതയിൽ

“ലോകാവസാനം വരേയ്ക്കും, പിറക്കാതെ പോകട്ടെ നീയെൻ മകനേ, നരകങ്ങൾ വാ പിളർക്കുമ്പോഴെരിഞ്ഞു വിളിക്കുവാൻ ആരെനിക്കുള്ളൂ… നീയല്ലാതെ – എങ്കിലും… ചുള്ളിക്കാട് ബുദ്ധമതം സ്വീകരിച്ചു. എങ്കിലും വിശ്വാസത്തിൽ

തന്റേതു മാത്രമായ സങ്കൽപ്പങ്ങളുമായി ജീവിക്കുന്നു. ഇപ്പോൾ ശരിയെന്ന് വിചാരിക്കുന്നത് ചെയ്യുക – പലപ്പോഴും ചുള്ളിക്കാട് താൻ സ്വയം ഇങ്ങനെയാണ് ഞാൻ ബ്ലോഗിൽ

പറയുന്നു. ചുള്ളിക്കാടിന്റെ (തുറമുഖം) ‘മഹാകാവ്യം’ എന്ന പേരിൽ ഒരു രചനയുണ്ട്. അതിൽ പ്രൈമറി സ്കൂളിൽ കൂടെ പഠിച്ചിരുന്ന ശശി എന്ന കുട്ടിയെക്കുറിച്ച് പറയുന്നുണ്ട്. അവൻ ഒരു തോട്ടിയുടെ മകനാണ്.

മനുഷ്യമലം തകരടാങ്കിൽ ശേഖ രിച്ച് ദൂരെ കളയുന്നതാണ് അച്ഛന്റെ ജോലി. മറ്റു കുട്ടികൾ തീട്ടം കോരി എന്നു വിളിച്ച് പരിഹസിച്ചിരുന്നു. കരിഞ്ഞ ഒരു ചിരി മാത്രമായിരുന്നു ശശിയുടെ പ്രതികരണം. ആ കറുത്ത കുട്ടിക്കൊപ്പം ആരും ഇരുന്നില്ല. അവൻ അറ്റത്തെ ബഞ്ചിലോ ജനൽപ്പടിയിലോ ഒറ്റയ്ക്കിരുന്നു.

ഒരു പരാതിയും ഇല്ലാതെ. ആയിടയ്ക്ക് ഗാന്ധിജയന്തിദിവസം ബാലചന്ദ്രന് ഒരു പുസ്തകം കൊടുത്ത് രാവുണ്ണിപ്പിള്ള സാർ പ്രസംഗിക്കാൻ പറഞ്ഞു. ആ പുസ്തകത്തിലെ ഒരു വരി ഇങ്ങനെയായിരുന്നു. “തോട്ടിയിൽ നിന്നും വമിക്കുന്ന ദുർഗന്ധം അവന്റെ മലത്തിന്റേതല്ല; നിങ്ങളുടെ മലത്തിന്റേതാണ്.” ഇതു

വായിച്ചതോടെ ശശിയേയും, അവന്റെ സമൂഹത്തേയും മറ്റൊരു വിധത്തിൽ കാണാൻ ബാല ചന്ദ്രന് കഴിഞ്ഞുവെന്ന് അദ്ദേഹം പറയുന്നുണ്ട്.

പ്രണയത്തെക്കുറിച്ചും
പ്രണയാനുഭവത്തെക്കുറിച്ചും ചുള്ളിക്കാട്
പറഞ്ഞത്.

ആനന്ദത്തിനും അനശ്വരതയ്ക്കും വേണ്ടിയുള്ള രഹസ്യാന്വേ ഷണം പ്രണയത്തിലുണ്ട്. അതിന്റെ വേദനയും യാതനയും നിർവ തിയും പരിഭവവും വിശ്വാസവും സ്മൃതിയും വിസ്മൃതിയും ദുമതിയും വിക്ഷോഭവും വൈരുദ്ധ്യവും ശൂന്യതയും പ്രത ബാധയും എല്ലാം പ്രണയത്തിലുണ്ട്. അതിൽ ജീവിതവും മരണ വുമുണ്ട്. എന്റെ പ്രണയാനുഭവത്തിന്റെ പൊട്ടും പൊടിയുമാണ് പ്രണയത്തെക്കുറിച്ചുള്ള കവിതകൾ.

കവിതയുടെ രത്നച്ചുരുക്കം 

കുറെ വർഷങ്ങൾക്കു ശേഷം തന്റെ മുൻകാമുകിയെ കവി കണ്ടെത്തുന്നു. ഏതോ ഒരു സന്ദർശനമുറിയിൽ ആണ് കണ്ടുമുട്ടുന്നത്. രണ്ടുപേരും ഒന്നും മിണ്ടുന്നില്ല; മൗനം കുടിച്ചിരിക്കുകയാണ്. ജീവിതത്തിലെ വെളിച്ചം പൊലിഞ്ഞതുപോലെ പകൽ മറ ഞ്ഞുപോയതും

ഓർമ്മകളാകുന്ന കിളികൾ കൂട്ടിലേക്ക് പറന്നു പോകുന്നതും നോക്കി നിൽക്കുകയാണ് കവി. ഇപ്പോൾ കാഴ്ച ക ളിൽ അ വർപരസ്പരം നഷ്ടപ്പെടുകയാണ്. ഈ നഷ്ടപ്പെടുന്നതിന്റെ ചിന്തകൾ കവിയുടെ നെഞ്ചിടിപ്പിന്റെ താളം കൂടു ന്നു. പഴയ പ്രണയാനുഭവങ്ങളുടെ സംഗീതമുള്ള നിശ്വാസം കവിക്ക് അനുഭവപ്പെട്ടു തുടങ്ങി.

പൊൻചെമ്പകം പൂത്തുലഞ്ഞ തന്റെ കരള് പണ്ടേ കരിഞ്ഞു പോയതാണെങ്കിലും കറ പിടിച്ച് ചുണ്ടിലെ ആർദ്രമായ കവിത കൾ വരണ്ടുപോയെങ്കിലും ഒരു വാക്കുപോലും ഉരിയാടാനാ കാതെ ഏകാന്തമായൊരു കരച്ചിൽ തൊണ്ടയിൽ കുരുങ്ങുന്നു. വീണ്ടും ഓർമ്മകൾ നീളുകയാണ്. ഓർമ്മകളുടെ അലയാഴി തേടി കവി പോകുന്നു. അതിൽ പ്രണയാർദ്രമായ ചില സന്ദർഭ ങ്ങൾ ഓർക്കു

കാമുകിയുടെ സ്വർണ്ണനിറത്തിലുള്ള മൈലാ ബിയെഴുതിയ വിരൽ ആദ്യമായി തൊട്ടപ്പോൾ മനസ്സിൽ കിനാവ് പകർന്നത് കവി ഓർക്കുന്നു. കാമുകിയുടെ കണ്ണിലെ കൃഷ്ണകാന്തങ്ങളുടെ കിരണമേറ്റ് മനസ്സ് സന്തോഷിച്ചതും എല്ലാം ചിദംബരത്തെ കുങ്കുമം തൊട്ട് വിശുദ്ധമായ സന്ധ്യ പോലെ മറവിയിൽ മാഞ്ഞിരിക്കുകയാണ്.

പിന്നീട് ജീവിതത്തിന്റെ തിരക്കുകളിൽ അമർന്നുപോകുന്നു കവി. മരണവേഗത്തിലോടുന്ന വണ്ടികളേയും മദ്യലഹരിയിൽ ആഴ പോയ രാത്രികളേയും സത്രങ്ങളുടെ പല മുഖം കണ്ട് ചുമരുക ളേയും കവി ഓർക്കുന്നു.

പ്രണയം അസ്വസ്ഥതയാണെങ്കിലും അത് പ്രകൃതിയോടൊപ്പമുള്ള ഒരു ലയനമാണെന്ന് കവിയുടെ പ്രണയാർദ്രമായ ഓർമ്മകൾ അറിയിക്കുന്നു. എന്നാൽ പ്രണയ പ്രവാഹത്തിൽ നിന്നും അകന്നപ്പോൾ അടിഞ്ഞു കൂടിയത് ശ്വാസംമുട്ടുന്ന നഗരവീഥികളിലും വാഹനങ്ങളിലും താൽക്കാ ലികാഭയമാകുന്ന സത്രങ്ങളിലും മദ്യത്തിലുമായിരുന്നു.

കവി വിചാരിക്കുന്നു. ചിലപ്പോഴൊക്കെ മനുഷ്യന്റെ ഏകാന്തമായ പ്രാണൻ ദുഃഖിതനായി ഭൂതകാലങ്ങളിൽ അലഞ്ഞുപോകും. ദുഃഖത്തിന്റെ ആ ഇരുളിൽ പല ജന്മങ്ങൾക്ക് സാന്ത്വനം നൽകുന്ന കാരുണ്യമാർന്ന തന്റെ കാമുകിയുടെ മുഖം താൻ കാണാറുണ്ട്.

കവി ഓർമ്മകളിൽ നിന്നും ഉണർന്നു. പരസ്പരം നന്ദി ചൊല്ലാതെ പിരിയുക നന്നു. ഇനിയൊരു സമാഗമം സാധ്യമല്ല. പുഴയും കടലും സംഗമിക്കുന്ന വികാരവിക്ഷോഭങ്ങളുടെ

കരച്ചിലിന്റെ ഒരു അഴിമുഖത്തേക്ക് നമ്മൾക്ക് ഇനി പോകേണ്ടതില്ല. ഇരിക്കുന്ന സന്ദർശകമുറിയിൽ നിന്നും പോകുവാൻ സമയമാകുന്നു. കവി ഈ സന്ദർശനം അവസാനിപ്പിക്കുകയാണ്.

ഉള്ളിൽ നിറയുന്ന ദുഃഖ ത്തോടെ ഈ പ്രണയസത്യത്തെ തിരിച്ചറിയുകയാണ് . നമ്മൾ രണ്ടു പേരും നിഴലുകളാണ്. പണ്ട പിരിഞ്ഞവരാണ്… നമ്മുടെ പകലുകൾ പോയിക്കഴിഞ്ഞു.

നമ്മൾ നിറഞ്ഞ രാത്രിയിലാണ് ഇപ്പോൾ കഴിയുന്നത്. ഈ രാത്രിയിൽ കഴിയുന്ന ശരീരങ്ങ ളല്ല നമ്മൾ…. വെറും നിഴലുകൾ മാത്രമാണ് നമ്മൾ… ഓർമ്മക ളിൽ ഒരു സന്ദർശനം നടത്തി നമ്മൾ പിരിയുകയാണ്.

Conclusion:

Sandarsanam is a timeless classic that continues to be enjoyed by readers of all ages. It is a story of love, sacrifice, and the power of the human spirit.

नवनिर्माण Summary in Hindi

नवनिर्माण Summary in Hindi

नवनिर्माण” “त्रिलोचन शास्त्री” की एक प्रसिद्ध कविता है, जो समाज में व्याप्त कुरीतियों और शोषण के खिलाफ एक आवाज है। कविता में कवि एक ऐसे समाज की कल्पना करता है, जो शोषण और अन्याय से मुक्त हो।

कविता का सारांश

  • कविता की शुरुआत में कवि बताता है कि वह एक ऐसे समाज की कल्पना करता है, जहां सभी लोग समान हों। इस समाज में कोई गरीब या अमीर न होगा, कोई शोषक या शोषित न होगा। सभी लोग एक-दूसरे के साथ प्रेम और भाईचारे से रहेंगे।
  • कविता के दूसरे भाग में कवि बताता है कि वह एक ऐसे समाज की कल्पना करता है, जहां सभी लोगों को शिक्षा और रोजगार का समान अवसर मिले। इस समाज में कोई भेदभाव न हो, कोई जातिवाद या धर्मवाद न हो। सभी लोग समान रूप से शिक्षित और सशक्त होंगे।
  • कविता के तीसरे भाग में कवि बताता है कि वह एक ऐसे समाज की कल्पना करता है, जहां प्रकृति का संरक्षण हो। इस समाज में लोग प्रकृति के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध रखेंगे। वे पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करेंगे।

नवनिर्माण Summary in Hindi

नवनिर्माण कवि का परिचय

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नवनिर्माण कवि का नाम : त्रिलोचन। वास्तविक नाम वासुदेव सिंह। (जन्म 20 अगस्त, 1917; निधन 2007.)

प्रमुख कृतियाँ : धरती, दिगंत, गुलाब और बुलबुल, उस जनपद का कवि हूँ, सब का अपना आकाश (कविता संग्रह); देशकाल (कहानी संग्रह) तथा दैनंदिनी (डायरी) आदि।

विशेषता : काव्यक्षेत्र में प्रयोग धर्मिता के समर्थक। समाज के दबे-कुचले वर्ग को संबोधित करने वाले साहित्य के रचयिता।

विधा : चतुष्पदी। इस विधा में चार चरणों वाला छंद होता है। यह चौपाई की तरह होता है। इसके प्रथम, द्वितीय और चतुर्थ चरण में तुकबंदी होती है। भाव और विचार की दृष्टि से प्रत्येक चतुष्पदी अपने आप में पूर्ण होती है।

विषय प्रवेश : प्रस्तुत पद्य पाठ में कुल आठ चतुष्पदियाँ दी गई हैं। ये सभी चतुष्पदियाँ भाव एवं विचार की दृष्टि से अपने आप में पूर्ण है। इन चतुष्पदियों में आशावादी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है। कवि ने इनके माध्यम से संघर्ष करने तथा अन्याय, अत्याचार, विषमता और निर्बलता पर विजय पाने का आवाहन किया है।

नवनिर्माण चतुष्पदियों का सरल अर्थ

(1) तुमने विश्वास ……………………………….. आकाश दिया है मुझको।

मनुष्य के जीवन में किसी का विश्वास प्राप्त करने तथा किसी से प्रोत्साहन पाने का बड़ा महत्त्व होता है। इनके बल पर मनुष्य बड़े-बड़े काम कर डालता है।

कवि कहते हैं कि, तुमने मुझे जो विश्वास और प्रेरणा दी है वह मेरे लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इन्हें देकर तुमने मुझे असीम संसार दे दिया है। पर मैं इन्हें इस तरह सँभाल कर अपने पास रखूगा कि मैं आकाश में न उहूँ और मेरे पाँव हमेशा जमीन पर रहें। अर्थात मुझे अपनी मर्यादा का हमेशा ध्यान रहे।

(2) सूत्र यह तोड़ ……………………………….. छोड़ नहीं सकते।

कवि मनुष्य के बारे में कहते हैं कि वह चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो जाए, आकाश में उड़ानें भरता हो या अन्य कहीं उड़ कर चला जाए, पर अंत में उसे अपनों के बीच यानी धरती पर तो आना ही पड़ता है। कवि कहते हैं कि, यह बात शाश्वत सत्य है। इस सच्चाई को कोई नियम तोड़-मरोड़ कर झूठा साबित नहीं कर सकता। अर्थात मनुष्य कितना भी आडंबर क्यों न कर ले, पर वह अपनी वास्तविकता को छोड़ नहीं सकता।

(3) सत्य है ……………………………….. सामने अँधेरा है।

कवि संघर्ष करने का आवाहन करते हुए कहते हैं कि आपकी राह अँधेरों से भरी हुई है; भले यह बात सच हो या आपकी प्रगति के द्वार को अवरुद्ध करने के लिए तरह-तरह की कठिनाइयाँ रास्ते में आ रही हों, तब भी आपको संघर्ष के मार्ग पर रुकना नहीं है।

अँधेरे में भी आगे ही आगे बढ़ते जाना है, क्योंकि इसके अलावा आपके सामने और कोई चारा भी तो नहीं है। कवि का कहने का तात्पर्य यह है कि संघर्ष करना जारी रखना चाहिए। संघर्ष से ही सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।

(4) बल नहीं होता ……………………………….. “दिलाने के लिए।

कवि कहते हैं कि मनुष्य को निरर्थक कार्यों के लिए अपने बल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। उसका प्रयोग सार्थक कार्यों के लिए होना चाहिए। वे कहते हैं कि मनुष्य के पास बल किसी असहाय, पीड़ित व्यक्ति को सताने के लिए नहीं होता। बल्कि वह किसी असहाय या पीड़ित व्यक्ति की रक्षा करने के लिए होता है। कवि बलवान व्यक्तियों को संबोधित करते हुए कहते हैं, यदि ईश्वर ने तुम्हें शक्ति प्रदान की है, तो तुम सभी कमजोर लोगों के बल बन ३ कर उनको न्याय दिलाने के काम में लग जाओ। तभी तुम्हारे बल की सार्थकता है।

(5) जिसको मंजिल ……………………………….. वही कहता है।

कवि कहते हैं कि जिस व्यक्ति को अपनी सफलता की मंजिल की जानकारी हो जाती है, वह व्यक्ति अपने मार्ग में आने वाली परेशानियों से नहीं डरता। वह हँसते-हँसते इन परेशानियों को झेल लेता है। ऐसे व्यक्तियों को ही जीवन में सफलता मिलती है। इस तरह सफलता के शिखर पर पहुँचने वाले व्यक्ति समाज के लिए इतिहास बन जाते हैं और लोग उससे प्रेरणा लेते हैं।

(6) प्रीति की राह ……………………………….. चले आओ।

कवि प्यार-मोहब्बत और अच्छे आचार-व्यवहार को अपनाने की बात करते हुए लोगों का आवाहन करते हैं कि वे सब के साथ प्यार-मोहब्बत से रहें और सब के साथ अच्छा व्यवहार करें। यही सब के लिए अपनाने वाला सही मार्ग है। वे कहते हैं कि सब को हँसते-गाते जीवन जीने का मार्ग अपनाना चाहिए।

(7) साथ निकलेंगे ……………………………….. “समाज नर-नारी।

कवि स्त्री-पुरुष समानता की बात करते हुए कहते हैं कि स्त्री पुरुष दोनों एक साथ मिल कर विकट समस्याओं को सुलझाने का कार्य करेंगे। दोनों इस दिशा में कंधे से कंधा मिलाकर काम करेंगे और नए समाज की रचना करेंगे, जिसमें सब को समानता का अधिकार मिले।

(8) वर्तमान बोला……………………………….. गीत अच्छा था।

कवि वर्तमान और अतीत की बात करते हुए कहते हैं कि वर्तमान के अनुसार बीता हुआ समय अच्छा था। उस समय जीवन पथ में साथ निभाने वाले अच्छे मित्र थे। वर्तमान कहता है कि भविष्य में (जब हम अतीत हो जाएँगे और) लोग हमारा भी गुणगान करेंगे। वैसे अतीत भी गुणगान करने लायक था।

नवनिर्माण शब्दार्थ

व्योम = आकाश
सहचर = साथ-साथ चलने वाला, मित्र
सिद्धि = सफलता
मीत = मित्र, दोस्त

Conclusion

“नवनिर्माण” एक आदर्शवादी कविता है। यह कविता समाज में व्याप्त कुरीतियों और शोषण को दूर करने और एक नए समाज की स्थापना की कल्पना करती है। यह कविता आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी कि कविता के समय में थी।

कविता के माध्यम से कवि यह संदेश देना चाहता है कि समाज में व्याप्त कुरीतियों और शोषण को दूर करने के लिए एक नए समाज की स्थापना की आवश्यकता है। यह समाज एक आदर्श समाज होगा, जहां सभी लोग समान होंगे, सभी को शिक्षा और रोजगार का समान अवसर मिलेगा, और प्रकृति का संरक्षण होगा।

यह कविता एक महत्वपूर्ण कविता है, क्योंकि यह हमें एक ऐसे समाज की कल्पना करने के लिए प्रेरित करती है, जो बेहतर और न्यायपूर्ण हो।

PSEB 9th Class Summary In Hindi

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Punjab School Education Board 9th Class Summary In Hindi

The PSEB 9th Class Summary In Hindi is a comprehensive summary of the Punjab School Education Board’s 9th class syllabus in Hindi. The summary is written in a clear and concise style, and it is easy to understand. It is a valuable resource for students who are preparing for their PSEB 9th class Hindi examinations.

सरफ़रोशी की तमन्ना Summary in Hindi

सरफ़रोशी की तमन्ना Summary In Hindi

“Sarfaroshi Ki Tamanna” is closely associated with the bravery and determination of the freedom fighters who were willing to lay down their lives to secure a brighter future for India. This phrase continues to symbolize the enduring spirit of revolution and serves as a reminder of the sacrifices made by those who fought for India’s freedom. Read More Class 8 Hindi Summaries.

सरफ़रोशी की तमन्ना Summary in Hindi

सरफ़रोशी की तमन्ना पाठ का सार

‘सरफ़रोशी की तमन्ना’ शीर्षक पाठ शिवशंकर द्वारा लिखित है। इसमें लेखक ने भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद जैसे देशभक्तों की देशभक्ति का गुणगान किया है। दृश्य एक लायलपुर लाहौर में विद्यावती अपने बेटे भगत सिंह के प्रति बहुत चिन्तित है जो स्कूल गया हुआ हैं। वह अपनी बेटी अमरों से बार – बार उसके आने के बारे में पूछ रही थी। वह कह रही थी कि अंग्रेजों ने जलियाँवाला बाग़ में बहुत भद्दा खेल खेला है। शायद ये पागल हो गए है।

इसी बीच भगत दौड़ कर अपनी माँ से चिपक जाता है। उसने अपनी माँ को बताया कि वह तो जलियाँवाला बाग़ की पावन धरती को प्रणाम करने गया था। वहाँ दरिंदे अंग्रेज़ों ने हज़ारों स्त्री, पुरुषों, बच्चे, बूढ़ों को शहीद कर दिया। वहाँ की दीवारें, पेड़ – पौधे, कुएँ भी शहीदों की कुर्बानी बता रहे थे।

गोरों ने निहत्थे भारतीयों पर गोलियाँ बरसाई थीं। भगत अपनी माँ और बहन के सामने मिट्टी की सौगंध खाकर भारत माँ को आजाद करवाने की बात। सुखदेव ने आज़ादी की चिंगारी भड़का रखी है। भगत की माँ भी भारत के आज़ाद होने की कल्पना करने लगीं।।

दृश्य – दो – भगत सिंह लाहौर से दिल्ली में क्रान्तिकारियों के गुप्त स्थान पर चन्द्रशेखर आज़ाद के साथ मिलने आया। उसे देखकर आज़ाद भी खुश हुए भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, आज़ाद आदि देशभक्तों इन्कलाब जिन्दाबाद के नारे लगाए। तभी राजगुरु ने सब को साइमन के भारत आने की सूचना दी। आजाद ने उसका विरोध करने की योजना बताई कि हम सभी लाला लाजपतराय के नेतृत्व में इसका विरोध करेंगे। सभी पुनः इन्कलाब ज़िन्दाबाद भारत माता की जय के नारे लगाने लगे।

दृश्य – तीन – क्रान्तिकारियों के दफ्तर में राजगुरु को भगत, आज़ाद सभी देशभक्त क्रान्तिकारी परस्पर विचार – विमर्श कर रहे थे कि ये अंग्रेज़ अपनी हरकतों से बाज नहीं आएँगे। भगत ने अंग्रेजी सरकार को विस्फोट से उड़ाने की बात कही तभी आज़ाद ने उसे धैर्य रखने को कहा कि समय आने पर विस्फोट भी होगा। सभी क्रान्तिकारियों ने लाला जी की हत्या का बदला लने के लिए लाहौर माल रोड़ पर सांडर्स को गोलियों से भून दिया तथा वहाँ से भाग गए।

सरफ़रोशी की तमन्ना कविता

आज़ाद की योजना से भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त ने विधानसभा में बम फेंका किन्तु उससे किसी को कोई हानि नहीं हुई। भगत सिंह बटुकेश्वर दत्त पकड़े गए। इसके बाद अंग्रेज़ों ने अपना दमनचक्र चलाकर राजगुरु, सुखदेव के अतिरिक्त अनेक युवक जेलों में डाल दिए। भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई तथा बटुकेश्वर दत्त को काले पानी की सज़ा दी गई।

दृश्य – चार – जेल के केन्द्रीय कक्ष में सभी क्रांतिकारी सरफ़रोशी की तमन्ना गीत गाते हैं। वे मौत की सज़ा के बाबजूद जिस निडरता से गीत गाते हुए खुश थे उन्हें देखकर जेलर अचंभित हो उठे। जेलर के कहने पर भगत ने उसे बताया कि भगवान शिव ने सृष्टि के कल्याण के लिए विष पी लिया था। यह तो हमारे लिए प्याला है। राजगुरु के अनुसार हमारी शहादत भारतवासियों का राह दिखाएगी।

जेलर ने क्रान्तिकारियों से उनकी अन्तिम इच्छा पूछी तो भगत ने बेबे के हाथ की बनी रोटियाँ खाने को कहा। भगत, राजगुरु, सुखदेव सभी क्रान्तिकारी मेरा रंग दे बसंती चोला गीत गाने लगे। सभी भारत माता के प्रति समर्पण के भाव से भारत माता की जय, इन्कलाब ज़िन्दाबाद के नारे लगाने लगे। इसके बाद सभी ने फांसी का फंदा चूम लिया।

होंगे कामयाब Summary in Hindi

होंगे कामयाब Summary in Hindi

“Honge Kamyab” is a Hindi phrase that translates to “We will be successful” in English. This phrase embodies the spirit of determination, resilience, and optimism. It serves as a motivational mantra, inspiring individuals to persevere through challenges and setbacks with the belief that success is attainable. Read More Class 8 Hindi Summaries.

होंगे कामयाब Summary in Hindi

होंगे कामयाब कविता का सार

‘होंगे कामयाब’ एक प्रेरणादायक कविता है। कवि ने इसमें मनुष्य को अपने भीतर आत्म – विश्वास पैदा करने को कहा है। हम मिल – जुल कर लगातार अपने काम में लगे रहें। हो सकता है कि हमें विफलता का भी सामना हो जाए, परन्तु यदि हम संगठित रूप में दिल लगाकर अपने काम में लगे रहें तो एक – न – एक दिन अवश्य सफल हो जाएँगे। हमें यह पूरा विश्वास रखना चाहिए कि मिलकर चलने से शान्ति स्थापित हो जाएगी। हम किसी से डरेंगे नहीं। आज हमें किसी का भय नहीं है। हम साथ – साथ मिलकर चलेंगे। ये बातें अपने मन में बिठा लेनी चाहिए।

अंतरिक्ष परी : कल्पना चावला Summary in Hindi

अंतरिक्ष परी कल्पना चावला Summary in Hindi

“Antariksha Pari Kalpana Chawla” translates to “Space Fairy Kalpana Chawla” in English. This phrase pays tribute to the inspiring and legendary astronaut, Dr. Kalpana Chawla, who broke barriers and reached for the stars. Dr. Kalpana Chawla, an Indian-American astronaut, made history as the first woman of Indian origin to travel to space. Her remarkable journey from a small town in India to the vast expanses of space serves as a symbol of determination, courage, and the pursuit of dreams. Read More Class 8 Hindi Summaries.

अंतरिक्ष परी : कल्पना चावला Summary in Hindi

अंतरिक्ष परी : कल्पना चावला पाठ का सार

‘अन्तरिक्ष परी : कल्पना चावला’ शीर्षक पाठ डॉ. सुनील बहल द्वारा रचित है। इसमें लेखक ने अन्तरिक्ष परी कल्पना चावला के बारे में बताया है। प्रत्येक मनुष्य सपने देखता है किन्तु सपने पूरे करने के लिए अनथक परिश्रम, दृढ़ निश्चय, आत्मविश्वास एवं एकाग्रता की अत्यंत आवश्यकता पड़ती है। इन्हीं गुणों से कल्पना चावला ने अपने सपनों को पूरा किया। उनका मानना था कि सपनों में सफलता की ओर जाने की राह होती है।

इनका जन्म 1 जुलाई, सन् 1961 ई० में हरियाणा राज्य के करनाल के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। इनकी माँ का नाम श्रीमती संज्योति तथा पिता का नाम श्री बनारसी लाल चावला है। कल्पना चावला अपने परिवार में चार भाई-बहनों में सबसे छोटी थी। घर में उसे प्यार से मोंटू कह कर बुलाते थे। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा टैगोर बाल निकेतन स्कूल में हुई। वह बचपन से ही जिज्ञासु प्रवृत्ति की थी। उनका बचपन से आसमान में उड़ने का सपना था।

उन्होंने आठवीं कक्षा में ही अपने माता-पिता से इंजीनियर बनने की इच्छा जाहिर की। सन् 1978 ई० में कल्पना ने प्री इंजीनियरिंग पास की। सन् 1982 ई० में पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज चण्डीगढ़ से ऐरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने अमेरिका जाकर स्नातकोत्तर की डिग्री टैक्सास विश्वविद्यालय से प्राप्त की। वहीं जीन पियरे हैरिसन उसके मित्र बन गए जो फ्लाइंग क्लब का छात्र थे।

कल्पना भी उसके साथ फ्लाइंग क्लब में जाने लगी। सन् 1983 ई० में कल्पना तथा हैरिसन का विवाह हो गया। सन् 1988 ई० में कल्पना ने कोलोराडो विश्वविद्यालय से ऐरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएच०डी० की डिग्री प्राप्त की। सन् 1993 ई० में अमेरिका में कैलिफोर्निया की कम्पनी मेथडस इन्कॉर्पोरेशन में उपाध्यक्ष पर कार्य किया। सन् 1994 में नासा में उन्हें अन्तरिक्ष यात्री के रूप में चुना गया। इससे कल्पना को बहुत खुशी हुई। इससे उनका आत्मविश्वास और अधिक बढ़ गया। 16 मार्च, सन् 1995 ई० को कल्पना चावला ने एक वर्ष तक प्रशिक्षण शुरू किया। इसके बाद उनकी नियुक्ति अंतरिक्ष यात्री के प्रतिनिधि के रूप में हुई। 19 नवम्बर, सन् 1997 ई० को भारतीय समयानुसार दोपहर 2:37 बजे कल्पना ने अपने दल के साथ एस० टी० एस० 87 अन्तरिक्ष यान द्वारा अपनी पहली उड़ान भरी। यह मिशन 17 दिन, 16 घंटे, 32 मिनट अन्तरिक्ष में रहकर पृथ्वी पर लौट आया।

इसमें अन्तरिक्ष में 161 भारहीनता से भौतिक क्रियाओं को प्रभावित करने वाले परीक्षणों पर जोर दिया गया। कल्पना ने दूसरी उडान 16 जनवरी, सन 2003 को अन्तरिक्ष यान कोलम्बिया से शुरू की। इस मिशन में अन्तरिक्ष में 80 परीक्षण एवं प्रयोग किए गए। यह अन्तरिक्ष यान 16 दिनों के बाद लौट रहा था कि अचानक 1 फरवरी, सन् 2003 को पृथ्वी से 63 किलोमीटर की ऊँचाई पर बड़े धमाके के साथ टूटकर बिखर गया जिसमें कल्पना सहित छ: अन्य अन्तरिक्ष यात्री अन्तरिक्ष में विलीन हो गए। इस घटना ने सारे विश्व को झकझोर कर रख दिया।

सारा संसार दुःख के सागर में डूब गया। कल्पना के परिवार के सदस्य भी उनके स्वागत के लिए अमेरिका पहुँच चुके थे। वे उनके इंतज़ार में थे किन्तु कल्पना सभी को रोता छोड़कर कल्पनाओं में खो गई। वास्तव में कल्पना युवाओं की प्रेरणा स्रोत रहेगी।

मेरा दम घुटता है Summary in Hindi

मेरा दम घुटता है Summary in Hindi

“Mera Dum Ghutta Hai” is a popular Hindi phrase that translates to “I’m out of breath” in English. This expression is often used to convey a sense of exhaustion or being overwhelmed by a situation. It encapsulates the feeling of being physically or emotionally drained, unable to cope with the demands of life or a particular circumstance. Read More Class 8 Hindi Summaries.

मेरा दम घुटता है Summary in Hindi

मेरा दम घुटता है पाठ का सार

‘मेरा दम घुटता है’ नामक शीर्षक की एकांकी पंकज चतुर्वेदी द्वारा लिखित है। इसमें लेखक ने वायुमंडल में बढ़ रहे प्रदूषण के प्रति चिन्ता व्यक्त की है। पर्दे पर चारों तरफ़ हरे-भरे पेड़ खड़े हैं। दूर तक कोई बस्तियाँ या इन्सान दिखाई नहीं दे रहे। यहां हवा की कई घटक गैसों की सभा चल रही है। इस सभा में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड तथा ओजोन है। शहर से दूर फलों का बगीचा था।

सभा के प्रारम्भ में नाइट्रोजन ने सभी का बैठक में स्वागत किया। इसकी अध्यक्ष ऑक्सीजन थी जो पृथ्वी जीवन की मूलाधार है। ऑक्सीजन के अनुसार आज उसके जीवन को ही ख़तरा बना हुआ है। हाइड्रोजन ने कहा कि उसके बिना उसकी हालत ख़राब है। दोनों के साथ रहने से ही पृथ्वी पर पानी उपलब्ध है। दुनिया का आधे से अधिक भाग में पानी है। पानी के बिना जीवन भी सम्भव नहीं है।

ऑक्सीजन ने बताया कि आज वायु का अस्तित्व खतरे में है। नाइट्रोजन ने बताया कि इस सभा के लिए कोई भी सुरक्षित जगह नहीं मिल रही थी। चारों तरफ़ काली पीली जहरीली गैसें हमला कर देती थीं। ऐसा लगता है कि कहीं हमारा बहुमत ही खत्म न हो जाए। जहरीली गैसों के कारण उनकी सेहत बिगड़ रही है। ऑक्सीजन ने कहा कि चारों तरफ़ धुआँ ही धुआ है। स्कूटर, बस, ट्रैक्टर, चिमनी, कारखाने आदि से विषैली गैसें एवं धुआँ निकल रहा है।

नाइट्रोजन ने बताया कि उसे स्वयं जगह तलाशने में बहुत मुश्किलें आई। ऑक्सीजन ने बताया कि पिछले समय के गाँव अच्छे थे। नाइट्रोजन ने कहा कि उस गाँव में सड़क बन रही है। वहाँ बहुत तारकोल गर्म हो रहा था; काला धुआँ निकल रहा था। चारों तरफ़ धुआँ ही धुआँ था। हाइड्रोजन ने कहा कि सिगरेट, बीड़ियों का धुआँ हमारा तो नुकसान करता है, धरती पर रहने वाले लोगों को भी बीमार कर रहा है।

यहां आदमी खुद का नुकसान खुद कर रहे हैं। इससे मनुष्य को दमा, साँस से सम्बन्धित रोग, फेफड़ों के रोग, त्वचा सम्बन्धी बीमारियाँ सभी तो इसी वायु प्रदूषण से ही हो रही हैं। नाइट्रोजन ने बताया कि वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड बहत तेज़ गति से बढ़ रही है। चारों तरफ़ कारखाने, गाड़ियाँ इसे छोड़ रहे हैं।

कार्बन डाइऑक्साइड कहने लगी कि वह तो वायुमंडल में केवल आधी प्रतिशत से भी कम थी, परन्तु मानव जाति ने मेरी मात्रा को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया है। मेरे साथ-साथ कार्बन मोनो ऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है। जो मानव जीवन का नुकसान कर रही है।

ओज़ोन कहने लगी कि उसकी मात्रा बहुत कम है। मानव इससे निरन्तर छेड़खानी कर रहा है।

सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से लड़ने की शक्ति मुझ में ही है। उसकी अनुपस्थिति में ये किरणें धरती के लोगों को अनेक बीमारियों का शिकार बना लेती हैं। धरती से दस से पंद्रह किलोमीटर उँचाई पर वायुमंडल में ओज़ोन की पहली परत है। रासायनिक गैस के कारण ओज़ोन की सुरक्षा परत टूटती-फूटती जा रही है। हाइड्रोजन ने बताया कि स्वीडन में वर्षा होने पर जल के साथ तेज़ाब बरस रहा है। इंग्लैण्ड के कारखानों ने ऊँची-ऊँची चिमनियां लगा ली हैं।

उनका धुआँ स्वीडन तक पहुँच जाता है। इनसे नाइट्रोजन ऑक्साइड तथा सल्फर डाइऑक्साइड गैसें निकलती हैं। इतना ही नहीं हमारे देश में भी ऐसी बारिश होने की संभावना है। इसी से धरती का तापमान बढ़ रहा है। ऑक्सीजन ने कहा कि कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने का उपाय है कि अधिक-से-अधिक पेड़ लगाए जाएं।

नाइट्रोजन से कहा कि पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ती मात्रा को प्रकाश संश्लेषण की क्रिया से सोख लेते हैं और ऑक्सीजन मुक्त करते हैं।

ऑक्सीजन आदमी द्वारा पेड़ों पर दवाई छिड़कने से परेशान है। हाइड्रोजन रसायनों के प्रयोग से चिन्तित जिनके कारण रसायन वायुमण्डल में घुल रहे हैं। यदि ऐसा ही रहा तो वायुमण्डल अधिक दूषित हो जाएगा।